हिंदी निबंध
हिंदी गद्य की अन्य विधाओं की भांति निबंध का विकास भी भारतेंदु युग में प्रारंभ हुआ। भारतेंदु को हिंदी निबन्ध का जनक माना जाता है। परन्तु डॉ. लक्ष्मीसागर बालकृष्ण भट्ट को मानते हैं। यूरोप में निबंध साहित्य का जनक फ्रेंच साहित्यकार मानतेन को माना जाता है। पत्र-पत्रिकाओं के विकास से निबंध के विकास को बल मिला। आप देखेंगे की उस समय के अधिक्तर निबंधकार किसी न किसी पत्रिका के सम्पादन से जुड़े रहे हैं। इस युग के निबंधकारों ने साधारण से लेकर गंभीर विषयों पर निबंधों की रचना किया है। इसीलिए रामविलास शर्मा ने लिखा की,’जितनी सफलता भारतेंदु युग के लेखकों को निबंध (Essay) रचना में मिली उतनी कविता और नाटक में भी नहीं मिली।‘ नीचे हिंदी निबंधकार और निबंधों (hindi nibandhkar aur nibandh) की सूची दी जा रही है-
भारतेंदु युगीन निबंधकार एवं निबंध-
निबंधकार | निबंध/निबंध-संग्रह |
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शिवप्रसाद ‘सितारे-हिंद’ | राजा भोज का सपना |
सदासुख लाल | सुरसुरानिर्णय |
भारतेंदु हरिचंद्र | सुलोचना, दिल्ली दरबार दर्पण, लीलावती, भारतवर्षोन्नती कैसे हो सकती है, बादशाह दर्पण, लेवी प्राण लेवी, स्वर्ग में विचार सभा, अंग्रेज स्त्रोत्र, पाँचवे पैगम्बर, कश्मीर कुसुम, काल चक्र, भ्रूण हत्या, काशी, मणिकर्णिका, तदीय सर्वस्व, संगीत सार, जातीय संगीत |
चंद्रधर शर्मा गुलेरी | विक्रमोर्वशी की मूल कथा, अमंगल के स्थान में मंगल शब्द,मारेसि मोहि कुठाँव, कछुवा धर्म |
प्रतापनारायण मिश्र | निबंध-नवनीत, खुशामद, आप, बात, दांत, भौं, धोखा, नारी, वृद्ध, परीक्षा, मनोयोग, समझदार की मौत, ह, द, प्रताप पीयूष |
पद्मसिंह शर्मा | पद्म पराग, प्रबंध मंजरी में संकलित निबंध |
बालकृष्ण भट्ट | साहित्य सुमन, साहित्य जनसमूह के हृदय का विकास है, चंद्रोदय, लक्ष्मी, भिक्षावृत्ति, हाकिम और उनकी हिकमत, कृषकों की दुरवस्था, ढोल के भीतर पोल, खल बंदना, ग्राम्य जीवन, आँसू, रुचि, जात-पांत, सीमा रहस्य, आशा, चलन, बाल विवाह, महिला-स्वातंत्र्य, स्त्रियाँ और उनकी शिक्षा, राजा और प्रजा, नये जगह का जूनून, देवताओं से हमारी बातचीत, काल चक्र का चक्कर, शब्द की आकर्षक शक्ति |
लाला श्रीनिवासदास | भारतखंड की समृद्ध, सदाचरण |
बदरी नारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ | नेशनल कांग्रेस की दुर्दशा |
राधाचरण गोस्वामी | यमपुर की यात्रा |
कशीनाथ खत्री | स्वदेश प्रेम, कर्तव्य पालन, विधवा विवाह |
द्विवेदी युगीन निबंधकार एवं निबंध-
निबंधकार | निबंध/निबंध-संग्रह |
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महावीर प्रसाद द्विवेदी | रसज्ञ रंजन, साहित्य सीकर, कालिदास और उनकी कविता, कौटिल्य कुठार, वनिता विलास, महाकवि माघ का प्रभात वर्णन, बेकन विचार रत्नावली, भाषा और व्याकरण, नाट्यशास्त्र, उपन्यास रहस्य, क्या हिंदी नाम की कोई भाषा नहीं?, म्युनिसिपैलिटी के कारनामे, जनकस्य दण्ड, कवि और कविता, कवि कर्तव्य, लेखांजलि, आत्मनिवेदन, साँची के पुराने स्तूप, अतीत स्मृति, कालिदास की निरंकुशता |
अध्यापक पूर्णसिंह | मजदूरी और प्रेम, सच्ची वीरता, अमरीका का मस्त योगी वाल्ट हिटमैन, आचरण की सभ्यता, कन्यादान, पवित्रता, पवित्र प्रेम, नयनों की गंगा, ब्रह्मक्रांति |
