आकाशदीप कहानी की समीक्षा एवं सारांश | जयशंकर प्रसाद

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जयशंकर प्रसाद छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं इन्हें छायावाद का ब्रह्म कहा जाता हैं। इनकी पहली कहानी ‘ग्राम’ 1911 ई. में ‘इंदु’ पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। “प्रसाद की प्राय: सत्तर कहानियाँ, बहुत कुछ उनके अन्य काव्य रूपों की तरह, असमान स्तर की हैं।”[1] प्रसादजी के पाँच कथा-संग्रह प्रकाशित हुए हैं। उनका पहला कहानी संग्रह ‘छाया’ 1912 ई. में आया और उसके बाद ‘प्रतिध्वनि’ 1926, आकाशदीप 1929, आंधी 1931 तथा इन्द्रजाल 1936 ई. में प्रकाशित हुआ। इन संकलनों में कुल 69 कहानियाँ हैं। आकाशदीप कहानी संग्रह में कुल 19 कहानियाँ हैं।

आकाशदीप कहानी का सारांश

प्रसाद की आकाशदीप कहानी विशिष्ट कहानियों में से गिनी जाती हैं। इस कहानी में एक असफल प्रेम  कहानी को अत्यंत मार्मिक ढंग से उकेरा गया है। प्रसाद स्वयं एक आदर्शवादी कवि माने जाते हैं और उनकी यही आदर्शवादिता हमें आकाशदीप कहानी में देखने को मिलती हैं।

आकाशदीप कहानी में जयशंकर प्रसाद की स्वछंदतावादी दृष्टि की अभिव्यक्ति हुई है। यह नायिका प्रधान प्रेम कहानी है। इसमें समुद्री जीवन को ऐतिहासिक परिवेश में चित्रित किया गया है।

कहानी में मानवीय प्रेम को स्पष्ट करते हुए एक आदर्श प्रेम को स्थापित किया गया है। कहानी की नायिका एक त्याग की मूर्ति के रूप में हमारे सामने आती हैं।

कहानी नाव में बन्दी जनों से शुरू होती हैं जहाँ कहानी की नायिका चम्पा सहित कुछ जलदस्यु मणिभद्र द्वारा बंदी बने होते हैं। कुछ ही देर बाद बन्दी खुद को मुक्त कर लेते हैं और मुक्ति का श्रेय जलदस्यु बुधगुप्त को जाता है।

मुक्ति उपरांत वे एक दीप पर निवास करने लगते हैं, जिस दीप का नाम चम्पादीप सुझाया जाता है। यहीं चम्पा औऱ बुधगुप्त का प्रेमालाप प्रारंभ होता है। बुद्धगुप्त चम्पा को परिणय का प्रस्ताव रखता है। परंतु चम्पा परिणय के प्रस्ताव को अस्वीकार कर देती हैं और गुप्त को स्वेदश लौटने को कहती है।

चम्पा गुप्त को अपने पिता का हत्यारा समझती हैं। चम्पा अपने कर्तव्यों के सामने अपने प्रेम का बलिदान कर देती हैं और आजीवन समुद्री के दस्युओं को प्रकाश के लिए दीप प्रज्वलित करती है।

आकाशदीप कहानी के पात्र

1. चम्पा कहानी की मुख्य पात्र है जो जाह्नवी के तट पर, चंपा-नगरी की एक क्षत्रिय बालिका है। वाणिक् मणिभद्र की पाप-वासना ने चंपा को बंदी बना लिया। इसके पिता मणिभद्र के यहाँ प्रहरी का काम करते थे जिसकी मृत्यु जलदस्यु के कारण हुई थी। चंपा अपने पिता की मृत्यु की दोषी बुधगुप्त को मानती है। क्योंकि उसके आक्रमण से ही उसके पिता ने जल समाधि ले लिया था। प्यार और घृणा का द्वंद्व चंपा के जीवन का स्थायी पीड़ा है।

2. बुद्धगुप्त कहानी का नायक है जो ताम्रलिप्ति का एक क्षत्रिय है। वह बहादुर और वीर पुरुष है। इसी ने चंपा और स्वयं को मणिभद्र के चंगुल से आज़ाद कराता है। मुख्यत: यह जलदस्यु है जिसका काम समुद्र में आने वाली जहाजों को लूटना होता है। बाद में उसके अंदर चारित्रिक परिवर्तन होता है और वह लूटपाट छोड़कर व्यापार करने लगता है। और उसका एक प्रेमी रूप कहानी में उभर कर आता है।

