रीतिसिद्ध काव्यधारा के कवि और उनकी रचनाएँ

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रीतिसिद्ध काव्यधारा के कवि और उनकी रचनाएँ

रीतिसिद्ध कवि

जिन कवियों ने लक्षण और उदाहरण शैली पर काव्य सृजन तो नहीं किया परंतु रचना करते समय उनका झुकाव लक्षण ग्रंथों पर अवश्य रहा, उन्हें रीतिसिद्ध की श्रेणी में रखा गया है। बिहारी, बेनी वाजपेयी, कृष्णकवि, रसनिधि, नृप शंभुनाथ सिंह सोलंकी, नेवाज, हठी जी, रामसहाय दास ‘भगत’, पजनेस, द्विजदेव, सेनापति, वृंद तथा विक्रमादित्य आदि रीतिसिद्ध कवि हैं।

रीतिसिद्ध कवि कवि और उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

बिहारी लाल

बिहारी लाल का संक्षिप्त जीवन वृत्त निम्नांकित है-

जन्म–मृत्यु(ई.)जन्म स्थानपितागुरुसम्प्रदायआश्रयदाता
1595-1663गोविन्दपुर(ग्वालियर)केशवदासनरहरिदासनिम्बार्कमहाराज जय सिंह
बिहारी लाल का जीवन-परिचय
  • बिहारी सतसई रीतिकाल का सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रंथ है। जिसे मध्यकाल में रामचरितमानस के बाद सर्वाधिक लोकप्रियता प्राप्त हुई।
  • लाला भगवानदीन ने सूर, तुलसी और केशव के पश्चात् बिहारी को हिंदी साहित्य का चौथा रत्न माना है।
  • श्रीराधा चरण गोस्वामी ने बिहारी को ‘पीयूषवर्षी मेघ’ की उपमा दी है।
  • डॉ. जॉर्ज ग्रियर्सन के अनुसार, “यूरोप में ‘बिहारी सतसई’ के समकक्ष कोई रचना नहीं है।”
  • बिहारी के संबंध में यह माना जाता है कि उन्होंने ‘गागर में सागर भर दिया।’
  • बिहारी सतसई श्रृंगारिक मुक्तक काव्य है जिसका प्रत्येक दोहा हिंदी साहित्य का एक-एक रत्न माना जाता है।
  • बिहारीलाल की ‘सतसई’ की प्रशंसा में किसी कवि ने निम्नलिखित पंक्ति लिखी है-

“सत सैया के दोहरे, ज्यों नावक के तीर।

देखन में छोटे लगें, बेधैं सकल सरीर॥”

  • बिहारी सतसई की रचना 1662 ई. में सम्पन्न हुई।
  • बिहारी सतसई की प्रसिद्ध का प्रमुख कारण कल्पना की समाहार शक्ति है।
  • बिहारी सतसई एक मुक्तक काव्य है।
  • बिहारीलाल की एकमात्र रचना ‘बिहारी सतसई’ दोहा छंद में रचित है। इसकी भाषा परिनिष्ठित साहित्यिक ब्रजभाषा है।
  • बिहारी सतसई के दोहे श्रृंगार, भक्ति और नीति से सम्बन्धित हैं।
  • बिहारी सतसई में जयपुर नरेश जयसिंह (जयसाह) की प्रशंसा में दोहे मिलते हैं। जयसिंह के निर्देश पर ही बिहारी ने ‘बिहारी सतसई’ की रचना की।
  • ऐसा माना जाता है कि जिस समय बिहारी जयपुर पहुंचे तो उन्हें पता चला की जयसिंह अपनी छोटी रानी के प्रेम में इतने आसक्त थे की राजकाज भूलकर महल के बहार भी नहीं निकलते थे। तब बिहारी ने यह दोहा लिखकर उनके पास भेजवा दिया-

“नहिं पराग नहिं मधुर मधु नहिं विकास इहि काल।

अली कली ही सौं विन्धौं आगे कौन हवाल।।”

