हिंदी में जीवनीपरक उपन्यास लेखन
हिंदी में इस धारा की शुरुआत हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’ (1986) से होती है। आगे चलकर छठें दशक में रांगेय राघव ने एतिहासिक-पौराणिक पत्रों और कवियों के जीवनियों पर आधारित अनेक उपन्यास लिखे। गोपाल राय ने लिखा है की “उन्होंने प्रायः अपने इतिहास ज्ञान की ही आवृत्ति की है। पत्रों से जुड़ी अतिलौकिक घटनाओं को तर्कसंगत बनाने के लिए उनकी व्याख्या की गई है और उन्हें इतिहास से जोड़ने का प्रयास किया गया है।“ प्रथम जीवनीपरक उपन्यास रांगेय राघव का ‘भारती का सपूत’ है जो भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पर आधारित है। हालाँकि गोपाल राय जीवनीपरक उपन्यास (jiwnipark upnyas) की औपन्यासिक विधा के रूप में पुष्टि का श्रेय अमृतलाल नागर के ‘मानस का हंस’ (1972) को देते हैं, जो तुलसीदास की जीवनी और व्यक्तित्व को आधार बनाकर लिखा गया है।
हिंदी के प्रमुख जीवनीपरक उपन्यास-
उपन्यासकार | उपन्यास | संबंधित जीवनी |
---|---|---|
रांगेय राघव | भारती का सपूत (1954) | भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पर |
देवकी का बेटा (1954) | कृष्ण के जीवन पर | |
यशोधरा जीत गई (1954) | गौतम बुद्ध के जीवन पर | |
रत्ना की बात (1954) | तुलसी के जीवन पर | |
लोई का ताना (1954) | कबीर के जीवन पर | |
लखिमा के आंखें (1957) | विद्यापति के जीवन पर | |
धूनी का धुंआँ (1959) | गोरखनाथ के जीवन पर | |
मेरी भवबाधा हरो (1960) | बिहारी के जीवन पर | |
अमृतलाल नागर | मानस का हंस (1972) | तुलसीदास के जीवन पर |
खंजन नयन (1981) | सूरदास के जीवन पर | |
वीरेंद्र कुमार जैन | अनुत्तर योगी (1974-81) | महावीर के जीवन पर |
विष्णु प्रभाकर | आवारा मसीहा (1974) | शरत् चन्द्र की जीवनी |
नरेंद्र कोहली | तोड़ो कारा तोड़ो (2 भाग) ( 1992, 1993) | विवेकानंद के जीवन पर |
गिरिराज किशोर | पहला गिरमिटिया (1999) | महात्मा गांधी के जीवन पर |
संजीव | सूत्रधार (2003) | भिखारी ठाकुर पर |
राजेन्द्र मोहन भटनागर | विवेकानंद | विवेकानंद के जीवन पर |
सनातन पुरुष | महर्षि अरविंद के जीवन पर | |
युगपुरुष अंबेडकर | अंबेडकर के जीवन पर |