संप्रेषण की अवधारणा और महत्त्व | concept and importance of communication

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संप्रेषण की अवधारणा

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और उसे अपने विचार और भावनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए संप्रेषण पर निर्भय रहना पड़ता है। दूसरे शब्दों में संप्रेषण मनुष्य की अनिवार्य आवश्यकता और उसके  सामाजिक जीवन का आधार भी है। सामाजिक व्यवहार के लिए मनुष्य को एक दूसरे से संवाद स्थापित करना पड़ता है इसलिए संप्रेषण द्वारा ही मानव समाज की संचालन प्रक्रिया संभव बनती है। इसके अभाव में मानव समाज की कल्पना नहीं की जा सकती। इसके बिना किसी भी प्रकार के समाज का निर्माण संभव नहीं।

संप्रेषण का प्रारंभ मानव जीवन के आविर्भाव के साथ होता है और जीवन प्रयत्न संप्रेषण का महत्त्व बना रहता है। संप्रेषण मनुष्यों तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसका इतिहास इससे भी पुराना है। पशु-पक्षी आदि अपनी आवश्यकता अनुसार संप्रेषण करते रहे हैं। उसी तरह मनुष्य भी इशारों और ध्वनियों के माध्यम से संप्रेषण करना प्रारंभ करता है, आगे चलकर मनुष्यों ने भाषा और उसे अभिव्यक्त करने वाले संकेत-चिहनों को संप्रेषण का माध्यम बनाया। समय के साथ जैसे-जैसे तकनीकी विकास होता गया, संप्रेषण की प्रक्रिया में भी परिवर्तन होता गया और संप्रेषण के माध्यम भी विकसित होते गए। कहने का तात्पर्य यह है की मानव सभ्यता एवं संप्रेषण माध्यमों का विकास समांतर रूप से विकसित होता गया।

इस तरह मनुष्यों ने संप्रेषण की प्रक्रिया अंतर्वैयक्तिक संप्रेषण से प्रारंभ की, जो समूह संप्रेषण से आगे बढ़ती हुई आज प्रिंट, इलैक्ट्रोनिक जैसे माध्यम से जन संप्रेषण तक विकसित हो गई है। जीव जगत में मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो अपने विचारों को शब्दों के द्वारा मौखिक एवं लिखित दोनों रूपों में व्यक्त कर सकता है। यह क्षमता अन्य जीव-जंतुओं में नहीं है।

आज संप्रेषण का महत्त्व हमारे जीवन के सामाजिक, आर्थिक, प्रशासनिक एवं शिक्षा जैसे आदि क्षेत्रों में बढ़ गया है। तकनीकी विकास ने इसके महत्त्व को और बढ़ा दिया है, ज्ञान-विज्ञान और सूचना को लोगों तक पहुँचाने में संप्रेषण की उपयोगिता बढ़ गई है। साथ ही इसके समक्ष यह चुनौती भी है कि कैसे सूचना को सरल, सुगम और कम से कम समय में जन सुलभ बनाया जाये। भोजन-पानी,  मकान और कपड़ा की तरह संप्रेषण भी हमारी मूलभूत आवश्यकता बन गई है। परिवार से लेकर जनसमूह, राष्ट्र या विश्व तक के सुचारु संचालन में संप्रेषण की महती भूमिका है, इसके अभाव में न समाज टिक सकता है और न ही राष्ट्र या विश्व।

संप्रेषण का सामान्य अर्थ किसी सूचना या संदेश को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाना है। यह संप्रेषण शब्द अंग्रेजी भाषा के ‘Communication’ शब्द का समानार्थी है, जिसकी उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘Communis’ शब्द से हुई है। ‘Communis’ शब्द का अर्थ है ‘जानना या समझना।’ इस प्रकार संप्रेषण संदेश संप्रेषित करने की वह प्रक्रिया है जिसमें संप्रेषक तथा श्रोता आपस में तथ्यों, सूचनाओं, विचारों, अनुभवों, भावनाओं तथा ज्ञान आदि को संकेतों द्वारा आदान-प्रदान करते हैं।

