विश्व हिंदी सम्मेलन: परिकल्पना, उद्देश्य और महत्त्व

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विश्व हिंदी सम्मेलन की परिकल्पना

‘विश्व हिंदी सम्मेलन’ हिंदी भाषा का सबसे बड़ा अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन है, जिसमें विश्व भर से हिंदी विद्वान, साहित्यकार, पत्रकार, भाषा विज्ञानी, विषय विशेषज्ञ, शोधार्थी तथा हिंदी प्रेमी शामिल होते हैं। विश्व हिंदी सम्मेलन की यह यात्रा वर्ष 1975 से प्रारम्भ हुई। इसके आयोजन का विचार राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा द्वारा वर्ष 1973 में प्रस्तुत किया गया था। संकल्पना के फलस्वरूप, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के तत्वावधान में प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन 10 से 12 जनवरी 1975 को नागपुर, भारत में आयोजित किया गया था। प्रारम्भ में इस सम्मेलन का आयोजन हर चौथे वर्ष आयोजित किया जाता था लेकिन अब यह हर 3 वर्ष बाद आयोजित होता है।

हिंदी भाषा की अंतर्निहित शक्ति से प्रेरित हो हमारे देश के नेताओं ने इसे अहिंसा और सत्याग्रह पर आधारित स्वतंत्रता संग्राम के दौरान संवाद की भाषा बनाया। यह दिशा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने निर्धारित की, जिसका अनुपालन पूरे देश ने किया। स्वतंत्रता संग्राम में अपना सर्वस्व समर्पित करने वाले अधिकांश सेनानी हिंदीतर प्रदेशों से तथा अन्य भाषा-भाषी थे। इन सभी ने देश को एक सूत्र में बांधने के लिए संपर्क भाषा के रूप में हिंदी के सामर्थ्य और शक्ति को न केवल पहचाना बल्कि उसका भरपूर उपयोग भी किया। हिंदी को भावनात्मक धरातल से उठाकर ठोस एवं व्यापक स्वरूप प्रदान करने के उद्देश्य से और यह रेखांकित करने के उद्देश्य से कि हिंदी केवल साहित्य की भाषा तक सीमित नहीं है बल्कि आधुनिक ज्ञान-विज्ञान को अंगीकार करके अग्रसर होने में एक समर्थ भाषा है, विश्व हिंदी सम्मेलनों की संकल्पना की गई।

विश्व हिंदी सम्मेलन का उद्देश्य

विश्व हिंदी सम्मेलन का प्रमुख उद्देश्य हिंदी को विश्व स्तर पर प्रचारित और प्रसारित करना है, जिससे हिंदी को अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप स्थापित किया जा सके। प्रचार-प्रसार के साथ हिंदी को ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ तथा अन्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दिलाने एवं अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी का संवर्धन और परीक्षण करना भी इसका प्रमुख उद्देश्य है।

इस विषय पर विचार-विमर्श भी करना था कि तत्कालीन वैश्विक परिस्थिति में हिंदी किस प्रकार सेवा का साधन बन सकती है। सम्मेलन का एक उद्देश्य यह भी है  कि ‘महात्मा गाँधी’ जी की सेवा भावना से अनुप्राणित हिंदी विश्व भाषा के रूप में समस्त मानव जाति की सेवा की ओर अग्रसर हो सके। साथ ही भारतीय संस्कृति का मूलमंत्र ‘वसुधैव कुटुंबकम’ को विश्व के समक्ष प्रस्तुत करके ‘एक विश्व एक मानव परिवार’ की भावना का संचार किया जा सके।

प्रथम सम्मेलन में काका कालेलकर ने हिंदी भाषा के सेवा धर्म को रेखांकित करते हुए संदेश भेजा था कि ‘हम सबका धर्म सेवा धर्म है और हिंदी इस सेवा का माध्यम है….. हमने हिंदी के माध्यम से आज़ादी से पहले और आज़ाद होने के बाद भी समूचे राष्ट्र की सेवा की है और अब इसी हिंदी के माध्यम से विश्व की, सारी मानवता की सेवा करने की ओर अग्रसर हो रहे हैं।’

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रति जागरूकता पैदा करने, समय-समय पर हिंदी की विकास यात्रा का आकलन करने, लेखकों व पाठकों के हिंदी साहित्य के प्रति सरोकारों को और दृढ़ करने, जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हिंदी के प्रयोग को प्रोत्साहन देने तथा हिंदी के प्रति प्रवासी भारतीयों के रिश्तों को और अधिक गहराई व मान्यता प्रदान करने के उद्देश्य से हिंदी सम्मेलन को मूर्त रूप प्रदान किया गया था। एक अन्य उद्देश्य इसे व्यापकता प्रदान करना था न कि केवल भावनात्मक स्तर तक सीमित करना।

शुरू से अब तक के हुए सम्मेलन

विश्व हिंदी सम्मेलनस्थानवर्षविषय
पहलानागपुर, भारत10-12 जनवरी, 1975वसुधैव कुटुम्‍बकम्
दूसरापोर्ट लुई, मॉरीशस28-30 अगस्त, 1976वसुधैव कुटुम्‍बकम्
तीसरादिल्ली, भारत28-30 अक्टूबर, 1983वसुधैव कुटुम्‍बकम्
चौथापोर्ट लुई, मॉरीशस02-04 दिसम्बर, 1993वसुधैव कुटुम्‍बकम्
पांचवाँपोर्ट ऑफ स्पेन, ट्रिनिडाड एवं टोबेगो04-08 अप्रैल, 1996अप्रवासी भारतीय और हिंदी
छठालंदन, ब्रिटेन14-18 सितंबर, 1999हिंदी और भावी पीढ़ी
सातवाँपारामारिबो, सूरीनाम06-09 जून, 2003विश्व हिंदी- नई शताब्दी की चुनौतियां
आठवाँन्यूयार्क, अमेरिका13-15 जुलाई, 2007विश्व मंच पर हिंदी
नौवाँजोहांसबर्ग, दक्षिण अफ्रीका22-24 सितंबर, 2012भाषा की अस्मिता और हिंदी का वैश्विक संदर्भ
दसवाँभोपाल, भारत10-12 सितंबर, 2015हिंदी जगत: विस्तार एवं संभावनाएं
ग्यारहवांमॉरीशस18-20 अगस्त 2018हिंदी विश्‍व और भारतीय संस्‍कृति
बारहवांफिजी15-17 फरवरीहिंदी- पारंपरिक ज्ञान से कृत्रिम मेधा तक
World Hindi Conference