बाबू श्यामसुंदरदास | गद्य कुसुमावली, रूपक रहस्य, समाज और साहित्य, कर्तव्य और सभ्यता, भारतीय साहित्य की विशेषताएं |
चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ | कछुआ धर्म, मारेसिमोहि कुठांव, गोबर गणेश कथा, विक्रमोर्वशी की मूल कथा, अमंगल के स्थान पर मंगल शब्द, काशी, जय यमुना मैया |
बालमुकुंद गुप्त | शिवशंभू के चिट्ठे, चिट्ठे और खत(ये चिठ्ठे 1904-05 में भरतमित्र में प्रकाशित हुए थे) |
गोविंद नारायण मिश्र | प्राकृत विचार, विभक्ति विचार, कवि और चित्रकार |
रामचंद्र शुक्ल | चिंतामणि (4 भाग), विचार वीथी, रस मीमांसा, कविता क्या है, श्रद्धा भक्ति, लज्जा और ग्लानि, करुणा, उत्साह, काव्य में रहस्यवाद, साधारणीकरण और व्यक्ति-वैचित्र्यवाद, ईष्या, लोभ और प्रीति, काव्य में लोकमंगल की साधना अवस्था, घृणा, भारतेंदु हरिश्चन्द्र, तुलसी का भक्तिमार्ग, मानस की धर्मभूमि, काव्य में अभिव्यंजनावाद, रसात्मक बोध के विविध रूप |
पदम् सिंह शर्मा | पद्मपराग, प्रबंध मंजरी |
मिश्र बंधु | पुष्पांजलि |
छायावाद युगीन निबंधकार एवं निबंध-
निबंधकार | निबंध/निबंध-संग्रह |
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पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी | पंचपात्र, पद्मावन, कुछ और कुछ |
बाबू गुलाबराय | मेरे निबंध, फिर निराशा क्यों?, ठलुआ क्लब, मन की बातें, मेरी असफलताएँ, कुछ उथले कुछ गहरे, अध्ययन और आस्वाद, जीवनरश्मियाँ |
चतुरसेन शास्त्री | अन्तस्तल, तरलाग्नी, मरी खाल की हाय |
रायकृष्ण दास | संलाप, पथ की खोज, पागल पथिक |
संपूर्णानंद | शिक्षा का उद्देश्य, आर्यों का आदि देश, समाजवाद, भारत के देशी राज्य, अधूरी क्रांति |
शिवपूजन सहाय | कुछ |
पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ | बुढ़ापा, गाली |
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ | प्रबंध प्रतिमा, प्रबंध पदम्, चाबुक |
जयशंकर प्रसाद | काव्य कला तथा अन्य निबंध, यथार्थवाद और छायावाद,रहस्यवाद, रस, रंगमंच, मौर्यो का राज्य-परिवर्तन |
महादेवी वर्मा | साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध, शृंखला की कड़ियाँ, छायावाद, रहस्यवाद, यथार्थ और आदर्श, युद्ध और नारी, स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न, काव्यकला, क्षणदा, संधिनी, चिंतन के क्षण, संभाषण, भारतीय संस्कृति के स्वर, संस्कृति का प्रश्न, समाज और व्यक्ति, जीने की कला, हमारा देश और राष्ट्रभाषा, साहित्य और साहित्यकार, हमारे वैज्ञानिक युग की समस्या |
शंतिप्रिय द्विवेदी | जीवन यात्रा, कवि और काव्य, साहित्यकी, धरातल, आधान, समवेत, परिक्रमा, साकल्य, वृन्त और विकास, युग और साहित्य |
छायावादोत्तर युगीन निबंधकार एवं निबंध-
निबंधकार | निबंध/निबंध-संग्रह |
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नंददुलारे वाजपेयी | आधुनिक साहित्य, नया साहित्य : नये प्रश्न, हिंदी साहित्य : 20वीं शताब्दी, नयी कविता, रस सिद्धान्त, रीति और शैली, जयशंकर प्रसाद, प्रेमचंद |
सियाराम शरण गुप्त | झूठ सच |
रामवृक्ष बेनीपुरी | गेहूँ और गुलाब, वंदे वाणी विनायकौ, लाल तारा |