संप्रेषण एक द्विमार्गी प्रक्रिया है जिसके लिये यह आवश्यक है कि संबंधित व्यक्ति या व्यक्तियों तक संदेश उसी अर्थ में पहुँचे जिस अर्थ में संप्रेषणकर्त्ता ने अपने विचारों को भेजा है। यदि संदेश प्राप्तकर्त्ता, संदेश वाहक द्वारा भेजे गये संदेश को उस रूप में ग्रहण नहीं करता है, तो संप्रेषण पूर्ण नहीं माना जायेगा। अत: संप्रेषण का अर्थ विचारों तथा सूचनाओं को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक इस प्रकार पहुँचाना है कि श्रोता उसे जान तथा समझ सके।

संप्रेषण की परिभाषा

संप्रेषण को लेकर अनेक विद्वानों ने समय-समय पर अनेक परिभाषाएं दी हैं, जो निम्नलिखित हैं-

ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी- ‘विचारों, जानकारियों आदि का विनिमय, दूसरों तक पहुँचाना या बाँटना, चाहे वह मौखिक, लिखित या संकेत हो, संप्रेषण है।

कुण्ट्ज और ओ डोनेल- ‘संप्रेषण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को सूचनाओं का हस्तांतरण है, चाहे वह उसमें विश्वास व्यक्त करे या न करे।’

सी. जी. ब्राउन- ‘संप्रेषण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के मध्य सूचनाओं का संप्रेषण है चाहे उसके द्वारा विश्वास उत्पन्न हो या नहीं और पारस्परिक विनिमय हो या नहीं, लेकिन इस प्रकार दी गई सुचना प्राप्तकर्ता को समझ आ जानी चाहिए।’

लुइस ए. एलन- ‘संप्रेषण उन सब चीजों का योग है जिनको एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को अपनी बात ठीक से समझाने के लिए काम में लाता है। यह अर्थों का एक पुल है। इसमें कहने, सुनने और समझने की एक व्यवस्थित क्रिया निरंतर चलती रहती है।’

फ्रेड जी. मायर- ‘संप्रेषण शब्दों, पात्रों, सूचनाओं, विचारों एवं सम्मपतियों के आदान-प्रदान करने का साधन है।’

न्यूमैन और समर- ‘संप्रेषण दो या अधिक व्यक्तियों के मध्य तथ्यों, विचारों, सम्मतियों या भावनाओं का आदान-प्रदान का साधन है।

थियोहेमैन- ‘संप्रेषण का तात्पर्य एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को सूचना तथा समझ पहुँचाने की प्रक्रिया है।’

लिटिल- ‘मानव संप्रेषण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा जानकारी (या सूचना) पहले से ही समस्त प्रतीकों के माध्यम से लोगों के बीच पारित की जाती है, तथा वांछित प्रतिपुष्टि प्राप्त करना भी इसका लक्ष्य होता है।’

टेरी और फ्रैंकलिन- ‘संप्रेषण लोगों के बीच समझ विकसित करने और प्राप्त करने की कला है। यह दो या अधिक लोगों के बीच सूचना और भावनाओं का आदान-प्रदान करने की प्रक्रिया है और यह प्रभावी प्रबंधन के लिए आवश्यक है।’

हरवर्ट- ‘संप्रेषण का प्रमुख कार्य विचारों, तथ्यों तथा सूचनाओं को शिक्षार्थियों तक पहुँचना है।’

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि संप्रेषण एक व्यवस्थित एवं निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जिसमें किसी व्यक्ति या श्रोत द्वारा दूसरे व्यक्ति या श्रोत को सार्थक प्रतीकों, संकेतों या चिन्हों के माध्यम से भावनाओं, विचारों, तथ्यों, सूचना, सम्मतियों तथा ज्ञान का आदान-प्रदान किया जाता है जिससे व्यावसायिक उद्देश्यों एवं व्यवहार में एकरूपता आती है।

संप्रेषण की विशेषताएं

संप्रेषण की निम्नलिखित विशेषताएं हैं:

1. दो तरफा प्रक्रिया

संप्रेषण दो तरफा प्रक्रिया है, कोई व्यक्ति अकेले या खुद से संप्रेषण नहीं कर सकता। संप्रेषण के लिए कम से कम दो व्यक्तियों का होना जरूरी है। एक संदेश भेजने वाला तथा दूसरा संदेश प्राप्त करने वाला। संप्रेषण करने वाले को प्रेषक या संप्रेषक और उसे प्राप्त करने वाले को प्रापक, ग्रहीता, रिसीवर या श्रोता कहा जाता है। संप्रेषण में संप्रेषक और प्रापक के बीच अंतःक्रिया होती है।