1. प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन 1975

‘प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन’ वर्ष 1975 में 10 से 12 जनवरी तक नागपुर, भारत में आयोजित किया गया था। इस सम्मेलन का आयोजन ‘राष्ट्रभाषा प्रचार समिति’, वर्धा के तत्वावधान में किया गया था। सम्मेलन से संबंधित राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष, महामहिम उपराष्ट्रपति श्री बी. डी. जत्ती थे। सम्मेलन में मुख्य अतिथि मॉरीशस के प्रधानमंत्री सर शिव सागर राम गुलाम थे जिन्होंने प्रतिनिधिमंडल की अध्यक्षता किया था, उन्होंने ही समारोह की अध्यक्षता भी की। सम्मेलन का उद्घाटन दिनांक 10 जनवरी, 1975 को भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा किया गया था।

सम्मेलन में स्वागत भाषण श्री बसंत राव नाइक, मुख्यमंत्री, महाराष्ट्र ने दिया था। अन्य वक्ताओं में काका कालेलकर, अनंत गोपाल शेवड़े, महासचिव, विश्व हिंदी सम्मेलन; श्री अशर डिलियॉन, यूनेस्को के प्रतिनिधि थे। डॉ. कर्ण सिंह, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने आभार व्यक्त किया था।

समापन समारोह की अध्यक्षता भारत के महामहिम उपराष्ट्रपति श्री बी.डी. जत्ती ने किया। समापन समारोह में विशेष अतिथि के रूप में श्री कमलापति त्रिपाठी, केंद्रीय परिवहन मंत्री मौजूद थे। समापन समारोह के मुख्य वक्ता के तौर पर महीयसी महादेवी वर्मा थीं।

सम्मेलन का बोधवाक्य ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ था और विषय ‘हिंदी की अंतरराष्ट्रीय स्थिति’ था। इस सम्मेलन में 30 देशों से 122 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। वहीं दक्षिण भारत से 400 प्रतिनिधि शामिल हुए।

इस अवसर पर एक विशेष डाक टिकट जारी किया गया। आर्चाय विनोबा भावे जी द्वारा भेजे गए संदेश का पाठ किया गया। आयोजन स्थल का नाम ‘विश्व हिंदी नगर’ रखा गया था, प्रवेश द्वारों के नाम- तुलसी, मीरा, सूर, कबीर, नामदेव और रैदास रखे गए थे। 14 जनवरी को राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के केंद्रीय कार्यालय के प्रांगण में विश्व हिंदी विद्यापीठ का शिलान्यास और संत तुलसीदास की प्रतिमा का फादर कामिल बुल्के द्वारा अनावरण किया गया।

प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन में पारित प्रस्ताव-

  • संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में स्थान दिलाया जाए।
  • विश्व हिंदी विद्यापीठ की स्थापना वर्धा में हो।
  • विश्व हिंदी सम्मेलनों को स्थायित्व प्रदान करने के लिए अत्यंत विचारपूर्वक एक योजना बनाई जाए।

2. द्वितीय विश्व हिंदी सम्मेलन 1976

‘द्वितीय विश्व हिंदी सम्मेलन’ वर्ष 1976 में मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुई में 28 से 30 अगस्त तक आयोजित किया गया था। सम्मेलन के आयोजक राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष, मॉरीशस के प्रधानमंत्री डॉ. सर शिव सागर रामगुमाल थे। इस सम्मेलन में भारत से डॉ. कर्ण सिंह, स्वास्थ्य एवं परिवार नियोजन मंत्री ने प्रतिनिधिमंडल की अध्यक्षता की। उनकी अध्यक्षता में 23 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने भाग लिया।

डॉ. कर्ण सिंह ने ही सम्मेलन के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता भी किया। मॉरीशस के युवा एवं क्रीड़ा मंत्री, श्री दयानंद बसंतराय ने स्वागत भाषण दिया। अन्य वक्ता के रूप में प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन के महासचिव अनंत गोपाल शेवड़े मौजूद थे।

समापन समारोह की अध्यक्षता भारत सरकार में स्वास्थ्य एवं परिवार नियोजन मंत्री डॉ. कर्ण सिंह ने किया। आभार ज्ञापन सर शिव सागर रामगुलाम, प्रधानमंत्री, मॉरीशस ने व्यक्त किया था।

इस सम्मेलन का बोध वाक्य भी ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ था। सम्मेलन में 17 देशों के 181 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था।

द्वितीय विश्व हिंदी सम्मेलन में मॉरीशस के तीन डाक टिकट जारी किए गए। साथ में 31 अगस्त, 1976 को भारतीय अप्रवासियों की स्मृति में एक भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया। इमिग्रेशन स्क्वेयर, पोर्ट लुई में 31 अगस्त, 1976 को डॉ. कर्ण सिंह द्वारा सनातन धर्म मंदिर संघ के भवन का शिलान्यास किया गया। इस सम्मेलन में नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित ‘तुलसी-ग्रंथावली’ के तृतीय खंड का लोकार्पण किया गया। 30 अगस्त को मॉरीशस के प्रधानमंत्री ने बोबासें में ‘त्रिवेणी भवन’ का उद्घाटन किया गया।

द्वितीय विश्व हिंदी सम्मेलन में पारित प्रस्ताव-

  • मारीशस में एक विश्व हिंदी केन्द्र की स्थापना की जाए जो सारे विश्व की हिंदी गतिविधियों का समन्वय कर सके।
  • एक अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका का प्रकाशन हो जो भाषा के माध्यम से ऐसे समुचित वातावरण का निर्माण कर सके जिसमें मानव विश्व का नागरिक बना रहे।
  • सम्मेलन में प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन में पारित इस प्रस्ताव का फिर से समर्थन किया गया कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ में एक आधिकारिक भाषा के रूप में स्थान मिले और सिफारिश की गई कि इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए एक समयबद्ध कार्यक्रम बनाया जाए।

