हिंदी निबंध का विकास | hindi nibandh ka vikas

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हिंदी निबंध का विकास

हिंदी निबंध का उद्भव

आधुनिक हिंदी गद्य-विधाओं में निबंध का महत्वपूर्ण स्थान है। इसका उद्भव भी भारतेन्दु युग से ही स्वीकार किया जाता है। कतिपय समीक्षक सदासुख लाल अथवा राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद को हिंदी का पहला निबंधकार मानते हैं, परन्तु एक सुव्यवस्थित एवं सुनिश्चित निबंध-परम्परा का सूत्रपात भारतेन्दु हरिश्चन्द्र और उनके समसमयिक निबंधकारों से ही होता है।

हिंदी निबंध का विकास

हिंदी निबंध के विकास को चार भागों में बाँटा गया है-

1. भारतेन्दु युग

2. द्विवेदी युग

3. शुक्ल युग

4. शुक्लोत्तर युग

1. भारतेन्दु युग (1868 ई. से 1900 ई.)

गद्य की अन्य विधाओं के साथ ही भारतेन्दु युग से हिंदी निबंध का सूत्रपात एवं विकास होता है। इस युग के निबंधकारों में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र प्रतापनारायण मिश्र, बालकृष्ण भट्ट, बद्रीनारायण चौधरी प्रेमघन, श्री निवासदास आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र आधुनिक हिंदी गद्य के जन्मदाता हैं। वे इस युग के प्रतिभा सम्पन्न निबंधकार हैं। उन्होंने समाज, राजनीति, धर्म, इतिहास, साहित्य आदि विविध विषयों पर निबंध-रचना की है। इनके यात्रा संबंधी निबंध भी विशेष महत्त्व रखते हैं। जिन्दादिली, आत्मीयता एवं व्यंग्यात्मकता भारतेन्दु के निबंध-साहित्य की विशेषताएँ हैं।

बालकृष्ण भट्ट भारतेन्दु युग के सर्वश्रेष्ठ निबंधकार कहे जा सकते हैं। भट्ट जी हिंदी प्रदीप पत्रिका के सम्पादक थे। इनके निबंध भट्ट निबंधमाला भट्ट निबंधावली तथा साहित्य सुमन संग्रहों में संकलित हैं। विचारात्मक एवं भावात्मक दोनों प्रार के निबंधों की रचना में भट्ट जी सफल रहे हैं। प्रतापनारायण मिश्र इस युग के स्वच्छन्द एवं मस्तजीवी निबंधकार हैं। इनके निबंध ब्राह्मण पत्रिका में प्रकाशित होते थे। प्रतापनारायण मिश्र ग्रंथावली में इनके निबंध संग्रहीत हैं। मनोरंजन तथा व्यंग्य इनके निबंधों की विशेषताएँ हैं। समग्र रूप से भारतेन्दु युग के निबंधों में हास्य- व्यंग्य, देश- प्रेम, समाज- सुधार और मनोरंजन जैसी विशेषताएँ प्रधान रूप से पाई जाती हैं।

2. द्विवेदी युग (1901 ई. से 1920 ई.)

द्विवेदी युग के प्रवर्तक महावीर प्राद द्विवेदी आचार्य, समीक्षक और निबंधकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। आचार्य द्विवेदी ने सरस्वती के सम्पादक रहते हुए विविध विषयों पर निबंधों की रचना की थी। उन्होंने संस्कृति, साहित्य, समाज, धर्म, शिक्षा, इतिहास आदि विषयों पर विचारात्मक एवं आलोचनात्मक निबंधों की रचना की थी। उनके निबंधों में निबंध-कला के उत्कर्ष के स्थान पर विचारों एवं तथ्यों को प्रधानता है। अत: उनके निबंध बातों का संकलन बन गए हैं। चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, पद्म सिंह शर्मा, बालमुकुन्द गुप्त, गोविन्दनारायण मिश्र, श्यामसुन्दरदास, चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, अध्यापक पूर्णसिंह इस युग के प्रसिद्ध निबंध कार हैं। इस युग के निबंधों से निबंध का विचार क्षेत्र व्यपक हुआ है। विचार-प्रधान निबंधों की रचना में इस युग के लेखक को सफलता मिली है, परन्तु भारतेन्दु युगीन आत्मीयता जिन्दादिली तथा सजीवता का इस युग के निबंध में अयाव है।

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3. शुक्ल युग (1921 ई. से 1940 ई.)

