भक्तिकाल के प्रमुख संत कवि और उनकी रचनाएँ | sant kavya

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भक्तिकाल के प्रमुख संत कवि और उनकी रचनाएँ

डॉ. पीताम्बर दत्त बड़ध्वाल ने संत शब्द का संबंध शांत से माना है जिसका अर्थ है निवृति मार्गी या वैरागी। भक्तिकाल में संत कवि (sant kavi) उन कवियों के लिए प्रयुक्त हुआ जो निर्गुण भक्ति या ज्ञानाश्रयी शाखा से संबंधित हैं। संत काव्य (sant kavya) परंपरा के प्रमुख कवि कबीर माने जाते हैं। अन्य कवियों में रैदास, नानक देव, हरिदास निरंजनी, दादू दयाल, मलूकदास, धर्मदास, सुंदरदास, रज्जब, गुरु अंगद, रामदास, अमरदास, अर्जुन देव, लालदास, सींगा, बाबा लाल, वीरभान, निपटनिरंजनी, शेख फरीद, संतभीषन, संत सदना, संत बेनी, संत पीपा, संत धन्ना आदि प्रमुख हैं। दयाबाई, सहजोबाई, बावरी साहिबा प्रमुख निर्गुण संत महिलायें उल्लेखनीय हैं।

संत काव्य का नामकरण

sant kavya (संत काव्य) का नामकरण आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने ‘ज्ञानाश्रयी शाखा’, हजारी प्रसाद द्विवेदी ‘निर्गुण भक्ति’ और रामकुमार वर्मा, परशुराम चतुर्वेदी तथा गणपतिचंद्र गुप्त ‘संत काव्य’ किया है।

संत काव्य धारा के प्रथम कवि और उसके प्रस्तोता

आचार्य रामचंद्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी तथा रामस्वरूप चतुर्वेदी ‘कबीरदास’ को संत काव्य धारा (sant kavyadhara) का प्रमुख कवि मानते हैं। रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है, “निर्गुण मार्ग’ के निर्दिष्ट प्रवर्तक कबीरदास ही थे।” वहीं गणपति गुप्त और रामकुमार वर्मा ‘नामदेव को संत काव्य धारा का प्रथम कवि मानते हैं।

महाराष्ट्र के प्रमुख संत

महाराष्ट्र के संत परम्परा के आदि कवि ‘मुकुंद राज’ को माना जाता है। इन्होंने 1190 ई. में मराठी का पहला काव्य ग्रंथ ‘विवेक सिंधु’ लिखा। महाराष्ट्र में ‘महानुभाव’ और ‘बारकारी’ नामक दो संप्रदाय प्रचलित थे। ‘महानुभाव’ संप्रदाय के प्रवर्तक चक्रधर और ‘बारकारी’ सम्प्रदाय के मूल प्रवर्तक संत पुण्डलिक माने जाते हैं। परंतु ऐतिहासिक दृष्टि से बारकरी संप्रदाय के प्रथम उन्नायक संत ज्ञानेश्वर हैं।

हिंदी में भक्ति साहित्य की परम्परा का प्रवर्तन नामदेव ने किया था। नामदेव महाराष्ट्र के भक्त संत कवि थे। इनका जन्म 1135 ई. और मृत्यु 1215 ई. में हुआ था। नामदेव जाति के दर्जी थे। इनके गुरु का नाम ‘विसोवा खेचर’ था। नामदेव बारकरी संप्रदाय से जुड़े हुए थे। नामदेव की मराठी भाषा में ‘अभंग’ ग्रंथ है और हिंदी में रचित रचनाएँ गुरु ग्रंथ साहब में संग्रहित हैं। नामदेव (Namdev) की हिंदी में रचित सगुण भक्ति के पदों की भाषा ब्रज है। वहीं निर्गुण पदों की भाषा नाथ पंथिओं द्वारा गृहीत खड़ीबोली या सधुक्कड़ी भाषा है।

प्रमुख संत कवियों का जन्म-मृत्यु

कविजन्म (ई.)मृत्यु (ई.)
1. रैदास13881518
2. कबीरदास13981518
3. धन्ना1415 –
4. पीपा1425 –
5. जंभदास14511523
6. हरिदास निरंजनी14551543
7. गुरुनानक14691538
8. सिंगा15191659
9. निपट निरंजन1531 –
10. लाल दास15401648
11. बावरी साहिबा15421605
12. वीरभान1543 –
13. दादू दयाल15441603
14. रज्जब15671689
15. मलूक दास15741682
16. बाबा लाल15901655
17. सुंदर दास15961689
18. शेख फरीद14721552
sant kaviyon ka samay

संत कवियों का जीवन परिचय और रचनाएँ

1. कबीरदास | Kabir Das

कबीर शब्द अरबी भाषा का है जिसका अर्थ होता है, महान्‌ या श्रेष्ठ। कबीर जाति के जोलाहे थे और काशी में रहते थे। कबीरदास का जन्मकाशी, 1398 ई. में और मृत्यु मगहर, बस्ती, 1518 ई. में हुआ था। इनका पालन-पोषण अली या नीरू-नीमा दंपत्ति द्वारा किया गया। इनकी पत्नी का नाम लोई था। कबीर के पुत्र का नाम कमाल और पुत्री का नाम कमाली था।

