काव्य-लक्षण
काव्य का लक्षण निर्धारित करना काव्यशास्त्र का महत्वपूर्ण प्रयोजन रहा है। काव्य-लक्षण के द्वारा वांग्मय के अन्य प्रकारों से काव्य का भेद दर्शाया जाता है, कोई पद्य या गद्य काव्य है या नहीं? काव्य के दायरे में क्या आते हैं क्या नहीं आते। काव्य-लक्षण पर संस्कृत आचार्य भरतमुनि से लेकर रीतिकालीन कवियों एवं आधुनिक कवियों ने भी अपना मत अभिव्यक्त किया है।
1. संस्कृत आचार्यों द्वारा दिए गए काव्य के लक्षण
सर्वप्रथम काव्य लक्षण (kavya lakshan) की परिभाषा ‘भरतमुनि’ ने दिया, लेकिन वह दृश्य काव्य से सम्बन्धित है। उनके अनुसार ‘अर्थक्रियोपेतम् काव्यम्’ अथार्त अर्थ और क्रिया (अभिनय) से युक्त काव्य होता है। वास्तविक रूप से काव्य-लक्षण की परिभाषा ‘भामह’ ने दिया, उनके अनुसार ‘शब्दार्थो सहितौ काव्यमं गद्यं पद्यं च तद् विधा।’ अथार्त शब्द और अर्थ के सहभाव को काव्य कहते हैं।संस्कृत में काव्य लक्षण आचार्यों ने मुख्यतः तीन आधारों पर किया है, जो निम्न है- शब्द और अर्थ के आधार पर, शब्द के आधार पर और रस और ध्वनि के आधार पर।
क. शब्दार्थ के आधार पर
आचार्य | काव्य लक्षण |
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भामह | शब्दार्थो सहितौ काव्यम् |
रुद्रट | ननु शब्दार्थो काव्यम् |
वामन | काव्य शब्दोऽयंगुणालंकार संस्कृतयोः शब्दार्थयोः वर्तते |
वामन | काव्यं ग्राह्मलंकारत् । सौंदर्यमलंकार |
कुन्तक | शब्दार्थो सहितौ वक्र कवि व्यापार शालिनी।बन्धे व्यवस्थितौ काव्यं तद्विदाह्लादकारिणी।। |
मम्मट | तददौषौ शब्दार्थो सगुणावलंकृती पुन: क्वापि |
वाग्भट्ट | साधु शब्दार्थ सन्दर्भ गुणालंकार भूषितम्।स्फुटरीतिरसोपेतं काव्यं कुर्वीत कीर्तये।। |
आनन्दवर्धन | सहृदयहृदयाह्लादिशब्दार्थमयत्वमेव काव्य लक्षणम् |
राजशेखर | गुणवदलंकृतं च वाक्यमेव काव्यम् |
राजशेखर | शब्दार्थो वाक्यम् काव्यम् |
क्षेमेन्द्र | काव्यंविशिष्टशब्दार्थ साहित्यसदलंकृति |
विद्याधर | शब्दार्थो वपुरस्य शब्दार्थवपुस्तावत् काव्यम् |
ख. शब्द के आधार पर
आचार्य | काव्य लक्षण |
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दण्डी | शरीरं तावदिष्टार्थ व्यवच्छिना पदावली |
जयदेव | निर्दोषा लक्षणवती सरीतिर्गुण भूषणा।सालंकार रसानेक वृत्तिर्वाक्काव्य नामवाक्।। |
जगन्नाथ | रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम् |
हेमचंद्र | अदोषौ सगुणौ साललंकारौ च शब्दार्थो काव्यम् |
ग. रस और ध्वनि के आधार पर
आचार्य | काव्य लक्षण |
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विश्वनाथ | वाक्यं रसात्मकं काव्यम् |
भोजराज | निर्दोषं गुणवत्काव्यमलंकारैरलंकृतम्। रसान्वितं कविः कुर्वन् कीर्ति प्रीतिंच विन्दति।। |
2. मध्यकालीन हिन्दी कवियों द्वारा निर्दिष्ट काव्य-लक्षण
कवि | काव्य लक्षण |
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केशवदास | जदपि सुजाति सुलच्छनी सुबरन सरस सुवृत्त। भूषन बिनु न बिराजई, कविता बनिता मित्त।। |
