व्यावहारिक हिंदी के विविध रूप

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व्यावहारिक हिंदी

व्यावहारिक हिंदी:

व्यावहारिक हिंदी (Practical Hindi) को प्रयोजनमूलक हिंदी (Functional Hindi), कामकाजी हिंदी तथा प्रकार्यत्मक हिंदी भी कहा जाता है। व्यावहारिक हिंदी का अर्थ दैनिक जीवन में प्रयुक्त होने वाली हिंदी नहीं है। बल्कि यह प्रयोजनमूलक हिंदी की तरह किसी विशेष प्रयोजन के लिए इस्तेमाल होने वाली भाषा है। संकुचित अर्थ में व्यावहारिक हिंदी को बोलचाल की हिंदी भले कहा जाए परंतु वृहद् अर्थ में में वह विविध क्षेत्रों में प्रयुक्त होने वाली हिंदी ही है।

हिंदी के संदर्भ में कुछ विद्वानों ने ‘व्यावहारिक हिंदी’ की अपेक्षा ‘प्रयोजनमूलक हिंदी’ या ‘कामकाजी’ नाम अधिक उपयुक्त समझते हैं। वहीं दूसरी तरह कुछ विद्वानों को प्रयोजनमूलक हिंदी से यह लगता है कि कोई ऐसी हिंदी भी है जिसे निष्प्रयोजनपरक कहा जा सकता है। विद्वानों में भले ही मतभेद हो परंतु दोनों एक दूसरे के समानार्थी हैं।

व्यावहारिक हिंदी की परिभाषा:

जीवन के विविध कार्य क्षेत्रों से संबंधित प्रयोग होने वाली हिंदी को व्यावहारिक हिंदी कहते हैं। “हिंदी के व्यावहारिक होने का अर्थ है हिंदी को प्रशासन और व्यवसाय के कामकाज के प्रयोग की भाषा बनाना।”1 किसी व्यवसाय या कार्यक्षेत्र के लोगों द्वारा उस व्यवसाय या कार्यक्षेत्र के प्रयोजन के लिए इस्तेमाल की जाने वाली भाषा व्यावहारिक हिंदी या प्रयोजनमूलक हिंदी कहलाती है।

हम जानते हैं कि दैनंदिन जीवन में हमारी विभिन्न भूमिकाएं होती हैं; जैसे पारिवारिक, व्यावसायिक आदि। हमारा भाषा व्यवहार इन्हीं भूमिकाओं के आधार पर बदलता रहता है। जिस तरह की भाषा में हम अपने घर वालों से बात करते हैं, वैसी भाषा में अपने शिक्षकों से अथवा सहपाठियों से नहीं करते हैं। क्योंकि जहाँ पहले व्यवहार में अनौपचारिकता होती है वहीं दूसरे व्यवहार में औपचारिकता।

व्यावहारिक हिंदी में औपचारिकता के आलावा दूसरी महत्त्वपूर्ण बात जो इसे सामान्य भाषा से अलग करती है, वह है उसकी विशिष्ट शब्दावली। उस स्थान या कार्यालय विशेष में कार्यरत सभी लोग जिस शब्दावली का व्यवहार करते हैं, वह बाहर या आम जीवन में प्रयुक्त नहीं होते। डॉक्टर, वकील, पत्रकार, वैज्ञानिक, व्यापारी आदि के कार्य क्षेत्रों से संबंधित भाषा के विशिष्ट स्वरूप को ही प्रयोजनमूलक या व्यावहारिक हिंदी कहा जाता है। “वास्तव में सामान्य भाषा और विशिष्ट भाषा एक ही होती है, किंतु शब्दावली और संरचना की दृष्टि से दोनों अलग हो जाती हैं।”2

हिंदी के संदर्भ में व्यावहारिक या प्रयोजनमूलक विशेषण का प्रयोग अपेक्षाकृत नया है। इसका ऐतिहासिक कारण, दरअसल यह नई घटना है। हिंदी भाषा और उसकी बोलियाँ या साहित्यिक और बोलचाल का रूप जितना पुराना है, उतना व्यावहारिक या प्रयोजनमूलक रूप नहीं। हालाँकि वाणिज्य एवं व्यापार की भाषा के रूप में हिंदी काफी समय से देश की संपर्क भाषा बनी हुई थी। लेकिन आधुनिक काल में आकार उसने कई नए दायित्वों का वहन किया।