कुछ विद्वान् अंत: वैयक्तिक संप्रेषण को भी संप्रेषण का एक प्रकार मानते हैं जिसमें प्रेषक और प्रापक एक ही व्यक्ति होता है। परंतु यह मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है। एक व्यक्ति खुद से संवाद नहीं कर सकता। इस प्रकार संप्रेषण में दो या अधिक लोग अपने विचारों का आदान प्रदान करते हैं। यह संप्रेषण तभी पूर्ण माना जाता है जब प्रापक (संदेश प्राप्तकर्ता) संप्रेषक के अर्थों को समझे और अपनी प्रतिक्रिया भेजकर उसे अपने विचारों से अवगत कराए।

2. व्यापकता

संप्रेषण एक व्यापक गतिविधि है, इसका क्षेत्र अत्यंत व्यापक है। इसमें सूचनाओं एवं विचारों दोनों का आदान-प्रदान सम्मिलित है। यह एक व्यावसायिक संगठन के सभी कार्यात्मक क्षेत्रों (उत्पादन, वित्त, कर्मियों, बिक्री) में सभी स्तरों (शीर्ष, मध्य, निम्न) पर होता है।

3. सतत प्रक्रिया

संप्रेषण सतत/निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। जिसमें एक व्यक्ति अपने विचारों से दूसरे पक्ष को अवगत कराता है, उनसे विचार-विमर्श करता है। जैसे एक अधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को आदेश या निर्देश देता है, कर्मचारी भी अपनी समस्याएं, सुझाव अधिकारी के सामने प्रस्तुत करते हैं। इसी तरह लोगों और गैर-व्यावसायिक संगठनों में लोगों के बीच विचारों का आदान-प्रदान चलता रहता है। कहने का तात्पर्य यह प्रक्रिया सतत चलती रहती है।

4. गतिशील प्रक्रिया

प्रेषक और प्रापक के बीच संप्रेषण उनके मूड़ और व्यवहार के अनुसार विभिन्न रूप और माध्यम को अपनाता है। इस प्रकार, यह एक गतिशील प्रक्रिया है जो विभिन्न स्थितियों में बदलती रहती है।

5. आपसी समझ

संप्रेषण में विचारों का आदान-प्रदान होता है। लोग आपस में बातचीत करते हैं और एक-दूसरे की समझ भी विकसित करते हैं। संप्रेषण तब प्रभावी होता है जब प्रेषक और प्रापक विषय की आपसी समझ विकसित करते हैं। संप्रेषण द्वारा विभिन्‍न सूचनाएँ प्रदान कर पक्षकारों के बीच ज्ञान में अभिवद्धवि की जाती है।

6. विभिन्न माध्यमों का प्रयोग

संप्रेषण, संगठन के व्यक्तियों एवं समूहों का वाहक एवं विचार अभिव्यक्ति का माध्यम है। संप्रेषण प्रक्रिया में संदेश को भेजने या आदान-प्रदान करने के लिए विभिन्न माध्यमों का सहारा लिया जाता है। यह माध्यम लिखित, मौखिक, सांकेतिक, औपचारिक, अनौपचारिक आदि होता है। संप्रेषण माध्यम का चयन संप्रेषण के उद्देश्य, गति एवं प्राप्तकर्त्ता की परिस्थितियों के अनुसार किया जाता है। संप्रेषण माध्यम का चुनाव करते समय प्रेषक यह ध्यान रखता है कि उसे कब और क्‍या संप्रेषित करना है। तत्पश्चात प्रापक संदेश को प्राप्त करता है, उसकी विवेचना करता है तथा अपने अनुसार उसे ग्रहण करके उसका अपेक्षित प्रतिउत्तर प्रदान करता है।

7. संप्रेषण अनेक प्रकार का होता है

संप्रेषण कई प्रकार के होते हैं जैसे- उर्ध्वमुखी, अधोमुखी, समूह, जन संप्रेषण आदि। वर्तमान समय में संप्रेषण के सभी प्रकारों का प्रयोग में लाया जाता है क्योंकि इन्हीं पर संस्थाओं की सफलता निर्भर करती है। संप्रेषण की प्रक्रिया में संप्रेषक, संदेश, संचार माध्यम, प्रापक, प्रतिक्रिया जैसे संघटक तत्व कार्य करते हैं।

