यूजीसी साहित्यिक चोरी नीति 2018 क्या है? | ugc guidelines for plagiarism 2018

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यूजीसी साहित्यिक चोरी नीति 2018 क्या है?

मित्रों यदि आप शोधार्थी हैं और एम.फिल या पीएच.डी. कर रहे, करने का विचार कर रहे हैं अथवा उच्चतर शिक्षा संस्थानों में अकादमिक क्रिया-कलाप या शिक्षण से जुड़े हुए हैं, जुड़ने वाले हैं तो यह पोस्ट आपके लिए है। चूँकि hindisarang.com का अधिक्तर पाठक इसी से जुड़ा हुआ है इसीलिए यहाँ यह पोस्ट दिया जा रहा है। इसे आपको जरूर पढ़ना चाहिए। क्योंकी यह पोस्ट विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की प्लेगरिज्म अधिसूचना 2018 से संबंधित है। इस पोस्ट में हम, ugc plagiarism का Notification 2018 क्या है? यूजीसी विनियम 2018 का उद्देश्य क्या हैं? साहित्यिक चोरी (प्लेगरिज्म) किसे कहते हैं? भारत में साहित्यिक चोरी (plagiarism rules in india) का नियम क्या है? प्लेगरिज्म (plagiarism) रोकने के लिए क्या-क्या प्रावधान किए गए हैं? साहित्यिक चोरी (Plagiarism) साबित होने पर दंड के क्या प्रावधान हैं?, आदि विषयों पर बात करेंगे। ugc साहित्यिक चोरी नीति 2018 pdf भी download कर सकते हैं, पीडीफ का लिंक नीचे दिया गया है। ध्यान देने योग्य बात यह है की ugc plagiarism policy 2018 भारत सरकार के राजपत्र में ‘ugc साहित्यिक चोरी राजपत्र अधिसूचना 2018’ 23 जुलाई 2018 को अधिसूचित हुआ है। वर्तमान समय में यही विनियम लागू है।


उच्चतर शिक्षा संस्थानों में अकादमिक सत्यनिष्ठा एवं साहित्यिक चोरी (प्लेगरिज्म) की रोकथाम को प्रोत्साहन हेतु विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) विनियम, 2018 लागू है। जिसका उद्देश्य ‘अकादमिक सत्यनिष्ठा’ को बनाए रखना और ‘साहित्यिक चोरी’ (Plagiarism) को हतोत्साहित करना है। यहाँ पर ‘अकादमिक सत्यनिष्ठा’ से तात्पर्य, किसी क्रियाकलाप को प्रस्तावित करने, निष्पादित करने, सूचित करने एवं बौद्धिक ईमानदारी से है, जिससे बौद्धिक गुणों का सृजन हो सके। इसे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (उच्चतर शिक्षा संस्थानों में अकादमिक सत्यनिष्ठा एवं साहित्यिक चोरी की रोकथाम को प्रोत्साहन) विनियम, 2018 (UGC Notification for Plagiarism 2018) कहा जाता है।

साहित्यिक चोरी क्या है?

‘साहित्यिक चोरी’ (Plagiarism) से अभिप्राय किसी अन्य के द्वारा किए गए कार्य, विचार, उपाय या शैली आदि को अधिकांशतः नकल करते हुए अपने मौलिक कृति के रूप में प्रकाशन करना है। साहित्यिक चोरी तब मानी जाती है जब हम किसी के द्वारा लिखे गए साहित्य को बिना उसका सन्दर्भ दिए अपने नाम से प्रकाशित कर लेते हैं। यह Plagiarism सभी प्रकार के पांडुलिपियों पर लागू होता है। ‘पाण्डुलिपि’ के अंतर्गत शोध-लेख, शोध-निबंध, शोध-पत्र, पुस्तकों में अध्याय, सम्पूर्ण पुस्तकें तथा अन्य समान कार्य का मूल्यांकन / अभिमत हेतु जमा किया जाने वाला कार्य जो उच्चतर शिक्षा संस्थान के छात्रों या संकाय या शोधकर्ता या कर्मचारी द्वारा निष्णात एवं शोध स्तर की डिग्रियों को प्राप्त करने या प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रकाशन हेतु तैयार किया जाए। तथापि, इसमें नियत कार्य / आवधिक पत्र परियोजना रिपोर्ट / पाठ्यक्रम संबंधी कार्य / निबंध तथा उत्तर पुस्तिकाएं शामिल नहीं होंगी। भारत में साहित्यिक चोरी का नियम यही है।

