वाक्य: परिभाषा, भेद और उदाहरण | वाक्य विचार

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वाक्य

दो या दो से अधिक शब्दों के सार्थक समूह को वाक्य कहते हैं। “वाक्य पदों का वह व्यवस्थित समूह है, जिसमें पूर्ण अर्थ देने की शक्ति है।”[1] इस प्रकार जिस शब्द समूह से कोई एक बात पूरी तरह समझ में आ जाए, उसे ‘वाक्य’ कहते हैं। जैसे-

(क) राम ने रावण को वाण से मारा।

(ख) विद्या मनुष्य को नम्रता सिखाती है।

वाक्य के अंग

उद्देश्य और विधेय वाक्य के अनिवार्य अंग या खंड होते हैं।

1. उद्देश्य

वाक्य में जिसके विषय में कुछ कहा जाए, उसे सूचित करने वाले शब्दों को ‘उद्देश्य’ कहते हैं। उद्देश्य प्राय: ‘कर्ता’ होता है। जैसे-

(क) लड़का खेल रहा है।

(ख) राम दौड़ रहा है।

(ग) सुरेश पढ़ रहा है।

उपरोक्त वाक्यों में ‘लड़का’, ‘राम’ और ‘सुरेश’ उद्देश्य हैं; क्योंकि इनके बारे में कुछ कहा गया है।

उद्देश्य की रचना प्राय: चार प्रकार से होती है-

(i) संज्ञा से- रामसिंह चढ़ा।

(ii) सर्वनाम से- वह चढ़ा।

(iii) विशेषण से- सवार चढ़ा।

(iv) वाक्यांश से- स्वतंत्रता का पुजारी चढ़ा।

उपरोक्त वाक्यों में उद्देश्य वाचक शब्द भले ही अलग-अलग हों; किंतु उद्देश्य और विधेय एक ही हैं।

2. विधेय

वाक्य में ‘उद्देश्य’ के बारे में जो कुछ कहा जाए; उसे सूचित करने वाले शब्द को ‘विधेय’ कहते हैं। उदाहरण-

(क) लड़का खेल रहा है।

(ख) राम दौड़ रहा है।

(ग) सुरेश पढ़ रहा है।

उपरोक्त वाक्यों में ‘खेल रहा है’, ‘दौड़ रहा है’ और ‘पढ़ रहा है’ विधेय हैं; क्योंकि इनके द्वारा उद्देश्य के बारे में कुछ कहा जा रहा है।

#कई बार वाक्य में उद्देश्य प्रकट रूप में दिखाई नहीं देता है; जैसे-

    उद्देश्य   विधेय

(क) (आप)      खाना खाइए।

(ख) (तुम)      यहाँ आओ।

उपरोक्त वाक्यों में उद्देश्य का लोप है। ‘आप’ और ‘तुम’ के बिना भी ये वाक्य पूर्ण हैं। लेकिन दोनों शब्द वाक्य में अप्रगट रूप में निहित हैं।

#इसी प्रकार कई बार वाक्य में विधेय भी प्रकट रूप में दिखाई नहीं देता है; जैसे-

कोई पूछता है- ‘बैंक कौन गया है?’

उत्तर मिलता है- ‘रमेश’

जबकि उत्तर में पूरा वाक्य होता- ‘रमेश बैंक गया है।’ परन्तु यहाँ ‘बैंक गया है’ विधेय का लोप है। इसलिए विधेय का यह अंग वाक्य में अप्रगट रूप में निहित है।

इस प्रकार वाक्य के दो अंग होते हैं- उद्देश्य और विधेय। उद्देश्य प्राय: वाक्य के आरम्भ में और विधेय उद्देश्य के बाद होता है। उद्देश्य और विधेय में कर्ता और क्रिया अनिवार्य अंग हैं, किंतु इनमें कर्म, पूरक, अधिकरण आदि की भी आवश्यकता रहती है। “कर्ता और उसके विस्तार को उद्देश्य कहते हैं, एवं क्रिया और उसके (कर्म सहित) विस्तार को विधेय कहते हैं।”[2]

उद्देश्य वर्धक (उद्देश्य का विस्तार)

जो शब्द उद्देश्य या कर्ता के अर्थ में विस्तार कर देते हैं, ये शब्द ‘उद्देश्य वर्धक’ कहलाते हैं। जैसे-

‘काली गाय सुंदर है’।

उपरोक्त वाक्य से पता चलता है कि गाय केवल गाय नहीं है बल्कि वह काली भी है। अंत: इस वाक्य में ‘काली’ उद्देश्य वर्धक शब्द है।