कबीरदास दिल्ली सुल्तान ‘सिकंदर लोदी’ के समकालीन थे। सिकंदर लोदी द्वारा कबीर पर किये गये अत्याचारों का उल्लेख अनन्तदास कृत- कबीर परिचई में मिलता है। ‘कबीर चरित्र बोध’ प्रथम ग्रंथ है जिसमें कबीर का अविर्भाव काल 1455 वि. संवत्‌ का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। मुस्लिम परंपरा सूफी फकीर शेख तकी को कबीर का गुरु मानती है, जो सिकंदर लोदी के पीर (गुरु) थे। जबकि दविस्तान के लेखक इतिहासकार मोहसिन फानी और पैशाची भाषा की कृत प्रसंग परिजात के लेखक चेतनदास ने रामाननंद को कबीर का गुरु माना है जो अद्यनत प्रमाणों से भी सर्व॑मान्य है। कबीरदास के उत्तराधिकारी ‘कमाल’ व ‘धर्मदास’ थे।

कबीर का दार्शनिक चिन्तन अद्वैतवादी है। कबीर की उलटबाँसियों पर सिद्वों एवं नाथों का प्रभाव है। कुछ विद्वानों का मत है कि ‘कबीर भक्त और कवि बाद में थे, समाज सुधारक पहले।’ वहीं पुरुषोत्तम अग्रवाल का मत है की कबीर (Kabir Das) पहले कवि हैं, भक्त और समाज सुधारक बाद में।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार, ‘कबीर की वचनावली की सबसे प्राचीन प्रति सन 1512 ई. की लिखी है।’ सर्वप्रथम कबीर की बानियों का प्राचीनतम नमूना गुरु ग्रंथ साहिब में मिलता है। कबीर की बानियों को संकलित करने का श्रेय ‘बीजक’ (1464 ई.) में उनके शिष्य ‘धर्मदास’ को है। बीजक तीन भागों में विभक्त है- साखी, सबद, रमैनी। इस तरह कबीर के तीन वाणी संग्रह हैं- साखी, सबद, रमैनी।

क) साखी- यह संस्कृत के साक्षी शब्द का विकृत रूप है और धर्मोपदेश के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। कबीर की शिक्षाओं और सिद्धांन्तो का निरूपण अधिकतर साखियों में हुआ है। यह दोहा छंद में लिखा गया है। इसकी भाषा सधुक्कड़ी है अर्थात्‌ राजस्थानी और पंजाबी मिली हुई है।

साखियों के संबंध में कबीर के मत

i) साखी आँखी ज्ञान की, समुझि लेहु मन माहिं। बिनु साखी संसार का झगड़ा छूटे नाहिं।।

ii) हरजी यहै विचारिया, साखी कहो कबीर। भौ सागर में जीव है, जो पकड़े यह तीर।।

ख) सबद- सबद (शब्द) गेय पद में रचे गये हैं, जिसमें विभिन्‍न राग-रागिनीयों का निर्वाह प्रचुर मात्रा में हुआ है। इसकी भाषा तत्कालीन मध्य देश की भाषा ब्रजभाषा और पूर्वी बोली है। इसमें कबीर ने आध्यात्मिक एवं रहस्यावादी अनुभूति की व्यंजना तथा साधनात्मक अर्थो के बोध के लिए प्रतीकों का प्रयोग मुक्त रूप से किया है। इसमें कबीर की प्रेम और अंतरंग साधना की अभिव्यक्ति हुई है।

ग) रमैनी- रमैनी का अर्थ ‘रामायण’ होता है। यह दोहा एवं चौपाई छंद में रचित है। इसमें कबीर ने रहस्यवादी और दार्शनिक विचारों को प्रगट किया है। इसकी भाषा ब्रज भाषा और पूर्वी बोली है।

कबीर के भाषा के संबंध में विभिन्न विद्वानों के मत

विद्वानमत
आचार्य रामचन्द्र शुक्लसधुक्कड़ी
डॉ. श्याम सुन्दरदासपंचमेल खिचड़ी
डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदीभाषा का डिक्टेटर
डॉ. वच्चन सिंहसंत भाषा
कबीर के संबंध में विभिन्न विद्वानों के मत

i) आचार्य रामचंद्र शुक्ल

“इसमें कोई संदेह नही कि कबीर ने ठीक मौके पर जनता के उस बड़े भाग को संभाला जो नाथपंथियों के प्रभाव से प्रेमभाव और भक्तिरस से शून्य शुष्क पड़ता जा रहा था।”

“कबीर ने अपनी झाड़ फटकार के द्वारा हिन्दुओं और मुसलमानों का कट्टरपन दूर करने का जो प्रयास किया, वह अधिकतर चिढ़ाने वाला सिद्ध हुआ, हृदय को स्पर्श करने वाला नहीं।”

“कबीर ने भारतीय ब्रह्मवाद के साथ सूफियों के भावात्मक रहस्यवाद हठयोगियों के साधनात्मक रहस्यवाद और वैष्णवों के अहिंसावाद तथा प्रपत्तिवाद को लेकर अपना पंथ खड़ा किया।”