19वीं शताब्दी में पश्चिमी ज्ञान-विज्ञान और प्रद्योगिकी से संपर्क, आधुनिक शिक्षा की शुरुआत, पत्रकारिता का विकास, राजभाषा के रूप में स्वीकृत तथा औद्योगिक विकास के परिणाम स्वरूप हिंदी को नए दायित्यों से गुजरना पड़ा। इन नये क्षेत्रों में भाषा का प्रयोग जैसे-जैसे बढ़ता गया, उन क्षेत्रों के अनुरूप व्यावहारिक रूप भी विकसित होता गया।

सामाजिक जीवन में विभिन्न संदर्भों, स्थितियों और कार्य क्षेत्रों में भाषा का प्रयोग होने से उसके कई रूप उभरने लगते हैं। कई रूप में प्रयोग की वजह से भाषा विषमरूपी बन जाती है। “वस्तुतः भाषा अपने आप में समरूपी होती है, परंतु प्रयोग में आने पर वह विषम रूपी बन जाती है। इन्हीं प्रयोगगत भेड़ों के कारण कई भाषा भेद दिखाई देते हैं।”3

विभिन्न संदर्भगत और भूमिकागत प्रयोगों के कारण भाषा व्यवहार में जो भेद पाए जाते हैं, वे ‘प्रयुक्ति’ कहलाते हैं। भाषा का जो रूप जिस क्षेत्र में लगातार प्रयुक्त होता है, उसे क्षेत्र विशेष की प्रयुक्ति (Register) कहा जाता है। भाषा का व्यावहारिक स्वरूप भाषा के मूल रूप यानि शब्द-संरचना, पदावली अथवा अन्य व्याकरणिक रूपों से भिन्न नहीं होता है। व्यावहारिक भाषा के विविध रूप इन प्रयुक्तियों से निर्धारित होते हैं।

ध्यातव्य बात यह है कि भाषा के सभी रूपों में प्रयुक्ति का प्रयोग होता है। लेकिन प्रयुक्ति के सभी रूप व्यावहारिक हिंदी के रूप नहीं हैं। खासकर साहित्यिक हिंदी और सामान्य व्यवहार या बोलचाल की भाषा। क्योंकि इन दोनों में व्यापक छूट होती है, जरूरत के अनुसार किसी भी क्षेत्र की प्रयुक्ति का इसमें प्रयोग किया जा सकता है। साथ ही सामान्य बोलचाल की भाषा अनौपचारिक होती है।

व्यावहारिक हिंदी की विशेषताएँ:

व्यावहारिक हिंदी की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-

  • व्यावहारिक हिंदी सामान्य भाषा व्यवहार और साहित्यिक भाषा व्यवहार से भिन्न होती है।
  • इसमें परम्परागत भाषा रूप के साथ नये भाषा रूप भी होते हैं।
  • व्यावहारिक हिंदी के प्रत्येक रूप की अपनी विशिष्ट शब्दावली और संरचना होती है।
  • इसमें प्रयुक्ति के अनुरूप हिंदी की सभी शैलियों (हिंदी, उर्दू, हिन्दुस्तानी आदि) का प्रयोग होता है।
  • व्यावहारिक भाषा को सप्रयास विकसित किया जाता है। इस दृष्टि से यह कृतिम और औपचारिक होती है।
  • यह अर्जित भाषा है, इसे सयास सीखना पड़ता है।
  • इसका स्वरूप प्रयोजनपरक होता है। क्योंकि यह सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रयुक्त होती है।
  • इसकी भाषा स्पष्ट, अलंकाररहित, अभिधात्मक और एकार्थी होती है।
  • व्यावहारिक हिंदी में पारिभाषिक शब्दावली का प्रयोग किया जाता है।
  • शब्द संपदा को समृद्ध करने के लिए भारतीय तथा पश्चिमी भाषाओं से भी शब्द ग्रहण किया जाता है।