साहित्यिक चोरी के स्तर:

यूजीसी अधिसूचना (ugc plagiarism 2018) के अनुसार, साहित्यिक चोरी को परिभाषित करने के प्रयोजनार्थ उसकी गंभीरता के बढ़ते क्रम में साहित्यिक चोरी को निम्नवत स्तरों में मापा गया है-
1. स्तर शून्य: दस प्रतिशत तक समानता- थोड़ी बहुत समानताएं, कोई दण्ड नहीं।
2. प्रथम स्तर: दस प्रतिशत से चालीस प्रतिशत तक समानताएं।
3. द्वितीय स्तर: चालीस प्रतिशत से साठ प्रतिशत तक समानताएं।
4. तृतीय स्तर: साठ प्रतिशत से अधिक समानताएं।

यूजीसी प्लेगरिज्म विनियम 2018 का उद्देश्य:

ugc साहित्यिक चोरी संबंधी दिशानिर्देश यूजीसी प्लेगरिज्म विनियम 2018 के माध्यम से स्पष्ट कर दिया है। यूजीसी ने अपनी अधिसूचना (ugc plagiarism 2018) में निम्नलिखित उद्देश्य स्पष्ट रूप से दिया है-
1. शोध, शोध-पत्र, शोध- निबंध के दायित्वपूर्ण आचरण, अकादमिक सत्यनिष्ठा के प्रोत्साहन के प्रति जागरूकता पैदा करना, छात्र संकाय, शोधकर्ता एवं कर्मचारी वर्ग में अकादमिक लेखन में साहित्यिक चोरी सहित कदाचार से बचाव करना।
2. शिक्षण एवं प्रशिक्षण के जरिये, संस्थानात्मक तंत्र स्थापित करना, जिससे शोध, शोध-पत्र, शोध निबंध, अकादमिक सत्यनिष्ठा तथा साहित्यिक चोरी के निवारण में प्रोन्नति सहज हो सके।
3. साहित्यिक चोरी का पता लगाने के लिए पद्दतियां विकसित करना तथा साहित्यिक चोरी से बचाव के लिए रचना-तंत्र की स्थापना करना तथा उच्चतर शिक्षा संस्थान के छात्र, संकाय, शोधकर्ता या कर्मचारी को साहित्यिक चोरी का कृत्य करने पर दण्डित करना।

उच्चतर शिक्षा संस्थान के दायित्व:

ugc plagiarism 2018 विनियम में उच्चतर शिक्षा संस्थान के दायित्व निर्धारित किया गया है। Notification के अनुसार प्रत्येक उच्चतर शिक्षा संस्थान को एक ऐसे तंत्र की स्थापना करनी चाहिए जैसा कि इन विनियमों में निर्दिष्ट किया गया है, जो कि शोध एवं अकादमिक कार्यकलापों के दायित्वपूर्ण आचरण के प्रति जागरूकता लाने में संवर्धन करे, साथ ही अकादमिक सत्यनिष्ठा को प्रोन्‍नत करे तथा साहित्यिक चोरी से बचाव करे।

साहित्यिक चोरी (प्लेजराइज़्म) पर रोकथाम:

यूजीसी साहित्यिक चोरी संबंधी दिशानिर्देश (ugc plagiarism policy 2018) में प्लेजराइज़्म के रोकथाम पर लगाम लगाने का प्रयास किया गया है जो निम्नलिखित है-
1. उच्चतर शिक्षा संस्थान, उपयुक्त सॉफटवेयर प्रयुक्त करते हुए प्रौद्योगिकी आधारित रचनातंत्र की घोषणा एवं कार्यान्वयन करेगा, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि शोध-पत्र, शोध-निबन्ध, प्रकाशन या कोई अन्य दस्तावेज उसकी प्रस्तुति के समय साहित्यिक चोरी से मुक्त हैं।
2. ऊपर में वर्णित रचनातंत्र, शोधकार्य में संलिप्त सभी छात्रों को उपलब्ध कराया जाएगा जिसमें छात्र, संकाय शोधकर्ता एवं कर्मचारी सदस्य आदि भी सम्मिलित होंगे।
3. प्रत्येक छात्र, जो शोध-पत्र, शोध-निबंध या समान दस्तावेज, उच्चतर शिक्षा संस्थान को प्रस्तुत करने जा रहा है, वह एक ऐसा वचन-बंध प्रस्तुत करेगा जिसमें यह दर्शाया जाएगा कि प्रस्तुत दस्तावेज उसके द्वारा तैयार किया गया है तथा यह दस्तावेज उसका मौलिक लेखन कार्य है तथा किसी भी प्रकार की साहित्यिक चोरी से मुक्त है।
4. इस वचन-बंध में यह तथ्य भी शामिल किया जाएगा कि इस दस्तावेज की उच्चतर शिक्षा संस्थान द्वारा प्लेजराइज़्म (साहित्यिक चोरी) का पता लगाने वाले उपकरणों के जरिये विधिवत जाँच कर ली गई है।
5. संस्थान, साहित्यिक चोरी के संबंध में एक ऐसी संबंधित नीति का विकास करेगा तथा इससे संबंधित विधायी निकायों / प्राधिकरणों से उसे स्वीकृत कराएगा। स्वीकृत नीति को प्लाशय वेबसाइट के होमपेज पर डाउनलोड किया जाएगा।
7. प्रत्येक पर्यवेक्षक, एक प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करेगा जिसमें यह निर्दिष्ट किया जाएगा कि शोधकर्ता द्वारा किया गया अमुक कार्य, शोधकर्ता के द्वारा तथा मेरे अधीन रहकर किया गया है तथा यह साहित्यिक चोरी (Plagiarism) से मुक्त है।
8. संस्थान, सभी निष्णात, शोध पाठयक्रम के शोध-पत्रों तथा शोध- निबंधों को, डिग्री प्रदान किए जाने के पश्चात्‌ 4 माह के भीतर ‘शोध गंगा ई-रिपोजिटरी’ के अंतर्गत डिजीटल रिपोजिटरी को पोषित करने हेतु इनफ्लीबनेट पर इसकी सॉफ्ट प्रतियां प्रस्तुत करेगा।
9. संस्थान, संस्थानात्मक रिपोजिटरी का संस्थान की वेबसाइट पर सृजन करेगा जिसमें शोध-निबंध / शोध-पत्र / पत्र-आलेख / प्रकाशन तथा अन्य आंतरिक (इन-हाउस) प्रकाशनों को भी सम्मिलित करेगा।

साहित्यिक चोरी का पता लगाना / जानकारी प्रदान करना / कार्यवाही करना:

ugc plagiarism 2018 के अनुसार यदि शैक्षिक समुदाय का कोई सदस्य उपर्युक्त प्रमाण के साथ संदेह व्यक्त करता है कि किसी दस्तावेज में साहित्यिक चोरी (प्लेजराइज़्म) का कोई प्रकरण बनता है, वह इस मामले की जानकारी विभागीय शैक्षिक सत्यनिष्ठा पेनल (डीएआईपी) को देगा। Departmental Academic Integrity Panel (डीएआईपी), ऐसी शिकायत अथवा आरोप की प्राप्ति पर मामले की जांच करेगा तथा उच्चतर शिक्षा संस्थान की संस्थागत शैक्षिक सत्यनिष्ठा नामसूची (आईएआईपी) को अपनी सिफारिशें सौंपेगा।
ugc plagiarism policy 2018 के अनुसार उच्चतर शिक्षा संस्थान के प्राधिकारी साहित्यिक चोरी के कृत्य का स्वयं भी संज्ञान ले सकते हैं और इन विनियमों के तहत कार्यवाहियां कर सकते हैं। इसी प्रकार, परीक्षक के निष्कर्षों के आधार पर भी उच्चतर शिक्षा संस्थान द्वारा कार्यवाही आरंभ की जा सकती है। ऐसे सभी मामलों की आईएआईपी द्वारा जांच की जाएगी। plagiarism rules in india(भारत में साहित्यिक चोरी) की जाँच का नियम निम्नलिखित हैं-

विभागीय शैक्षिक सत्यनिष्ठा नामसूची (डीएआईपी)