“भाषा बहुत परिष्कृत और परिमार्जित न होने पर भी कबीर की उक्तियों में कहीं-कहीं विलक्षण प्रभाव और चमत्कार है। प्रतिभा उनमें प्रखर थी इनमें संदेह नहीं।”

“इसके साथ ही मनुष्यत्व की सामान्य भावना को आगे करके निम्न श्रेणी की जनता में उन्होंने (कबीर) आत्मगौरव का भाव जगाया और भक्ति के ऊँचे से ऊँचे सोपान की ओर बढ़ने के लिए बढ़ावा दिया।”

“कबीर तथा अन्य निर्गुणपंथी संतों के द्वारा अन्तस्साधना में रागात्मिका ‘भक्ति’ और ‘ज्ञान’ का योग तो हुआ पर ‘कर्म’ की दशा वही रही जो नाथपंथियों के यहाँ थी।”

ii) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी-

“हिन्दी साहित्य के हजार वर्षो के इतिहास में कबीर जैसा व्यक्तित्व लेकर कोई उत्पन्न नही हुआ। महिमा में यह व्यक्ति केवल एक ही प्रतिद्वंद्वी जानता है तुलसीदास।”

“पंद्रहवीं शताब्दी में कबीर सबसे शक्तिशाली और प्रभावोत्पादक व्यक्ति थे। …कबीर नें कविता लिखनें की प्रतिज्ञा करके अपनी बातें नही कही थी। उनकी छंदयोजना उक्तिवैचित्र्य और अलंकार विधान पूर्ण रूप से स्वाभाविक और अत्यन्तसाधित है।”

“युगावतार की शक्ति और विश्वास लेकर वे पैदा हुए थे और एक वाक्य में उनके व्यक्तित्व को कहा जा सकता है कि वे सिर से पैर तक मस्त मौला थे बेपरवाह दृढ़ उग्र कुसुमादपि कोमल वज्रादपि कठोर।”

“कबीर पहुचें हुए ज्ञानी थे। उनका ज्ञान पोथियों से चुराई हुई सामग्री नही था और न वह सुनी सुनाई बातों का बेमेल भण्डार ही था।”

iii) डॉ. श्यामसुन्दर दास: भूमिका-

“जैसा कबीर का जीवन संसार से ऊपर उठा था वैसा ही उनका काव्य भी साधारण कोटि से ऊँचा उठा है।” (कबीर ग्रंथावली)

iv) डॉ. बच्चन सिंह-

“हिंदी भक्ति काव्य का प्रथम क्रांतिकारी पुरस्कर्ता कबीर हैं।”

v) नाभादास-

भक्ति विमुख जो धरम, ताहिं अधरम करि गायो।…

कबीर कानि राखी नहीं, वर्णाश्रमषट्दरसनी। (भक्तमाल)

कबीर साहित्य पर लिखी गई प्रमुख टीकाएँ एवं आलोचनात्मक ग्रंथ
आलोचकग्रंथ
1. डॉ. श्यामसुन्दर दासकबीर ग्रन्थावली (1928 ई.)
2. डॉ. माता प्रसाद गुप्तकबीर ग्रन्थावली
3. डॉ. पारस नाथ तिवारीकबीर ग्रन्थावली
4. अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔधकबीर वचनावली (1916 ई.)
5. डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदीकबीर
6. डॉ. रामकुमार वर्मासंत कबीर (1943 ई.), कबीर का रहस्यवाद
7. डॉ. रामचन्द्र तिवारीकबीर मीमांसा
8. आचार्य परशुराम चतुर्वेदीकबीर साहित्य की परख
9. डॉ. रघुवंशकबीर एक नई दृष्टि
10. गोविन्द त्रिगुणायतकबीर की विचारधारा
11. रामजी लालकबीर दर्शन
12. भुवदेव सिंहकबीर वांग्मय (तीन भागों में)
13. डॉ. धर्मवीरकबीर बाज भी, कपोत भी पपीहा भी, कबीर के आलोचक एक कबीर, डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी का प्रक्षिप्त चिंतन, कबीर और रामानंद की किवदन्तियाँ
kabir das se sambandhit prmukh grnth

नोट-

i) कबीर की साखी के संस्कृत छंदों में रूपान्तरण कर्त्ता डॉ. उमाशंकर शर्मा है।

ii) ‘आईन ए अकबरी’ में उल्लेख मिलता है कि कबीर के मृत्यु के बाद उनके शव का अंतिम संस्कार करने के लिए उनके दो शिष्यों ‘वीर सिंह बघेल’ (बनारस के राजा) और ‘बिजली खां’ (गोरखपुर का नबाब) के मध्य विवाद हुआ था।

2. रैदास | raidas

रैदास का जन्म काशी, 1398 ई. में और मृत्यु काशी का गंगा घाट पर 1448 ई. में हुआ था। इनका रविदास नाम भी प्रचलित है। रैदास की पत्नी का नाम लोना था। इनके गुरु रामानंद थे। रैदास दिल्‍ली के सुल्तान सिकन्दर लोदी के समकालीन थे, उसके निमंत्रण पर वे दिल्‍ली भी गये थे। ये जाति के चमार थे अपने बारे में स्वयं कहा-