व्यावहारिक हिंदी के विविध रूप:

व्यावहारिक हिंदी के विविध रूपों का आधार आधुनिक युग की आवश्यकताएं और उनका प्रयोग क्षेत्र है। आजादी के बाद से लगातार इसका विकास और विस्तार हो रहा है। वर्तमान में हिंदी भाषा सिर्फ सृजनात्मक साहित्य तक सीमित नहीं है बल्कि ज्ञान-विज्ञान के विविध क्षेत्रों में उसका व्यापक प्रयोग हो रहा है। विभिन्न विद्वानों ने प्रयोजनमूलकता को आधार बनाकर व्यावहारिक हिंदी के विविध रूपों का उल्लेख किया है, जिसमें से प्रमुख रूप निम्नलिखित है-

  1. वाणिज्यिक और व्यापारिक हिंदी (Commercial and Business Hindi)
  2. वैज्ञानिक एवं तकनीकी हिंदी (Scientific and Technical Hindi)
  3. कार्यालयी हिंदी (Official Hindi)
  4. विधिक हिंदी (Legislative Hindi)
  5. जनसंचार माध्यमों में हिंदी (Mass-media Hindi)
  6. विज्ञापन के क्षेत्र में हिंदी (Advertisemental Hindi)
  7. सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में हिंदी

वर्तमान समय में हिंदी का प्रयोग विभिन्न क्षेत्रों में हो रहा है। उसके अनेक रूप उभरकर सामने आ रहे हैं, जिससे व्यावहारिक हिंदी की उपयोगिता निरंतर बढ़ती जा रही है-

1. वाणिज्यिक और व्यापारिक हिंदी:

वाणिज्य और व्यापार का क्षेत्र व्यापक और महत्त्वपूर्ण है और सभी वर्गों से इसका संबंध रहा है। इसके अंतर्गत व्यापार, वाणिज्य, व्यवसाय, परिवहन, बीमा, बैंकिंग, आयत-निर्यात, शेयर बाजार, सर्राफा बाजार, स्टॉक एक्स्चेंज और मंडी आदि क्षेत्रों का समावेश होता है। इन क्षेत्रों में प्रयुक्त भाषा अन्य क्षेत्रों में प्रयुक्त भाषा से काफी भिन्न होती है।

चूँकि हिंदी काफी वक्त से संपर्क भाषा रही है, इसीलिए इसका प्रयोग वाणिज्य एवं व्यापार के क्षेत्र में व्यापक रूप से बहुत पहले से होता रहा है। वस्तुओं के उत्पादन (Production) से लेकर विपणन (Marketing) और वितरण (Distribution) तक वाणिज्यिक और व्यापारिक हिंदी की भूमिका अत्यंत महत्त्पूर्ण है और इसकी उपयोगिता निरंतर बढ़ती जा रही है। परंतु औधोगिक क्रांति और अंतर्राष्ट्रीय भाषा होने के कारण वर्तमान में अंग्रेजी शब्दों की बहुलता भी दिखाई देती है।

वाणिज्यि और व्यापार के क्षेत्र में विशेष पारिभाषिक शब्दावली एवं शैली का प्रयोग किया जाता है जो काफी हद तक परंपरागत है; जैसे-

  • मुनाफा वसूली की विकावली में चाँदी 20 रूपये टूट गई और सोना भी ढीला रहा।
  • जीरा फिर भड़का, टमाटर के भाव टूटे।
  • खाद्य तेल लुढ़के, चीनी स्थिर और चना मजबूत।
  • खुदरा बाजार में अरहर सुस्त और चने में तेजी दिखा।
  • प्याज के दाम रुला रहे महंगाई के आंसू, लहसुन के दाम छू रहे आसमान।
  • अब आसानी से ‘गलेगी’ आपकी दाल, गिर गए दाम।

2. वैज्ञानिक एवं तकनीकी हिंदी:

वैज्ञानिक एवं तकनीकी हिंदी से तात्पर्य हिंदी के उस रूप से है जिसका प्रयोग विज्ञान और तकनीकी विषयों की अभिव्यक्ति के लिए किया जाता है। इसके अंतर्गत भौतिकी, रासायन, वनस्पति और जीव विज्ञान के साथ-साथ चिकित्सा, कम्यूटर और यांत्रिकी आदि विषय भी आते हैं। व्यावहारिक हिंदी के अन्य रूपों की तरह विज्ञान एवं प्राद्योगिकी की भी भाषा विशिष्ट होती है और अर्थ निश्चित होते हैं। वैज्ञानिक एवं तकनीकी क्षेत्र की शब्दावली के निर्माण में अधिकांशतः हिंदी, संस्कृत के साथ अंतर्राष्ट्रीय शब्दावली का प्रयोग किया जाता है।

वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली के निर्माण के लिए सर्वप्रथम शिक्षा मंत्रालय ने वर्ष 1950 में वैज्ञानिक शब्दावली बोर्ड का गठन किया। जिसने वर्ष 1952 से शब्दावली निर्माण का कार्य प्रारंभ किया। अंततः भारत सरकार ने 1 अक्टूबर, 1961 को प्रख्यात वैज्ञानिक ‘प्रो. दौलत सिंह कोठारी’ की अध्यक्षता में ‘वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग’ की स्थापना हुई। इस आयोग ने हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दों, कोशों का निर्माण तथा परिभाषित करने के काम को आगे बढ़ाया। चूँकि वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली एक गतिशील प्रक्रिया है इसीलिए यह आयोग समय-समय पर नए शब्दों का निर्माण और परिभाषित कर प्रकाशित करता रहता है।

भारतियों ने उन लोगों की धारणा को गलत साबित कर दिया जिन्हें लगता था कि विज्ञान और तकनीकी विषयों का काम हिंदी में नहीं हो सकता है। वर्तमान समय में न केवल वैज्ञानिक एवं तकनीकी विषयों में पठन-पाठन हो रहा बल्कि विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में व्यापक स्तर पर प्रयोग हो रहा। परिणाम स्वरूप तकनीकी हिंदी का महत्त्व दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है।

यह सही है कि व्यावहारिक हिंदी में वैज्ञानिक एवं तकनीकी के शब्द अधिकतर अंग्रेजी शब्दों के अनुदित रूप होते हैं। इसकी सबसे खास वजह यह है कि पश्चिमी देशों में यह सबसे पहले विकसित हुआ और वे हमसे इस क्षेत्र में काफी आगे निकल गए हैं।

‘विज्ञान की भाषा स्पष्ट, तर्कसंगत तथा सुगठित होती है।’4 वैज्ञानिक भाषा जहाँ औपचारिक और निर्वैतिक होती है वहीं तकनीकी भाषा वस्तुनिष्ठ होती है। वैज्ञानिक एवं तकनीकी हिंदी के कुछ उदाहरण- हाइड्रोजन, आक्सीजन, कैलोरी, समकोण, विषमकोण, त्रिभुज, अल्फा (α), बीटा (β), गामा (γ) आदि।

3. कार्यालयी हिंदी:

प्रशासनिक क्षेत्र में प्रयुक्त हिंदी को ‘कार्यालयी हिंदी’ कहा जाता है। इसे कार्यालयी हिंदी इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह सरकारी एवं सार्वजानिक क्षेत्र के कामकाज से संबधित होती है। व्यावहारिक हिंदी का यह रूप आजादी के बाद विकसित हुआ। जब अनेक कार्यालयों की स्थापना एवं विकास हुआ तथा हिंदी राजभाषा के रूप में आसीन हुई। इससे पहले राजभाषा के रूप में फारसी फिर अंग्रेजी भाषा का प्रयोग होता था।

वर्तमान समय में कार्यालयों के बिना किसी कार्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। प्रसासन के विभिन्न अंगों, उपांगों को आपस में जोड़ने में हिंदी भाषा अधिक सक्षम हुई है। परिणाम स्वरूप हिंदी का प्रयोग इन क्षेत्रों में व्यापक स्तर होता है। व्यावहारिक हिंदी के विकास में कार्यालयी हिंदी की महत्त्पूर्ण भूमिका है।

