अपठित अवतरण पर आधारित प्रश्नों को हल करने हेतु निर्देश

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अपठित अवतरण का अर्थ या अभिप्राय

अधिकतर परीक्षाओं में हिंदी के ऐसे अवतरण (गद्यांश-पद्यांश) संबंधी प्रश्न पूछे जाते हैं। इन दिए गए गद्यांशों का पाठ्य पुस्तकों से संबंध नहीं होता, इसीलिए इन्हें अपठित गद्यांश कहते हैं। इस पोस्ट में ‘अपठित गद्यांश’ का अर्थ, उद्देश्य, उपयोगिता और अपठित प्रश्नों को हल करने संबंधी आवश्यक निर्देश पर क्रमवार विचार किया गया है। तो आइए ‘अपठित’ से क्या अभिप्राय है, को समझते हैं-

‘अपठित’ शब्द अंग्रेजी के ‘unseen’ का हिंदी रूपांतरण या पर्याय है। ‘अपठित’ का अर्थ है, जिसे पढ़ा न गया हो। इसी से ‘अपठित अवतरण’ (unseen Passage) बना है, जिसका अभिप्राय ऐसे अवतरण (गद्यांश-पद्यांश) से है, जिसे विद्यार्थी ने अपने पाठ्यक्रम में निर्धारित पुस्तकों में पढ़ा या तैयार न किया हुआ हो। अर्थात इसका संबंध पाठ्येतर सामग्री से है। डॉ. भगवत स्वरूप मिश्र के अनुसार, “विद्यार्थी ने जो पाठ्यक्रम में नहीं पढ़ा और उसके सामान्य ज्ञान या उपलब्धि का पता लगाने के लिए जो परीक्षा में पूछा जाता है, उसी को अपठित कहते हैं।”[1] दिए गए अपठित अनुच्छेद, अवतरण या पाठ को पढ़ कर विद्यार्थी ने कितना समझा या जाना, वह ‘पाठबोधन’ कहलाता है। ऐसे प्रश्नों के लिए गद्य या पद्य का अवतरण दे दिया जाता है, अवतरण के नीचे उससे संबंधित प्रश्न दिए होते हैं। अपठित अवतरण (unseen Passage) से निम्न प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं-


(क) अपठित अवतरण की व्याख्या

(ख) अपठित अवतरण का भावार्थ

(ग) अपठित अवतरण का सारांश

(घ) अपठित अवतरण पर आधारित प्रश्न

(ङ) अपठित अवतरण का शीर्षक

अपठित अवतरण पूछे जाने का उद्देश्य

अपठित अवतरण या अनुच्छेद की व्याख्या, भावार्थ, सारांश, शीर्षक या उससे संबंधित प्रश्न पूछे जाने के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

1. विद्यार्थी की बौद्धिक क्षमता का परीक्षण

अपठित अवतरण या अनुच्छेद से प्रश्न पूछे जाने का प्रमुख उद्देश्य विद्यार्थियों की विचार-क्षमता का परीक्षण करना होता है। “इनसे छात्रों की बौद्धिक गहराई, पहुँच और पकड़ की जाँच होती है।”[2] तात्पर्य यह है कि क्या विद्यार्थी अनुच्छेद में निहित भावों-विचारों को ग्रहण कर पाता है? क्या उसमें इतनी बौद्धिक क्षमता या सामर्थ है कि वह स्वंय उन विचारों को समझ सके?

अपठित अवतरण दो प्रकार के पूछे जाते हैं- भाव-प्रधान और विचार प्रधान। “भाव-प्रधान साहित्यिक अवतरण से उसकी संवेदनाओं की प्रबुद्धता की पहचान हो जाती है तथा विचार प्रधान आवतरणों से उसकी विचार-क्षमता की।”[3] लेकिन अपठित अवतरण या अनुच्छेद का प्रमुख उद्देश्य बौद्धिक क्षमता का परीक्षण करना ही होता है। ऐसे गद्यांशों के मूल भावों को समझने के लिए परीक्षार्थियों को बुद्धिबल का प्रयोग करना पड़ता है।

2. भाषिक ज्ञान की परख

अपठित अवतरण की व्याख्या, भावार्थ और सार लेखन से छात्र के भाषिक ज्ञान की परख होती है। चूँकि अपठित अवतरण में निहित भावों या विचारों को समझने का एकमात्र माध्यम भाषा है। अतः बिना भाषा ज्ञान के कोई भी परीक्षार्थी अनुच्छेद को न समझ सकता है और न ही प्रश्नों का जबाब दे सकता या उन पर कोई राय बना सकता है। अनुच्छेद संबंधी प्रश्नों से छात्रों के शब्द-ज्ञान और शब्द-भंडार का भी पाता चलता है। जब तक विद्यार्थी को भाषा की समझ नहीं होगी तब तक वह भावों या विचारों की गहराई को नहीं पकड सकता। अतः अपठित अवतरण के द्वारा विद्यार्थियों की भाषिक ज्ञान की परख हो जाती है।