8. चक्रीय प्रकिया

संप्रेषण एक चक्रिय-प्रक्रिया है जो प्रेषक से प्रारम्भ होकर प्रतिपुष्टि प्राप्ति के बाद प्रेषक पर ही समाप्त होती है। यह एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। कभी न समाप्त होने वाला संप्रेषण चक्र संस्था में निरन्तर विद्यमान रहता है। इस प्रक्रिया को निम्न चित्र द्वारा समझाया जा सकता है:

चक्रीय प्रकिया

9. प्रबंधन का आधार

संप्रेषण प्रबंध-प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। योजनाओं और संगठन संरचनाओं को डिजाइन करना, लोगों को लक्ष्यों को पूरा करने के लिए प्रेरित करना और संगठनात्मक गतिविधियों को नियंत्रित करना, सभी को विभिन्न स्तरों पर प्रबंधकों के बीच संप्रेषण की आवश्यकता होती है। बिना कुशल निदेशन के कोई भी प्रबंधकीय कार्य सम्पन्न भीं हो सकता। निदेशन कार्य को प्रभावशाली ढंग से सम्पन्न करने के लिए अभिप्रेरणा एवं कुशल नेतृत्त्व की आवश्यकता रहती है, जो बिना संप्रेषण के यह संभव नहीं है।

10. कार्य निष्पादन की आधार-शिला

संप्रेषण कार्यों के निष्पादन की आधार-शिला है। संप्रेषण के द्वारा ही व्यक्तियों को कार्य करने के लिए प्रेरित किया जाता है। कर्मचारियों से कब, कहाँ और कौन से कार्य करवाने हैं, कम्पनी या संस्था को लाभ कैसे हो, आदि बातों का समाधान संप्रेषण के द्वारा ही संभव है।

11. प्रशासकीय कार्य

संप्रेषण प्रशासकीय कार्य है क्योंकि जब संप्रेषण का प्रयोग व्यावसायिक क्षेत्र होता है तो इसकी प्रकृति प्रशासनिक हो जाती है। चार्ल्स ई. रेडफील्ड के शब्दों में ‘प्रशासकीय संप्रेषण मात्र सूचना के विनिमय से संबंधित ही नहीं है बल्कि प्रशासन से भी संबंधित है।’ किसी संस्था या संगठन की संप्रेषण संबंधी समस्याओं तथा कर्मचारियों की कार्य पद्धति से जुड़ी समस्याओं में कोई खास अंतर नहीं होता।

12. पारस्परिक सहयोग की भावना का विकास

संप्रेषण किसी भी संस्था में कर्मचारियों के बीच पारस्परिक सहयोगी भावना स्थापित करने का आधार है। संप्रेषण की वजह से ही उनके मध्य मानवीय मधुर संबंधों का निर्माण होता है।

संप्रेषण और संचार में अंतर

अंग्रेजी के ‘Communication’ शब्द का पर्याय रूप हिंदी में ‘संचार’ और ‘संप्रेषण’ दोनों शब्दों का प्रयोग किया जाता है। लेकिन हिंदी में इन दोनों शब्दों का प्रयोग अलग-अलग अर्थों में होता है। व्युत्पत्ति की दृष्टि से ‘संचार’ शब्द संस्कृत के ‘चर’ धातु से बना है, जिसका अर्थ ‘चलना’ है। अर्थात्‌ इसमें संदेश संचरण करता है, संचरण किसी माध्यम के द्वारा ही संभव होता है जैसे- चित्र, दृश्य, ध्वनि, संगीत आदि श्रव्य माध्यम से।

इस प्रकार ‘संचार’ एक ‘फॉर्म’ है, स्वरूप है, जिसके माध्यम से संदेश एक स्थान से दूसरे स्थान तक संचरित या पहुँचता है। संदेश को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचने के लिए जिन माध्यमों का उपयोग किया जाता है उन्हें संचार माध्यम कहा जाता है। संचार माध्यम संप्रेषक द्वारा प्रेषित संदेश को दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाते हैं। संप्रेषण की प्रक्रिया संचार से पहले शुरु हो जाती है। संचार व संचार माध्यम संप्रेषण की प्रक्रिया के संघटक तत्व हैं जो संप्रेषक द्वारा निर्मित संदेश को दूसरे स्थान तक ले जाने का कार्य करते हैं। जबकि संप्रेषण में प्रेषित संदेश को प्राप्त करने वाला (प्रापक) अपनी समझ के अनुसार संदेश ग्रहण करता है और आवश्यकता अनुसार प्रतिपुष्टि (फीडबैक) करता है।