“कह रैदास खलास चमारा, ऐसी मेरी जाति विख्यात चमारा।”

रैदास की रचनाएँ | raidas ki rachnaye-

गुरु ग्रंथ साहिब में रैदास के 40 पद मिलते हैं जबकि ‘सतबनी’ में फुटकल पद मिलते है। निरीहता एवं जातीय कुंठाहीनता रैदास की कविताओं की प्रमुख विशेषता है। धन्ना एवं मीराबाई ने अपने पदों में इनका सादर उल्लेख किया है लेकिन रैदास ने अपनी रचनाओं में अपने गुरु रामानंद का उल्लेख नहीं किया है। इनको उदय और मीराबाई का गुरु माना जाता है।

3. गुरु नानक | Guru Nanak

गुरु नानक का जन्म लाहौर के तलवंडी नामक स्थान पर जिसे अब ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है, 1469 ई. में हुआ था। इनकी मृत्यु सन 1538 ई. में हुआ था। गुरु नानक की माता का नाम तृप्ता और पिता का नाम कालूचंद्र खत्री था। इनकी पत्नी का नाम ‘सुलक्षणी’ था। ‘लक्ष्मीचंद्र’ और ‘श्री चंद्र’ इनके दो पुत्र थे। श्री चंद्र ने ‘उदासी संप्रदाय’ का प्रवर्तन किया।

गुरुनानक सिख संप्रदाय / पंथ के प्रवर्तक थे। ये मुगल बादशाह बाबर के समकालीन थे। कहा जाता है कि बाबर से भी इनकी भेंट हुई थी। इनके साथ ‘रागी’ नामक मुसलिम शिष्य भी रहा करता था। गुरुनानक नें अपना उत्तराधिकार ‘लहना’ को सौपा तथा उसका नाम अंगद रखा। जपुजी नानक दर्शन का सारतत्त्व माना जाता है। नानक भेदाभेदवादी संत कवि हैं।

guru nanak ki rachnaye-

गुरु नानक की रचनाएँ निम्नलिखित हैं- जपुजी, असा री दीवार, रहिरास, सोहिला, नसीहतनामा

नानक की बानियों का संकलन गुरु ग्रंथ साहिब के महला नामक प्रकरण में संकलित है। इनके कविताओं की भाषा हिंदी, फारसी बहुल पंजाबी है। जबकि ‘नसीहतनामा’ नामक शीर्षक रचना में खड़ी बोली का रूप व्यक्त हुआ है। इनकी रचनाओं में कबीर की भाँति शान्त रस की प्रधानता है। नानक ने छंदों का प्रयोग नहीं किया है, इनके पद राग-रागिनियों में रचित हैं।

गुरुनानक की परम्परा में उनके उत्तराधिकारी प्रमुख कवि

क) गुरु अंगद | Guru Angad-

इनका जन्म 1504 ई. और मृत्यु 1552 ई. में हुआ था। इनके कुछ श्लोक या दोहे आदि ग्रंथ साहब में संकलित हैं।

ख) गुरु अमरदास | Guru Amar Das-

गुरु अमरदास तीसरे गुरु हैं। इनका जन्म 1479 ई. और मृत्यु 1574 ई. में हुआ था। इनके भी कुछ दोहे गुरु ग्रंथ साहब में संकलित हैं।

ग) गुरु रामदास | Guru Ram Das-

गुरु रामदास चौथे गुरु हैं। इनका जन्म 1514 ई. और मृत्यु 1581 ई. में हुआ था। इनकी रचनाएँ आदिग्रंथ के चौथे महला में संकलित हैं।

घ) गुरु अर्जुनदेव | Guru Arjun Dev-

गुरु अर्जुन देव पाँचवें गुरु हैं, इनकी गणना अच्छे कवियों में होती है। इनका जन्म 1563 ई. और मृत्यु 1606 ई. में हुआ था। गुरु ग्रंथ साहिब के पाँचवें महला में इनके 6000 पद संकलित हैं। इनकी प्रसिद्ध रचनाएँ निम्नलिखित हैं- सुखमनी, बारहमासा, बावन आखिरी।

गुरु अर्जुनदेव ने 1604 ई. में गुरुओं की बनियों तथा सिक्ख पंथ के बहार के कुछ संतों की बनियों का संग्रह और संपादन किया।

ड़) गुरु तेग बहादुर | Guru Tegh Bahadur-

गुरु तेग बहादुर नौवें गुरु हैं। इनका जन्म 1622 ई. और मृत्यु 1675 ई. में हुआ था। इनकी रचनाएँ नौवें महला में संकलित हैं।

च) गुरु गोविन्द सिंह | Guru Gobind Singh-

गुरु गोविंद सिंह अंतिम गुरु हैं। इनका जन्म 1664 ई. और मृत्यु 1718 ई. में हुआ था। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं- चंडीचरित्, चौबीस अवतार, गोविंद रामायण, विचित्र नाटक। सिक्ख गुरु गोविंद सिंह ने गुरुओं की परम्परा समाप्त कर उनके स्थान पर ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ को गुरु पद पर प्रतिष्ठित किया और दशम ग्रंथ की रचना किया।

