बिहारी हिंदी का विकास मागधी अपभ्रंश से हुआ है। जिसे दो भागों- पूर्वी बिहारी और पश्चिमी बिहारी में विभाजित किया जा सकता है। पूर्वी बिहारी की दो बोलियाँ हैं- मगही और मैथिली। वहीं पश्चिमी बिहारी के अंतर्गत भोजपुरी (bhojpuri boli) बोली आती है। जार्ज ग्रियर्सन ने मगही (magahi boli) को मैथिली (maithili boli) की एक बोली मानते हैं। वहीं सुनीति कुमार चटर्जी bhojpuri boli (भोजपुरी) को maithili boli (मैथिली) और magahi boli (मगही) से भिन्न मानते हैं और उसे अलग रखने के पक्ष में है। जार्ज ग्रियर्सन ने बिहारी बोली का प्रयोग करने वालों की संख्या लगभग 3 करोड़ 70 लाख मानी थी। ग्रियर्सन ने ही इस बोली को ‘बिहारी’ नाम दिया था।
हिंदी की बोलियाँ (hindi ki boliyan) श्रृंखला के अंतर्गत bihari hindi (बिहारी हिंदी) की तीनों बोलियों का परिचय, अन्य नाम, उपबोलियाँ, क्षेत्र तथा विशेषताएँ आदि नीचे दिया जा रहा है-
बिहारी हिंदी की बोलियाँ
1. भोजपुरी
भोजपुरी बोली (bhojpuri boli) का विकास मागधी अपभ्रंश के पश्चिमी रूप से हुआ है। बिहार के भोजपुर नामक कस्बे के आधार पर इसका नाम bhojpuri (भोजपुरी) पड़ा। भोजपुर की स्थापना राजा भोज के वंशजों ने की थी। भोजपुरी के नामकर्ता रेमण्ड को माना जाता है।
bhojpuri boli (भोजपुरी बोली) की मुख्य लिपि नागरी लिपि है। कुछ लोग कैथी लिपि का प्रयोग भी किया करते थे। वहीं बही-खाते के लिए महाजनी लिपि का प्रयोग होता था। जार्ज ग्रियर्सन ने इसके बोलने वालों की संख्या दो करोड़ चार लाख मानी है। 1971 की जनगणना के अनुसार भोजपुरी बोली (bhojpuri boli) बोलने वालों की संख्या 14340564 थी। बोलने वालों की दृष्टि यह हिन्दी की सबसे बड़ी बोली है। भोजपुरी में मुख्य रूप से लोक साहित्य ही मिलता है। कबीरदास, राहुल सांकृत्यायन, गोरख पाण्डेय, चंचरीक, धरमदास, शिव नारायण, लक्ष्मी सखी आदि उल्लेखनीय हैं। भिखारी ठाकुर का विदेशिया नृत्य नाटक भोजपुरी बहुत लोकप्रिय है। भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का सेक्सपियर भी माना जाता है।
भोजपुरी बोली के अन्य नाम
bhojpuri boli (भोजपुरी बोली) को ‘पूरबी’ और ‘भोजपुरिया’ नाम से भी जाना जाता है।
भोजपुरी बोली की उपबोलियाँ
भोजपुरी (bhojpuri) की मुख्य रूप से चार उपबोलियाँ हैं- उत्तरी भोजपुरी (थारू भोजुपरी भी इसके अन्तर्गत आती है।), दक्षिणी भोजपुरी (परिनिष्ठित रूप), पश्चिमी भोजपुरी तथा नगपुरिया। इसके आलावा इसके अन्य स्थानीय रूप निम्नलिखित हैं- मधेसी, बँगरही, सोनपारी, छपरिहा, सखरिया, सारन बोली, गोरखपुरी आदि।
भोजपुरी बोली का क्षेत्र
bhojpuri boli (भोजपुरी बोली) बिहार के भोजपुर, शाहाबाद, सारन, छपरा, चम्पारण, राँची, जशपुर, पलामू का कुछ भाग, मुजफ्फरपुर का कुछ भाग तथा उत्तर प्रदेश के वाराणसी, गाजीपुर, बलिया, जौनपुर, मिर्जापुर, गोरखपुर, देवरिया, आजमगढ़ आदि जिलों में बोली जाती है। भारत से बाहर मारिशस आदि देशों में भोजपुरी बोलने वालो की संख्या बहुत बड़ी है।