उद्देश्य वर्धक चार प्रकार के होते हैं-

(i) विशेषण से- अच्छा विद्यार्थी शिक्षक की आज्ञा मानता है।

(ii) संबंध कारक से- दर्शकों की भीड़ बढ़ गई।

(iii) समानाधिकरण से- राजा अमरसिंह चढ़ा।

(iv) वाक्यांस से- देश के लिए लड़ना उत्तम है।

विधेय वर्धक (विधेय का विस्तार)

जिन शब्दों के द्वारा विधेय के अर्थ में विस्तार होता है; उन्हें ‘विधेय वर्धक’ कहते हैं। जैसे-

घोड़ा सरपट दौड़ा।

उपरोक्त वाक्यांश से पता चलता है कि घोड़ा साधारण रूप में नहीं दौड़ा है; अपितु वह सरपट दौड़ लगाया है। इसलिए इस वाक्य में ‘सरपट’ विधेय वर्धक शब्द है।

निम्नलिखित शब्द भेदों से विधेय का विस्तार होता है-

(i) यदि क्रिया सकर्मक हो तो क्रिया के कर्म से; जैसे- सुनीता पुस्तक पढ़ती है।

(ii) यदि क्रिया अकर्मक हो तो क्रिया के पूरक से; जैसे- राजेश चोर निकला।

(iii) क्रिया विशेषण से; जैसे- बस अभी आई है।

(iv) पूर्वकालिक कृदंत; जैसे- सिपाही भागकर पहुँचा।

(v) तत्काल बोधक कृदंत; जैसे- चश्मा टूटते-टूटते बचा।

(vi) संबंध सूचक शब्द; जैसे- अध्यापक कुर्सी समेत गिर गया।

(vii) विशेषण; जैसे- सैनिक लाल घोड़े पर चढ़ा।

(viii) वाक्यांश; जैसे- मैं कल या परसों तक आऊँगा।

(ix) कारक संबंधी विशेषण-

(क) करण; जैसे- राम ने हाँकी से श्याम को मारा।

(ख) सम्प्रदान; जैसे- मुकेश तुम्हारे लिए मोबाइल लाया है।

(ग) अपादान; जैसे- सिपाही युद्ध से भागता है।

(घ) संबंध; जैसे- वह सरिता का भाई है।

(ड़) अधिकरण; जैसे- सैनिक युद्ध में लड़ता है।

वाक्यांश या पदबंध

“वाक्य के उस भाग को, जिसमें एक से अधिक पद परस्पर संबद्ध होकर अर्थ तो देते हैं किंतु पूरा अर्थ नहीं देते, वाक्यांश या पदबंध कहते हैं।”[3] अर्थात शब्दों के ऐसे समूह को जिसका अर्थ तो निकलता है किंतु पूरा अर्थ नहीं निकलता, वाक्यांश कहलाता है। रचना की दृष्टि से वाक्यांश में तीन बातें महत्वपूर्ण होती हैं-

(i) इसमें एक से अधिक पद होते हैं।

(ii) ये पद इस तरह से संबंद्ध होते हैं कि उनसे एक इकाई बन जाती है।

(iii) वाक्यांश किसी वाक्य का अंश होता है।

पदबंध का शब्द क्रम निश्चित होता है। शब्द भेद की तरह पदबंध भी 8 प्रकार के होते हैं।

1. संज्ञा पदबंध

जो पदबंध वाक्य में संज्ञा का कार्य करता है वह संज्ञा पदबंध कहलाता है। संज्ञा पदबंध में कम से कम एक संज्ञा का होना आवश्यक है, शेष अंश उसका विस्तार है। जैसे- इस गाँव के लोग, भारत के प्रधान मंत्री, मिटटी का तेल, इतने धनी-मानी व्यक्ति।

2. सर्वनाम पदबंध

जो पदबंध वाक्य में सर्वनाम का कार्य करता है वह सर्वनाम पदबंध कहलाता है। जैसे- वह बेचारा, मुझ अभागे ने, दैव का मारा वह।

3. विशेषण पदबंध

जब कोई पदबंध किसी संज्ञा की विशेषता बताए तो उसे विशेषण पदबंध कहते हैं। जैसे- बहुत ईमानदार (व्यक्ति), चाँदी से भी प्यारा (मुखड़ा), एक किलोभर (आटा), नाली में बहता हुआ (पानी)।

4. क्रिया पदबंध

जो पदबंध वाक्य में क्रिया का कार्य करता है वह क्रिया पदबंध कहलाता है। जैसे- जाता रहता था, कहा जा सकता है, लौटकर कहने लगा।