  • बिहारी की कविता की ह्रदय-वेधकता को लक्ष्य करके उनकी कविता को ‘नाविक के तीर’ कहा जाता है।
  • बिहारी सतसई में श्रृंगारिकता के साथ भक्ति (70 दोहे) और नीति पर भी सम्यक समावेश हुआ है।
  • रामचन्द्र शुक्ल ने बिहारीलाल को रसवादी मानते हैं और नगेन्द्र ध्वनिवादी।
  • ‘बिहारी सतसई’ का प्रेरणास्रोत ग्रंथ गाथा सप्तशती, आर्या सप्तशती और अमरुक शतक हैं।
  • जनश्रुति के अनुसार बिहारी ने आचार्य केशव से काव्य शिक्षा ग्रहण किया था।
  • बिहारी सतसई के अनुकरण पर रसनिधि ने ‘रतनहजारा’ ग्रंथ लिखा।

रामचन्द्र शुक्ल ने बिहारी के सन्दर्भ में निम्न बातें लिखी हैं-

  • श्रृंगार रस के ग्रन्थों में जितनी ख्याति और जितना मान ‘बिहारी सतसई’ का हुआ उतना और किसी का नहीं। इसका एक-एक दोहा हिन्दी साहित्य में एक-एक रत्न माना जाता है।
  • यदि प्रबन्ध काव्य एक विस्तृत वनस्थली है तो मुक्तक एक चुना हुआ गुलदस्ता है।
  • “जिस कवि में कल्पना की समाहार शक्ति के साथ भाषा की समाहार शक्ति जितनी अधिक होगी उतनी ही वह मुक्तक की रचना में सफल होगा। यह क्षमता बिहारी में पूर्ण रूप से वर्तमान थी।”
  • बिहारी की रस व्यंजना का पूर्ण वैभव उनके अनुभावों के विधान में दिखाई पड़ता है।
  • बिहारी की कृति का मूल्य जो बहुत अधिक आंका गया है उसे अधिक रचना की बारीकी या काव्यांगों के सूक्ष्म विन्यास की निपुणता की ओर मुख्यतः दृष्टि रखने वाले पारखियों के पक्ष से समझना चाहिए- उनके पक्षों से समझना चाहिए जो किसी हाथी-दाँत के टुकड़े पर महीन बेलबूटे देख घंटों वाह-वाह किया करते हैं। पर जो हृदय के अन्तस्तल पर मार्मिक प्रभाव चाहते हैं, किसी भाव की स्वच्छ निर्मल धारा में कुछ देर अपना मन मग्न रखना चाहते हैं, उनका सन्तोष बिहारी से नहीं हो सकता।
  • भावों का बहुत उत्कृष्ट और उदात्त स्वरूप बिहारी में नहीं मिलता। कविता उनकी श्रृंगारी है, पर प्रेम की उच्च भूमि पर नहीं पहुँचती नीचे ही रह जाती है।
  • विरह वर्णन कहीं-कहीं मजाक तक पहुँच गया है।

बिहारी सतसई के टीकाकार

बिहारी सतसई’ पर पचासों टीकाएँ लिखी गई है। सर्वप्रथम बिहारीलाल के पुत्र कृष्णलाल कवि ने बिहारी सतसई का काव्यात्मक टीका (सवैया छंद में) ब्रजभाषा में लिखी। बिहारी सतसई के अन्य टीकाकार निम्नांकित हैं

