हिंदी साहित्य में कई त्रयी प्रसिद्ध रहे, उनमें से कुछ त्रयी जो प्रतियोगी परीक्षाओं के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं, जिनसे प्राय: प्रश्न पूछें जाते रहें हैं, उन्हें यहाँ दिया जा रहा है। जिसमें प्रमुख रूप से मिश्रबंधु त्रयी, रीतिकालीन त्रयी, छायावाद त्रयी, शतक त्रयी, प्रगतिशील त्रयी, नई कहानी आंदोलन त्रयी तथा भारतीय पत्रकारीता त्रयी प्रमुख हैं।
मिश्रबंधु त्रयी- गणेश बिहारी मिश्र, श्याम बिहारी मिश्र, शुकदेव बिहारी मिश्र
मिश्रबंधु से तात्पर्य उन तीन भाइयों से है, जिनका नाम गणेश बिहारी मिश्र, श्याम बिहारी मिश्र और शुकदेव बिहारी मिश्र था। यही तीनों बंधुहिंदी साहित्य में मिश्रबंधु नाम से प्रसिद्ध हुएजिन्हें मिश्रबंधु त्रयी से जाना जाता है।
मिश्रबंधुओं द्वारा बनायीं गई ‘हिंदी नवरत्न’ के कवियों की त्रयी-
मिश्रबंधुओं का ‘हिंदी नवरत्न’ एक लम्बी भूमिका और नौ अध्यायों में विभाजित है। जिनमें मध्यकाल से लेकर आधुनिक काल तक के एक-एक कवि को रखा गया है। इन कवियों का क्रम इस प्रकार है: 1-गोस्वामी तुलसीदास, 2-महात्मा सूरदास, 3. महाकवि देवदत्त (देव), 4. महाकवि बिहारीलाल, 5. त्रिपाठी-बंधु: (क) महाकवि भूषण त्रिपाठी, (ख) महाकवि मतिराम त्रिपाठी, 6. महाकवि केशवदास, 7, महात्मा कबीरदास, 8. महाकवि चंदबरदाई, 9. भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र। यहाँ कवियों का क्रम काल-क्रमानुसार नहीं रखा गया है। मिश्र बंधुओं ने अपनी काव्य-धारणा के अनुसार कवियों की गुणवत्ता को ध्यान में रखकर यह क्रम बनाया है। इसी क्रम के आधार पर मिश्रबंधु त्रयी ने कवियों की तीन त्रयी बनाई जो निम्नलिखित है-
1. मिश्रबंधुओं की वृहदत्रयी- तुलसीदास, सूरदास, देव
‘हिंदी नवरत्न’ में मिश्रबंधु लिखते हैं कि ‘भाषा-साहित्य में सूरदास, तुलसीदास और देव, ये सर्वोच्च तीन कवि हैं। इनमें न्यूनाधिक बतलाना मत-भेद से खाली नहीं है।…हम लोगों का अब यह मत है कि हिंदी में तुलसीदास सर्वोत्कृष्ट कवि हैं। उन्हीं के पीछे सूरदास का नंबर आता है और तब देव का।’
2. मिश्रबंधुओं की मध्य त्रयी- बिहारी, भूषण, केशव
मिश्रबंधुओं ने बिहारी, भूषण और केशवदास को मध्य त्रयी के अंतर्गत रखा है
3. मिश्रबंधु की लघु त्रयी– मतिराम, चंद्रवरदाई, हरिश्चंद्र
मिश्र बंधुओं नें मध्य त्रयी के अंतर्गत मतिराम, चंद्रवरदाई और हरिश्चंद्र को रखा है, कबीरदास किसी भी त्रयी में इसलिए मौजूद नहीं हैं क्योंकी ‘नवरत्न’ के प्रथम संस्करण (1910 ई.) में कबीर दास नहीं थे, उन्हें दूसरी आवृत्ति में शामिल किया गया। ‘नवरत्न’ नाम की सार्थकता बनाये रखने के लिए मिश्र बंधुओं ने भूषण और मतिराम को ‘त्रिपाठी बंधु’ कहकर एक ही मान लिया। लेकिन तब भी कबीरदास को किसी भी त्रयी में स्थान नहीं मिला।
रीतिकालीन त्रयी– केशव, बिहारी, भूषण
मिश्र बंधुओं की मध्य त्रयी के कवियों को ही रीतिकालीन कवि त्रयी के नाम से जाना जाता है। जिसमें प्रमुख रूप से केशव, बिहारी और भूषण का नाम आता है।
शतक त्रयी- नीतिशतक, श्रंगार शतक, वैराग्य शतक
शतक त्रयी में उपरोक्त तीनों शतक आते हैं, जबकि बहुत सारे आचार्यों ने शतक लिखा परंतु प्रसिद्ध यही तीन शतक ही हुए।
छायावाद की त्रयी-
छायावाद के कवियों को 2 त्रयी में विभाजित किया गया है, वृहद त्रयी और लघु त्रयी। यह विभाजन उनके रचनाकर्म के आधार पर हुआ है। वृहद में वे कवि आते हैं जिनका रचनात्मक योगदान अपेक्षाकृत अधिक है।
- छायावाद की वृहद त्रयी- जयशंकर प्रसाद (ब्रह्मा), सुमित्रानंदन पंत (विष्णु), सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (महेश)
- छायावाद की लघु त्रयी या वर्मा त्रयी- महादेवी वर्मा, रामकुमार वर्मा, भगवतीचरण वर्मा
प्रगतिशील त्रयी- शमशेर बहादुर सिंह, नागार्जुन, त्रिलोचन
स्वतंत्रता के पश्चात हिन्दी साहित्य में जिन नई विचारधाराओं का जन्म हुआ उसमें प्रगतिशील विचारधारा प्रमुख थी। नागार्जुन, शमशेर और त्रिलोचन इस विचारधारा के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। इसलिए इन तीनों को प्रगतिशील त्रयी के नाम से संबोधित किया जाता है।
नई कहानी आंदोलन त्रयी- राजेंद्र यादव, कमलेश्वर, मोहन राकेश
आजादी के बाद हिन्दी कहानी को नया संस्कार देने वाले कहानीकारों ने कहानी को नयी कहानी के नाम से अभिहित किया। नयी कहानी का जन्म 1956 से माना जाता है। मोहन राकेश, कमलेश्वर और राजेन्द्र यादव ने एक साथ प्रसिद्ध तिकड़ी का निर्माण कर कहानी विधा में एक आंदोलन खड़ा कर नयी कहानी को एक दिशा दी, रचनात्मक और आलोचनात्मक दोनों स्तरों पर लगातार सक्रिय रहे।
भारतीय पत्रकारीता त्रयी- राजेंद्र माथुर, मनोहर श्याम जोशी, अज्ञेय
भारतीय पत्रकारिता त्रयी में राजेंद्र माथुर, मनोहर श्याम जोशी और अज्ञेय का नाम आता है। तीनों का गहरा संबंध साहित्य से भी रहा है और ये उस समय के पत्रकार हैं जब हिंदी पत्रकारीता 4 चरणों से गुजर चुकी थी।
नोट- त्रयी पुस्तक के लेखक आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री है!