संप्रेषण में मानसिक प्रक्रिया होती है जिसका एक पक्ष संप्रेषक से जुड़ा है और दूसरा पक्ष प्रापक से। इस प्रक्रिया की प्रापक द्वारा प्रतिक्रिया भी होती है, प्रापक द्वारा फीडबैक देने के बाद ही संप्रेषण पूर्ण होता है। संप्रेषण और संचार के बीच की विभाजन रेखा तब और भी सूक्ष्म हो जाती है जब भाषा भी संप्रेषण का रूप ले लेती है। भाषा जो अब-तक संदेश का संचरण करने वाला माध्यम मानी जाती थी, वह स्वयं विभिन्‍न माध्यमों जैसे रेडियो, दूरदर्शन आदि श्रव्य माध्यमों द्वारा संचरित हो रही है। इस प्रकार भाषा अब संप्रेषण है। भाषा की तरह साहित्य भी संप्रेषण है, चित्र, संगीत आदि कला भी संप्रेषण है। यह सब कंटेट है, अर्थात्‌ एक प्रकार का संदेश है जो एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचता है। इसी क्रम में अनुवाद भी संप्रेषण है।

भाषा और संप्रेषण

भाषा का समस्त कार्यव्यापार संप्रेषण को ध्यान में रखकर चलता है। हालाँकि मनुष्य अकेले में कभी-कभी अपने मन में ही बातचीत करता है या कभी-कभी वह अपने आपसे ही वार्तालाप करने लगता है। लेकिन यह संप्रेषण के दायरे में नहीं आता, क्योंकि संप्रेषण के लिए एक से अधिक व्यक्तियों का होना आवश्यक माना गया है। वैसे भी भाषा का उद्देश्य समाज में भाषा व्यवहार द्वारा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ती करना है।

सीधे-सीधे कहें तो संप्रेषण मूलतः बातचीत की प्रक्रिया है। इसमें एक से अधिक व्यक्ति वार्तालाप में भाग लेते हैं। जब एक व्यक्ति बोलता है तब अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह श्रोता के रूप में होते हैं तथा वक्ता की बात को अपने श्रवणेन्द्रिय द्वारा ग्रहण करते हैं और जब श्रोता (प्रापक) वक्ता की बात पर प्रतिक्रिया देते हैं तब वह वक्ता बन जाता है। इस प्रकार पहला वक्ता श्रोता की भूमिका में आ जाता है। भूमिकाओं की यह अदला-बदली मानवीय भाषा का एक प्रमुख अभिलक्षण भी है। भूमिकाओं की यह अदला-बदली ही संप्रेषण को सार्थक बनाती है।

संचार का महत्त्व

ऐसी स्थिति में संप्रेषण सबस उपयोगी हो गया है। कीथ डेविस के अनुसार- संप्रेषण व्यवसाय के लिए उसी प्रकार आवश्यक है जिस प्रकार मनुष्य के शरीर में रक्तधारा आवश्यक है।

1. मनुष्य के लिए उपयोगी

संप्रेषण मनुष्य के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसके बिना न मनुष्य का काम चल सकता है और न ही समाज का। संप्रेषण के द्वारा ही मनुष्य अपनी भावनाओं तथा विचारों को दूसरों तक पहुँचाने में सक्षम होता है, साथ ही दूसरों की भावनाओं और विचारों से अवगत भी होता है। एक दूसरे से संपर्क करके वह न केवल अपने ज्ञान की अभिवृद्धि करता है बल्कि नित नई-नई बातें भी सीखता रहता है।