टीकाकारटीकाविशेषता
कृष्णलाल कविकृष्णलाल की (गद्य-पद्य) टीकाप्रत्येक दोहे का सवैया में विवेचन
सुरति मिश्रअमर चंद्रिकाटीका का प्रणयन दोहों में हुआ है।
लल्लू लाललालचंद्रिका
हरिचरण दासहरिप्रकाश टीका
प्रभुदयाल मिश्रप्रभुदयाल मिश्र की टीका (1896 ई०)आधुनिक खड़ी बोली में लिखी गई
अम्बिकादत्त व्यासबिहारी बिहारदोहे के भावों का रोला छंद में भावानुवाद
पद्मसिंह शर्मासंजीवनी भाष्यतुलनात्मक पद्धति में अर्थ निरूपण
आनन्दीलाल शर्माफिरंगे सतसईफारसी भाषा में लिखी गई है
जगन्नाथदास रत्नाकरबिहारी रत्नाकर (1921 ई०) हिन्दी खड़ी-बोली में सर्वश्रेष्ठ टीका
मानसिंहगद्य टीका17वीं शती
असनी वाले ठाकुर द्वितीयदेवकीनंदन टीका
शुभकरण कमलअनवर चन्द्रिका
युसूफ (ईसवी) खांरसचंद्रिका टीका
प्रताप साहिरत्नचंद्रिका टीका
अमर सिंहपद्य-गद्यमय टीका
रणछोड़दास की टीका
सरदार कवि की टीका
बिहारी सतसई के टीकाकार

बिहारी सतसई का अन्य भाषा में किया गया अनुवाद

बिहारी सतसई का अन्य भाषा में किया गया अनुवाद निम्नलिखित है-

अनुवादकअनुदित नामभाषा
पंडित परमानंदश्रृंगार सप्तशतीसंस्कृत
मुंशी देवी प्रसाद ‘प्रीतम’गुलदस्त बिहारीउर्दू
आनंदीलाल शर्माफिरंगी सतसईफारसी
बिहारी सतसई का अनुवाद

बिहारी पर लिखी गई प्रमुख आलोचनात्मक ग्रंथ

बिहारी पर लिखी गई प्रमुख आलोचनात्मक ग्रंथ निम्नलिखित हैं-

लेखकरचना
कृष्ण बिहारी मिश्रदेव और बिहारी
लाला भगवानदीनबिहारी और देव
विश्वनाथ प्रसाद मिश्रबिहारी की वग्विभूति, बिहारी
जगन्नाथ रत्नाकरबिहारी रत्नाकर
रामवृक्ष वेनीपुरीबिहारी सतसई की सुबोध टीका
बिहारी पर लिखे गये आलोचनात्मक ग्रंथ
  • देव और बिहारी विवाद के जन्मदाता मिश्र बंधु (श्यामबिहारी, शुखदेव बिहारी और गणेश बिहारी)
  • बिहारी को श्रेष्ठ कवि सिद्ध करने वाले प्रमुख आलोचक पद्मसिंह शर्मा और लाला भगवानद्दीन हैं।
  • देव को बिहारी से श्रेष्ठ कवि मानने वाले प्रमुख आलोचक मिश्र बंधु और कृष्ण बिहारी मिश्र हैं।
  • बिहारीलाल के समस्त दोहों की संख्या 713 है। जगन्नाथ दास ‘रत्नाकर’ भी यही मानते हैं। वहीं ‘रामचंद्र शुक्ल’ ने 700 माना है।
  • बिहारी ने कोई लक्षण ग्रंथ नहीं लिखा परंतु उनका एकमात्र ग्रंथ ‘बिहारी सतसई’ लक्षणों के उदाहरणों के लिए जाना और स्वीकार किया जाता है।
  • बलदेव उपाध्याय ने लिखा है, “हाल ‘गाथा’ के, गोवर्धन ‘आर्या’ के तथा बिहारी ‘दोहा’ के बादशाह हैं।”

वृंद

  • वृंद का पूरा नाम वृंदावन था। इनका जन्म मेडवे में 1643 ई. में तथा मृत्यु 1723 ई. में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री रूप था।
  • वृंद के आश्रयदाता औरंगजेब तथा किशनगढ़ के महाराज राजसिंह थे।
  • हिंदी साहित्य में वृंद को सूक्तिकार के रूप में प्रतिष्ठा मिली।