3. तृतीय विश्व हिंदी सम्मेलन 1983

‘तृतीय विश्व हिंदी सम्मेलन’ भारत की राजधानी दिल्ली में वर्ष 1983 में 28 से 30 अक्टूबर तक आयोजित किया गया था। सम्मेलन के लिये बनी राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष तत्कालीन लोकसभा के अध्यक्ष डॉ. बलराम जाखड़ थे। प्रतिनिधिमंडल की अध्यक्षता मॉरीशस प्रतिनिधिमंडल के नेता श्री हरीश बुधू ने किया। सम्मेलन का उद्घाटन भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी द्वारा किया गया था।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. आर.एस. मैग्रेगर ने किया था। वहीं स्वागत भाषण राष्ट्रीय समिति के कार्याध्यक्ष श्री मधुकरराव चौधरी ने और आभार राष्ट्रीय समिति के महामंत्री (संगठन) श्री शंकरराव लोंढे ने ज्ञापित किया।

समापन समारोह की अध्यक्षता तत्कालीन लोक सभा एवं राष्ट्रीय समिति के अध्यक्ष डॉ. बलराम ने किया था। समापन कार्यक्रम की मुख्य वक्ता श्रीमती महादेवी वर्मा थीं, उन्होंने कहा कि ‘भारत के सरकारी कार्यालयों में हिंदी के कामकाज की स्थिति उस रथ जैसी है, जिसमें घोड़े आगे की बजाय पीछे जोत दिये गये हों।’

तीसरा विश्व हिंदी सम्मेलन का बोधवाक्य भी ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ था। और कार्यक्रम के प्रमुख विषय ‘आधुनिक भारत में हिंदी के बढ़ते चरण’, ‘अंतरराष्ट्रीय संदर्भ और हिंदी’, ‘हिंदी का अंतर-भारतीय स्वरूप’ और था। इस सम्मेलन में कुल प्रतिनिधियों ने भाग लिया जिसमें विदेशों से 260 प्रतिनिधियों ने प्रतिभाग लिया था।  

दो स्मारिकाओं- ‘विश्व हिंदी’ और ‘विश्व के मानचित्र पर हिंदी’ का लोकार्पण किया गया था। साथ में भाषा, गगनांचल, अक्षरा आदि पत्रिकाओं का भी लोकार्पण हुआ था।

तृतीय विश्व हिंदी सम्मेलन में पारित प्रस्ताव-

  • सम्मेलन के लक्ष्यों और उद्देश्यों की पूर्ति के लिए निर्मित अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक स्थायी समिति का गठन किया जाए।
  • सम्मेलन की संगठन समिति को इस कार्य के लिए अधिकार दिया जाए कि वह भारत के प्रधानमंत्री से परामर्श करके उनकी सहमति से स्थायी समिति का गठन करे।
  • इस समिति में देश-विदेश के 25 सदस्य हों।
  • इसके प्रारूप एवं संविधान, कार्य-विधि और सचिवालय की रूप रेखा निर्धारित करने के लिए यह समिति अपनी उप-समिति गठित करे जो तीन महीने के भीतर अपनी संस्तुति संगठन समिति को दे ओर उस पर कार्रवाई की जाए।

4. चतुर्थ विश्व हिंदी सम्मेलन 1993

‘चौथा विश्व हिंदी सम्मेलन’ वर्ष 1993 में 02 से 04 दिसम्बर तक मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुई में आयोजित किया गया था। 17 वर्ष बाद दुबारा यह सम्मेलन मॉरीशस में आयोजित हुआ। चौथे विश्व हिंदी सम्मेलन के राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष, मॉरीशस के कला, संस्कृति, अवकाश एवं सुधार संस्थान मंत्री श्री मुकेश्वर चुनी थे। प्रतिनिधिमंडल की अध्यक्षता भारत के प्रतिनिधिमंडल के नेता श्री मधुकर राव चौधरी एवं उपनेता गृह मंत्रालय के उपमंत्री श्री रामलाल राही ने किया था।

सम्मेलन का उद्घाटन मॉरीशस के प्रधानमंत्री सर अनिरुद्ध जगन्नाथ द्वारा किया गया। अन्य वक्ताओं में श्री मुकेश्वर चुनी (कला, संस्कृति, अवकाश एवं सुधार संस्थान मंत्री, मारीशस) प्रधानमंत्री सर अनिरुद्ध जगन्नाथ, श्री राजनारायण गति (राष्ट्रीय आयोजन समिति के महासचिव), श्री मधुकर राव चौधरी, (नेता, भारतीय प्रतिनिधिमंडल) आदि थे। समापन समारोह की अध्यक्षता श्री रवींद्र घरबरन (महामहिम उपराष्ट्रपति, मॉरीशस) ने किया।

इस सम्मेलन में मॉरीशस के अलावा लगभग 200 विदेशी प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया था। इस बार भी सम्मेलन का बोधवाक्य ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ था। ‘हिंदी की अंतरराष्ट्रीय स्थिति’ और ‘स्वस्थ मूल्यों की खोज’ सत्र के प्रमुख विषय थे।

चतुर्थ विश्व हिंदी सम्मेलन पारित प्रस्ताव-

  • विश्व हिंदी सचिवालय मॉरीशस में स्थापित किया जाए जिसका लक्ष्य भविष्य में विश्व हिंदी सम्मेलनों का आयोजन करना तथा अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी का विकास और उत्थान करना होगा।
  • भारत में अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय स्थापित किया जाए।
  • यह सम्मेलन विभिन्न राष्ट्र सरकारों और विश्व विद्यालयों से अनुरोध करता है कि वे हिंदी पीठों की स्थापना उत्साहपूर्वक करें।
  • भारत सरकार विदेशों से प्रकाशित दैनिक समाचार-पत्र, पत्रिकाएं, पुस्तकें प्रकाशित करने में सक्रिय सहयोग करे।
  • भारत और मॉरिशस के बीच हिंदी की समाचार समिति ‘भाषा’ की सेवा शुरु होने पर सम्मेलन प्रसन्नता व्यक्त करता है।
  • हिंदी को विश्व मंच पर उचित स्थान दिलाने में शासन और जन-समुदाय विशेष प्रयत्न करे।
  • विश्व के समस्त हिंदी प्रेमी अपने निजी एवं सार्वजनिक कार्यों में हिंदी का अधिकाधिक प्रयोग करें और संकल्प लें कि वे कम से कम अपने हस्ताक्षरों, निमंत्रण पत्रों, निजी पत्रों और नामपट्टों में हिंदी का प्रयोग करेंगे।
  • सम्मेलन के सभी प्रतिनिधि अपने-अपने देशों की सरकारों से संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने के लिए समर्थन प्राप्त करने का सघन प्रयास करेंगे।
  • ‘विश्व हिंदी विद्यापीठ’ की शीघ्रातिशीघ्र स्थापना की मांग करता है। साथ ही मॉरिशस में विश्व हिंदी केन्द्र की स्थापना की मांग को दोहराता है।
  • चतुर्थ विश्व हिंदी सम्मेलन (दिसम्बर- 1993) के बाद विश्व हिंदी सचिवालय की स्थापना मॉरीशस में हुई।

5. पांचवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन 1996

‘पाँचवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन’ वर्ष 1996 में 04 से 08 अप्रैल तक त्रिनिडाड एवं टुबैगो की राजधानी पोर्ट ऑफ़ स्पेन में आयोजित किया गया था। सम्मेलन का आयोजन त्रिनिडाड की हिंदी निधि संस्था द्वारा किया गया। इसके प्रमुख संयोजक हिंदी निधि के अध्यक्ष श्री चंका सीताराम थे।

प्रतिनिधिमंडल की अध्यक्षता भारत के प्रतिनिधिमंडल के नेता श्री माता प्रसाद (राज्यपाल, अरूणाचल प्रदेश) थे। सम्मेलन का उद्घाटन त्रिनिडाड एवं टुबैगो के प्रधानमंत्री श्री वासुदेव पांडे द्वारा किया गया। स्वागत भाषण प्रो. जी. रिचर्डस (उपकुलपति, वेस्ट इंडीज विश्वविद्यालय) द्वारा दिया गया।

समापन समारोह के वक्ता त्रिनिडाड एवं टुबैगो की सीनेट के अध्यक्ष माननीय गणेश रामदयाल, श्री माता प्रसाद (नेता, भारतीय प्रतिनिधिमंडल) थे। सम्मेलन में भारत से 17 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने हिस्सा लिया और अन्य देशों के 257 प्रतिनिधिओं ने भाग लिया।

सम्मेलन का केंद्रीय विषय ‘आप्रवासी भारतीय और हिंदी’ था। शैक्षिक सत्र के अन्य प्रमुख विषय- ‘हिंदी भाषा और साहित्य का विकास’, ‘कैरेबियन द्वीपों में हिंदी की स्थिति’, ‘कंप्यूटर युग में हिंदी की उपादेयता’ आदि थे।

इस सम्मेलन में त्रिनिडाड एवं टुबैगो में क्रीड़ा के क्षेत्र में योगदान के लिए ब्रायन लारा को सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का दूरदर्शन द्वारा सैटेलाइट से सीधा प्रसारण किया गया। आयोजन स्थल का नाम ‘हिंदी नगर’ रखा गया। त्रिनिडाड की सरकार द्वारा प्रतिनिधियों को वीजा शुल्क से मुक्त रखा गया।

पांचवें विश्व हिंदी सम्मेलन में पारित प्रस्ताव-

  • विश्वव्यापी भारतवंशी समाज हिंदी को अपनी संपर्क भाषा के रूप में स्थापित करेगा एवं एक विश्व हिंदी मंच बनाने में सहायता करेगा।
  • मॉरीशस में विश्व हिंदी सचिवालय की स्थापना के लिए मॉरीशस एवं भारत सरकार द्वारा एक अं‍तर-सरकारी समिति बनाई जाए। इस समिति में सरकारी प्रतिनिधियों के अलावा पर्याप्त संख्या में हिंदी के प्रति निष्ठावान साहित्यकारों को सम्मिलित किया जाए।
  • यह सम्मेलन सभी देशों, विशेषकर उन देशों जहां भारतीय मूल के लोग तथा आप्रवासी भारतीय बसते हैं, की सरकारों से आग्रह करता है कि वे अपने देश में विभिन्न स्तरों पर हिंदी के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था करें।
  • यह सम्मेलन विश्व स्तर पर जहाँ भारतीय मूल तथा आप्रवासी भारतीय बसते हैं, में हिंदी के प्रचार-प्रसार में संलग्न स्वयं सेवी संस्थाओं/ हिंदी विद्वानों से आग्रह करता है कि वे अपनी-अपनी सरकारों से आग्रह करें कि वे हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनाने के लिए राजनयिक योगदान तथा समर्थन दें।
  • यह सम्मेलन भारत सरकार द्वारा महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्व विद्यालय स्थापित करने के निर्णय का स्वागत करता है और आशा करता है कि इस विश्व विद्यालय की स्थापना से हिंदी को विश्वव्यापी बल मिलेगा।

6. छठा विश्व हिंदी सम्मेलन 1999

‘छठा विश्व हिंदी सम्मेलन’ वर्ष 1999 में 14 से 18 सितम्बर तक लंदन, ब्रिटेन में आयोजित किया गया था। यू.के. हिंदी समिति, गीतांजलि बहुभाषी समुदाय और बर्मिंघम भारतीय भाषा संगम, यॉर्क ने मिलजुल कर इसके लिये राष्ट्रीय आयोजन समिति का गठन किया था, जिसके अध्यक्ष डॉ. कृष्ण कुमार और संयोजक डॉ. पद्मेश गुप्त थे।

प्रतिनिधिमंडल की अध्यक्षता भारतीय प्रतिनिधिमंडल की नेता विदेश राज्य मंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने किया। उन्होंने ही सम्मेलन का उद्घाटन किया और वही समापन समारोह की मुख्य अतिथि भी थीं। प्रतिनिधिमंडल के उपनेता और प्रसिद्ध साहित्यकार विद्या निवास मिश्र थे। उद्घाटन समारोह के कार्यक्रम की मुख्य अतिथि ब्रिटेन की व्यापार एवं उद्योग मंत्री, सुश्री पैट्रीशिया ह्यूविट थीं।

21 देशों के 700 प्रतिनिधियों ने भाग लिया जिसमें विदेशों से सहभागिता 350 थी। सम्मेलन का मुख्य विषय ‘हिंदी और भावी पीढ़ी’ था।