2. मानव समाज का आधार

संप्रेषण के बिना क्या किसी समाज की कल्पना की जा सकती है? इसका सीधा-सा जबाब है कि नहीं। क्योंकि संप्रेषण मनुष्य तथा मानव समाज का आधार है। मानव समाज और सभ्यता के विकास के साथ-साथ संप्रेषण के अनेकानेक रूप भी विकसित होते गए। क्योंकि आपसी संपर्क के लिए संप्रेषण ही वह कारगर हथियार है जिससे लोग अपने विचार एक-दूसरे से साझा कर सकते हैं। आज जब सम्पूर्ण विश्व ग्लोबल गाँव के रूप में बदल गया है तो संप्रेषण की भूमिका एवं महत्ता और भी बढ़ जाती है। सूचना संप्रेषण के ढ़ेरों माध्यम उपलब्ध होने से विश्व के किसी भी कोने में बैठकर आज हम कहीं भी संपर्क कर अपने विचार अभिव्यक्त कर सकते हैं। घर बैठे ही दूर-दराज स्थित अपने जानने वाले लोगों से संपर्क कर अपने भावनाएं और विचार आसानी से आदान-प्रदान कर लेते हैं। कहने का तात्पर्य यह है की टेक्नोलॉजी के विकास ने संप्रेषण के दायरे को न केवल बढाया है बल्कि उसे और भी महत्त्वपूर्ण बना दिया है। वर्तमान समय में संप्रेषण राष्ट्रीय स्तर पर नीतियों के निर्धारण तथा समस्याओं के समाधान करने तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी विभिन्न देशों, संस्कृतियों एवं समाजों के बीच निकटता लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

3. व्यावसायिक महत्त्व

संप्रेषण का सर्वाधिक महत्त्व व्यावसायिक क्षेत्र में है। यही वजह है की इसे एक विषय के रूप में विश्वविद्यालयी पाठ्यक्रम में अलग से जगह दी गई है, तमाम प्रतियोगी परीक्षाओं के सेल्बस में लगाया गया है। जैसा कि आप लोग जानते हैं की सभी व्यावसायिक क्रियाओं को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए कई विभागों में विभाजित कर दिया जाता है, जैसे क्रय, विक्रय, उत्पादन, वितरण एवं वित्त आदि विभाग। व्यवसाय की सफलता के लिए इन सभी विभागों में समन्वय जरूरी  है और समन्वय स्थापित करने के लिए संप्रेषण। यदि इन विभागों के बीच प्रभावी संप्रेषण नहीं बनता है तो कोई भी व्यावसायिक संस्था टिक नहीं पायेगी।

4. प्रबंधकीय कार्यों का आधार

प्रबंधकीय कार्यों के निष्पादन में संप्रेषण की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। संप्रेषण के अभाव में कोई भी प्रबंधकीय कार्य सफल नहीं हो सकता है। यह विभिन्न कर्मचारियों और विभागों के बीच समन्वय के लिए एक आधार के रूप में कार्य करता है। संप्रेषण को प्रबंध के विभिन्न कार्यों जैसे- नियोजन, संगठन, निदेशन, नेतृत्व एवं अभिप्रेरण आदि का आधार माना जाता है। पीटर्स का भी कहना है कि अच्छा संप्रेषण सुदृढ़ प्रबन्ध की नींव है।

5. शीघ्र निर्णय एवं उसका कार्यान्वयन

किसी भी संस्था या कार्यालय में अधिकारियों एवं प्रबंधकों को कदम-कदम पर अनेक निर्णय लेने होते हैं। और उन निर्णयों एवं सूचनाओं को वे अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को ट्रांसफर करते हैं। इसके लिए वे संप्रेषण का सहारा लेते हैं। संप्रेषण जितना प्रभावी होगा कार्य का कार्यान्वयन भी उतना ही शीघ्रता एवं सुगमतापूर्वक होगा। प्रभावी संप्रेषण के द्वारा ही संबंधित अधिकारी या प्रबंधक अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से जानकारी प्राप्त कर त्वरित निर्णय लेता है। उचित संप्रेषण ही प्रबंधक या अधिकारी को जानकारी प्रदान करता है जो निर्णय लेने के लिए उपयोगी है। संप्रेषण के अभाव में कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता है। इस प्रकार, संप्रेषण सही एवं शीघ्र निर्णय लेने का आधार है।