1. उच्चतर शिक्षा संस्थान के सभी विभाग एक डीएआईपी (Departmental Academic Integrity Panel) को अधिसूचित करेंगे जिसकी संरचना नीचे दी गई है-
क. अध्यक्ष- विभागाध्यक्ष
ख. सदस्य-विभाग से इतर एक वरिष्ठ शिक्षाविद्‌, जिसे उच्चतर शिक्षा संस्थान के प्रमुख द्वारा नामित किया जाएगा।
ग. सदस्य-साहित्यिक चोरी के साधनों से भली-भांति परिचित एक व्यक्ति, जिसे विभागाध्यक्ष द्वारा नामित किया जाएगा।
बिंदु ‘ख’ तथा “ग’ के संबंध में सदस्यगणों का कार्यकाल दो वर्षों का होगा। बैठक के लिए सदस्यों की गणपूर्ति 3 में से 2 सदस्यों द्वारा होगी (सभापति सहित)।
2. डीएआईपी (DAIP), छात्रों, संकाय, शोधकर्ताओं तथा कर्मचारिवृंदों के विरूद्ध साहित्यिक चोरी के आरोपों के संबंध में निर्णय देते हुए नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करेगा।
3. डीएआईपी, को साहित्यिक चोरी के स्तरों का मूल्यांकन करने तथा तदनुसार, दण्ड की सिफारिश करने की शक्तियां प्राप्त होंगी।
4. शिकायत प्राप्त होने / कार्यवाहियां आरंभ किए जाने की तिथि से 45 दिनों के भीतर DAIP (डीएआईपी), जांच उपरांत, अपनी रिपोर्ट सहित लगाए जाने वाले दण्डों पर अपनी सिफारिशों को आईएआईपी को प्रस्तुत करेगी।

संस्थागत शैक्षिक सत्यनिष्ठा पेनल (आईएआईपी):

यूजीसी साहित्यिक चोरी संबंधी दिशानिर्देश (ugc guidelines for plagiarism) में आईएआईपी की संरचना और कार्यों का विवरण निम्न विंदुओं में स्पष्ट किया गया है-
1. उच्चतर शिक्षा संस्थान, Institutional Academic Integrity Panel (आईएआईपी) को अधिसूचित करेंगे जिसकी संरचना नीचे दी गई है:
क. अध्यक्ष-उच्चतर शिक्षा संस्थान का सम-कुलपति / संकाय अध्यक्ष / वरिष्ठ शिक्षाविद्‌।
ख. सदस्य-उच्चतर शिक्षा संस्थान के अध्यक्ष द्वारा नामित एक वरिष्ठ शिक्षाविद्‌।
ग. सदस्य-उच्चतर शिक्षा संस्थान से इतर किसी अन्य उच्चतर शिक्षा संस्थान द्वारा नामनित किया जाने वाला एक सदस्यगण।
घ. सदस्य-साहित्यिक चोरी के साधनों से भली-भांति परिचित एक व्यक्ति, जिसे विभागाध्यक्ष द्वारा नामित किया जाएगा।
एक ही व्यक्ति, डीएआईपी और आईएआईपी का अध्यक्ष नहीं होगा। अध्यक्ष सहित समिति के सदस्यगणों का कार्यकाल 3 वर्षों का होगा। बैठक के लिए सदस्यों की गणपूर्ति 3 में से 2 सदस्यों (सभापति सहित) द्वारा होगी।
2. आईएआईपी (Institutional Academic Integrity Panel), डीएआईपी की सिफारिशों पर विचार करेगा।
3. आईएआईपी, इन विनियमों में उल्लिखित उपबंधों के अनुसार साहित्यिक चोरी (Plagiarism) के मामलों की जांच भी करेगा।
4. आईएआईपी, उच्चतर शिक्षा संस्थान के छात्रों, संकाय, शोधकर्ताओं तथा कर्मचारिवृंदों के विरूद्ध साहित्यिक चोरी के आरोपों के संबंध में निर्णय देते हुए नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करेगा।
5. आईएआईपी को विधिवत्‌ औचित्य के साथ दण्ड सहित डीएआईपी की सिफारिशों की समीक्षा करने की भी शक्तियां प्राप्त होंगी।
6. आईएआईपी जांच उपरांत रिपोर्ट तथा उच्चतर शिक्षा विभाग के प्रमुख द्वारा लगाए जाने वाले दण्ड संबंधी सिफारिशों को डीएआईपी द्वारा शिकायत प्राप्त होने / कार्यवाहियां आरंभ किए जाने की तिथि से 45 दिनों के भीतर भेजेगा।
7. आईएआईपी उस व्यक्ति(यों) को रिपोर्ट की प्रति उपलब्ध कराएगा जिसके विरूद्ध जांच रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है।

