वचन की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण | vachan

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वचन की परिभाषा

“शब्दों के संख्याबोधक विकारी रूप का नाम वचन है।”[1] अर्थात शब्द के जिस रूप से वस्तु की संख्या का बोध हो उसे हिंदी व्याकरण में वचन (vachan) कहते हैं, अंग्रेजी में number कहा भी जाता है। जैसे―

(क) लड़का खेलता है।

(ख) लड़के खेलते हैं।

उपरोक्त उदाहरणों के संज्ञा पदों में थोड़ा परिवर्तन करने से उनसे बहुत-सी वस्तुओं का बोध हो रहा है। कहने का तात्पर्य ‘लड़का’ से जहाँ एक का बोध हो रहा, वहीं ‘लड़के’ से कई का बोध हो रहा है। इसीलिए vachan को संख्यावचन (number) भी कहा जाता है।

वचन (vachan) के प्रकार

वचन के दो भेद होते हैं―

1. एकवचन और 2. बहुवचन

1. एकवचन

शब्द के जिस रूप से एक वस्तु या व्यक्ति का बोध होता है उसे ‘एकवचन’ कहते हैं; जैसे― 

गाय, बच्चा, स्त्री, नदी, ठेला, गाड़ी आदि।

2. बहुवचन

शब्द के जिस रूप से एक से अधिक वस्तुओं या व्यक्तियों का बोध होता है उसे ‘बहुवचन’ कहते हैं; जैसे― 

गायें, बच्चे, स्त्रियाँ, नदियाँ, ठेले, गाड़ियाँ आदि।

वचन संबंधी विशेष तथ्य

सामान्यतया संज्ञा के एकवचन से एक वस्तु का और बहुवचन से कई वस्तुओं का बोध होता है; किंतु―

(i) आदरार्थ शब्द- जी, साहब, महराज, महोदय आदि बहुवचन के रूप में प्रयुक्त होते हैं, भले ही वे अर्थ में एकवचन हों; जैसे―

(क) आप बड़े विद्वान् हैं।

(ख) पिता जी आए।

(ii) खुद के लिए एकवचन और बहुवचन दोनों का प्रयोग होता है; जैसे―

मैंने किया।, हमने किया।

(iii) प्राण, भाग्य, लोग, दर्शन, हस्ताक्षर, आँसू, समाचार, दाम, अक्षत, ओंठ आदि शब्द सदैव बहुवचन के रूप में प्रयुक्त होते हैं।

(iv) भाववाचक और गुणवाचक संज्ञाओं का प्रयोग एकवचन में होता है; जैसे―

मैं उनकी सज्जनता पर मुग्ध हूँ।

किंतु संख्या या प्रकार का बोध होने पर बहुवचन रूप भी प्रयुक्त होता है; जैसे―

इस फूल की अनेक विशेषताएँ हैं।

(v) द्रव्यवाचक संज्ञाओं का प्रयोग एकवचन के रूप में होता है; जैसे―

(क) उसके पास बहुत चाँदी है।

(ख) मेरे पास काफी सोना है।

लेकिन द्रव्य के विभिन्न प्रकारों का बोध होने पर द्रव्यवाचक संज्ञा भी बहुवचन में प्रयुक्त होगी; जैसे―

(क) यहाँ बहुत तरह के लोहे मिलते हैं।

(ख) वहाँ कई प्रकार के लोहे पाए जाते हैं।

(vi) ‘हरएक’ और ‘प्रत्येक’ का प्रयोग सदैव एकवचन में होता है; जैसे―

(क) प्रत्येक व्यक्ति पागल नहीं होता।

(ख) हरएक आदमी को यहाँ से जाना होगा।

(vii) कभी-कभी एक वचन का प्रयोग पूरी जाति का बोध करा देता है; जैसे―

(क) बंदर चंचल होता है।

(ख) कुत्ता बड़ा स्वामिभक्त होता है।

इसे भी देंखें-

वचन के रूपांतरण (एकवचन से बहुवचन बनाना)

वचन (vachan) रूपांतरण में संज्ञा पदों का रूपांतर होता है, अन्य कोई दूसरा पद नहीं। वचन की दृष्टि से संज्ञा पदों में दो स्थितियों में परिवर्तन होते हैं―

(A) विभक्तिरहित और (B) विभक्तिसहित

(A) विभक्तिरहित संज्ञाओं के बहुवचन बनाने के नियम

1. पुंलिंग संज्ञा यदि आकारांत हो, तो उसे एकरांत (‘आ’ का ‘ए’) कर देने से बहुवचन बनता है; जैसे―
घोड़ा-घोड़े, बेटा-बेटे, कपड़ा-कपड़े, गधा-गधे, कौआ-कौए, कमरा-कमरे

अपवाद

(i) संस्कृत के आकारांत शब्द (पुंलिंग संज्ञा) एकवचन से बहुवचन में नहीं बदलते; जैसे―

