पुनरुक्त शब्द की परिभाषा और प्रकार

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punrukt-shabd
पुनरुक्त शब्द

पुनरुक्त शब्द हिंदी भाषा की एक विशेषता है जो अन्य भारतीय भाषाओं में भी पाई जाती है। मूल भारोपीय भाषा में भी यह प्रवृत्ति थी। यह यौगिक शब्दों का एक भेद है और इनमें से बहुत से सामासिक भी हैं। वास्तव में वक्ता अपनी अभिव्यक्ति को बल देने के लिए या उसमें अतिशयता लाने के लिए पुनरुक्त शब्दों का प्रयोग करता है।

पुनरुक्त शब्द की परिभाषा

पुनरुक्ति शब्द दो शब्दों के योग से बना है- पुन: और उक्ति। शब्दकोश में पुनरुक्त शब्द का अर्थ है- फिर से कहा हुआ या दुबारा कहा हुआ। जब एक ही शब्द वाक्य में लगातार दो बार प्रयुक्त होकर विशेष अर्थ दर्शाता है तो उसे पुनरुक्त शब्द कहते हैं। जैसे- बार-बार, जाते-जाते, दिन-प्रतिदिन, वाद-विवाद आदि।

जब कोई शब्द वाक्य में दो या अधिक बार आए अथवा सार्थक-सार्थक, सार्थक-निरर्थक, निरर्थक-निरर्थक, निरर्थक-सार्थक एवं समनार्थी-विपरीतार्थी जोड़ों में आए तो ये जोड़े ‘युग्म शब्द’ या ‘पुनरुक्त’ कहलाते हैं। यह संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, अव्यय, क्रिया आदि सभी शब्द भेदों में होती है।

काव्य में भी पुनरुक्त शब्दों का अपना महत्त्व है, कवि इसके द्वारा कविता में लयबद्धता लाता है और विशिष्ट अर्थ की अभिव्यक्ति भी करता है। पुनरुक्ति अलंकार में इसका प्रयोग अधिक होता है; जैसे-

  • खड़-खड़ करताल बजा।
  • जी में उठती रह-रह हूक।
  • पुनि-पुनि मोहि देखाब कुठारु।
  • थल-थल में बसता है शिव ही।

पुनरुक्ति शब्दों से समासिक शब्द भी बनते हैं; जैसे- अच्छा-अच्छा, पीछे-पीछे, मरा-मरा, गर्म-गर्म, गटा-गट, अनाप-सनाप, गलत-सलत, बोली-ठोली, पान-वान, डाँट-डपट, पानी-वानी आदि।

पुनरुक्त शब्द के प्रकार

कामता प्रसाद गुरु के अनुसार पुनरुक्त शब्द के तीन भेद होते हैं- पूर्ण पुनरुक्त, अपूर्ण पुनरुक्त, अनुकरणवाचक।

1. पूर्ण पुनरुक्त शब्द

जब कोई एक शब्द एक ही साथ लगातार दो बार अथवा तीन बार प्रयुक्त होता है, तब उसे पूर्ण पुनरुक्त शब्द कहते हैं। अर्थात जब किसी शब्द या रूप की आवृत्ति ज्यों-की-त्यों होती है, तो वह पूर्ण पुनरुक्त शब्द कहलाता है; जैसे- आते-आते, कभी-कभी, देश-देश, बड़े-बड़े, चलते-चलते, जब-जब, जय-जय-जय आदि।

इसे शुद्ध पुनरुक्त या द्विरुक्ति शब्द भी कहा जाता है। “कभी-कभी समूचे शब्द की पुनरुक्ति ही से एक शब्द बनता है और कभी-कभी दोनों शब्दों के बीच एकाध अक्षर का आदेश हो जाता है।”1

मूल अनुकरणात्मक शब्द पूर्ण पुनरुक्त होते हैं और दोनों के बीच ‘आ’ ध्वनि आ जाने से क्रिया विशेषण शब्द बनते हैं; जसे- खटाखट, फटाफट आदि। वहीं अनुकरणात्मक शब्द के अंत में आ जुड़ने पर धातुएँ बन जाती हैं और ‘आना’ जुड़ने पर मूल क्रिया रूप; जैसे-

  • खट-खट + आ/आना = खटखटा, खटखटाना
  • दन-दन + आ/आना= दनदना, दनदनाना

2. अपूर्ण पुनरुक्त शब्द

जब किसी शब्द के साथ कोई समानुप्रास सार्थक या निर्थक शब्द आता है, तब वे दोनों शब्द अपूर्ण पुनरुक्त कहलाते हैं। इसे अनुकरनणात्मक पुनरुक्त भी कहा जाता है। इसमें पहले से मिलता-जुलता दूसरा शब्द आता है; जैसे-

अंट-शंट, चहल-पहल, चमक-दमक, देख-भाल, दवा-दारू, विस्तर-उस्तर, खरी-खोटी, दुराव-उराव, रूखी-सूखी, हरा-भरा, काट-छाँट, नहाना-धोना, काम-धाम, खाना-पीना, हट्टा-कट्टा, लूली-लंगड़ी, तोड़ना-फोड़ना, पढ़-वढ़, चाय-वाय, जला-भुना, दीन-दुखी, थोड़ा-बहुत आदि।