5. क्रिया विशेषण पदबंध

जो पदबंध वाक्य में क्रिया विशेषण का कार्य करता है वह क्रिया विशेषण पदबंध कहलाता है। जैसे- जमीन पर लोटते हुए (चिल्लाया), पहले बहुत धीरे (बोलने वाला), घर से होकर (आऊँगा), बड़ी सावधानी से।

6. संबंध बोधक पदबंध

जैसे- में से, बाहर की ओर।

7. समुच्चय बोधक पदबंध

जैसे- क्योंकी, इसलिए कि।

8. विस्म्यादी बोधक

जैसे- बहुत अफसोस!, हाय रे!

उपवाक्य और पदबंध में अंतर

“उपवाक्य भी पदबंध की तरह पदों का समूह है, लेकिन इससे केवल आंशिक भाव प्रगट होता है, पूरा नहीं।”[4] पदबंध में क्रिया नहीं होती लेकिन उपवाक्य में होती है। जैसे- ‘ज्यों ही वह आया, त्यों ही मैं चला गया।’ यहाँ ‘ज्यों ही वह आया’ एक उपवाक्य है, जिससे पूर्ण अर्थ की प्रतीत नहीं होता।

उपवाक्य

सार्थक शब्दों के समूह को वाक्य कहते हैं, जिसमें कर्ता (उद्देश्य) और क्रिया (विधेय) दोनों होते हैं। वाक्य में कर्ता और क्रिया को अपनी-अपनी जगह होना चाहिए। जैसे- राम खेलता है।

कुछ वाक्यों में कई वाक्य होते हैं; जिसमें एक प्रधान वाक्य होता है और शेष उपवाक्य। जैसे- राम ने कहा कि मैं खेलूँगा।

इसमें ‘राम ने कहा’ प्रधान वाक्य है और ‘कि मैं खेलूँगा’ उपवाक्य है। अर्थात “ऐसा पदसमूह, जिसका अपना अर्थ हो, जो एक वाक्य का भाग हो और जिसमें उद्देश्य और विधेय हों, उपवाक्य कहलाता है।”[5] उपवाक्य के आरंभ में अधिकतर कि, जो, जब, यदि, जहाँ, ताकि, चूँकि, जिससे, क्योंकि, यद्यपि, ज्यों-त्यों आदि होते हैं।

उपवाक्य तीन प्रकार के होते हैं-

(i) संज्ञा उपवाक्य

जो उपवाक्य वाक्य में संज्ञा का काम करते हैं वे संज्ञा उपवाक्य कहलाते हैं। इस उपवाक्य के पहले ‘कि’ या ‘जो’ का प्रयोग होता है किंतु कभी-कभी ‘कि’ का लोप भी हो जाता है; जैसे-

(क) अलोक ने कहा कि मैं पढूँगा

(ख) यही कारण है जो मैं बीमार पड़ गया।

(ग) तुम नहीं आओगे, मैं जानता था।

(ii) विशेषण उपवाक्य

जो उपवाक्य मुख्य उपवाक्य में प्रयुक्त किसी संज्ञा की विशेषता बताता है, वह विशेषण उपवाक्य कहलाता है। जो, जिसे, जिस, जैसा, जितना आदि वाले उपवाक्य प्राय: विशेषण उपवाक्य होते हैं; जैसे-

(क) जिसे आप ढूँढ़ रहे हैं, वह मैं नहीं हूँ।

(ख) लाल धब्बों वाला कुत्ता मेरा है।

(ग) वह आदमी जो कल आया था, आज भी आया है।

(iii) क्रियाविशेषण उपवाक्य

जो उपवाक्य सामान्यत: मुख्य उपवाक्य की क्रिया की विशेषता बताता है, वह क्रियाविशेषण उपवाक्य कहलाता है। अर्थात् क्रिया-विशेषण ऐसे शब्दों का समूह है, जो अपना विशेष उद्देश्य और विधेय रखता है तथा क्रिया विशेषण का कार्य करता है। इसमें जब, जहाँ, जैसा, जिधर, ज्यों, यद्यपि आदि समुच्चयबोधक अव्यय प्रयुक्त होते हैं; जैसे-