6. मानवीय संबंधों की स्थापना

रॉबर्ट डी. बर्थ के शब्दों में ‘बिना संप्रेषण के मानवीय संबंधों की स्थापना तथा बिना मानवीय संबंधों की स्थापना के संप्रेषण असंभव है।’ एक तरह से संप्रेषण मानवीय संबंधों का आधार है, इसी के द्वारा ही हम समाज में मानवीय संबंध स्थापित कर पाते हैं। संस्थाओं एवं कार्यालय स्तर पर बात करें तो प्रबंधक और अधिकारी वर्ग एवं कर्मचारियों के बीच सकारात्मक संप्रेषण की स्थिति में ही उनके बीच मानवीय संबंध स्थापित होते हैं। यदि अधिकारी वर्ग कर्मचारियों की समस्याओं को ध्यान से सुनते हैं और उनका उचित समाधान करते हैं, उनकी कार्यक्षमता के अनुसार अनुकूल वातावरण तैयार करते हैं तो कर्मचारियों का न केवल मनोबल बढ़ता है बल्कि कार्य भी सुचारु रूप से संचालित होता है। कार्यालय में भी शांतिमय वातावरण बनेगा तथा अधिकारीयों/प्रबंधकों एवं कर्मचारियों के बीच मधुर एवं सौहार्दपूर्ण मानवीय संबंधों की स्थापना होगी।

7. भ्रम निवारण

अक्सर आप देखते होंगे कि कोई भी सूचना एक से दूसरे और दूसरे से तीसरे व्यक्ति तक जाते-जाते विकृत रूप ले लेती है। कभी-कभी मूल बात की ठीक उलट सूचना दूसरे प्रापकों के पास पहुँचने लगती है। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि लोगों के मध्य भ्रांति फैल जाती है। कहना न होगा कि इस भ्रांति का निवारण संप्रेषण के द्वारा ही संभव है। अत: यह अत्यन्त आवश्यक है कि अधिकारी वर्ग तथा कर्मचारियों के बीच प्रत्यक्ष बातचीत हो जिससे कोई भ्रांत धारणा न फैलने पाए और यदि किसी वजह से फैल भी जाती है तो उसे दूर किया जा सके।

8. बाह्य पक्षों से संपर्क

संप्रेषण की आवश्यकता एवं महत्त्व किसी कार्यालय में आतंरिक प्रबंधन तक ही सीमित नहीं है बल्कि बाहरी संपर्क बनाए रखने के लिए भी आवश्यक है। अधिकारियों को अपने क्षेत्र के लोगों और प्रबंधकों को ग्राहकों, अन्य व्यापारियों, विज्ञापन करने वाली संस्थाओं, समाज के लोगों आदि से निरंतर संपर्क रखना होता है। व्यवसाय को सही ढंग से चलाने के लिए तथा व्यावसायिक हितों का पोषण के लिए बाहरी पक्षों से लगातार संपर्क रखना जरूरी है। इससे एक ओर व्यापार की ख्याति में वृद्धि होती है दूसरी ओर संस्था एवं संस्था के बाहरी पक्षों के बीच मधुर एवं सौहार्दपूर्ण संबंधों की स्थापना भी होती है। इस प्रकार संप्रेषण की जरूरत न केवल कार्यालय तक सीमित है बल्कि कार्यालय के बाहर भी उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

9. प्रभावी नेतृत्व

प्रभावी नेतृत्व में संप्रेषण की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। संप्रेषण के द्वारा को प्रबंधक अपने अधीनस्थों से  विचारों का आदान-प्रदान करता है और उचित प्रस्तावों को प्रस्तुत करता है, उनकी राय जानता है, सलाह और निर्णय लेता है। संप्रेषण ही एक प्रबंधक को अपने अधीनस्थों के साथ लगातार संवाद करने और संभावित गलतफहमी को दूर करने और उनका विश्वास जीतने में सक्षम बनाता है। इस तरह वह अपने लोगों को संगठनात्मक लक्ष्य पूरा करने की ओर ले जाता है। एक तरह से संप्रेषण प्रभावी नेतृत्त्व का निर्माण करता है।

10. मनोबल और प्रेरणा को बढ़ावा देता है

संप्रेषण प्रणाली ही अधीनस्थों और श्रमिकों के बीच विश्वास पैदा करती है। उनके दृष्टिकोण और व्यवहार में परिवर्तन सुनिश्चित करती है। संघर्ष और असंतोष का मुख्य कारण गलतफहमी है जिसे संप्रेषण के माध्यम से खत्म किया जा सकता है। गलतफहमी को दूर करने से प्रबंधक और उनके अधीनस्थ एक-दूसरे को समझते हैं और अच्छे औद्योगिक संबंध बनाते हैं। इस तरह संप्रेषण लोगों का मनोबल बढ़ाता है और उन्हें और अधिक मेहनत करने के लिए प्रेरित करता है।

इस प्रकार संप्रेषण एवं सूचना प्रक्रिया का व्यावहारिक महत्त्व एवं उपयोगिता आज स्वयं सिद्ध है।