व्यावहारिक हिंदी के अन्य रूपों की तरह “कार्यालयी भाषा की अपनी विशिष्ट पारिभाषिक शब्दावली, पद-रचना वाक्य विन्यास आदि होता है।”5 इसका प्रयोग पत्राचार, मसौदा लेखन, संक्षेपण या सारलेखन, प्रतिवेदन या रिपोर्ट, अनुवाद एवं अन्य कार्यालयीन कार्यों में होता है। यह औपचारिक भाषा होती है और इसमें सुनिश्चित अर्थ का प्रयोग किया जाता है। कार्यालयी हिंदी के कुछ उदाहरण-

  • मुझे यह कहने का निर्देश हुआ है।
  • मामला अभी विचाराधीन है।
  • इसे तत्काल लागू करें।

4. विधिक हिंदी:

विधिक हिंदी के अंतर्गत विधान (कानून), कानूनी प्रक्रिया (जैसे न्यायालय में बहस), निर्णय आदि की भाषा आती है। ब्रिटिश शासन काल के दौरान ही पश्चिमोत्तर प्रदेश में आदलती कामकाज की भाषा के रूप में फारसी के स्थान पर हिंदी में होने लगा था। लेकिन व्यवहार में कचहरियों की भाषा उर्दू ही थी। बाद में भी अग्रेजी शिक्षा के प्रसार और उच्च शिक्षा में अंग्रेजी के महत्त्व ने हिंदी को हासिए पर रखा। आजादी के बाद जब हिंदी राजभाषा बनी तब इस तरफ ध्यान दिया गया कि न्यायलय की भाषा क्या हो?

संघ की राजभाषा के रूप में स्थापित होने के बाद व्यावहारिक हिंदी के अन्य क्षेत्रों की तरह विधि क्षेत्र की भाषा के विकास के लिए प्रयास शुरू किये गए। स्वतंत्रता के पश्चात् राजभाषा विधायी आयोग द्वारा वर्ष 1970 में पहली बार ‘विधि शब्दावली’ तैयार की गई। वर्तमान समय में विधि मंत्रालय के अधीन ‘विधायी विभाग’ (राजभाषा खंड) ही विधिक हिंदी की पारिभाषिक शब्दावली तैयार करता है।

विधि शब्दावली अधिक तकनीकी और कानूनी प्रक्रिया तथा अदालतों से जुड़ा होने के कारण अधिक जटिल, दुरूह, नीरस और उबाऊ होती है। दरअसल विधिक क्षेत्र की हिंदी अनुवाद पर आश्रित है और अब तक कानूनी, विधिक, न्यायिक क्षेत्र के हजारों पृष्ठों का अनुवाद किया जा चुका है। विधि एवं कानून की भाषा में “तकनीकी शब्दावली, विशिष्ट पद विन्यास, लंबे और संयुक्त वाक्य-रचना, कानूनी-प्रक्रिया की अन्विति आदि बातें मुख्यतः पाई जाती हैं।”6

विधि क्षेत्र में विभिन्न बाधाओं के होते हुए भी व्यावहारिक हिंदी का प्रयोग एवं व्यवहार दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। आज हिंदी का उपयोग कई उच्च न्यायालयों में हो रहा है। सर्वोच्च न्यायालय में भी सभी निर्णयों का हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद प्रदान किया जा रहा है। विधिक हिंदी की शब्दावली के निर्माण में हिंदी के साथ-साथ अरबी-फारसी और अंगेजी शब्दावली का भी प्रयोग किया गया है। विधिक हिंदी के कुछ उदाहरण- नियम (Rule), अधिनियम (Act), अपील (Appeal), अपीलकर्ता (Applellant), वकील (Advocate), दावा (Claim), प्रतिवादी (Defendant), करारनामा (Agreement), वसीयतनामा (Testament) आदि।

5. जनसंचार माध्यमों में हिंदी:

जन संचार के माध्यमों में समाचार पत्र-पत्रिकाएँ (दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक) और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (रेडियों, टेलिविन और सोसल माध्यम) आदि आते हैं। प्रौद्योगिकी के विकास के परिणाम स्वरूप इसका परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। इंटरनेट तक सबकी पहुँच ने इसके दायरे को और विस्तारित किया है। इन जनसंचार माध्यमों का मूल उद्देश्य जनता को जानकारी मुहैया कराना, उन्हें शिक्षित बनाना और उनका मनोरंजन करना है।

वर्तमान समय में जनसंचार माध्यमों में हिंदी का भरपूर उपयोग हो रहा है। सूचना एवं प्रसारण के कार्यों हेतु मिडिया के सभी माध्यमों में व्यावहारिक हिंदी का प्रयोग उतरोत्तर बढता जा रहा है। “जनसंचार माध्यमों में विशेष रूप से समाचार, रेडिओ, टेलीविजन एवं फिल्मों ने हिंदी का व्यापक प्रचार-प्रसार किया है।7 सोशल माध्यम के आ जाने से हिंदी भाषा को और फलने-फूलने का मौका मिला है।

चूँकि जनसंचार माध्यमों की भाषा समाज के सभी वर्गों के लिए होती है। इसीलिए यह सरल, स्पष्ट एवं बोधगम्य होती है। अगरचे विभिन्न विषयों की भाषा अलग-अलग होती है; जैसे- खेलकूद (सलामी बल्लेबाज, मुक्केबाजी), राजनीति (वोटिंग पैटर्न, जाति समीकरण, बूथ कैप्चरिंग, त्रिशंकु विधानसभा, सत्ता विरोधी लहर) आदि। इसमें अंग्रेजी, हिंदी की बोलियों से भी शब्द ग्रहण किए जाते हैं; जैसे- वेडिंग सीजन, बिजनेस डेस्क, भीतरघात करना, पटकनी देना आदि। हिंग्लिश भाषा का प्रयोग भी धरल्ले से होने लगा है, खासकर ऑनलाइन प्लेटफार्म पर। अखबारी भाषा में संक्षिप्तिकी का प्रयोग भी अधिक होता है; जैसे- भाजपा (भारतीय जनता पार्टी), सपा (समाजवादी पार्टी), बसपा (बहुजन समाज पार्टी) आदि।

6. विज्ञापन के क्षेत्र में हिंदी:

विज्ञापन का संबंध भी जनसंचार माध्यमों से है क्योंकि विज्ञापन का प्रदर्शन इसी माध्यम पर अधिक होता है। दीवार, चौराहों पर लगे बोर्ड और सिनेमा जैसे अन्य माध्यमों में भी विज्ञापन प्रदर्शित होते हैं। वेव एडवर्टाइजिंग विज्ञापनदाताओं का मनपसंद माध्यम बनता जा रहा है। कई सारी कंपनियाँ Ads campaigns का प्रोग्राम चला रही हैं; जैसे- गूगल, मेटा, माइक्रोसॉफ्ट, अमेज़न, लिंक्डइन आदि।

विज्ञापन का उद्देश्य सूचना देने के साथ-साथ ध्यान आकृष्ट करना होता है। वर्तमान समय में विज्ञापनों की भाषा अटपटी भी होती है। इसमें हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का मिश्रण भी दिखाई देता है। टाटा स्काई के विज्ञापन का एक उदाहरण देखिए- इसको लगा डाला तो लाइफ जिगालाला।

इसकी भाषा तकनीकी या पारिभाषिक शब्दावली की अपेक्षा आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक संदर्भों एवं स्थितियों से अधिक जुड़ी होती है। दंगल झाल्टे के अनुसार इसकी भाषा में आकर्षक वाक्य विन्यास, शब्दों का उचित चयन तथा प्रवहमय भाषिक संरचना का प्रयोग होता है। इसमें भाषायी आकर्षण के साथ मोहक भाषा शैली, प्रभावान्विति, संक्षिप्तता, सुपाठ्यता एवं श्रव्यता जैसे गुण विद्यमान होते हैं।