भोजपुरी बोली की प्रमुख विशेषताएँ
भोजपुरी बोली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. भोजपुरी में ‘ङ्’ का प्रयोग स्वतन्त्र रूप से अन्य व्यंजनों के समान होता है, जैसे- टाङ् (पैर), कङ्ना (कंगना) अड्यिा (अंगिया) आदि।
2. भोजपुरी बोली में महाप्राणीकरण का प्रयोग अधिक होता है, जैसे- ‘पेड़’ की जगह ‘फेड़’, ‘सब’ की जगह ‘सभ’, ‘ठंडा’ की जगह ‘ठंढा’ आदि।
3. भोजपुरी में घोषीकरण की प्रवित्ति पाई जाती है, जैसे- ‘नकद’ की जगह ‘नगद’, ‘डॉक्टर’ की जगह ‘डगडर’ आदि।
4. भोजपुरी बोली में विपर्यय की प्रवित्ति भी मिलती है, जैसे- ‘लखनऊ’ की जगह ‘नखलऊ’, ‘नाटक’ की जगह ‘नकटा’ आदि।
5. भोजपुरी बोली के कुछ ध्वनि परिवर्तन निम्नलिखित हैं-
ल > रा- फल > फर, गला > गर
न > ल- नोटिस > लोटिस, नम्बरदार > लम्बरदार
श, स > च- शाबाश > चाबस
6. भोजपुरी बोली में संज्ञा के तीन रूप मिलते हैं, जैसे-
- अहिर, अहिरा, अहिरवा
- चमार, चमरा, चमरवा
- सोनार, सोनरा, सोनरवा
7. भोजपुरी में स्त्री वाचक शब्द बनाने के लिए ई, नी, आनी और इया प्रत्यय का प्रयोग होता है, जैसे- लइकी, महटरनी, द्यौरानी, डिबिया आदि।
8. भोजपुरी में बहुवचन बनाने के लिए- अन्, न्ह, अन्ह प्रत्ययों का प्रयोग किया जाता है, जैसे- घोड़न्, घोड़न्ह, घोडिन्ह आदि।
9. भोजपुरी में सर्वनाम के रूप विशिष्ट हैं, जैसे- मे, मय, हमनी का, हमहन, तें, तै, तोहारकें, ऊ, हुन्हि, ऊलोगनक, ओकरन से, केहू, कुछुवौ, जेके आदि।
10. भोजपुरी बोली के विशेषण भी विशिष्ट हैं, जैसे- बड़ा > बड़का, बड़की, लाल > ललका, काला > करिया, राम (1), दू, चँवतिस, अरतिस, ओन्तालिस, सावा, अढाइ, पहुँचा, झुट्ठा आदि।
11. भोजपुरी बोली की कुछ क्रिया निम्नलिखित हैं- चलल, चलली, चलले, चललेह, चललनि, चललसि, चललह आदि।
12. भोजपुरी बोली की कुछ सहायक क्रियाएं निम्नलिखित हैं- हैं, हईं, हवीं, हवों, हवे, हवस, हसन, हहस आदि।13. भोजपुरी बोली के विशिष्ट क्रिया विशेषण निम्नलिखित हैं- इँहाँ, एठन, ठे, उँहाँ, उँहवाँ, ऊठाँ, जाहाँ, तेठन, अँव, एहबेरा, आजु, काल, काल्ह, परसों, परों, परौं आदि।
2. मगही
मगही बिहारी हिंदी की महत्वपूर्ण बोली है। यह बोली पूर्वी बिहारी के अंतर्गत आती है। मगही बोली की लिपि मुख्य रूप से कैथी तथा नागरी है। पूर्वी मगही कहीं-कहीं बंगला तथा उडिया लिपि में भी लिखी जाती है। जार्ज ग्रियर्सन के अनुसार मगही (magahi boli) बोलने वालों की संख्या 6504817 थी। 1971 की जनगणना अनुसार यह संख्या 6638495 है। magahi boli (मगही) बोली में लोक साहित्य ही मिलता है, जिसमें ‘गोपी चन्द’ तथा ‘लोरिक’ प्रसिद्ध हैं।
मगही बोली के अन्य नाम
magahi boli (मगही बोली) को ‘मागधी’ भी कहा जाता है। वस्तुतः ‘मगही’ शब्द ‘मागधी’ का ही विकसित रूप है।
