रिपोर्ताज का अर्थ और स्वरूप
रिपोर्ताज फ्रांसीसी भाषा का शब्द है और अंग्रेजी शब्द ‘रिपोर्ट’ से मिलता-जुलता है। लेकिन ‘Report’ समाचार पत्रों के संवाददाता लिखते हैं, जो तथ्यों का संकलन मात्र होता है, क्योंकि उसका लक्ष्य पाठकों को तथ्यों से परिचित कराना होता है। वास्तविक घटना को ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर देना रिपोर्ट है अर्थात ‘रिपोर्ट’ सूचनात्मक होती है। वहीं ‘Reportaj’ साहित्यिक शैली में लिखा जाता है। “इसमें साहित्यिकता, कल्पना, भावुकता, संवेदना का पुट होता है।”[1]
हिंदी साहित्य कोष के अनुसार- “रिपोर्ट के कलात्मक और साहित्यिक रूप को ही रिपोर्ताज कहते हैं।”[2] रिपोर्ताज में भावना का आवेग होता है। बाबू गुलाबराय ने लिखा है- “रिपोर्ट की भांति यह घटना या घटनाओं का वर्णन तो अवश्य होता है किन्तु उसमें लेखक के ह्रदय का निजी उत्साह रहता हाँ जो वस्तुगत सत्य पर बिना किसी प्रकार का आवरण डाले उसको प्रभावमय बना देता है।”[3]
हिंदी में इसे ‘वृत्त-निर्देशन’ या ‘सूचिका’ भी कहा जाता है परंतु वर्तमान में ‘रिपोर्ताज’ नाम ही प्रचलित है। इस विधा का प्रादुर्भाव यूरोप में 1936 ई. के आस-पास द्वितीय विश्वयुद्ध के समय हुआ था। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय ही यूरोप के रचनाकारों ने युद्ध के मोर्चे से साहित्यिक रिपोर्ट तैयार की। इन्हीं रिपोर्टों को ही बाद में रिपोर्ताज कहा गया। ’रिपोर्ताज’ के जनक के रूप में रूसी साहित्यकार इलिया एहरेनवर्ग को स्वीकार किया जाता है।
“हाल-ताज में ही घटी तथा लेखक द्वारा प्रत्यक्ष देखी गई घटनाओं का अंतरंग अनुभव के साथ किया गया वर्णन रिपोर्ताज है।”[4] डॉ. विश्वम्भरनाथ उपाध्याय के अनुसार- “किसी घटना की रिपोर्ट के कलात्मक और साहित्यिक रूप को रिपोर्ताज कहा जाता है।”[5] इसी क्रम में उन्होंने आगे लिखा है कि, “बिना कल्पना को अनुभव में बदले सफल रिपोर्ताज नहीं लिखे जा सकते और साथ ही अनुभव को कल्पना में पकाए बिना भी रिपोर्ताज का सफल लेखन नहीं हो सकता।”[6]
वहीं डॉ. रामविलास शर्मा के अनुसार- “कल्पना के सहारे रिपोर्ताज नहीं लिखी जा सकती… रिपोर्ताज लिखने के लिए जनता से सच्चा प्रेम होना चाहिए।”[7] डॉ. विश्वम्भरनाथ उपाध्याय के शब्दों में- “उसका संबंध सिर्फ वर्तमान से होता है किंतु उसका लेखक वर्तमान के उस बिंदु पर होता है, जिसमें भूतकालीन मूल्य और भावनाएं रहती हैं और भविष्य के प्रति उत्कट लालसा भी।”[8]
रिपोर्ताज की विशेषताएं
रिपोर्ताज के निम्नलिखित गुण होते हैं-
- यह आँखों देखी घटनाओं के आधार पर लिखा जाता है। इसलिए इसमें तथ्यों की प्रधानता और कल्पना तत्व कम मात्रा में पाया जाता है।
- यह घटना-प्रधान होने के साथ-साथ कथा तत्व से युक्त होता है। क्योंकि घटना का यथातथ्य वर्णन इसका प्रमुख लक्षण है।
- लेखक को वतुस्थिति और विषय की जानकारी होनी चाहिए।
- लेखक में संवेदनशीलता और सूक्ष्म पर्यवेक्षण-शक्ति आवश्यक है।
- सरसता, प्रवाह और भाव-प्रवणता इसके अनिवार्य गुण हैं।
- सीमित परिधि में अधिक तथ्यों को प्रस्तुत करना इसका लक्ष्य होना चाहिए, परंतु आकार का कोई बंधन नहीं होता। वह छोटा या बड़ा हो सकता है।
- इसमें साहित्यिकता एवं कलात्मकता का समावेश होना चाहिए।
प्रमुख रिपोर्ताज और उसके लेखक
हिंदी के प्रमुख रिपोर्ताज और उसके लेखक निम्नलिखित हैं-