3. मणिभद्र कहानी का खलनायक, जिसने चंपा और बुद्धगुप्त को बंदी बना लिया था।

4. जया- आदिवासी युवती एक सहायक पात्र है जो अधिकांश समय चंपा के साथ रहती है और उसकी आज्ञा का पालन करती है। वह अधिक नहीं बोलती, कहानी में उसका चारित्रिक विकास कम हुआ है।

आकाशदीप कहानी के महत्वपूर्ण तथ्य

1. कर्त्तव्य के सामने प्रेम का बलिदान।

2. आदर्शपूर्ण प्रेम का उदघाटन।

3. हृदय परिवर्तन का चित्रण।

4. सेवा भाव, प्रेम, साहस त्याग से परिपूर्ण कहानी।

5. एक निडर, साहसी, अपने कर्तव्यों से अडिग लड़की की कहानी।

6. असफल प्रेम

7. मानव-प्रेम, देश-प्रेम के आदर्शों का चित्रण

आकाशदीप कहानी के प्रमुख कथन

चम्पा- क्या स्त्री होना कोई पाप है?

बुद्धगुप्त- मैं भी ताम्रलिप्ति का एक क्षत्रिय हूँ।

बुद्धगुप्त- जब इसका कोई नाम नहीं तो हम लोग इसे चम्पादीप कहेंगे।

बुधगुप्त- तुम मेरी प्राणदात्री हो, मेरी सर्वस्य हो।

चम्पा- तुमने दस्युवृत्ति छोड़ दी परंतु हृदय वैसा ही अकरूण, सतृष्ण और ज्वलनशील है।

चम्पा की माँ- भगवान्! मेरे पथ-भ्रष्ट नाविक को अंधकार में ठीक पथ पर ले चलना।

चम्पा के पिता- साध्वी! तेरी प्रार्थना से भगवान् ने संकटों में मेरी रक्षा की है।

चम्पा- जल में बंदी होना कठोर प्राचीरों से तो अच्छा है।

चम्पा- जब मैं अपने हृदय पर विश्वास नहीं कर सकी, उसी ने धोखा दिया तब मैं कैसे कहूँ।

चम्पा- मैं तुम्हें घृणा करती हूँ फिर भी तुम्हारे लिए मर सकती हूँ।

बुधगुप्त- इस जीवन की पुण्यतम घड़ी की स्मृति में एक प्रकाश-गृह बनाऊंगा।

बुधगुप्त- मैं तुम्हारे पिता का घातक नहीं हूँ, चंपा! वह एक दूसरे दस्यु के शस्त्र से मरे!

चम्पा- कोई विशेष आकांक्षा हृदय में अग्नि के समान प्रज्वलित नहीं, सब मिलाकर मेरे लिए एक शून्य है।

बुधगुप्त- मेरा पत्थर-सा हृदय एक दिन सहसा तुम्हारे स्पर्श से चंद्रकांत मणि की तरह द्रवित हुआ।

चम्पा- मेरे लिए सब भूमि मिट्टी हैं, सब जल तरल है, सब पवन शीतल हैं। कोई विशेष आकांक्षा हृदय में अग्नि के समान प्रज्वलित नहीं।

आकाशदीप कहानी की समीक्षा

आकाशदीप कहानी में पिता और प्रगाढ़ प्रेमानुभूति का द्वंद्व दिखाई देता है। परस्पर विरोधी मानसिक प्रवृतियों और सघन अंतर्द्वंद्व का चित्रण प्रसाद की कई कहानियाँ मिलता है। मानसिक द्वंद्व के चित्रण में प्रसाद को ‘आकाशदीप’ कहानी में पूरी सफलता मिली है।

प्रसाद की प्रारंभिक कहानियों में प्रेम और करुणा का, त्याग और बलिदान का, दार्शनिकता और काव्यात्मकता का, भावुकता और चित्रात्मकता की प्रधानता रही है परंतु आकाशदीप तक आते आते भावुकता और चित्रात्मकता की जगह मनोविज्ञान महत्वपूर्ण हो जाता है।

