आदिकाल की सिद्ध काव्य धारा के कवि और उनकी रचनाएँ

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सिद्ध काव्य धारा के कवि और रचनाएँ

आदिकालीन सिद्ध साहित्य-

सिद्ध साधकों ने बौद्ध धर्म के वज्रयान का प्रचार करने के लिए जो साहित्य जन भाषा में रचा वह सिद्ध साहित्य कहलाता है। सामान्यत: सिद्धों का समय 8वीं से 13वीं शती तक माना जाता है। राहुल सांकृत्यायन ने ‘हिंदी काव्यधारा’ में 84 सिद्धों के नामों का उल्लेख किया है। सिद्ध साहित्य का विकास पूर्वी भारत में हुआ। सिद्धों की भाषा ‘मागधी अवहट्ट’ है, जिसमें सांध्य शब्दों का बाहुल्य होने की वजह से ‘सांध्या भाषा’ (अंत:साधनात्मक अनुभूतियों का संकेत करने वाली प्रतीक भाषा) कहा जाता है। सिद्धों की प्रतीकात्मक भाषा- ‘सांध्या भाषा’ नाम मुनिदत्त तथा अद्वयवज्र का दिया हुआ है। उलटवासियों का पूर्व रूप हमें इसी भाषा में मिलता है। ये लोग अपने नाम के पीछे ‘पा’ जोड़ते थे, जैसे सरहपा, लुइप, सबरपा, डोम्मिपा आदि।

हिंदी (सिद्ध) साहित्य में पहली बार 3 महिलाएं- मणिभद्रा, मेखलपा और लक्ष्मीकरा रचनाकार के रूप में दिखाई पड़ती हैं, वस्तुतः यहीं से हिंदी साहित्य में महिला लेखन प्रारंभ होता है। बैकवर्ड और दलित जातियों की संख्या भी बड़े पैमाने पर दिखाई देता है। रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा है कि- ‘84 सिद्धों में बहुत से कछुए, चमार, धोबी, डोम, कहार, लकड़हारे, दरजी तथा बहुत से शुद्र कहे जाने वाले लोग थे। अत: जाति-पांति के खंडन तो वे आप ही थे।’

हिंदी के प्रमुख सिद्ध कवि हैं- सरहपा, शबरपा, लुइपा, डोम्भिपा, काण्हपा, कुक्कुरिपा, तंतिपा आदि ।सिद्ध साहित्य को सर्वप्रथम प्रकाश में लाने का कार्य सन् 1916 ई. में ‘हर प्रसाद शास्त्री’ ने ‘बौद्धगान ओ दोहा’ शीर्षक से कविताएँ प्रकाशित करके किया। दूसरा प्रयास प्रबोध चंद्र बागची ने तिब्बती पाठों के आधार पर शास्त्री जी के पाठ में संशोधन, पाठोद्वार और टीका लिखकर किया। तीसरा प्रयास राहुल सांकृत्यायन ने सन् 1945 ई. में नेपाली प्रतियों के आधार पर ‘हिंदी काव्यधारा’ और तिब्बती पाठों के आधार पर सरहपा के दोहों का संग्रह तैयार कर किया। वहीं समग्र रूप से सर्वप्रथम सिद्ध साहित्य का सम्पादन प्राच्यविद् बेंडल ने किया ।

प्रमुख सिद्ध कवि और उनकी रचनाएँ-
कविसमयरचनाएँग्रन्थों की संख्या
सरहपा769 ई.दोहाकोष, चर्यागीत कोष32 ग्रंथ
शबरपा780 ई.चर्यापद, चित्तगुहागम्भीरार्य, महामुद्रावज्रगीति, शुन्यतादृष्टि
लुईपाअभिसमयविभंग, तत्त्वस्वाभाव दोहाकोश, बुद्धोदय, भगवद् भिसमय, लुईपाद गीतिका
डोम्भिपा840 ई. डोम्बिगीतिका, योगचर्या, अक्षरादि, कोपदेश31 ग्रंथ
कण्हपा820 ई.कण्हपाद गीतिका, दोहा कोश, योगरत्नमाला74 ग्रंथ
कुक्कुरिपातत्वसुखभावनासारि योगभवनोपदेश, स्रवपरिच्छेदन16 ग्रंथ
सिद्ध कवि और उनकी रचनाएँ
सिद्ध साहित्य संबंधी प्रमुख तथ्य-

