हिंदी आलोचना को चरमोत्कर्ष पर पहुँचने का श्रेय आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसीलिए इस युग का नाम शुक्ल युगीन आलोचना (shukl yugeen alochna) पड़ा। शुक्ल जी ने भारतीय एवं पश्चात्य कव्यशात्र का समन्वय कर एक नवीन पद्वति का विकास किया। शुक्ल जी की आलोचना पद्वति विश्लेषणात्मक थी जो लोकमंगल की साधना, आदर्शवादी, नैतिकतावादी, रस सिद्धान्त आदि मूल्यों पर आधारित थी। नीचे शुक्ल युगीन प्रमुख आलोचक और आलोचना ग्रंथों की सूची दी जा रही है-
शुक्ल युगीन प्रमुख आलोचक और आलोचना ग्रंथों की सूची-
शुक्लयुगीन आलोचना और आलोचक निम्नलिखित हैं-
आलोचक | आलोचनात्मक ग्रंथ |
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रामचंद्र शुक्ल | जायसी ग्रंथावली, भ्रमरगीत-सार, काव्य में रहस्यवादगो स्वामी तुलसीदास, सूरदास, रस-मीमांसा, त्रिवेणी (सूर, तुलसी, जायसी) |
कृष्ण शंकर शुक्ल | केशव की काव्यकला, कविवर रत्नाकर |
बाबू गुलाबराय | सिद्धांत और अध्ययन, साहित्य समीक्षा, साहित्य के रूपकाव्य के रूप नवरस, अध्ययन और आस्वाद, हिंदी काव्य विमर्श, हिंदी नाट्य विमर्श, काव्य के रूप, रहस्यवाद और हिंदी कविता, प्रबंध प्रभाकर |
पदुमलाल पुन्नालाल बख्सी | विश्व साहित्य, हिंदी कथा साहित्य |
लक्ष्मी नारायण सुधांशु | जीवन के तत्व और काव्य के सिद्वांत, काव्य में अभिव्यंजनावाद |
विनय मोहन शर्मा | द्रष्टिकोण, सहित्यलोकन, साहित्यशोध समीक्षा, हिंदी को मराठी संतों की देन, ‘कवि प्रसाद, आंसू तथा अन्य कृतियाँ’ |
डॉ. सत्येन्द्र | ब्रजलोक साहित्य का अध्ययन, प्रेमचंद और उनकी कहानी कला, गुप्त जी की कला, हिंदी एकांकी |
शांतिप्रिय द्विवेदी | हमारे साहित्य निर्माता, कवि और काव्य, साहित्यिकी, संचारिणी, युग और साहित्य, सामयिकी, ज्योति विहग, वृंत और विकास, समवेत |
विश्वनाथ प्रसाद मिश्र | हिंदी में नाट्य साहित्य का विकास, काव्यांग कौमुदी, बिहारी की वाग्विभूति, वांग्मय विमर्श, बिहारी, हिंदी का सामयिक साहित्य, हिंदी साहित्य का अतीत (2 भागों में), तुलसी की साधना, बिहारी प्रकास, गोस्वामी तुलसीदास |
फादर कामिल बुल्के | रामकथा और तुलसीदास, रामकथा और हिंदी, एक ईसाई की आस्था |
पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल | हिंदी साहित्य में निर्गुण सम्प्रदाय |