अपूर्ण पुनरुक्ति शब्दों का प्रयोग बोल-चाल की भाषा में अधिक होता है। शिक्षित और शिष्ट लोग भी इसका प्रयोग करते हैं। चूँकि उपन्यास और नाटक बोलचाल की भाषा में लिखे जाते हैं इसलिए वहाँ भी इनका प्रयोग व्यापक स्तर पर दिखाई देता है।

अपूर्ण पुनरुक्त के प्रकार:

कामता प्रसाद गुरु ने इसको 3 भागों में विभाजित किया है-

(a) दो सार्थक शब्दों के मेल से, जिसमें दूसरा शब्द पहले का समानुप्रास होता है; जैसे-

(i) संज्ञा: बीच-बचाव, बाल-बच्चे, दाल-दलिया, काम-काज, जोर-शोर, हलचल आदि।

(ii) विशेषण: लूला-लँगड़ा, ऐसा-वैसा, काला-कलूटा, फटा, टूटा, भरा-पूरा, चौड़ा-चकरा आदि।

(iii) क्रिया: समझना-बूझना, लेना-देना, लड़ना-भिड़ना, बोलना-चालना, सोचना-विचारना आदि।

(iv) अव्यय: यहाँ-वहाँ, इधर-उधर, जहाँ-तहाँ, दाएँ-बाएँ, आर-पार, साँझ-सबेरे, जब-तब, सदा-सर्वदा, जैसे-तैसे आदि।

(समूचे शब्द का अर्थ उसके अवयवों के अर्थ से भिन्न हैं; जैसे- जहाँ-तहाँ= सर्वत्र, जब-तब= सदा, जैसे-तैसे= किसी न किसी प्रकार।)

(b) एक सार्थक और एक निर्थक शब्द के मेल से। जिसमें निरर्थक शब्द बहुधा सार्थक शब्द का समानुप्रास होता है; जैसे-

(i) संज्ञा: टालमटोल, पूँछताछ, ढूँढ़-ढाँढ़, झाड़-झंखाड़, गाली-गलौज, बातचीत, चाल-ढाल, भीड़-भाड़ आदि।

(ii) विशेषण: टेढ़ा-मेढ़ा, सीधा-साधा, भोला-भाला, ठीक-ठाक, ढीला-ढाला, उलटा-पुलटा आदि।

(iii) क्रिया: देखना-भालना, धोना-धाना, खींचना-खाँचना, होना-हवाना, पूछना-ताछना आदि।

(iv) अव्यय: औने-पौने, आमने-सामने, आस-पास आदि।

(c) दो निरर्थक शब्दों के मेल से, जो एक दूसरे के समानुप्रास होते हैं; जैसे-

ऊल-जलूल, अटर-सटर, सटर-पटर, अंट-संट, अगड़-बगड़, अगड़म-बगड़म, आनन-फानन, हक्का-बक्का, टीम-टाम, हट्टा-कट्टा आदि। कभी-कभी तीन निरर्थक शब्द होते हैं; जैसे- आय-बाँय-साँय।

3. अनुकरणवाचक:

पदार्थ की यथार्थ अथवा कल्पित ध्वनि को ध्यान में रखकर जो शब्द बनाए जाते हैं, उन्हें अनुकरणवाचक शब्द कहते हैं; जैसे-

(i) संज्ञा: बड़बड़, भनभन, खटखट, चींचीं, गिटगिट, गड़बड़, झनझन, पटपट, बकबक आदि।

(कई आहट प्रत्ययांत शब्द भी अनुकरणवाचक हैं; जैसे- गड़गड़ाहट, गुड़गुड़ाहट, भरभराहट, सनसनाहट आदि।)

(ii) विशेषण: कुछ अनुकरणवाचक संज्ञाओं में ‘इया’ प्रत्यय जोड़ने से अनुकरणवाचक विशेषण बनते हैं; जैसे- खटपटिया, गड़बड़िया, भरभरिया आदि।

(iii) क्रिया: हिनहिनाना, सनसनाना, बकबकाना, पटपटाना, झनझनाना, झिनझिनाना, गड़गड़ाना, छरछराना आदि।

(iv) क्रियाविशेषण: झटपट, तड़तड़, पटपट, छमछम, थरथर, गटगट, लपझप, भदभद, खदखद, सड़सड़, दनादन, भड़ाभड़, कटाकट, धड़ाधड़, छमाछम आदि।

इन शब्दों के इतर कुछ अनर्गल शब्द होते हैं जिनका कोई स्पष्ट अर्थ नहीं होता। और ये अनियमित और मनमाने ढंग से प्रयोग किए जाते हैं; जैसे- टाँय-टाँय-फिस्स, लट्ठपाँडे, ढपोरशंख, अगड़बगड़, लबड़-धौंधौं आदि।

व्यंजन लोप से भी पुनरुक्त शब्द बनते हैं; यह लोप कभी पहले वाले भाग में होता है कभी दूसरे वाले में; जैसे- ऐरा-गैरा, इर्द-गिर्द, अगल-बगल, आमने-सामने, आर-पार, अंजर-पंजर, औने-पौने, सिलाई-इलाई, सवाल-अवाल, लोटा-ओटा आदि।2

संदर्भ ग्रंथ:

  1. हिंदी व्याकरण- कामता प्रसाद गुरु, पृष्ठ- 469, इंडियन प्रेस, प्रयाग- सं. 1984 ↩︎
  2. हिंदी भाषा का इतिहास- भोलानाथ तिवारी, पृष्ठ- 216, वाणी प्रकाशन, दिल्ली- 2007 ↩︎
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