बात उस समय की है जब गोरखपुर में एक बार प्रेमचंद के स्कूल में निरीक्षण करने स्कूल इंस्पेक्टर आया। पहले दिन प्रेमचंद उसके साथ पूरे समय स्कूल में रहे। दूसरे दिन शाम को वह अपने घर पर आरामकुर्सी पर बैठे अखबार पढ़ रहे थे। इंस्पेक्टर की मोटरकार तभी उधर से गुजरी।
इंस्पेक्टर को उम्मीद थी कि प्रेमचंद उठकर उन्हें सलाम करेंगे लेकिन ऐसा कुछ न हुआ। इंस्पेक्टर ने गाड़ी रोक दी और अर्दली को भेजकर प्रेमचंद को बुलवाया। शिवरानी देवी इस घटना का वर्णन करते हुए लिखती हैं कि इंस्पेक्टर के सामने जाकर प्रेमचंद बोले, ‘कहिए क्या बात है?’
इंस्पेक्टर ने कहा, ‘तुम बड़े मग़रूर हो। तुम्हारा अफसर दरवाजे से निकला जाता है और तुम उठकर सलाम भी नहीं करते?’
प्रेमचंद बोले, मैं जब स्कूल में रहता हूँ तब नौकर हूँ। बाद में मैं भी अपने घर का बादशाह हूँ।’
प्रेमचंद का यह स्वाभिमानी रूप चंद लोगों के पास ही होता है। प्रेमचंद कलम के सिपाही के साथ साथ स्वाभिमान के भी सिपाही थे। ऐसे लेखक और व्यक्तित्व को सलाम 🙏 परवर्ती लेखकों को दिया शानदार पैगाम।
A.K. Singh