शुक्ल युग के निबंधकारों में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल शीर्षस्थ है। आचार्य शुक्ल ने मनोवैज्ञानिक, साहित्यिक एवं आलोचनात्मक निबंधों की रचना की है, जो चिन्तामणि (दो भाग) में संगृहीत हैं। शुक्ल जी के निबंध विचारात्मक निबंधों का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। इनमें बुद्धि और भाव का सन्तुलित समन्वय मिलता है। उत्साह, करुणा, भय आदि शुक्ल जी के मनोभाव संबंधी प्रसिद्ध निबंध हैं। कविता क्या है? आदि इनके साहित्यिक एवं समीक्षात्मक निबंध हैं। शुक्ल जी की भाषा भावों और विचारों की अभिव्यक्ति में पूर्णतया सक्षम है।

शुक्ल युग के निबंधकारों में बाबू गुलाबराय, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, शान्तिप्रिय द्विवेदी, महादेवी वर्मा, राहुल सांकृत्यायन आदि उल्लेखनीय हैं। इन निबंधकारों की अपनी मौलिक विशेषताएँ हैं। बाबू गुलाबराय ने आत्म- परक निबंधों की रचना की है। महादेवी के निबंध संस्मरणात्मक हैं। राहुल के निबंधों में विषय- वैविध्य है। सियारामशरण गुप्त के निबंध वैयक्तिक है। इस युग में श्रीराम शर्मा ने आखेट विषयक निबंध लिखे हैं। डॉ. रघुवीर सिंह के भावात्मक निबंध भी प्रसिद्ध हैं। शुक्ल युग के इन निबंधकारों में विचारों की गम्भीरता के साथ- साथ भाषा-शैली की प्रौढ़ता भी मिलती है।

4. शुक्लोत्तर हिंदी निबंध (1940 ई. से अब तक)

शुक्लोत्तर युग के निबंधकारों में हजारीप्रसाद द्विवेदी अपने ललित निबंधों के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्हें सांस्कृतिक चेतना का निबंधकार माना जा सकता है। प्राचीन और नवीन का सामंजस्य उनकी उल्लेखनीय विशेषता है। अशोक के फूल, कुटज, कल्पलता, आलोक पर्व आदि संग्रहों में द्विवेदी जी के निबंध संगृहीत हैं। उनकी भाषा प्रौढ़ है और शैली में व्यंग्य-विनोद। इस युग के अन्य निबंधकारों में वासुदेवशरण अग्रवाल, आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी, डॉ. नगेन्द्र, भगतशरण उपाध्याय, जैनेन्द्र, रामविलास शर्मा, प्रभाकर माचवे, डॉ. इन्द्रनाथ मदान, डॉ. सत्येन्द्र आदि के नाम भी पर्याप्त चर्चित हैं।

विगत चार दशकों में हिंदी निबंध के क्षेत्र में कतिपय नई प्रतिभाओं का आविर्भाव हुआ है। इन्होंने ललित निबंध के मार्ग को प्रशस्त किया है। इन निबंधकारों में डॉ. विद्यानिवास मिश्र, धर्मवीर भारती, नामवर सिंह, शिवप्रसाद सिंह, श्रीलाल शुक्ल, कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर, हरिशंकर परसाई, कुबेरनाथ राय, विवेकी राय आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। इनमें डॉ. विद्यानिवास मिश्र ने निबंध के क्षेत्र में विशिष्ट स्थान प्राप्त कर लिया है। इन्होंने आचार्य द्विवेदी की सांस्कृतिक- साहित्यिक ललित निबंध- परम्परा को विकसित किया है। छितवन की छाँह, कदम की फूली डाल, तुम चन्दन हम पानी आदि मिश्र जी के निबंध- संग्रह हैं। इनके निबंधों में अनुभूति और चिन्तन का मेल है और भाषा में लालित्य और प्रवाह है। हरिशंकर परसाई हास्य व्यंग्य- प्रधान निबंधों के लिए प्रसिद्ध हैं। इस प्रकार ललित निबंध का उज्ज्वल कहा जा सकता है।