राजा, देवता, सखा, योद्धा, नेता कर्ता, देवता, दाता आदि।

(ii) संबंधियों के लिए प्रयुक्त शब्दों में बेटा, पोता, भतीजा, भानजा और साला का आकारांत से एकारांत हो जाता है, परंतु बाबा, दादा, काका, चाचा, नाना, मामा, फूफा आदि शब्द दोनों वचनों में एक जैसा रहते हैं, जैसे―

(क) मैं तुम्हारा दादा हूँ- मोहन और सोहन तुम्हारे दादा हैं।

(ख) सुरेश तुम्हारे चाचा हैं- सुरेश और मुकेश तुम्हारे चाचा हैं।

2. पुंलिंग आकारांत के अलावा अर्थात जिन शब्दों के अंत में ‘आ’ से भिन्न कोई और अक्षर हो, उनका रूप दोनों वचनों में समान रहता है; जैसे―

(क) हाथी आता है- हाथी आते हैं।

(ख) बालक पढ़ता है- बालक पढ़ते हैं।

3. स्त्रीलिंग संज्ञा के आकारांत शब्दों में ‘एँ’ लगाकर बहुवचन बनाया जाता है; जैसे―

अध्यापिका- अध्यापिकाएँ, कथा- कथाएँ, लता- लताएँ आदि।

4. स्त्रीलिंग संज्ञा यदि अकारांत हो, तो उस शब्द के अंतिम ‘अ’ को ‘एँ’ कर बहुवचन बनाया जाता है; जैसे―

रात- रातें, बहन- बहनें, आदत- आदतें, बात- बातें आदि।

5. स्त्रीलिंग संज्ञा यदि इकारांत या ईकारांत हो, तो संज्ञा शब्दों के अंत में आये ‘इ’, ‘ई’ या ‘इया’ के स्थान पर ‘इयाँ’ जोड़कर बहुवचन बनता है; जैसे―

जाति- जातियाँ, लड़की- लड़ियाँ, गुडि़या- गुड़ियाँ आदि।

6. स्त्रीलिंग संज्ञाओं के अंत में यदि अ, आ, इ, ई से भिन्न अक्षर हों तो स्त्रीलिंग संज्ञाओं के अंत में ‘एँ’ जोड़कर बहुवचन बनता है। यदि अंतिम स्वर ‘ऊ’ हुआ, तो उसे ह्रस्व (उ) कर ‘एँ’ जोड़ते हैं; जैसे―

गौ- गौएँ, वस्तु- वस्तुएँ, गऊ- गउएँ, बहू- बहुएँ आदि।

7. संज्ञा के पुंलिंग या स्त्रीलिंग रूपों में जन, लोग, ‘गण’, ‘वर्ग’, वृंद आदि लगाकर बहुवचन बनाया जाता है; जैसे―

स्त्री- स्त्रीजन, मित्र- मित्रवर्ग, विद्यार्थी- विद्यार्थीगण, नारी- नारिवृंद, आप- आपलोग आदि।

(B) विभक्तिसहित संज्ञाओं के बहुवचन बनाने के नियम

1. अकारांत, आकारांत (संस्कृत शब्दों को छोड़कर) और एकारांत संज्ञाओं के अंत में आये वर्णों ‘अ’, ‘आ’, तथा ‘ए’ के स्थान पर ‘ओं’ कर बहुवचन बनाया जाता है; जैसे―

(क) घर में आग लग गई- घरों में आग लग गई

(ख) गाय ने दूध दिया– गायों ने दूध दिया।

(ग) गधा की तरह- गधों की तरह।

(घ) चोर को पकड़ो- चोरों को पकड़ो।

2. संस्कृत की आकारांत और संस्कृत-हिंदी की सभी उकारांत, ऊकारांत, अकारांत और औकरांत संज्ञाओं को बहुवचन बनाने के लिए अंत में ‘ओं’ जोड़ दिया जाता है। ‘ओं’ जोड़ने के पहले ‘ऊ’ (दीर्घ) को ‘उ’ (हस्व) कर दिया जाता है। जैसे―

(क) लता को देखो- लताओं को देखो।

(ख) वधू से पूछो- वधुओं से पूछो।

(ग) घर में जाओ- घरों में जाओ।

3. सभी इकारांत और ईकारांत संज्ञाओं के अंत में ‘यों’ जोड़ कर बहुवचन बनाया जाता है। ईकारांत संज्ञाओं में ‘यों’ जोड़ने से पूर्व ‘ई’ को ‘इ’ में बदल दिया जाता है। जैसे―

(क) मुनि की यज्ञशाला- मुनियों की यज्ञशाला।

(ख) नदी का प्रवाह- नदियों का प्रवाह।

(ग) साड़ी के दाम दीजिए- साड़ियों के दाम दीजिए।


[1] आधुनिक हिंदी व्याकरण और रचना- वासुदेवनंदन प्रसाद, पृष्ठ- 98

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