वृंद की प्रमुख रचनाएँ काल क्रमानुसार निम्नांकित हैं-

रचनावर्ष (ई.)विषयवस्तु
बारहमासा1668वारहों महीनों का वर्णन
भाव पंचाशिका1686श्रृंगार के विभिन्न भावों का वर्णन
नयन पच्चीसी1686नेत्रों द्वारा प्रकट विभिन्न भावों का वर्णन
पवन पच्चीसी1691षड्ऋतु का छप्पय छंद में वर्णन
श्रृंगार शिक्षा1691आभूषण एवं श्रृंगार के साथ नायिकाओं का वर्णन
यमक मतमई1706715 छंदों में यमक अलंकार का वर्णन
वृंद की रचनाएँ

सेनापति

  • सेनापति को रामचंद्र शुक्ल ने भक्तिकाल के अंतर्गत रखा है।
  • रीतिकाल में ऋतुवर्णन के लिए सेनापति प्रसिद्ध कवि हैं।

रीतिसिद्ध काव्यधारा के अन्य कवि और उनकी रचनाएँ

रीतिसिद्ध काव्यधारा के अन्य कवियों की रचनाएँ निम्न हैं-

कविरचनाएँ
द्विजदेव1. शृंगारलतिका, 2. श्रृंगार बत्तीसी
रसनिधि (पृथ्वी सिंह)रतनहजारा (बिहारी सतसई का अनुकरण), विष्णुपद कीर्तन, कवित्त, बारहमासा, रसनिधि सागर, हिंडोला
नृप शंभुनाथ सिंह सोलंकीनायिका भेद, नखशिख, सात शतक
नेवाजशकुंतला नाटक
कृष्ण कविबिहारी सतसई की टीका, विदुर प्रजागर
हठीजीश्री राधा सुधाशतक (103 छंद में)
विक्रमादित्यविक्रम सतसई, ब्रज लीला
रामसहाय दास ‘भगत’राम सतसई, वाणी भूषण, वृत्त-तरंगिणी, ककहरा
बेनी वाजपेयीफुटकर छंद
पजनेसपजनेस प्रकाश, नखशिख, मधु प्रिया
रीतिसिद्ध काव्यधारा के अन्य कवि और उनकी रचनाएँ
  • द्विजदेव (महाराज मानसिंह) अयोध्या के महाराज थे।
  • इनके बारे में रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा है-

1. ब्रजभाषा के श्रृंगारी कवियों की परम्परा इन्हें अन्तिम प्रसिद्ध कवि समझना चाहिए। जिस प्रकार लक्षण ग्रन्थ लिखने वाले कवियों में पद्माकर अन्तिम प्रसिद्ध कवि हैं उसी प्रकार समूची श्रृंगार परम्परा में ये इनकी सी सरस और भावमयी फुटकल श्रृंगारी कविता फिर दुर्लभ हो गई।

2. ऋतु वर्णनों में इनके हृदय का उल्लास उमड़ पड़ता है।

  • रसनिधि ने रतनहजारा की रचना बिहारी सतसई के अनुकरण कर दोहे छंद में किया।
  • नेवाज अंतर्वेद के रहने वाले तथा पन्ना नरेश छत्रसाल के दरबारी कवि थे।
  • कृष्ण कवि बिहारी के प्रथम टीकाकार एवं उनके दत्तक पुत्र थे। ये जयपुर के महराज जयशाह के मंत्री आर्यमल्ल के आश्रित थे। उन्हीं के आग्रह पर उन्होंने बिहारी सतसई की टीका सवैया छंद में लिखी।
  • राम सहाय ‘भगत’ ने राम सतसई बिहारी की सतसई और ककहरा ‘जायसी’ के ‘अखारवट’ की शैली का अनुकरण है।
  • बेनी वाजपेयी की कुछ कविताओं को भारतेंदु ने अपने संपादित ग्रंथ ‘सुंदरी तिलक’ में संकलित किया है।
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