साहित्यिक चोरी करने पर दण्ड

ugc guidelines for plagiarism (यूजीसी साहित्यिक चोरी संबंधी दिशानिर्देश) में प्लेजराइज़्म (साहित्यिक चोरी) के मामले में निष्णात तथा शोध कार्यक्रमों के स्तर पर उच्चतर शिक्षा संस्थान में अध्ययनरत छात्रों तथा उच्चतर शिक्षा के संस्थानों के शोधकर्ताओं, संकाय तथा कर्मचारिवृंदों पर केवल उस स्थिति में ही दण्ड लगाया जाएगा जब बिना किसी संदेह के किसी व्यक्ति विशेष द्वारा शैक्षिक कदाचार किए जाने की पुष्टि हो जाती है और जब अपील के सभी विकल्पों को पूर्णतः उपयोग कर लिया जाता है और जब अमुक व्यक्ति को अपना बचाव करने के लिए स्पष्ट अथवा पारदर्शी पद्धति से पर्याप्त अवसर प्रदान किया गया हो। शोध-प्रबंध और शोध प्रकाशन पर अलग-अलग दंड का प्रावधान किया गया है, जो निम्नलिखित है-

A) शोध-प्रबंध (थीसीस) तथा शोध-निबंध (डिसरटेशन) को प्रस्तुत करने के मामले में साहित्यिक चोरी:

संस्थागत शैक्षिक सत्यनिष्ठा नामसूची (आईएआईपी) साहित्यिक चोरी (Plagiarism) की गंभीरता पर विचार कर दण्ड आरोपित करेगा।
1. स्तर शून्य:दस प्रतिशत तक समानताएं-
थोड़ी बहुत समानताएं, कोई दण्ड नहीं। 10 प्रतिशत साहित्यिक चोरी को एमफिल / पीएचडी थीसिस (plagiarism allowed in mphil / phd thesis)में अनुमति दी गई है। percentage of plagiarism allowed in mphil / phd thesis
2. प्रथम स्तर:दस प्रतिशत से चालीस प्रतिशत तक समानताएं-
ऐसे छात्रों को अधिकतम छह माह की विनिर्धारित अवधि के भीतर संशोधित आलेख जमा करने को कहा जाएगा।
3. द्वितीय स्तर:चालीस प्रतिशत से साठ प्रतिशत तक समानताएं-
ऐसे छात्रों को अधिकतम एक वर्ष की अवधि के लिए संशोधित आलेख जमा करने से वंचित किया जाएगा।
4. तृतीय स्तर:साठ प्रतिशत से अधिक समानताएं-
ऐसे छात्रों के उस कार्यक्रम के लिए पंजीकरण को रद्द कर दिया जाएगा। 60 प्रतिशत से अधिक साहित्यिक चोरी होने पर mphil / phd admission Canceled कर दिया जायेगा।
नोट
1: बार-बार Plagiarism (साहित्यिक चोरी) करने पर दण्ड: प्रत्येक छात्र को साहित्यिक चोरी के लिए दण्डित किया जाएगा यदि उसके द्वारा की गई साहित्यिक चोरी पिछली बार की गई साहित्यिक चोरी से एक स्तर अधिक हो। यदि सर्वोच्च स्तर की साहित्यिक चोरी की गई हो तो उसे कारगर दंड दिया जाएगा।
2: उस स्थिति में साहित्यिक चोरी जब उपाधि / क्रेडिट पहले ही प्राप्त किया गया हो– यदि उपाधि / क्रेडिट किए जाने, जैसा भी मामला हो, प्रदान किए जाने की तिथि के बाद में साहित्यिक चोरी सिद्ध हो तो उसकी उपाधि / क्रेडिट को आईएआईपी द्वारा संस्तुत अवधि के लिए आस्थगित रखा जाएगा तथा संस्थान के प्रमुख द्वारा अनुमोदित किया जाएगा।

B) शैक्षिक तथा शोध प्रकाशनों में साहित्यिक चोरी के मामले में दण्ड:

1. स्तर शून्य:दस प्रतिशत तक समानताएं-
थोड़ी बहुत समानताएं, कोई दण्ड नहीं। 10 percentage of plagiarism allowed in Academic and research publications.
2. प्रथम स्तर:दस प्रतिशत से चालीस प्रतिशत तक समानताएं-10 से 40 प्रतिशत साहित्यिक चोरी होने पर Academic and research publications को allowed नहीं किया जायेगा। ऐसे छात्रों को, पांडुलिपि वापस लेने को कहा जाएगा।
3. द्वितीय स्तर:चालीस प्रतिशत से साठ प्रतिशत तक समानताएं-क. उन्हें पांडुलिपि वापस लेने को कहा जाएगा।
ख. उन्हें एक वार्षिक वेतन वृद्धि के अधिकार से वंचित किया जाएगा।
ग. उन्हें दो वर्ष की अवधि के लिए किसी नई निष्णात, एम.फिल., पीएच.डी. छात्र / विद्वान कापर्यवेक्षण करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
4. तृतीय स्तर:साठ प्रतिशत से अधिक समानताएं-क. उन्हें पांडुलिपि वापस लेने को कहा जाएगा।
ख. उन्हें लगातार दो वार्षिक वेतन वृद्धि के अधिकार से वंचित किया जाएगा।
ग. उन्हें तीन वर्ष की अवधि के लिए किसी नए निष्णात, एम.फिल., पीएच.डी. छात्र / विद्वान कापर्यवेक्षण करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।