नोट- नानकदेव की रचनाओं को एकत्रित करने का श्रेय गुरु अंगद को है, जबकि गुरु ग्रंथ साहिब में उनके प्रस्तुति का श्रेय गुरु अर्जुन देव को है।

4. दादूदयाल | Dadu Dayal

दादू का जन्म अहमदाबाद, 1544 ई. में एक धुनिया (मुसलिम) परिवार में हुआ था। इनकी मृत्यु नराने, राजस्थान, 1603 ई. में हुआ था। दादू का मूलनाम दाऊद था। गरीबदास और मिस्कीदास इनके पुत्र थे। इन्होने दादूपंथ का प्रवर्तन किया। दादूपंथ को ‘ब्रह्म संप्रदाय’ या ‘परमब्रह्म संप्रदाय’ भी कहा जाता है। दादू पंथियों का प्रधान अड्डा नराना (जयपुर के पास) और भराने में है। इनका सत्संग स्थल ‘अलख दरीबा’ था। निर्गुण संतों की परंपरा में दादू की वाणी को कबीर की वाणी की व्याख्या मानी जाती है। दादू ने अपनी रचनाओं में बार-बार कबीर का नामोल्लेख किया है। इनकी जन्मकथा कबीर की जन्मकथा से काफी मिलती-जुलती है।

दादूदयाल के बावन शिष्य थे, जिनमें प्रमुख हैं- रज्जब, सुंदरदास, प्रागदास, जनगोपाल, जगजीवनदास, संतदास एवं जगन्नाथदास। दादू की रचनाओं का सर्वप्रथम संग्रह उनके दो प्रमुख शिष्यों संतदास एवं जगन्नाथ ने ‘हरडेबानी’ शीर्षक से किया था जिसे रज्जब ने पुनः ‘अंगवधू’ शीर्षक से संपादन किया। डॉ. परशुराम चतुर्वेदी ने दादू की प्रामाणिक रचनाओं का संकलन दादूदयाल’ शीर्षक से सम्पादित किया है। दादू दयाल की रचनाओं की भाषा राजस्थानी, खड़ीबोली मिश्रित ब्रज भाषा है। दादू की बनियों से शासकों में अकबर सबसे अधिक प्रभावित हुआ था।

दादू के महाप्रयाण के बाद उनके ज्येष्ठ पुत्र गरीबदास और कनिष्ठ पुत्र मिस्कीदास उनके गद्दी के क्रमशः उत्तराधिकारी हुए। दादू के शिष्य जगजीवन दास ने सतनामी संप्रदाय का प्रवर्तन किया था।

5. मलूकदास | Maluk Das

मलूकदास का जन्म इलाहाबाद जिले के कड़ा गाँव में, 1574 ई. में और मृत्यु 1682 ई. में हुआ था। इनके पिता का नाम सुंदरलाल खत्री था। मलूकदास के गुरु ‘मुरर स्वामी’ थे। कुछ जगह मिलता है की ये ‘पुरुषोत्तम’ के शिष्य थे। मूलक पंथ के प्रवर्तक मलूक दास माने जाते है। इन्होने अपनी रचनाओं में अवधी एवं ब्रजभाषा दोनों का प्रयोग किया है।

maluk das ki rachnaye-

मलूकदास की रचानाएँ निम्नलिखित हैं-

क) अवधी- ज्ञानबोध, रतनखान, ज्ञानपरोछि

ख) ब्रज भाषा- भक्तवच्छावली स्फुट पद, भक्तिविवेक, विभवविभूति, बारहखड़ी, रामावतार लीला, ब्रजलीला, ध्रुवचरित, सुखसागर, दसरत्नग्रंथ, गुरु प्रताप, पुरुष विलास तथा अलखबानी आदि।

6. सुंदरदास | Sundar Das

सुंदरदास का जन्म जयपुर के धौसा स्थान पर 1596 ई. में और मृत्यु 1689 ई. में हुआ था। इनके पिता का नाम परमानंद खाण्डेवाल था। सुंदरदास के गुरु दादू थे। सुंदरदास संत कवियों में सर्वाधिक काव्यकला निपुण, शास्त्रज्ञ एवं सुशिक्षित थे। ये कवित्त एवं सवैया छन्दों में रचना में सिद्धहस्त थे। इन्होंने काशी में रहकर शास्त्रों का अध्ययन किया था।

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सुंदरदास की दो रचनाएँ- ज्ञान समुद्र और सुंदर विलास हैं। इनकी प्रामाणिक रचनाओं का संपादन ‘पुरोहित हरिनारायण शर्मा’ ने ‘सुंदर ग्रंथावली’ (दो भाग) शीर्षक से किया है। सुंदरदास की रचनाएँ ब्रज भाषा में मिलती हैं।

सुंदरदास श्रृंगार रस की रचनाओं के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने केशव की ‘रसिकप्रिया’, नन्ददास की ‘रसमंजरी’ और सुन्दर कविराय के ‘सुंदर श्रृंगार’ की निन्‍दा की है-

“रसिक प्रिया, रसमंजरी प्रिया अरू सिंगारहिं जानि।

चतुराई करि बहुत विधि, विषैं बनाई आनि।।”

सुंदरदास नें विभिन्न प्रदेशों की रीति-नीति पर विनोदपूर्ण उक्तियाँ कहीं हैं। जैसे-