(क) जब बारिश हो रही थी, तब मैं घर में नहीं था।

(ख) बारिस आने पर, वे एक घर में छिप गए।

(ग) जैसा आपने कहा था, वैसा मैंने किया।

वाक्य के भेद

वाक्यों का विभाजन मुख्यत: दो आधारों पर किया जाता है-

(i) रचना के आधार पर, (ii) अर्थ के आधार पर

(i) रचना के आधार पर वाक्य के भेद

रचना के आधार पर वाक्य तीन प्रकार के होते हैं-

1. सरल वाक्य, 2. मिश्र वाक्य और 3. संयुक्त वाक्य

1. सरल वाक्य (simple sentensce)

जिस वाक्य में एक क्रिया होती है और एक कर्ता होता है, उसे ‘साधारण वाक्य’ या ‘सरल वाक्य’ कहते हैं। इसमें एक ‘उद्देश्य’ और एक ‘विधेय’ होता है। जैसे-

(क) बच्चा दूध पीता है।

(ख) बिजली चमकती है।

(ग) राजेश बीमार है।

(घ) कृष्ण ने कंस को मारा।

(ड़) शीला आपको अपना बड़ा भाई मानती है।

2. मिश्र वाक्य (complex sentence)

जिस वाक्य में एक मुख्य या स्वतंत्र उपवाक्य हो और एक या अधिक गौण या आश्रित उपवाक्य हो, उसे ‘मिश्र वाक्य’ या ‘मिश्रित वाक्य’ कहते हैं। दूसरे शब्दों में, जिस वाक्य में मुख्य उद्देश्य और मुख्य विधेय के अलावा एक या अधिक समापिका क्रियाएँ होती हैं, उसे मिश्र वाक्य कहते हैं। ‘मिश्र वाक्य’ को ‘जटिल वाक्य’ भी कहा जाता है। मिश्र वाक्य के उपवाक्य- कि, जैसा-वैसा, जो-वह, जब-तब, क्योंकि, यदि-तो आदि व्यधिकरण योजकों से जुड़े होते हैं। जैसे–

(क) जब वह आयेगा तब मैं घर चला जाऊँगा।

(ख) अध्यापक ने बताया कि कल स्कूल में छुट्टी होगी।

(ग) यदि इस बार वर्षा न हुई तो सारी फसल नष्ट हो जाएगी।

(घ) जो मेहनत करता है, वह फल पाता है।

(ड़) वह कौन-सा मनुष्य है, जिसने महाप्रतापी राजा भोज का नाम न सुना हो।

उपर्युक्त वाक्यों में ‘जब वह आयेगा’, ‘अध्यापक ने बताया’, ‘सारी फसल नष्ट हो जाएगी’, ‘वह फल पाता है’ और ‘वह कौन-सा मनुष्य है’ मुख्य उपवाक्य और ‘तब मैं घर चला जाऊँगा’, ‘कल स्कूल में छुट्टी होगी’, ‘इस बार वर्षा न हुई’, ‘जो मेहनत करता है’ और ‘जिसने महाप्रतापी राजा भोज का नाम न सुना हो’ आश्रित उपवाक्य हैं।

3. संयुक्त वाक्य (compound sentence)

जिस वाक्य में दो या दो से अधिक मुख्य अथवा स्वतंत्र वाक्य हों, उसे ‘संयुक्त वाक्य’ या ‘यौगिक वाक्य’ कहते हैं। अर्थात जिसमें दो या दो से अधिक सरल वाक्य या मिश्र वाक्य अव्ययों द्वारा संयुक्त हों वे संयुक्त वाक्य कहलाते हैं।

कामता प्रसाद गुरु के शब्दों में “जिस वाक्य में साधारण और मिश्र वाक्यों का मेल रहता है, उसे संयुक्त वाक्य कहते हैं।”[6] संयुक्त वाक्य का प्रत्येक वाक्य अपनी स्वतंत्र सत्ता बनाए रखता है, एक दूसरे पर आश्रित नहीं होते। जैसे-

(क) हम दिल्ली गये और वहाँ तीन दिन रहे। (दोनों सरल और स्वतंत्र वाक्य)

(ख) वह आया और उसने देखा कि भीतर कोई नहीं है। (पहला स्वतंत्र दूसरा मिश्र वाक्य)

(ग) मैं रोटी खाकर लेता था कि पेट में दर्द होने लगा, और दर्द इतना बढ़ा कि तुरंत डॉक्टर को बुलाना पड़ा। (दोनों मिश्र वाक्य)

संयुक्त वाक्य के दो उपवाक्यों में से एक उपवाक्य के कुछ अंश कभी-कभी लुप्त हो जाते हैं। ऐसा तब होता है जब एक ही वाक्य के दो उपवाक्यों में समान शब्द आता है; जैसे-