मगही बोली की उपबोलियाँ
मगही बोली (magahi boli) का प्रमुख रूप पूर्वी मगही है। पूर्वी मगही की प्रमुख उपबोलियाँ निम्नलिखित हैं- कुड़माली, खोंटाली और पाँच परगनिया। टलहा मगही, जंगली मगही, सोनतटी मगही आदि उपबोलियों के स्थानीय रूप हैं। मगही बोली सीमावर्ती बोलियों & भाषाओं से प्रभावित है, जैसे पूर्वी पूर्णिया की सिरपुरिया उपबोली के संबंध में अंतर करना कठिन हो जाता है कि यह मगही है या बंगला। मगही के मिश्रित रूपों को ‘मैथिली प्रभावित मगही’ और ‘भोजपुरी प्रभावित मगही’ भी कहा जाता है।
मगही बोली का क्षेत्र
मगही बोली (magahi boli) गया, पटना, हजारीबाग, मुंगेर, पालामाऊ, भागलपुर, सारन और राँची जिलों के कुछ भागों में बोली जाती है। मगही का आदर्श रूप ‘गया’ जिले में मिलता है, प्रमुख केंद्र भी यही है।
मगही बोली की विशेषताएँ
मगही बोली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. मगही की प्रमुख विशेषता है- इसकी विपर्यक प्रवृत्ति, जैसे- बतख़ > बकत, नज़दीक > नगीच
2. मगही बोली में महाप्राणीकरण की प्रवृत्ति मिलती है, जैसे- पेड़ > फेड़, पुनः > फेन
3. मगही में अकारण अनुनासिकता पाया जाता है, जैसे- हाथ > हाँथ, सड़क > सँड़क
4. मगही बोली के कुछ ध्वनि परिवर्तन निम्नलिखित हैं-
श, ष > स- शैतान > सैतान, देश > देस
ल > र- मछली > मछरी, कलेजा > करेजा
5. मगही बोली में अनेक संज्ञाओं के दो अथवा तीन रूप मिलता है, जैसे-
नाऊ > नउवाबेटा > बेटवा > बेटउवा
6. मगही के कुछ स्त्रीलिंग प्रत्यय विशिष्ट हैं, जैसे- ई (घोरी), इया (बुढ़िया) आइन (ललाइन) ऐनी (पंडितैनी) आदि।
7. मगही बोली में प्रयुक्त कुछ सर्वनाम दृष्टव्य हैं- मोरा, हमरा, हमनी, हमरनी, तूँ, तों, तोहनी, ऊ, ओकरा, उन्हकरा, ई, एह, इन्हकनी, केकरोके, कौनोंलेल, तौन, तऊन, के, को आदि।
8. विशेषण भी इसकी विशिष्टता को रेखांकित करते हैं- एगो, दू, पान (5), छो, पछन्तर, सव (100) कड़ोर, दोसर, तेसर, चौठ, पउआ, तेहाई, जइसन, तइसन आदि।
9. मगही बोली की कुछ क्रिया निम्नलिखित हैं- चलत, चलित, चलल, चललमेल, चलब, चले बला, चयानिहारा आदि।
10. मगही की कुछ सहायक क्रियाएं निम्नलिखित हैं- ही, हिकूँ, हकिन, हनिन, हहो, हहू, हदुन, हलूँ, हली, ही, हिथो आदि।
11. मगही बोली के कुछ विशिष्ट क्रिया विशेषण निम्नलिखित हैं- ईठयाँ, हियाँ, हुआँ, जेठवाँ, जेतह, जरवनी (जब) ओखनी, तखनी (तब), होहर (उधर), जेन्ने, जेन्दे (जिधर) आदि।
3. मैथिली
मैथिली नाम का प्रयोग प्रदेश के आधार पर किया गया है। मैथिली शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1801 ई. में कोलबुक ने किया था। इससे पहले इसे ‘देसिल बअना’ (विद्यापति) अथवा तिरहुतिया कहा जाता था।