श्रीपति | यदपि दोष बिनु गुन सहित, अलंकार सो लीन। कविता बनिता छवि नहीं, रस बिन तदपि प्रवीन।। |
चिन्तामणि | सगुनालंकार सहित, दोष रहित जो होई। शब्द अर्थ ताकौ कवित, कहत बिबुध सब कोई।। |
चिन्तामणि | बतकहाउ रसमैं जु है कवित कहावै सोय |
कुलपति मिश्र | दोष रहित अरु गुन सहित, कछुक अल्प अहँकार। सबद अरथ सो कवित है, ताको करो विचार।। |
कुलपति मिश्र | जगत अद्भुत सुखसदन, सब्दरु अर्थ कवित्त। वह लक्ष्छन मैंने कियो, समूझि ग्रंथ बहुचित्त।। |
सूरति मिश्र | बरतन मनरंजन जहाँ, रीति अलौकिक होइ। निपुन कर्म कवि जो जु तिहि, काव्य कहत सब कोइ।। |
देव | सब्द जीव तिहि अरथ मन, रसमय सुजस सरीर। चलल वहै जुग छन्द गति, अलंकार गम्भीर।। |
सोमनाथ | सगुन पदारथ दोष बिनु, पिंगल मत अविरुद्ध। भूषण जुत कवि कर्म जो, सो कवित्त कहि शुद्ध।। |
ग्वाल | शब्द अर्थ संगम सहित भरे चमत्कृत भाय। जग अद्भुत में अद्भुतहि, सुखदा काव्य वनाय।। |
भिखारीदास | रस कविता को अंग, भूषन हैं भूषन सकल। गुन सरूप औ रंग, दुशन करै करुपता।। |
प्रताप साहि | व्यंग्य जीव कहि कवित्त को हृदय सु धुनि पहिचानि। शब्द अर्थ कहि देह पुनि भूषण-भूषण जानि।। |
3. आधुनिक हिन्दी कवियों द्वारा निर्दिष्ट काव्य-लक्षण
जयशंकर प्रसाद- ‘काव्य आत्मा की संकल्पात्मक अनुभूति है जिसका सम्बन्ध विश्लेषण, विकल्प या विज्ञान से नहीं है। वह एक श्रेयमयी प्रेय रचनात्मक ज्ञानधारा है। . . . आत्मा की मननशक्ति की वह असाधारण अवस्था जो श्रेय सत्य को उसके मूलचारुत्व में सहसा ग्रहण कर लेता है, काव्य में संकल्पनात्मक अनुभूति कही जा सकती है।’
सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला- ‘कविता विमल ह्रदय का उच्छवास है।’
महादेवी वर्मा- ‘कविता सबसे बड़ा परिग्रह है, क्योंकि वह विश्व-मात्र के प्रति स्नेह की स्वीकृति है। वह जीवन के अनेक कष्टों का उपेक्षा योग्य बना देता है क्योंकि उसका सृजन स्वयं महती वेदना है। वह शुष्क सत्य को आनंद में स्पंदित कर देती है, क्योंकि अनुभूति स्वयं मधुर है।’
महादेवी वर्मा- ‘कविता कवि-विशेष की भावनाओं का चित्रण है और वह चित्रण इतना ठीक है कि उससे वैसी ही भावनाएँ किसी दूसरे के हृदय में आविर्भूत होती है।’
सुमित्रानन्दन पन्त- ‘कविता हमारे परिपूर्ण क्षणों की वाणी है।’
सुमित्रानन्दन पन्त- ‘साहित्य अपने व्यापक अर्थ में, मानव जीवन की गम्भीर व्याख्या है।’
अज्ञेय- ‘कविता सबसे पहले शब्द है और अंत में भी यही बात रह जाती है कि कविता शब्द है।’ कथन किसका है।’
केदारनाथ सिंह- ‘मुंह में बचे हुए / चावल के स्वाद को / कुछ अदृश्य कंकड़ियों / के हस्तक्षेप से / बचाने का नाम है कविता।’
धूमिल- ‘कविता / शब्दों की अदालत में / अपराधियों के कटघरे में खड़े एक निर्दोष आदमी का हलफनामा है।’
धूमिल- ‘कविता / भाषा में आदमी होने की तमीज है।’
4. आधुनिक हिन्दी आलोचकों द्वारा निर्दिष्ट काव्य-लक्षण
महावीर प्रसाद द्विवेदी- ‘अन्त:करण की वृत्तियों के चित्र का नाम कविता है।’