(क) माता जी प्रात: चाय पीती हैं और (माता जी) सांयकाल को कॉफी (पीती हैं)।

(ख) अभिषेक कल दिल्ली जाएगा और रमेश मुंबई (जाएगा)।

(ii) अर्थ के आधार पर वाक्य के भेद

अर्थ के आधार पर वाक्य के 8 भेद हैं–

1. विधिवाचक, 2. निषेधवाचक, 3. आज्ञावाचक, 4. प्रश्नवाचक, 5. विस्मयवाचक, 6. संदेहवाचक, 7. इच्छावाचक, 8. संकेतवाचक।

1. विधिवाचक वाक्य

जिस वाक्य से किसी बात के होने का बोध हो, वह विधिवाचक वाक्य कहलाता है। जैसे-

(क) भारत एक महान देश है।

(ख) सुशील पटना गया हुआ है, कल लौट कर आएगा।

(ग) मैंने सेब खाया और मेरी भूख मिट गई।

2. निषेधवाचक वाक्य

जिस वाक्य से किसी बात के न होने का बोध हो, वह निषेधवाचक वाक्य कहलाता है। जैसे-

(क) मैं कॉलेज नहीं गया।

(ख) मैं कॉलेज नहीं गया, इसलिए मैं पास नहीं हुआ।

(ग) मैं स्कूल नहीं गया और इसीलिए मेरे अधिक नंबर नहीं आये।

3. आज्ञावाचक वाक्य

जिस वाक्य से आज्ञा, उपदेश अथवा आदेश देने का बोध हो, वह आज्ञावाचक वाक्य कहलाता है। जैसे-

(क) तुम खाओ।

(ख) कृपया घर चले जाइए।

(ग) यहाँ शोर मत करो।

(घ) शीघ्र जाओ वरना गाड़ी छूट जाएगी।

4. प्रश्नवाचक वाक्य

जिस वाक्य से प्रश्न किए जाने का बोध हो, वह प्रश्नवाचक वाक्य कहलाता है। जैसे-

(क) उसका नाम क्या है?

(ख) वह कहाँ चला गया?

(ग) क्या आप कल मेरे यहाँ आए थे?

(घ) क्या तुम खा रहे हो?

5. विस्मयवाचक वाक्य

जिस वाक्य से सुख, दुःख, आश्चर्य आदि का बोध हो, वह विस्मयवाचक वाक्य कहलाता है। जैसे-

(क) अहा! कितना सुंदर दृश्य है।

(ख) ओह! मेरा सिर फटा जा रहा है।

(ग) हैं! तुम पास हो गये।

(घ) छि! कितना गंदा स्थान है।

6. संदेहवाचक वाक्य

जिस वाक्य से संदेह, शंका, संभावना आदि का बोध हो, वह संदेहवाचक वाक्य कहलाता है। जैसे-

(क) शायद माताजी आ जायँ।

(ख) उसने खा लिया होगा।

(ग) मेमा मुझे भूल चुकी होगी।

(घ) वह लिखता होगा, पर हमें क्या मालूम?

7. इच्छावाचक वाक्य

जिस वाक्य से किसी प्रकार की इच्छा, शुभकामना या आशीर्वाद का बोध हो, वह इच्छावाचक वाक्य कहलाता है। जैसे-

(क) दीर्घायु हो।

(ख) चलो, घूमने चलें।

(ग) तुम अपने कार्य में सफल रहो।

(घ) आपकी यात्रा मंगलमय हो।

8. संकेतवाचक वाक्य

जिस वाक्य से संकेत का बोध हो, वह संकेतवाचक वाक्य कहलाता है। इसमें एक बात या कार्य का होना या न होना किसी दूसरी बात या कार्य के होने या न होने पर निर्भर होता है। यह सदैव मिश्र वाक्य होता है। जैसे-

(क) काश, मैं वहाँ होता।

(ख) यदि वर्षा होती तो फसल होती।

(ग) पानी न बरसता तो धान सूख जाता।

(घ) नौकरी मिल जाती तो मेरा संकट कट जाता।


[1] शिक्षार्थी व्याकरण और व्यावहारिक हिंदी- स्नेह लता प्रसाद, पृष्ठ- 94

[2] व्यावहारिक हिंदी व्याकरण- हरदेव बाहरी, पृष्ठ- 165

[3] वही, पृष्ठ- 162

[4] आधुनिक हिंदी व्याकरण और रचना- वासुदेवनंदन प्रसाद, पृष्ठ- 214

[5] वही

[6] हिंदी व्याकरण- कामता प्रसाद गुरु, पृष्ठ- 408

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