विज्ञापन के तीन रूप होते हैं- दृश्य, श्रव्य, मुद्रित। तीनों में हिंदी भाषा विज्ञापन का अभिन्न अंग बन गई है। दूसरी भाषा के माध्यमों पर भी अधिक्तर हिंदी विज्ञापन ही दिखाई जाते हैं। कश्मीर का केसर हो या जुबां केसरी वाला, सब के विज्ञापन आप को हिंदी में मिलेगा। चूँकि हिंदी का एक बड़ा बाजार है, इसलिए भारत के संदर्भ में कहा ही जा सकता है कि विज्ञापन का अस्तित्व हिंदी के कारण है।

7. सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में हिंदी:

व्यावहारिक हिंदी के अन्य रूपों की तरह सामाजिक विज्ञान में भी विशिष्ट भाषा और शब्दावली का प्रयोग होता है। इस क्षेत्र के अंतर्गत मुख्य रूप से राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, इतिहास, भूगोल आदि विषय आते हैं। इसकी शब्दावली संकल्पनाओं और विचार धाराओं पर आधारित होती है और अपने भीतर विशिष्ट अर्थ समाहित किए होती है; जैसे- राष्ट्रवाद, राष्ट्रवादी, साम्राज्यवादी, पूँजीवादी, मार्क्सवाद, वर्ग शोषण आदि।

उपरोक्त सभी शब्द पारिभाषिक शब्द हैं। इनका प्रयोग विशिष्ट अर्थों में किया जाता है। परंतु यह जरुरी नहीं कि विशिष्ट अर्थ अपने मूल शब्द के अर्थ से सकरात्मक संगति ही रखें; जैसे- राष्ट्र से बना है राष्ट्रवाद शब्द और पूँजी से बना है पूँजीवाद शब्द। राष्ट्र से ही बना राष्ट्रीय शब्द अच्छे अर्थों में प्रयुक्त होता है। इसका तात्पर्य है देश-प्रेम, अपने राष्ट्र के प्रति निर्माणकारी, विकासपरक भूमिका अदा करने की इच्छा। वहीं राष्ट्र से ही बने ‘राष्ट्रवाद’ शब्द में पूरी तरह सकारात्मक दृष्टिकोण का अर्थ नहीं रहता। राष्ट्रवाद किन्हीं संदर्भों में अंधराष्ट्रभक्ति यानि अन्य राष्ट्रों को अपने राष्ट्र से नीचे मानाने की प्रवृत्ति का भी सूचक होता है।

इस शब्दावलीगत वैशिष्ट्य के अतिरिक्त सामाजिक विज्ञानों की भाषा में वाक्य संरचनागत स्वरूप सामान्य भाषा का ही रहता है। हाँ, अर्थशास्त्र में जरुर अपेक्षित संकेतों और प्रतीकों का प्रयोग किया जाता है। व्यावहारिक हिंदी के दूसरे रूपों की अपेक्षा इस क्षेत्र की हिंदी का काफी विकास हुआ है क्योंकि इस क्षेत्र में व्यापक स्तर पर हिंदी भाषा में लेखन का कार्य होता रहा है।

संदर्भ ग्रंथ:


  1. व्यावहारिक और प्रयोजनमूलक हिंदी- डॉ. अर्चना श्रीवास्तव, पृष्ठ- 32 ↩︎
  2. प्रयोजनमूलक हिंदी- डॉ. कृष्ण कुमार गोस्वामी, पृष्ठ- 25 ↩︎
  3. प्रयोजनमूलक हिंदी- डॉ. कृष्ण कुमार गोस्वामी, पृष्ठ- 25 ↩︎
  4. प्रयोजनमूलक हिंदी- आम्टे, पृष्ठ- 76 ↩︎
  5. प्रयोजनमूलक हिंदी- आम्टे, पृष्ठ- 73 ↩︎
  6. प्रयोजनमूलक हिंदी- आम्टे, पृष्ठ- 75 ↩︎
  7. प्रयोजनमूलक हिंदी- प्रो. रमेश जैन, पृष्ठ- 10 ↩︎
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