छठे विश्व हिंदी सम्मेलन का ऐतिहासिक महत्त्व इसलिए भी है, क्योंकि यह हिंदी को राजभाषा बनाये जाने के 50वें वर्ष में आयोजित किया गया था। सम्मेलन में भाषा और साहित्य दोनों पर विशेष बल दिया गया। यही वर्ष संत कबीर की छठी जन्म शती का भी था।

छठे विश्व हिंदी सम्मेलन में पारित प्रस्ताव-

  • हिंदी को संयुक्त राष्ट्र में मान्यता दी जाए।
  • विश्व भर में हिंदी के अध्ययन-अध्यापन, शोध, प्रचार-प्रसार और हिंदी सृजन में समन्वय के लिए महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय केंद्र सक्रिय भूमिका निभाए।
  • विदेशों में हिंदी शिक्षण, पाठ्यक्रमों के निर्धारण, पाठ्य पुस्तकों के निर्माण, अध्यापकों के प्रशिक्षण आदि की व्यवस्था भी विश्वविद्यालय करे और सुदूर शिक्षण के लिए आवश्यक कदम उठाए।
  • मॉरीशस सरकार अन्य हिंदी-प्रेमी सरकारों से परामर्श कर शीघ्र विश्व हिंदी सचिवालय स्थापित करे।
  • हिंदी की सूचना तकनीक के विकास, मानकीकरण, विज्ञान एवं तकनीकी लेखन, प्रसारण एवं संचार की अद्यतन तकनीक के विकास के लिए भारत सरकार एक केंद्रीय एजेंसी स्थापित करे।
  • नई पीढ़ी में हिंदी को लोकप्रिय बनाने के लिए आवश्यक पहल की जाए।
  • भारत सरकार विदेश स्थित अपने दूतावासों को निर्देश दे कि वे भारतवंशियों की सहायता से विद्यालयों में एक भाषा के रूप में हिंदी शिक्षण की व्यवस्था करवाएं।

7. सातवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन 2003

‘सातवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन’ वर्ष 2003 में 06 से 09 जून तक पारामारिबो, सूरीनाम में आयोजित किया गया था। इक्कीसवीं सदी में आयोजित यह पहला विश्व हिंदी सम्मेलन था। सम्मेलन के संयोजक श्री जानकी प्रसाद सिंह थे।

प्रतिनिधिमंडल की अध्यक्षता भारतीय प्रतिनिधिमंडल के नेता, भारत के विदेश राज्य मंत्री श्री दिग्विजय सिंह ने किया। सम्मेलन का उद्घाटन सूरीनाम के राष्ट्रपति श्री रोनाल्डो रोनाल्ड वेनेत्शियान द्वारा किया गया। समापन समारोह में उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों में श्री रतन कुमार अजोधिया (सूरीनाम के उपराष्ट्रपति) और श्री दिग्विजय सिंह (विदेश राज्य मंत्री, भारत सरकार) थे।

सम्मेलन का मुख्य विषय ‘विश्व हिंदी- नई शताब्दी की चुनौतियाँ’ था। सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन में भारत से 200 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इसमें 12 से अधिक देशों के हिंदी विद्वान व अन्य हिंदी सेवी सम्मिलित हुए थे।

विदेश राज्य मंत्री द्वारा बाबा-माई की प्रतिमा का माल्यार्पण और एक पथ हिंदी लॉन का उद्घाटन किया गया। सातवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन का उद्घाटन 5 जून को हुआ था। यह भी एक संयोग ही था कि कुछ दशक पहले इसी दिन सूरीनामी नदी के तट पर भारतवंशियों ने पहला कदम रखा था।

सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन में पारित प्रस्ताव-

  • संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाया जाए।
  • विदेशी विश्वविद्यालयों में हिंदी पीठों की स्थापना की जाए।
  • हिंदी भाषा और साहित्य का प्रचार-प्रसार, हिंदी शिक्षण संस्थाओं के बीच संबंध तथा भारतीय मूल के लोगों में हिंदी के प्रयोग के प्रचार के उपाय किए जाएं।
  • हिंदी के प्रचार हेतु वेबसाइट की स्थापना और सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग हो।
  • हिंदी विद्वानों की एक विश्व निर्देशिका का प्रकाशन किया जाए।
  • विश्व हिंदी दिवस का आयोजन हो।
  • कैरेबियाई हिंदी परिषद की स्थापना की जाए।
  • दक्षिण भारत के दस विश्वविद्यालयों में हिंदी विभाग की स्थापना की जाए।
  • भारत में एम.ए. हिंदी के पाठय़क्रम में विदेशों में रचित हिंदी लेखन को समुचित स्थान दिलाया जाए।
  • सूरीनाम में हिंदी शिक्षण का संवर्धन किया जाए।

8. आठवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन 2007

‘आठवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन’ वर्ष 2007 में 13 से 15 जुलाई तक न्यूयार्क, अमरीका में आयोजित किया गया था। सम्मेलन का आयोजन विदेश मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा किया गया। भारतीय विद्या भवन, न्यूयार्क सहयोगी संगठन था।

सरकारी प्रतिनिधिमंडल की अध्यक्षता और नेतृत्व विदेश राज्य मंत्री श्री आनंद शर्मा ने किया। सम्मेलन का उद्घाटन 13 जुलाई, 2007 को संयुक्त राष्ट्र संघ मुख्यालय के सभागार में किया गया था। स्वागत भाषण अमरीका में भारत के राजदूत श्री रोनेन सेन ने दिया था।

समापन समारोह का आयोजन 15 जुलाई, 2007 को किया गया। डॉ. लक्ष्मी मल्ल सिंघवी के अस्वस्थ होने के कारण उनका अध्यक्षीय भाषण हिंदी के सुविख्यात विद्वान, साहित्कार एवं पत्रकार डॉ. कन्हैयालाल नंदन द्वारा पढ़ा गया। सम्मेलन का मुख्य विषय ‘विश्व मंच पर हिंदी’ था। शैक्षिक सत्र की अध्यक्षता डॉ. गिरिजा व्यास (अध्यक्ष, राष्ट्रीय महिला आयोग) और संचालक श्री नारायण कुमार ने किया।

सरकारी प्रतिनिधिमंडल के 84 सदस्यों ने सम्मेलन में भाग लिया था। भारत से गए सहभागियों की संख्या लगभग 400 थी, वहीं अमरीका तथा अन्य देशों के प्रतिभागियों की संख्या लगभग 325 थी।