गुजरात- आभड़छीत अतीत सों होत बिलार और कूकर चाटत हांड़ी

मारवाड़- बृच्छ न नीरन उत्तम चीर सुदेसन में गत देस है मारू

दक्षिण– गंधत प्याज, विगारत नाज न आवत लाज, करै सब भच्छन

पूरब- ब्राह्मन क्षत्रिय वेसरू सूदर चारोइ बर्न के मच्छ बघारत

7. जंभदास | Jambh das

जंभदास विश्नुई संप्रदाय के प्रवर्तक माने जाते है, इनका जन्म 1451 ई. में जोधपुर के पीपासर नामक ग्राम में हुआ था। इनका दीक्षान्त नाम ‘मुनीन्द्र जंभदास’ था। सम्भरा स्थल इनका समाधि स्थल है। इनके प्रमुख शिष्य थे– हावजी, पावजी, लोहा पागल दत्तनाथ, मालदेव।

8. हरिदास निरंजनी | Haridas Niranjani

हरिदास निरंजनी का जन्म सन 1455 ई. और मृत्यु 1543 ई. में हुआ था। ये निरंजनी संप्रदाय के प्रवर्तक माने जाते हैं। यह संप्रदाय नाथ पंथ और संत काव्य के बीच की कड़ी माना जाता है। निरंजनी संप्रदाय उड़ीसा में प्रचलित था। मारवाड़ में इनके नाम पर कई मठ एवं गद्दियाँ हैं। हरिदास निरंजनी संतों को ईश्वर की तरह पूज्य मानते थे। इनकी रचनाएँ ब्रजभाषा में मिलती हैं। हरिदास के प्रमुख शिष्य थे- नारायणदास, हरिराम, रूपदास, सीतलदास, लक्ष्मणदास, गंगादास।

निरंजनी संप्रदाय का प्रमुख मठ डीड़वाना में है। निरंजनी संप्रदाय को ‘हरिदासी संप्रदाय’ भी कहा जाता है। इस संप्रदाय का मूल श्रोत नाथपंथ है। निरंजनी संप्रदाय और मूलक पंथ में तंत्र साधना का प्रभाव अधिक है।

haridas niranjani ki rachnaye-

हरिदास निरंजनी की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं- ब्रह्मस्तुति, अप्टपदी जोगग्रंथ, हंस-प्रबोध ग्रंथ, निरपखमूल ग्रंथ, पूजाजोग ग्रंथ, समाधिजोग ग्रंथ, संग्रामजोग ग्रंथ। ‘हरिदास की परचई’ का संपादन हरिराम जी ने किया है।

9. धर्मदास | Dharamdas

ये ‘कबीर’ के शिष्य थे एवं उनकी गद्दी के उत्तराधिकारी भी हुए। कबीर को रचनाओं को ‘बीजक’ में संकलित करने का श्रेय इन्हीं को है। इनकी रचनाओं का संग्रह ‘धनी धरमदास की बानी’ शीर्षक ग्रंथ में संकलित है।

10. संत रज्जब | Sant Rajjab

रज्जब का जन्म 1567 ई. और मृत्यु 1689 ई. में हुआ था। इनका मूल नाम ‘रज्जब अली खाँ’ था। ये ‘दादू’ के शिष्य थे। इन्होंने दादू की रचनाओं को ‘अंगबधू’ शीर्षक से संकलित किया। इनकी दूसरी रचना ‘सव्बंगी’ है जिसमें अपनी तथा अन्य प्रसिद्ध निर्गुण संत कवियों की वाणी का संकलन किया है।

11. लालदास | Lal Das

लालदास का जन्म 1540 ई. और मृत्यु 1648 ई. में हुई थी। इन्होने राम को आराध्य मानते हुए लालपंथ का प्रवर्तन किया। लालदास का समाधि स्थल नगला, भरतपुर में है।

12. बाबालाल | Baba Lal

बाबालाल का जन्म 1590 ई. और मृत्यु 1655 ई. में हुई थी। इन्होंने बाबालाली पंथ का प्रवर्तन किया। बाबा लाल का प्रधान स्थल गुरुदासपुर का श्रीध्यानपुर गाँव में है। बाबालाली संप्रदाय से संबंधित ‘बाबा लाल का शैल’ बड़ौदा में स्थिति है। इनके विचारों का संग्रह नादिरुन्निकात में संगृहित है। इनके ग्रंथ ‘असरारे-मार्फत’ में दाराशिकोह एवं बाबालाल की वार्तालाप संगृहीत है।

13. संत वीरभान | Sant Veerbhan

ये साध संप्रदाय में दीक्षित ‘उदयदास’ के शिष्य थे। इनकी रचनाएं ‘बानी’ शीर्षक से उपलब्ध होती हैं। साध संप्रदाय के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘निर्वाण ग्यान’ एवं प्रिथीलाल के संग्रह ग्रंथ ‘साधपंथ’ में भी इनकी रचनाएँ मिलती है।

14. निपट निरंजनी

ये निरंजनी संप्रदाय में दीक्षित थे। इनकी रचनाएँ ‘शांत सरसी’ एवं ‘निरंजन संग्रह’ नामक ग्रन्थों में उपलब्ध हैं।