3. संप्रेषण क्षमता का परीक्षण

अपठित अवतरण का एक प्रमुख उद्देश्य परीक्षार्थियों के संप्रेषण क्षमता का परीक्षण करना भी है। जैसे कि आपलोग जानते ही हैं की संप्रेषण कई चीजों पर निर्भर करती है, जिसमें भाषा प्रमुख है। यदि छात्र में भाषाई अभिव्यक्ति कौशल है तो उसे अनुच्छेद में आये भावों या विचारों को अभिव्यक्ति करने में आसानी होती है। यह अभिव्यक्ति क्षमता अपठित की व्याख्या, सारांश तथा भावार्थ आदि से परीक्षण हो जाता है। क्योंकि छात्रों को अनुच्छेद की व्याख्या, भावों या विचारों को अपने शब्दों में व्यक्त करना होता है। अपठित अवरतणों के माध्यम से न केवल मानसिक और बौद्धिक क्षमता की परख हो जाता है बल्कि उसके संप्रेषण क्षमता का भी परिक्षण हो जाता है।

अपठित अवतरण की उपयोगिता

अपठित अवतरणों के द्वारा छात्रों और प्रतियोगियों का वास्तविक दक्षता या बहुमुखी मूल्यांकन हो जाता है। डॉ. मुकेश अग्रवाल ने इसकी उपयोगिता निम्नलिखित बताई है-

1. लेखन-कला में निपुणता और क्रियाशीलता आती है।

2. विद्यार्थी में मानसिक और बौद्धिक क्षमताओं तथा उसके अभिव्यक्ति कौशल का विकास है।

3. इससे से विद्यार्थियों की स्मरण-शक्ति का विकास होता है।

4. इसके माध्यम से विद्यार्थी पुस्तकीय ज्ञान के इतर बाहरी दुनिया से न केवल जोड़ती है बल्कि समझ का विकास भी करती है।

5. इससे विद्यार्थी में व्यावहारिक जीवन के प्रति जिज्ञासा बढ़ती है।

6. अपठित संदर्भों से प्रश्नोत्तर लिखने की शैली का ज्ञान होता है।

7. व्याख्या एवं सार लिखने की विधि का ज्ञान होता है।

8. संप्रेषण क्षमता में विकास होता है।

9. भाषा-शैली परिमार्जित होती है।

माध्यमिक कक्षाओं से लेकर विश्वविद्यालयी पठन-पाठन के साथ यूजीसी, राज्य एवं लोक सेवा आयोग जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं तक में गद्यांश या अवतरण संबंधी प्रश्न दिए जाते हैं, जिनका संबंध पाठ्यक्रम से बाहर की पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं और समाचार पत्रों से होता है। इससे छात्रों या प्रतियोगियों की ग्रहण शक्ति एवं बौद्धिक गहराई की ही परीक्षा नहीं होती, वरन् सामान्य ज्ञान, स्वतंत्र अध्ययन, लेखन स्तर एवं भावों-विचारों को संक्षेप में प्रस्तुत करने की कला एवं क्षमता का भी मूल्यांकन होता है।

अपठित अवतरण के प्रश्नों को हल करने हेतु सामान्य निर्देश

अपठित अवतरणों से संबद्ध प्रश्नों के उत्तर देने के कुछ सामान्य नियम हैं, जो प्रश्नों को हल करने में सहायक सिद्ध होते हैं। विद्यार्थियों एवं प्रतियोगियों को प्रश्नों को हल करते समय इन्हें ध्यान में रखना चाहिए और थोड़ा सावधानी बरतना चाहिए। आइए उन विंदुओं पर क्रमवार समझते हैं-

1. अपठित अवतरण (गद्यांश/पद्यांश) में निहित भावों, विचारों को जानने के लिए उसका कई बार पठन आवश्यक है। इसलिए सर्वप्रथम मूल अवतरण को कम-से-कम दो-तीन बार पढ़ना चाहिए ताकि मूल भाव स्पष्ट हो जाए। यदि तब भी समझ में न आये तो और एक बार उसे पढ़ना चाहिए। इससे अवतरण के मूल भाव को समझने में आसानी होती है।

2. अपठित अवतरण को कई बार पढ़ने के बाद मूल भावों, विचारों तथा कठिन शब्दों को रेखांकित करना चाहिए।

3. अवतरण के कठिन शब्दों के अर्थ ज्ञात न होने पर घबराना नहीं चाहिए, बल्कि प्रसंगानुकूल अर्थ लगाने का प्रयास करना चाहिए। शब्दार्थ ज्ञान जितना अधिक होगा, अपठित को समझने में उतनी ही आसानी होगी और अवतरण का मूल भाव शीघ्रता से समझ आ जाएगा। इसलिए छात्रों को चाहिए कि वे अपने शब्द-भंडार में निरन्तर वृद्धि करते रहें।