सम्मेलन के पूर्व देश के युवाओं के लिए एक अखिल भारतीय हिंदी निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। यह प्रतियोगिता हिंदी भाषी और अहिंदी भाषी युवाओं के लिए थी। प्रतियोगिता के दोनों विजेताओं (एक हिंदी भाषी और एक अहिंदी भाषी) को पुरस्कार स्वरूप न्यूयार्क में सम्मेलन में भाग लेने की सुविधा विदेश मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रदान की गई।

आठवें विश्व हिंदी सम्मेलन में पारित प्रस्ताव-

  • विदेशों में हिंदी शिक्षण और देवनागरी लिपि को लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से दूसरी भाषा के रूप में हिंदी शिक्षण के लिए एक मानक पाठ्यक्रम बनाया जाए तथा हिंदी के शिक्षकों को मान्यता प्रदान करने की व्यवस्था की जाए।
  • विश्व हिंदी सचिवालय के कामकाज को सक्रिय एवं उद्देश्यपरक बनाने के लिए सचिवालय को, भारत तथा मारीशस सरकार, सभी प्रकार की प्रशासनिक एवं आर्थिक सहायता प्रदान करें और दिल्ली सहित विश्व के चार-पांच अन्य देशों में इस सचिवालय के क्षेत्रीय कार्यालय खोलने पर विचार किया जाए। सम्मेलन सचिवालय से यह आह्वान करता है कि हिंदी भाषा को लोकप्रिय बनाने के लिए विश्व मंच पर हिंदी वेबसाईट बनायी जाए।
  • हिंदी में ज्ञान-विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं तकनीकी विषयों पर सरल एवं उपयोगी हिंदी पुस्तकों के सृजन को प्रोत्साहित किया जाए। हिंदी में सूचना प्रौद्योगिकी को लोकप्रिय बनाने के प्रभावी उपाय किए जाएं। एक सर्वमान्य व सर्वत्र उपलब्ध यूनीकोड को विकसित व सर्वसुलभ बनाया जाए।
  • विदेशों में जिन विश्वविद्यालयों तथा स्कूलों में हिंदी का अध्ययन-अध्यापन होता है, उनका एक डाटा-बेस बनाया जाए और हिंदी अध्यापकों की एक सूची भी तैयार की जाए।
  • यह सम्मेलन विश्व के सभी हिंदी प्रेमियों और विशेष रूप से प्रवासी भारतीयों तथा विदेशों में कार्यरत भारतीय राष्ट्रिकों से भी अनुरोध करता है कि वे विदेशों में हिंदी भाषा, साहित्य के प्रचार-प्रसार में योगदान करें।
  • वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में विदेशी हिंदी विद्वानों के अनुसंधान के लिए शोधवृत्ति की व्यवस्था की जाए।
  • केन्द्रीय हिंदी संस्थान भी विदेशों में हिंदी के प्रचार-प्रसार व पाठ्यक्रमों के निर्माण में अपना सक्रिय योगदान दे।
  • विदेशी विश्वविद्यालयों में हिंदी पीठ की स्थापना पर विचार-विमर्श किया जाए।
  • हिंदी को साहित्य के साथ-साथ आधुनिक ज्ञान-विज्ञान और वाणिज्य की भाषा बनाया जाए।
  • भारत द्वारा राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तरों पर आयोजित की जाने वाली संगोष्ठियों व सम्मेलनों में हिंदी को प्रोत्साहित किया जाए।

9. नौवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन 2012

‘नौवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन’ वर्ष 2012 में 22 से 24 सितम्बर तक जोहांसबर्ग, दक्षिण अफ्रीका में आयोजित किया गया था। सम्मेलन का आयोजन विदेश मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा किया गया। हिंदी शिक्षा संघ, महत्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय और दक्षिण अफ्रीका सहयोगी संगठन था। सम्मेलन के मुख्य अतिथि महामहिम श्री प्रवीण गोर्धन (वित्त मंत्री, दक्षिण अफ्रीका) थे। विशेष अतिथियों में महामहिम श्री मुकेश्वर चुन्नी (कला एवम संस्कृति मंत्री, मॉरीशस) थे।

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सम्मेलन का मुख्य विषय ‘भाषा की अस्मिता और हिंदी का वैश्विक संदर्भ’ था। इस सम्मेलन में 22 देशों के 600 से अधिक प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया जिसमें लगभग 300 भारतीय शामिल हुए थे।

सम्मेलन में दक्षिण अफ्रीका के महान् नेता डॉ. नेल्सन मंडेला के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त किया गया, जिन्होंने महात्मा गांधी द्वारा प्रतिपादित शांति, अहिंसा एवं न्याय के शाश्वत सिद्धांतों को आत्मसात करके पुन: केवल अपने देश के लिए ही नहीं बल्कि विश्व मानव के कल्याण के लिए एक सम्मानित जीवन का मार्ग प्रशस्त किया। इनके संघर्ष को देखते हुए गए सम्मेलन के उद्घाटन स्थल का नाम गाँधी ग्राम, पूर्ण सत्र हॉल का नाम नेल्सन मंडेला सभागार तथा अन्य सत्रों वाले स्थलों का नाम शांति, सत्य, अहिंसा, नीति और न्याय रखा गया था।

सम्मेलन के पूर्व आरंभ में, मंत्रालय ने 9वें विश्व हिंदी सम्मेलन के मुख्य विषय वस्तुओं से संबंधित महत्वपूर्ण लेखों पर संकलन ‘स्मारिका’ के रूप में निकाला था। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद ने अपने मासिक प्रकाशन ‘गगनांचल’ का एक विशेष अंक निकाला। महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय ने दैनिक बुलेटिन ‘हिंदी विश्व’ निकाला। इस अवसर पर 40 से भी अधिक पुस्तकों का लोकार्पण भी हुआ। ‘हिंदी शिक्षा संघ’ के संस्थापक, पंडित नारदेव वेदालांकर की प्रतिमा का अनावरण, श्रीमती प्रणीत कौर द्वारा किया गया।