15. अक्षर अनन्य | Akshar Ananya

इन्होंने योग और वेदान्त पर कई ग्रंथ लिखे है। अक्षर अनन्य ने ‘दुर्गासप्तसती’ का अनुवाद हिंदी पद्यों में किया। राजयोग, विज्ञानयोग, ध्यानयोग, सिद्धान्तबोध, विवेक दीपिका, ब्रह्मज्ञान, अनन्य प्रकाश आदि इनके प्रमुख ग्रंथ हैं। अक्षर अनन्य छत्रसाल के गुरु भी थे।

16. शेख फरीद | Sheikh Farid

इनका जन्म 1472 ई. और मृत्यु 1552 ई. में हुआ था। ‘शाह ब्रम्हा’, इब्राहीम शाह’ तथा ‘शंकरगंज’ शेख फरीद के अन्य नाम हैं। पंजाब के कवियों में इनका महत्वपूर्ण स्थान है। आदि ग्रंथ में इनके चार पद संकलित हैं।

17. संत बावरी साहिब

sant kavya के कवियों में बावरी साहिबा महिला संत साधिका थीं। संत बावरी साहिब अकबर की सामयिक थी। इनका जन्म 1542 ई. और मृत्यु 1605 ई. में हुआ था।

18. सींगा | Sant Kavi Singaji

सींगा जी महत्वपूर्ण संत कवि हैं, जिनकी दर्जनों रचनाएँ हैं। सींगा जी की रचनाओं की भाषा निमाड़ी है।

प्रमुख संत कवि और उनके ग्रंथ | sant kavi aur unki rachnaye

sant kaviyon ke pramukh kavya grnth nimnlikhit hain-

संत कविग्रंथ
1. नामदेवअभंग
2. कबीरसाखी, सबद, रमैनी।
3. गुरु नानकजपुजी, असा री दीवार, रहिरास, सोहिला, नसीहतनामा
4. हरिदास निरंजनीब्रह्मस्तुति, अप्टपदी जोगग्रंथ, हंस-प्रबोध ग्रंथ, निरपखमूल ग्रंथ, पूजाजोग ग्रंथ, समाधिजोग ग्रंथ, संग्रामजोग ग्रंथ।
5. सींगासींगाजी का दृढ़ उपदेश, सींगाजी का आत्मबोध, सींगाजी का दोष-बोध, सींगाजी का नरद, सींगाजी का शरद, सींगाजी की वाणी, सींगाजी की वाणीवली, सींगाजी का सातवार, सींगाजी की पंद्रह तिथि, सींगाजी की बारहमासी, सींगाजी के भजन
6. दादूदयाल‘हरडेबानी, अंगवधू, काया बोली
7. मलूक दासज्ञानबोध, रतनखान, भक्तवच्छावली स्फुट पद, भक्तिविवेक, ज्ञानपरोछि, विभवविभूति, बारहखड़ी, रामावतार लीला, ब्रजलीला, ध्रुवचरित, सुखसागर, दसरत्नग्रंथ, गुरु प्रताप, पुरुष विलास, शब्द तथा अलखबानी।
8. बाबा लालनादिरुन्निकात, असरारे-मार्फत
9. सुंदरदासज्ञान समुद्र, सुंदर विलास
10. रज्जबसव्बंगी
11. निपट निरंजनशांत सरसी, निरंजन संग्रह
12. अक्षर अनन्यराजयोग, विज्ञानयोग, ध्यानयोग, सिद्धान्तबोध, विवेक दीपिका, ब्रह्मज्ञान, अनन्य प्रकाश
13. मुकुंद राजविवेक सिंधु (1190 ई.)
14. संत वीरभानबानी
15. धर्मदासधनी धरमदास की बानी
16. गुरु अर्जुनदेवसुखमनी, बारहमासा, बावन आखिरी।
17. गुरु गोविंद सिंहचंडीचरित्, चौबीस अवतार, गोविंद रामायण, विचित्र नाटक।
sant kaviyon ki rachnayen
प्रमुख संत कवियों के जन्मस्थान
कविजन्मस्थान
1. रैदासकाशी
2. कबीरदासकाशी
3. जंभदासपीपासर, नागौर (जोधपुर)
4. हरिदास निरंजनीडीडवाणा
5. गुरुनानकतलवंडी / ननकाना
6. सिंगाखजूर (मध्यप्रदेश)
7. लाल दासअलवर
8. दादू दयालअहमदाबाद
9. मलूक दासइलाहाबाद
10. बाबा लालपंजाब
11. सुंदर दासद्यौसा, जयपुर
12. धर्मदासबांधवगढ़
13. धन्नाधुवान
14. पीपागगरौनगढ़
15. सेनबाधोगढ़
16. शेख फरीदकोठीवाल
17. रज्जबराजस्थान
18. निपट निरंजनदौलताबाद
19. अक्षर अनन्यसेनुहरा, दतिया
sant kaviyon ke janm sthan
प्रमुख संत कवियों की जाति
कविजाति
1. नामदेवदर्जी
2. रैदासचमार
3. कबीरदासजुलहा
4. जंभदासराजपूत
5. गुरुनानकखत्री
6. सिंगाग्वाला
7. लाल दासमेव
8. दादू दयालधुनिया / मोची
9. मलूक दासखत्री
10. बाबा लालक्षत्रिय
11. सुंदर दासबनिया
12. धर्मदासबनिया
13. धन्नाजाट
14. सेननाई
15. शेख फरीदमुसलमान
16. रज्जबमुसलमान
17. सदनाकसाई
18. निपट निरंजनगौड़ ब्राह्मण
19. अक्षर अनन्यकायस्थ
संत कवियों की जाति
प्रमुख संत कवियों के गुरु
कविगुरु
1. नामदेवविसोवा खेचर
2. रैदासरामानंद
3. कबीरदासरामानंद
4. जंभदासगोरखनाथ
5. हरिदास निरंजनीप्रागदास
6. सिंगामनरंगीर
7. लाल दासगदन चिश्ती
8. दादू दयालवृद्ध भगवान
9. मलूक दासपुरुषोत्तम
10. सुंदर दासदादूद याल
11. धर्मदासकबीरदास
12. धन्नारामानंद
13. पीपारामानंद
14. सेनरामानंद
15. वीरभानउदयदास
16. बावरी साहिबामायानंद
17. रज्जबदादूदयाल
संत कवियों के गुरु
संत कवियों के प्रमुख शिष्य
संत कविशिष्य
कबीरधर्मदास
जंभनाथहावली पावजी, लोहा पागल, दत्तनाथ, मालदेव
हरिदास निरंजनीनारायणदास, रूपदास
दादूदयालरज्जब, सुंदरदास, प्रागदास, जनगोपाल, जगजीवन
जगजीवन दासगोविंद साहब, भीखा साहब
दादूरज्जब
संतों के प्रमुख शिष्य
संत कवियों द्वारा प्रवर्तित संप्रदाय और उसके केंद्र
संप्रदायप्रवर्तक संतकेंद्र
1. कबीर पंथकबीरकाशी
2. सिखगुरुनानकपंजाब
3. उदासीश्रीचंद
4. विश्नुईजंभनाथबीकानेर
5. निरंजनीहरिदास निरंजनीडीडवाणा
6. लालपंथलालदासअलवर
7. दादूपंथदादूदयालराजस्थान
8. बाबा लालीबाबा लालगुरुदासपुर
9. बावरी पंथबावरी साहिबा
10. सत्यनामीजगजीवन दासनरलोन
11. साधोवीर भानुफरुखाबाद
12. रामावतरामानंद
संत कवि और उनके संप्रदाय
संत कवियों से संबंधित प्रमुख स्थल
संत कविप्रसिद्ध स्थल
जंभनाथसंभराथल (समाधि)
दादूदयालअलखदरीबा (सत्संग) भराने, राजस्थान (मृत्यु)
बाबा लालबाबा लाल का शैल, बड़ौदा
कबीरदासमगहर (मृत्यु)
मीराबाईद्वारका (मृत्यु)
सुंदर दाससांगानेर (मृत्यु)
संत कवियों से जुड़े स्थल
विभिन्न राज्यों के प्रमुख संत कवि