यह कहानी इतिहास और कल्पना के सुन्दर समन्वय पर आधारित है। भाषा संस्कृत शब्दावली से युक्त शुद्ध साहित्यिक भाषा है। कहानी का उद्देश्य देश-प्रेम और मानव-प्रेम के आदर्शों को स्पष्ट करता रहा है।

सुरेंद्र चौधरी- आकाशदीप कहानी के संगठन को अनिवार्यत क्रेपस्कूलर मानते हैं।

लक्ष्मीनारायण लाल- “चरम सीमा की यह कलात्मक प्रवृत्ति हमें प्रसाद के प्रथम काल की कहानियों में ही मिलने लगती है।”

राजेंद्र यादव- “उनकी ‘आकाशदीप’, पुरस्कार’, व्रतभंग’, ‘देवरथ’ इत्यादि कहानियाँ प्राय: व्यक्तिगत भावना और स्थापित नैतिकता का द्वंद्व सामने रखती हैं, वहाँ विकल्प, भावना और कर्तव्य का है- कभी यह कर्तव्य, राष्ट्र-प्रेम, कभी मठ-मर्यादा और कभी पारिवारिक शत्रुता के निर्वाह का है। इस द्वंद्व में छटपटाती और उसमें कर्तव्य की ओर झुकती हुई उनकी कहानियों की नायिकाएँ अक्सर उस मानसिक स्थिति का शिकार हैं जिसे मनोविज्ञान में ‘एम्बिवैलेंसी’ कहते हैं- अर्थात एक ही व्यक्ति या वस्तु के प्रति प्यार और घृणा की समान तीव्र भावना का होना। ‘मैं तुमसे घृणा करती हूँ जलदस्यु, लेकिन तुम्हें प्यार भी करती हूँ’ वाली स्थिति की अभिव्यक्ति उनकी कहानियों में कहीं शब्दों में है, और कहीं संकेतों में। अतिरिक्त रोमानी वातावरण और कल्पित कथानकों के बावजूद प्रसाद हिंदी के पहले सफल कहानीकार हैं।”[2]

मधुरेश- प्रसाद की कहानियाँ एक ओर यदि प्रेम के उदात्त रूप और सर्वस्व-बलिदान में निहित साहस एवं शौर्य को रेखांकित करती हैं तो वहीं वे परस्पर दो विरोधी भावों के संघात और द्वंद्व को नाटकीय कौशल के साथ प्रस्तुत करती हैं।… आकाशदीप में यह द्वंद्व प्रेम और घृणा के बीच है।[3]

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महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी

1. आकाशदीप कहानी के कथाकार कौन हैं?

(A)  प्रेमचंद
(B)  प्रसाद☑️
(C)  अज्ञेय
(D)  जैनेंद्र

2. आकाशदीप कहानी का प्रकाशन वर्ष हैं?

(A)  1968
(B)  1929☑️
(C)  1980
(D)  1970

3. निम्न में से कौन-सा कहानी का पात्र नहीं है?

(A)  जया
(B)  चम्पा
(C)  शेषभद्र☑️
(D)  मणिभद्र

4. प्रसाद की किस कहानी में आदर्शपूर्ण प्रेम का चित्रण किया गया है?

(A)  सालवती
(B)  आकाश दीप☑️
(C)  गुंडा
(D)  पुरस्कार

5. सहसा चैतन्य होकर कौन कहती है- ‘प्रिय नाविक तुम स्वदेश लौट जाओ’

(A)  जया
(B)  चम्पा ☑️
(C)  रश्मि
(D)  कोई नहीं

6. ‘मुझे भी इसी में जलना होगा जैसे- आकाशदीप!’ कथन है-

(A)  चम्पा☑️
(B)  बुधगुप्त
(C)  मणिभद्र
(D)  सभी

7. आकाशदीप कहानी का नायक का क्या नाम है?

(A)  मणिभद्र
(B)  बुधगुप्त☑️
(C)  मधुआ
(D)  सत्यनारायण


  • [1] हिंदी साहित्य और संवेदना का विकास- रामस्वरूप चतुर्वेदी, पृष्ठ- 146
  • [2] कहानी स्वरूप और संवेदना- राजेंद्र यादव, पृष्ठ- 29
  • [3] हिंदी कहानी का विकास- मधुरेश, पृष्ठ- 16