नौवें विश्व हिंदी सम्मेलन में पारित प्रस्ताव-

  • मॉरीशस में स्थापित विश्व हिंदी सचिवालय में विभिन्न देशों के हिंदी शिक्षण से संबद्ध विश्वविद्यालयों, पाठशालाओं एवं शैक्षिक संस्थानों से संबंधित एक डाटाबेस का बृहत स्रोत केन्द्र स्थापित किया जाये।
  • विश्व हिंदी सचिवालय में विश्व भर के हिंदी विद्वानों, लेखकों तथा हिंदी के प्रचार-प्रसार से संबद्ध लोगों का भी एक डाटाबेस तैयार किया जाये।
  • हिंदी भाषा की सूचना प्रौद्योगिकी के साथ अनुरूपता को देखते हुए सूचना प्रौद्योगिकी संस्थानों द्वारा हिंदी भाषा संबंधी उपकरण विकसित करने का महत्वपूर्ण कार्य जारी रखा जाए।
  • विदेशों में हिंदी शिक्षण के लिए एक मानक पाठ्यक्रम तैयार किए जाने के लिए महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा को अधिकृत किया जाता है।
  • अफ्रीका में हिंदी शिक्षण को प्रोत्साहित करने के लिए और बदलते हुए वैश्विक परिवेश, युवा वर्ग की रुचि एवं आकांक्षाओं को देखते हुए उपयुक्त साहित्य एवं पुस्तकें तैयार की जाएं।
  • सूचना प्रौद्योगिकी में देवनागरी लिपि के प्रयोग पर पर्याप्त सॉफ्टवेयर तैयार किए जाएं ताकि इसका लाभ विश्व भर के हिंदी भाषियों और प्रेमियों को मिल सके।
  • अनुवाद की महत्ता देखते हुए अनुवाद के विभिन्न आयामों के संदर्भ में अनुसंधान की आवश्यकता है, अतः इस दिशा में ठोस कार्रवाई की जाए।
  • विश्व हिंदी सम्मेलनों के बीच अंतराल में विभिन्न देशों में विशिष्ट विषयों पर क्षेत्रीय सम्मेलन आयोजित किए जाते हैं। इनका उद्देश्य उनके अपने-अपने क्षेत्रों में हिंदी शिक्षण और हिंदी के प्रसार में आने वाली कठिनाइयों का समाधान खोजना है।
  • विश्व हिंदी सम्मेलनों में विद्वानों को भेंट किए जाने वाले पुरस्कार अथवा सम्मान को अब से ‘विश्व हिंदी सम्मान’ कहा जाए।
  • विगत में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलनों में पारित प्रस्ताव को रेखांकित करते हुए हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ में आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता प्रदान किए जाने के लिए समय-बद्ध कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।
  • दो विश्व हिंदी सम्मेलनों के आयोजन के बीच यथासंभव अधिकतम तीन वर्ष का अंतराल रहे।
  • 10वां विश्व हिंदी सम्मेलन भारत में आयोजित किया जाए।

10. दसवां विश्व हिंदी सम्मेलन 2015

‘दसवां विश्व हिंदी सम्मेलन’ वर्ष 2015 में 10 से 12 सितम्बर तक भोपाल, भारत में आयोजित किया गया था। सम्मेलन का आयोजन विदेश मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा मध्य प्रदेश सरकार के सहयोग से किया गया।

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सम्मेलन के मुख्य अतिथि श्री नरेन्द्र मोदी (माननीय प्रधानमंत्री, भारत सरकार) थे। विशेष अतिथि के रूप में श्रीमती लीला देवी दुकन लछुमन (माननीय शिक्षा व मानव संसाधन, तृतीयक शिक्षा एवं वैज्ञानिक अनुसंधान मंत्री, मॉरीशस गणराज्य) मौजूद थीं। सम्मेलन का मुख्य विषय ‘हिंदी जगत: विस्तार एवं सम्भावनाएं’ था।

कई प्रौद्योगिक कंपनियों ने भी इस सम्मेलन में भाग लिया, जिसमें कई विदेशी कंपनियाँ- गूगल, एप्पल, माइक्रोसोफ़्ट, वेबदुनिया हिंदी के साथ-साथ कई भारतीय संस्थाएँ जैसे- सी-डेक, केंद्रीय हिंदी संस्थान, भारतकोश, राष्ट्रीय विज्ञान प्रसार केन्द्र भी शामिल रहीं।

दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन में पारित प्रस्ताव-

  • संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी को समयबद्ध तरीके से आधिकारिक भाषा बनाने के लिए संकल्प लिए जाने पर बल दिया गया।
  • भारत में विदेशी भाषाओं को हिंदी माध्यम से सिखाने के लिए एक नया विश्वविद्यालय स्थापित करने की अनुशंसा की गई।  
  • विश्व हिंदी सम्मेलन के दौरान देश-विदेश से आए अनेक विद्वानों, हिंदी मनीषियों एवं अन्य प्रतिभाशाली विशेषज्ञों ने चयनित विषयों पर समानान्तर सत्रों में गहन चर्चा के पश्चात जो अनुशंसाएँ की हैं विदेश मंत्रालय एक विशेष समीक्षा समिति गठित कर उन अनुशंसाओं को यथोचित कार्यवाही हेतु विभिन्न मंत्रालयों एवं विभागों को अग्रेषित करें।
  • 11वें विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन सन 2018 में मॉरीशस में किया जाए जिस दौरान वहां स्थित विश्व हिंदी सचिवालय के नए भवन का औपचारिक उद्घाटन भी किया जाए।

11. ग्यारहवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन 2018

‘ग्यारहवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन’ वर्ष 2018 में 18 से 20 अगस्त तक मॉरीशस में आयोजित किया गया था। भारत के अलावा मॉरीशस ही वह देश है, जहाँ तीसरी बार ‘विश्व हिंदी सम्मेलन’ का आयोजन हुआ है। यह मॉरीशस सरकार के सहयोग से भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा आयोजित किया गया। 11वें विश्व हिंदी सम्मेलन के लिए विदेश मंत्रालय नोडल मंत्रालय था।

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11वें विश्व हिंदी सम्मेलन का उद्घाटन विदेश मंत्री ‘सुषमा स्वराज’ और मॉरीशस के प्रधानमंत्री ‘प्रवीण कुमार जगन्नाथ’ ने किया। इस अवसर पर भारत के विदेश राज्यमंत्री जनरल (रिटा.) बी. के सिंह, गृह राज्यमंत्री किरेन रिजिजू, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी, गोवा की राज्यपाल मृदुला गर्ग विशेष रूप से उपस्थित रहीं। समापन समारोह के विशिष्ट अतिथि मारीशस के मार्गदर्शक और रक्षा मंत्री ‘अनिरूद्ध जगन्नाथ’ थे।