मैथिली बोली (maithili boli) सामान्यतः नागरी लिपि में लिखी जाती है, परन्तु मैथिल ब्राह्मण इसे ‘मैथिली लिपि’ में लिखते हैं। कहीं-कहीं कैथी लिपि का प्रयोग भी होता रहा है। जार्ज ग्रियर्सन के अनुसार इसके (maithili boli) बोलने वालों की संख्या 10262357 थी। 1971 की जनगणना के अनुसार यह संख्या 6121922 है। maithili boli (मैथिली बोली) का प्राचीनतम उपलब्ध ग्रन्थ ज्योतिरीश्वर ठाकुर का ‘वर्ण रत्नाकर’ है। विद्यापति, उमापति, महीपति आदि इस बोली के प्रसिद्ध साहित्यकार हैं। विद्यापति से आपलोग परिचित ही होने, जिन्हें मैथिल कोकिल कहा जाता है।विद्यापति के गीत मिथिला के घर-घर गाते जाते हैं। संविधान की आठवीं अनुसूची में एक मात्र स्थान पाने वाली मैथिली हिन्दी की एक मात्र बोली है।
मैथिली बोली के अन्य नाम
मैथिली बोली (maithili boli) का अन्य प्रमुख नाम देसिल बअना और तिरहुतिया है।
मैथिली बोली की उपबोलियाँ
मैथिली बोली (maithili boli) की प्रमुख उपबोलियाँ निम्नलिखित हैं- केन्द्रीय मैथिली, दक्षिणी मैथिली, पूर्वी मैथिली, छिकाछिकी (मगही तथा बंगला से प्रभावित), पश्चिमी मैथिली (भोजपुरी से प्रभावित), जोलाही मैथिली (अरबी-फारसी मिश्रित) आदि।
मैथिली बोली का क्षेत्र
maithili boli (मैथिली बोली) का प्रयोग पूर्वी चम्पारण, मुजफ्फरपुर, उत्तरी मुंगेर, उत्तरी भागलपुर, दरभंगा, पूर्णिया का कुछ भाग तथा नेपाल के रौताहट, सरलारी, सप्तरी, मोहतरी और मोरंग आदि जिलों में किया जाता है। इसका केन्द्र दरभंगा जिला है।
मैथिली बोली की विशेषताएँ
मैथिली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. मैथिली बोली की कुछ ध्वनि परिवर्तन निम्नलिखित हैं-
ल > न- लवण > नून
न > ल- नालिश > लालिस, नोट > लोट
2. मैथिली में घोषीकरण और अघोषीकरण दोनों की प्रवृति पाई जाती है, जैसे-
घोषीकरण- डॉक्टर > डाकडर, एकादश > एगारह
अघोषीकरण- मेज़ > मेच, कमीज > कमीच
3. मैथिली बोली में महाप्राण ध्वनियों का प्रयोग होता है, जैसे- जर्जर > झाँझर, वेष > बेख
4. मैथिली में संज्ञा के रूप तीन या चार तरह से चलते है, जैसे-
घर- घरवा- घरउआघोड़- घोड़ा- घोड़वा- घोडउवा
5. मैथिली बोली में स्त्रीलिंग बनाने के लिए ई (नेनी- लड़की), इया (नेनिया), ईवा (घोड़ीवा) आइनि (मोदिआइनि) आदि प्रत्ययों का प्रयोग किया जाता है।
6. मैथिली के सर्वनाम भी विशिष्ट हैं, जैसे- हाय, हँओ, हमनी, मोरें, मोय, तोंह, तुहुँ, तोहर, ओहि, उहे, तनि, तन्हि, ई, ए, केऊ, कोय, कुछु, किछु आदि।
7. मैथिली बोली में- मीठ-मीठा-मिठका, दू, दुइ, चउदह, अठतिस, चउवन, बिरानवे (92), सै (100), अउबल (अव्वल), दोसर, तेसर आदि विशेषण प्रयुक्त होते हैं।
8. मैथिली की क्रिया भी विशिष्ट हैं, जैसे- चल, चलै, चलअ, चलिहे, चलिअह, चलू, चली आदि।
9. मैथिली बोली में निम्नलिखित सहायक क्रिया का प्रयोग होता है- छिअहु, थिकहुँ, थिकिऔ, छथून्हि, छथून, छी, छिऐ, छलिअहु आदि।
10. मैथिली बोली में निम्न क्रियाविशेषण प्रयुक्त होते हैं- एतय, बैठियाँ, जते, जत्ते, एखन, एहिया, तखन, तेखनि आदि।