राज्यवार प्रमुख संतों (sant kavi) का विवरण निम्नलिखित है-

राज्यसंत कवि
राजस्थानजंभनाथ, भीषण, हरिदास निरंजनी, संत तुरसी, सुंदर दास
बिहारधरनीदास, दरिया साहब
मध्यप्रदेशसींगा
उत्तर प्रदेशकबीर, रैदास, मलूकदास, बुला साहब, गुलाल साहब, जगजीवन दास, बावरी साहिबा, बाबा कानीराम, पल्टूदास, दयाबाई, सहजोबाई
महाराष्ट्रमुकुंद राज, नामदेव, चक्रधर, पुण्डलिक, ज्ञानेश्वर  
प्रमुख राज्यों के संत

संत काव्य संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य | sant kavya

  • संत पीपा रामानंद के शिष्य थे। ये खीची वंश के राजपूत थे।
  • संत दूलह सतनामी संप्रदाय के थे।
  • निर्वान ग्यान साध संप्रदाय का प्रमुख ग्रंथ है।
  • यारी साहब निर्गुण मार्गी संत थे।
  • संत धन्ना का जन्म 1415 ई. है।
  • संत वीरमान की उपदेशपरक रचनाएँ ‘बानी’ शीर्षक से संकलित हैं।
  • संत काव्यधारा का दार्शनिक-सांस्कृतिक आधार- उपनिषद, शंकराचार्य का अद्वैत दर्शन, नाथ पंथ, इस्लाम, सूफी दर्शन, बौध दर्शन है।
  • कबीर, दादू, मलूकदास आदि संत कवि पूर्णतया अद्वैतवादी हैं।
  • कबीर, रैदास, मूलकदास आदि संत कवियों की रचनाओं में सगुण तत्व के भी दर्शन होते हैं।
  • योग साधना से प्रभावित कवि- कबीर, सुंदरदास, हरिदास निरंजनी।
  • योग साधना से अप्रभावित कवि- दादू, नानक, रैदास, जम्भनाथ, सींगा, भीषण, रज्जब, बावरी साहब, मूलकदास, बाबा लाल आदि।
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