श्यामसुन्दर दास- ‘काव्य वह है जो हृदय में अलौकिक आनंद व चमत्कार की सृष्टि करे।’
रामचन्द्र शुक्ल
– ‘जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञानदशा कहलाती है उसी प्रकार हृदय की यह मुक्तावस्था रसदशा कहलाती है। हृदय की मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द-विधान करती आई है, उसे कविता कहते हैं।’
– ‘जगत का नाना वस्तुओं-व्यापारों का एक रूप में रखना कि वे हमारे भाव चक्र के भीतर आ जायें। यही काव्य का लक्ष्य होता है।
– कविता ही मनुष्य के हृदय को स्वार्थ-सम्बन्धों के संकुचित मण्डल से ऊपर उठाकर लोक-सामान्य भाव-भूमि पर ले जाती है, जहाँ जगत् की नाना गतियों के मार्मिक स्वरूप का साक्षात्कार और शुद्ध अनुभूतियों का संचार होता है।
– ‘सत्त्वोद्रेक या हृदय की मुक्तावस्था के लिए किया हुआ शब्द-विधान काव्य है।’
– ‘अव्यक्त की अभिव्यक्ति जगत है अत: कविता अभिव्यक्ति की अभिव्यक्ति हुई।’
हजारी प्रसाद द्विवेदी
– ‘साहित्य मनुष्य के अंतर का उच्छलित आनंद है, जो उसके अंतर में अटाए नहीं सका था। साहित्य का मूल यही आनंद का अतिरेक है। उच्छलित आनंद के अतिरेक से उद्भूत सृष्टि ही सच्चा साहित्य है।’
– ‘मैं साहित्य को मनुष्य की दृष्टि से देखने का पक्षपाती हूँ। जो वाग्जाल मनुष्य को दुर्गति, हीनता और परमुखापेक्षता से बचा न सके, जो उसकी आत्मा को तेजोदीप्त न बना सके, जो उसके हृदय को पर-दुःख कातर और संवेदनशील न बना सके, उसे साहित्य, कहने में मुझे संकोच होता है।’
रामविलास शर्मा- ‘साहित्य जनता की वाणी है। उसके जातीय चरित्र का दर्पण है। प्रगति पथ में बढ़ने के लिए उसका मनोबल है। उनकी सौन्दर्य की चाह पूरी करने वाला साधन है।’
गुलाब राय- काव्य संसार के प्रति कवि की भाव-प्रधान (किंतु क्षुद्र वैयक्तिक संबंधों से मुक्त) मानसिक प्रतिक्रियाओं को, कल्पना के ढाँचे में ढली हुई श्रेय की प्रेमरूपा प्रभावोत्पादक अभिव्यक्ति हैं।’
नन्द दुलारे वाजपेयी
– ‘काव्य तो प्रकृत मानव अनुभूतियों का, नैसर्गिक कल्पना के सहारे, ऐसा सौन्दर्यमय चित्रण है जो मनुष्य-मात्र में स्वभावतः अनुरूप भावोच्छ्वास और सौन्दर्य-संवेदन उत्पन्न करता है। इसी सौन्दर्य-संवेदन को भारतीय पारिभाषिक शब्दावली में रस कहते हैं।’
– ‘साहित्य से हमारा आशय उन विशिष्ट और प्रतिनिधि रचनाओं से है, जो किसी युग भावात्मक जीवन का प्रतिमान होती हैं, जो समाज और सामाजिक जीवन को भली या बुरी दशा में ले जाने की प्रबल सामर्थ्य रखती हैं।’
लक्ष्मी नारायण सुधांशु- ‘काव्य जीवन-प्रकृति का अंतदर्शन है। उसकी अनुभूति है। यह अनुभूति कोई भावुकताजन्य स्फूर्ति नहीं, न कोई आध्यात्मिक कल्पना है, बल्कि अखंड मानवजीवन के व्यक्तित्व की अनुभूति है।’
नगेन्द्र
– ‘रसात्मक शब्दार्थ ही काव्य है और उसकी छन्दोमयी विशिष्ट विधा आधुनिक अर्थ में कविता है!’
– ‘आत्माभिव्यक्ति ही वह मूल तत्त्व है, जिसके कारण कोई व्यक्ति साहित्यकार और उसकी कृति साहित्य बन पाती है।’