क्रम | लेखक | रिपोर्ताज |
1. | शिवदान सिंह चौहान | लक्ष्मीपुरा (1938), मौत के खिलाफ जिंदगी की लड़ाई |
2. | रांगेय राघव | तूफानों के बीच (1946) |
3. | प्रकाश चन्द्र गुप्त | स्वराज भवन, अल्मोड़ा का बाज़ार, बंगाल का अकाल, रेखाचित्र |
4. | भदंत आनंद कौसल्यायन | देश की मिट्टी बुलाती है |
5. | उपेन्द्र नाथ अश्क | पहाड़ों में प्रेममय संगीत, रेखाएँ और चित्र |
6. | शमशेर बहादुर सिंह | प्लाट का मोर्चा (1952) |
7. | कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ | क्षण बोले कण मुस्काए (1953) |
8. | श्रीकांत वर्मा | अपोलो का रथ |
9. | लक्ष्मीचंद्र जैन | कागज की कश्तियां, नये रंग नए ढंग |
10. | शिवसागर मिश्र | वे लड़ेंगे हजारों साल (1966) |
11. | धर्मवीर भारती | युद्ध यात्रा (1972) |
12. | अज्ञेय | देश की मिट्टी बुलाती है |
13. | फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ | ऋण जल धन जल (1977), नेपाली क्रांति कथा (1978), श्रुत-अश्रुत पूर्व (1984), एकलव्य के नोट्स |
14. | विवेकी राय | जुलूस रुका है (1977), बाढ़! बाढ़!! बाढ़!!! |
15. | भागवत शरण उपाध्याय | खून के छीटें |
16. | राम कुमार वर्मा | पेरिस के नोट्स |
17. | निर्मल वर्मा | प्राग: एक स्वप्न |
18. | कमलेश्वर | क्रांति करते हुए आदमी को देखना |
19. | श्री कान्त वर्मा | मुक्ति फौज |
20. | यशपाल जैन | रूस में छियालीस दिन |
21. | मणि मधुकर | पिछला पहाड़, सूखे सरोवर का भूगोल |
22. | रामनारायण उपाध्याय | गरीब और अमीर पुस्तकें |
23. | विद्यानिधि सिद्वांतालंकार | शिवालिक की घाटियों में |
24. | मुनि कांतिसागर | खंडहरों का वैभव |
हिंदी रिपोर्ताज का विकास
हिंदी में रिपोर्ताज के जनक शिवदान सिंह चौहान हैं। इनके रिपोर्ताज ‘लक्ष्मीपुरा’ को हिंदी का पहला रिपोर्ताज माना जाता है। जिसका प्रकाशन सुमित्रानंदन पंत के संपादन में निकलने वाली ‘रूपाभ’ पत्रिका के दिसम्बर, 1938 ई. के अंक में हुआ था। ‘लक्ष्मीपुरा’ में एक गाँव के हलचल भरे जीवन का सजीव चित्र है। कुछ समय बाद ही ‘हंस’ पत्रिका में उनका दूसरा रिपोर्ताज ‘मौत के खिलाफ ज़िन्दगी की लड़ाई’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ। संपादक के रूप में उन्होंने ‘अपना देश’ नामक स्थाई स्तंभ प्रारंभ किया जिसमें प्रतिमाह एक रिपोर्ताज प्रकाशित होता था।
इसके बाद 1944 ई. में ‘विशाल भारत’ पत्रिका में रांगेय राघव ने बंगाल के अकाल (1941 ई.) पर ‘अदम्य जीवन’ शीर्षक से एक रिपोर्ताज लिखा जो ‘तूफानों के बीच’ में संकलित है। ‘तूफानों के बीच’ रिपोर्ताज के संदर्भ में अमृतराय ने लिखा है कि, “जहाँ तक मैं जानता हूँ रांगेय राघव के उन्हीं रिपोर्ताजों से हिंदी में लिखने का चलन शुरू हुआ। मैंने और दूसरों ने रिपोर्ताज लिखे, लेकिन जो बात रांगेय राघव के लिखने में थी वह किसी को नसीब नहीं हुई।”[9]
फनीश्वरनाथ रेणु ने विपुल मात्रा में रिपोर्ताज लिखे जिसमें काफी अनुपलब्ध हैं। उनका पहला रिपोर्ताज ‘विपादप नाच’ है जो साप्ताहिक विश्वामित्र में 1945 ई. में प्रकाशित हुआ था। और अंतिम ‘पटना-जलप्रलय’ है जो 1975 ई. में प्रकाशित हुआ था। ‘रेणु’ ने ‘ऋण जल धन जल’ (1977 ई.) में 1966 ई. के बिहार के भयंकर सूखे और 1976 ई. में पटना की विनाशकारी बाढ़ के सजीव चित्र अंकित हैं। युद्ध पर ‘रेणु’ का सबसे बड़ा रिपोर्ताज ‘नेपाली क्रांति-कथा’ है, जो दिनमान पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। इसमें प्रजातंत्र की स्थापना के लिए राणाशाही के खिलाफ नेपाल में (1950 ई.) हुए सशस्त्र संघर्ष का वर्णन है।