1. सामान्य रूप से हिंदी साहित्य का आरंभ सिद्धों की रचनाओं से माना जाता है।

2. भरतमुनि ने लोकभाषा को ‘अपभ्रंश’ नाम न देकर ‘देशभाषा’ कहा है।

3. रामचन्द्र शुक्ल ने आदिकाल के अंतर्गत् ‘देशभाषा’ शब्द ‘बोलचाल की भाषा’ के लिए किया है।

4. सिद्धों का विकास बौद्ध धर्म के ब्रजयान शाखा से हुआ।

5. वज्रयान में ‘युगनद्व’ की भावना पाई जाती है।

6. सिद्ध साहित्य का प्रमुख केंद्र ‘श्री पर्वत’ था।

7. गेय पदों की परम्परा सिद्धों से प्रारंभ होती है।

8. ‘सिद्व-सिद्वांत-पद्वति’ ग्रंथ ‘हठयोग’ से संबंधित है।

9. ‘बौद्ध गान औ दूहा’ सिद्धों की रचनाओं का संग्रह है जिसे हरप्रसाद शास्त्री ने बंगाक्षरों में प्रकाशित कराया था।

10. ‘चर्यापद’ सिद्धों की व्यवहार संबंधी रचनाएँ हैं ।

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सरहपा (सरहपाद)-

1. सरहपा का अन्य नाम ‘सरोजवज्र’ (वज्रयान से संबंध) और ‘राहुलभद्र’ (बौद्ध परम्परा से संबंध) भी है।

2. सर्वमत से विद्वानों ने हिंदी का प्रथम कवि माना है।

3. सरहपा 84 सिद्धों में प्रथम सिद्ध थे।

4. राहुल सांकृत्यायन के अनुसार सरहपा का समय 769 ई. है।

5. राहुल सांकृत्यायन ने ‘हिंदी काव्यधारा’ में सरहपा की कुछ रचनाओं का संग्रह किया है।

6. इन्होने ‘सहजयान’ या ‘सहजिया’ सम्प्रदाय की स्थापना किया था।

7. सहजयान के प्रवर्तक माने जाते हैं।

लुइपा-

1. चौरासी सिद्धों में सबसे ऊँचा स्थान

2. रचनाओं में रहस्य भावना की प्रधानता

सिद्ध साहित्य के प्रमुख कवियों के गुरु-
कविगुरु
शबरपासरहपा
लुईपाशबरपा
डोम्भिपाविरूपा
कण्हपाजालांधररपा
कुक्कुरिपाचर्पटीया
सिद्ध कवियों के गुरु
सिद्ध साहित्य में वर्णित पंचमकार की प्रतीकात्मक व्याख्या-

पंचमकार के अंतर्गत् नारी के मुद्रा रूप की कल्पना मिलती है। इसके अतिरिक्त युगनद्वता की व्याख्या भी मिल जाती है, जिसमें करुणा और शून्यता के संयोग की कल्पना की गई है ।

पंचमकारप्रतीकात्मक व्याख्या
मद्यसहस्रदल में क्षरित होने वाली सुधा
मत्स्यइड़ा-पिंगला (गंगा-जमुना) में प्रवाहित श्वास
मांसज्ञान से पाप हनन की प्रक्रिया
मुद्राअसत्य का परित्याग
मैथुनसहस्रार में स्थित शिव तथा कुंडलिनी का योग
सिद्ध साहित्य में वर्णित पंचमकार
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