4. अधिकतर शब्दों के कई अर्थ होते हैं, लेकिन अवतरण के प्रसंग के अनुकूल ही अर्थ ग्रहण करना चाहिए।

5. शब्द और वाक्य में अविच्छिन्न संबंध होता है। कहीं-कहीं शब्द ही पूरे प्रसंग को उजागर कर देते हैं और कहीं-कहीं वाक्य अनजाने शब्द का अर्थ भी प्रकट कर देते हैं। अतः शब्द और वाक्य के संबंध को ध्यान में रखकर अवतरण को पढ़ना चाहिए।

6. सभी प्रश्नोत्तर प्रसंगानुकूल होने चाहिए। अनावश्यक शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए। प्रश्न जितना पूछा गया हो, उत्तर उतना ही देना चाहिए।

7. प्रश्नोत्तर लिखते समय मूल में दिए गए शब्दों का ही यथासंभव प्रयोग करना चाहिए।

8. प्रश्नों के उत्तर मूल अवतरण में ही ढूँढ़ना चाहिए, बाहर नहीं। क्योंकि प्रश्नों के उत्तर अवतरण में ही निहित होते हैं। 

उन्हें भली-भाँति समझकर अपने शब्दों में लिखना चाहिए।

9. यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि सभी प्रश्नों के उत्तर सरल और संक्षिप्त हों। प्रश्नों के उत्तर न अत्यधिक लम्बे होने चाहिए और न ही असम्बद्ध।

10. प्रश्नोत्तर लिखते समय अपनी ओर से बढ़ा-चढ़ाकर लिखना या अतिरिक्त उदाहरण नहीं देना चाहिए। मौलिकता के नाम पर अपनी ओर से उत्तर में कुछ नहीं लिखने चाहिए।

11. अपठित अवतरण की व्याख्या सरल और सहज भाषा में करनी चाहिए। व्याख्या में यथासम्भव अपनी भाषा का प्रयोग करना चाहिए। अवतरण की शब्दावली के प्रयोग का मतलब होता है की विद्यार्थी का शब्द-भंडार समृद्धि नहीं है।

12. व्याख्या में न तो किसी अनावश्यक बात का समावेश होना चाहिए और न ही कोई महत्त्वपूर्ण बात छूटना चाहिए।

13. यदि अपठित गद्यांश का भावार्थ या सारांश पूछा जाए, तो उसे मूल का आधा या तिहाई होना चाहिए। किंतु, भाषा सर्वथा मौलिक होनी चाहिए।

14. अपठित का सार लिखते समय पुनरुक्तियों को छोड़ देना चाहिए। ‘भाव यह है’, ‘तात्पर्य यह है’, ‘सारांश यह हुआ’, ‘अर्थात्’ आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इनका प्रयोग सिर्फ व्याख्या में किया जा सकता है।

15. सार लिखते समय अनेक शब्दों की जगह एक शब्द और सरल पर्यायवाची तथा विलोम शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। उदाहरणों, अलंकारों, दृष्टान्तों आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए। सारांश में मूल अवतरण की मुख्य बातों का समावेश होना चाहिए।

16. यदि रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखने के लिए कहा गया हो, तो वे प्रसंगानुकूल होने चाहिए।

17. यदि मूल गद्यांश का शीर्षक देने के लिए कहा जाए, तो उसके केंद्रीय भाव की खोज करनी चाहिए। अवतरण को बार-बार पढ़कर यह देखना चाहिए कि लेखक ने किस बात पर अधिक बल दिया है।

18. दिए गए गद्यांश के आरंभ या अंत में शीर्षक छिपा होता है। किन्तु इस संबंध में यह ध्यान रखना आवश्यक चाहिए कि शीर्षक का संबंध पूरे अवतरण से होता है, न कि केवल उसके आरम्भिक और अंतिम वाक्यों से।

19. शीर्षक अत्यंत संक्षिप्त, आकर्षक और सरल होना चाहिए। उसके शब्द मूल गद्यांश से भी ज्यों-के-त्यों लिए जा सकते हैं।

20. प्रश्नकर्ता के निर्देशानुसार ही परीक्षार्थी को अपना मत या विचार व्यक्त करना चाहिए, अन्यथा नहीं।

21. वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर के लिए चार विकल्प मौजूद होते हैं, जिसमें इक ही विकल्प सही होता है। शेष विकल्प उत्तर के निकट या भ्रामक होते हैं। प्रतियोगी को प्रत्येक विकल्प पर विचार करके देखना चाहिए की प्रश्न और गद्यांश के साथ किसके अर्थ की संगति बैठ रही है।


[1] हिंदी भाषा: विकास एवं व्यावहारिक प्रयोजन- मुकेश अग्रवाल, पृष्ठ- 136

[2] आधुनिक हिंदी व्याकरण और रचना- वासुदेवनंदन प्रसाद, पृष्ठ- 309

[3] हिंदी भाषा: विकास एवं व्यावहारिक प्रयोजन- मुकेश अग्रवाल, पृष्ठ- 137

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