धर्मवीर भारती ने ‘धर्मयुग’ पत्रिका के माध्यम से अनेक रिपोर्ताज लिखे, जिसमें ‘ब्रम्हापुत्र की मोर्चाबंदी’ और ‘दानव की वृत्ति’ चर्चित हैं। बांग्लादेश युद्ध यात्रा (1971 ई.) और भारत-पाक युद्ध यात्रा के आधार पर भारती का 1972 ई. में ‘युद्ध यात्रा’ रिपोर्ताज संग्रह प्रकाशित हुआ। शिवसागर मिश्र का रिपोर्ताज- ‘लड़ेंगे हजार साल’ (1966 ई.) सन् 1965 ई. में हुए भारत-पाक युद्ध पर आधारित है।
विवेकी राय ने ‘जुलूस रुका है’ और ‘बाढ़! बाढ़!! बाढ़!!!’ नाम से जो रिपोर्ताज लिखा जिसमें स्वातंत्र्योतर भारत के गांवों के दुःख-दर्द की अभिव्यक्ति हुई है। मणि मधुकर के रिपोर्ताज संग्रह ‘पिछला पहाड़’ और ‘सूखे सरोवर का भूगोल’ रेगिस्तान के जीवन से संबंद्ध हैं। इनमें लेखक ने मरुभूमि के जीवन संघर्षों को मानवीय सहानुभूति के साथ उभारा है। ‘देश की मिट्टी बुलाती है’ अज्ञेय का रिपोर्ताज संग्रह है जिसमें ‘जापानी युद्ध बंदियों के साथ’ चर्चित रिपोर्ताज है।
इनके अतिरिक्त भगवत शरण उपाध्याय, राहुल सांकृत्यायन, प्रभाकर माचवे, रामकुमार वर्मा, निर्मल वर्मा, शमशेर बहादुर सिंह, श्रीकांत वर्मा, विष्णुकांत शास्त्री, कमलेश्वर, विवेकीराय, अमृतराय आदि लेखकों ने इस विधा को समृद्ध किया। अमृतराय ने जो रिपोर्ताज ‘हंस’ पत्रिका में लिखे, वे सब ‘लाल धरती’ में संकलित हैं।
रिपोर्ताज संबंधित प्रमुख प्रश्न
Ans. रिपोर्ताज फ्रांसीसी भाषा का शब्द है।
Ans. वास्तविक घटना ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर देना ‘रिपोर्ट’ है जिसे हिंदी में ‘रपट लिखना’ कहते हैं। जबकि वास्तविक घटना को अपनी भावना में रंग कर बिंबधर्मी भाषा के माध्यम से सजीव बनाकर प्रस्तुत करना रिपोर्ताज कहलाता है।
Ans. हाल-ताज में घटी तथा लेखक के द्वारा प्रत्यक्ष देखी गई घटना का अंतरंग अनुभव के साथ किया गया वर्णन रिपोर्ताज है। रेखाचित्र, संस्मरण, जीवनी तथा आत्मकथा के समान इसका विषय भी यथार्थ हुआ करता है।
Ans. हिंदी का प्रथम रिपोतार्ज शिवदान सिंह चौहान का ‘लक्ष्मीपुरा’ है जो 1938 ई. में प्रकाशित हुआ था।
Ans. ‘ऋणजल धनजल’ रिपोर्ताज के लेखक फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ हैं।
Ans. लक्ष्मीपुरा (शिवदान सिंह चौहान), तूफानों के बीच (रांगेय राघव), प्लाट का मोर्चा (शमशेर बहादुर सिंह), युद्ध यात्रा (धर्मवीर भारती), नेपाली क्रांति कथा (फणीश्वरनाथ ‘रेणु’), जुलूस रुका है (विवेकी राय) आदि।
[1] भारतीय तथा पाश्चात्य काव्यशास्त्र- डॉ. सत्यदेव चौधरी, पृष्ठ- 542
[2] हिंदी का गद्य साहित्य- रामचंद्र तिवारी, पृष्ठ- 569
[3] हिंदी आलोचना की पारिभाषिक शब्दावली- डॉ. अमरनाथ, पृष्ठ- 303
[4] साहित्यशास्त्र-परिचय- राधावल्लभ त्रिपाठी, पृष्ठ- 29
[5] हिंदी में रेखाचित्र और रिपोर्ताज- डॉ. विश्वम्भरनाथ उपाध्याय, आलोचना पत्रिका, अप्रैल- 1966
[6] वही
[7] कथा विवेचना और गद्य शिल्प- रामविलास शर्मा, पृष्ठ- 146
[8] हिंदी आलोचना की पारिभाषिक शब्दावली- डॉ. अमरनाथ, पृष्ठ- 303
[9] हिंदी आलोचना की पारिभाषिक शब्दावली- डॉ. अमरनाथ, पृष्ठ- 304