सम्मेलन का मुख्य विषय ‘हिंदी विश्‍व और भारतीय संस्‍कृति’ था। सम्मेलन का आयोजन ‘स्वामी विवेकानंद अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन केंद्र’ में हुआ। लगभग 38 देशों के प्रतिभागियों ने सम्मेलन में भाग लेने के लिए पोर्ट लुई पहुंचे।

आयोजन स्थल पर बने सभागारों के नाम भी हिंदी साहित्यकारों के नाम पर रखे गए थे। सम्मेलन का आयोजन ‘स्वामी विवेकानन्द अंतर्राष्ट्रीय सभागार’ में किया गया था जिसके परिसर को ‘गोस्वामी तुलसीदास नगर’ नाम दिया गया था। सभागारों के नाम गोपाल दास ‘नीरज’ और मॉरीशस के प्रेमचंद कहे जाने वाले हिंदी साहित्यकार ‘अभिमन्यु अनंत’ आदि के नाम पर रखा गया था।

सम्मेलन के दौरान भारत एवं अन्य देशों के हिंदी विद्वानों को हिंदी के क्षेत्र में उनके विशेष योगदान के लिए ‘विश्व हिंदी सम्मान’ से सम्मानित किया गया। सी-डैक समेत कई संस्थाओं को भी हिंदी के साफ्टवेयर और टूल विकसित करने के लिए सम्मानित किया गया।

12. बारहवां विश्व हिंदी सम्मेलन 2021

12वां विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन तीन वर्ष बाद (2021 में) फिजी में होना है। कोरोना जैसी महामारी में सम्मेलन का आयोजन संभव कम लग रहा है।

विश्व हिंदी सम्मेलन वेबसाइट

विश्व हिंदी सम्मेलन के लिए एक वेबसाइट vishwahindisammelan.gov.in तैयार की गई है और सम्मेलन से संबंधित सभी सूचनाओं के लिए इसे देखा जा सकता है। श्रीमती सुषमा स्वराज (माननीय विदेश मंत्री, भारत सरकार) और श्रीमती लीला देवी दुकन लछुमन (माननीय शिक्षा व मानव संसाधन, तृतीयक शिक्षा एवं वैज्ञानिक अनुसंधान मंत्री, मॉरीशस गणराज्य) ने 10 अप्रैल, 2018 को जवाहरलाल नेहरू भवन, विदेश मंत्रालय, नई दिल्ली में ‘विश्व हिंदी सम्मेलन’ की वेबसाइट और ‘11वें विश्व हिंदी सम्मेलन’ के ‘लोगो’ का लोकार्पण किया गया था।

विश्व हिंदी सम्मेलन का महत्त्व

विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में हिंदी का दूसरा स्थान है फिर भी हिंदी को वह स्थान अभी तक नहीं मिला जिसकी वह अधिकारिणी है। अंग्रेजी, फ्रेंच, स्पैनिश, पुर्तगाली आदि भाषाओं की तरह हिंदी इसलिए अंतर्राष्ट्रीय भाषा नहीं बन सकी क्योंकि उपरोक्त भाषाओं नें साम्राज्यवाद की नींव पर फैलकर प्रभुत्व और शक्ति प्राप्त की। वहीं हिंदी अपनी गुणवत्ता और प्रवासी भारतीयों के श्रद्धा और आत्मीयता के कारण यह दर्जा प्राप्त किया है। कई देशों में 80% से अधिक आबादी हिंदी भाषा का प्रयोग करती है। ऐसे में विश्व हिंदी सम्मेलन का महत्त्व बढ़ जाता है, उसकी भूमिका और महत्वपूर्ण हो जाती है। इस तरह के महा-आयोजन औपचारिक परम्परा ही नहीं अनिवार्यता भी है।

सम्मेलन के द्वारा ही अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी प्रचार की संभावनाओं और प्रयास को टटोला जा सकता है, आने वाली बाधाओं को दूर किया जा सकता है। हिंदी की प्रगति का लेखा-जोखा हो जाता है, विदेशों में प्रगति की स्थिति पर भी मंथन हो जाता है। संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में हिंदी के प्रयोग और संभावनाओं पर विचार किया जा सकता है। भविष्य की हिंदी और हिंदी का भविष्य के साथ बहुफलकीय हिंदी पर सार्थक संवाद का मंच मुहैया हो जाता है।

विश्व हिंदी सम्मेलन के आयोजन से न केवल हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार होता है बल्कि इस आदान-प्रदान में सभी हिंदी भाषी देश के लोग स्वयं को तौलते और अपनी जमीन की मजबूती को परखते भी हैं। इस प्रकार के सम्मेलन से न केवल विभिन्न देशों के साहित्यकार परिचित होते हैं बल्कि साहित्य और संस्कृति का भी आदान-प्रदान होता है।

इस सम्मेलन की संकल्पना ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण है। यह ऐसा अवसर है जहाँ पर हिंदी का अद्भुत और विशिष्ट विचार-संगम होता है। इस मौके पर देश-विदेश के हिंदीप्रेमी और हिंदीसेवी हिंदी के अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य और भाषा साहित्य से जुड़े प्रश्नों और विषयों पर गंभीरतापूर्वक चिंतन-मनन करते हैं। दूसरी बात हिंदी को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित करने और हिंदी के पक्ष में एक वातावरण निर्मित करने का माहौल बनता है। विश्व के अन्य हिंदी भाषी देशों के साथ हिंदी भाषा द्वारा भारत से उनका भावनात्मक और रचनात्मक संबंध बनता है।

इन सम्मेलनों के द्वारा हिंदी एक विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हुई है। इस सम्मेलन से न केवल हिंदी का अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप प्रकट हुआ है वरन् विश्व की अन्य भाषाओं के समकक्ष हिंदी का आकलन भी होता रहता है। इसी बहाने हिंदी के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान देने वाले भारतीय और विदेशी विद्वानों को सम्मानित करने का मौका भी मिल जाता है।

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