नोट: 
इसके अलावा ugc guidelines for plagiarism में कुछ अलग से फुटनोट दिए गए हैं जो निम्न है-
1: बार-बार साहित्यिक चोरी (Plagiarism) करने पर दण्ड: उन्हें पांडुलिपि वापस लेने को कहा जाएगा और उन्हें की गई साहित्यिक चोरी के निम्न स्तर से एक स्तर ऊपर की साहित्यिक चोरी के लिए दण्डित किया जाएगा। यदि की गई साहित्यिक चोरी सर्वोच्च स्तर की हो तो उसके लिए विहित दंड लागू होगा। यदि तृतीय स्तर के दोष की पुनरावृत्ति की गई हो तो उच्चतर शिक्षा संस्थान द्वारा सेवा नियमों के अनुसार निलंबन/सेवा समाप्ति सहित अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
2: उस स्थिति में दण्ड, जब साहित्यिक चोरी (प्लेजराइज़्म) का लाभ अथवा क्रेडिट पहले ही प्राप्त किया गया हो- यदि लाभ अथवा क्रेडिट प्राप्त किए जाने, जैसा भी मामला हो, की तिथि के बाद साहित्यिक चोरी सिद्ध हो तो उसके द्वारा प्राप्त लाभ अथवा क्रेडिट को IAIP (आईएआईपी) द्वारा संस्तुत अवधि के लिए आस्थगित रखा जाएगा तथा संस्थान के प्रमुख द्वारा अनुमोदित किया जाएगा।
3: उच्चतर शिक्षा संस्थान ऐसा तंत्र विकसित करेंगे ताकि यह सुनिश्चित किया जाए कि छात्र, संकाय, शोधकर्ता अथवा कर्मचारिवृंद द्वारा प्रकाशित किए गए प्रत्येक पत्र / शोध-प्रबंध (थीसीस) तथा शोध-निबंध (डिसरटेशन) को अग्रेषित / प्रस्तुत किए जाने के समय साहित्यिक चोरी के लिए जांचा जाए।
4: यदि उच्चतर शिक्षा संस्थान के प्रधान के विरूद्ध साहित्यिक चोरी की कोई शिकायत हो तो, इन विनियमों के अनुरूप उच्चतर शिक्षा संस्थान के नियंत्रण अधिकारी द्वारा उपर्युक्त कार्रवाई की जाएगी।
5: यदि संस्थागत स्तर पर विभागाध्यक्ष / प्राधिकारियों के विरूद्ध साहित्यिक चोरी की कोई शिकायत हो तो, इन विनियमों के अनुरूप आईएआईपी द्वारा उपयुक्त कार्रवाई की जाएगी जिसे सक्षम अधिकारी द्वारा अनुमोदित किया जाएगा।
6: यदि डीएआईपी (DAIP) अथवा आईएआईपी (IAIP) के किसी सदस्यगण के विरूद्ध Plagiarism (साहित्यिक चोरी) की कोई शिकायत हो तो, ऐसा सदस्य ऐसी बैठकों में भाग नहीं लेगा जहां उसके मामले के संबंध में चर्चा की जा रही हो अथवा जांच की जा रही हो।

कठिनाइयों का निवारण

ugc guidelines for plagiarism (यूजीसी साहित्यिक चोरी संबंधी दिशानिर्देश) में किसी प्रकार के विवाद उत्पन्न होने की स्थिति को भी स्पष्ट किया गया है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (ugc), इन विनियमों के कार्यान्वयन के दौरान सामने आने वाली कठिनाइयों को भारत सरकार / मानव संसाधन विकास मंत्रालय (hmrd) के परामर्श से निवारण करने का अधिकार सुरक्षित रखता है।
यदि आप ugc guidelines for plagiarism के pdf को download करना चाहते हैं तो नीचे दिए गये लिंक की सहायता से डाउनलोड कर सकते हैं। यह हिंदी और अंग्रेजी दोनों में है।
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