इलाचंद जोशी | साहित्य सर्जना, विवेचना, विश्लेषण, साहित्य चिंतन, देखा परखा |
यशपाल | चक्कर क्लब, बात-बात में बात, गांधीवाद की शव परीक्षा,न्याय का संघर्ष, देखा सोचा समझा, जग का मुजरा, बीबी जी कहती है मेरा चेहरा रोबीला है |
जैनेंद्र | पूर्वोदय, मंथन, जड़ की बात, प्रस्तुत प्रश्न, सोच-विचार,गाँधी नीति, भाग्य और पुरुषार्थ, ये और वे, साहित्य का श्रेय और प्रेय, इतस्तत: समय और हम, परिपेक्ष्य, साहित्य और संस्कृति, मंथन, काम-प्रेम और परिवार, राष्ट्र और राज्य |
हजारी प्रसाद द्विवेदी | अशोक के फूल, कुटज, कल्पलता, विचार और वितर्क, विचार प्रवाह, आलोक पर्व, साहित्य सहचर, कल्पलता, नाख़ून क्यों बढ़ते हैं, आम फिर बौरा गए, शिरीष के फूल, बसंत आ गया, अवतारवाद, मध्यकालीन धर्म साधना, सहज साधना, हिंदी भक्ति साहित्य, पुनश्च, प्राचीन भारत के कलात्मक विनोद |
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ | आधुनिकता बोध, शुद्ध कविता की खोज, संस्कृति के चार अध्याय, मिट्टी की ओर, पंत, उजली आग, प्रसाद, पंत और मैथलीशरण गुप्त, रेती के फूल, अर्द्धनारीश्वर, हमारी सांस्कृतिक एकता, राष्ट्रभाषा और राष्ट्रीय साहित्य, वेणुवन, वट पीपल, धर्म नैतिकता और विज्ञान, साहित्य मुखी |
हरिवंश राय ‘बच्चन’ | नये पुराने झरोखे, टूटी-छुटी कड़ियाँ |
देवेंद्र सत्यार्थी | धरती गाती हैं, एक युग : एक प्रतीक, रेखाएँ बोल उठी |
भदंत आनंद कौसल्यायन | जो भूल न सका, रेल का टिकट |
भगवतशरण उपाध्याय | इतिहास साक्षी है, ठूँठा आम, साहित्य और काल |
धीरेन्द्र वर्मा | विचारधारा |
परशुराम चतुर्वेदी | मध्यकालीन श्रृंगारिक प्रवृतियाँ, मध्यकालीन प्रेम साधना |
वियोगी हरि | यों भी तो देखिये |
माखनलाल चतुर्वेदी | साहित्य देवता, अमीर देवता, गरीब देवता, अमीर इरादे गरीब इरादे |
कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ | जिंदगी मुस्काई, माटी हो गई सोना, बाजे पायलिया के घुँघुरु, महके आँगन चहके द्वार, नयी पीढ़ी नये विचार, क्षण बोले कण मुस्कराए, अनुशासन की राह में, जिंदगी लहलहाई, जिये तो ऐसे जिये |
‘अज्ञेय’ | त्रिशंकु, आत्मनेपद, अद्यतन, कहाँ है द्वारिका, आलवाल,हिंदी साहित्य : एक आधुनिक परिदृश्य, भवन्ति, लिखि कागद कोरे, आत्मपरक, सबरंग और कुछ राग, छाया का जंगल, युग संधियों पर, आलबाल, स्मृति छंदा, अंतरा, धार और किनारे, जोग लिखी, केंद्र और परिधि, आत्मपरक, सर्जना और संदर्भ |
रामविलास शर्मा | प्रगति और परम्परा, परम्परा का मूल्यांकन, संस्कृति और साहित्य, भाषा साहित्य और संस्कृति, प्रगतिशील साहित्य की समस्याएं, स्वाधीनता और राष्ट्रीय साहित्य, आस्था और सौन्दर्य, भाषा युगबोध और कविता, लोकजीवन और साहित्य, कथा विवेचना और गद्यशिल्प, विराम चिन्ह |
भागीरथी मिश्र | साहित्य साधना और समाज, कला साहित्य और समीक्षा, अध्ययन, अध्यन |
विजयेंद्र स्नातक | चिंतन के क्षण, विचार के क्षण, विमर्श के क्षण |
नगेंद्र | आस्था के चरण, विचार और अनुभूति, विचार विश्लेषण, विचार और विवेचन, अनुसंधान और आलोचना, चेतना के बिंब, साधारणीकरण, आलोचक की आस्था,पुनर्वाक, यौवन के द्वार पर, राष्ट्रीय संकट और साहित्य, हिंदी उपन्यास, ब्रज भाषा का गद्य, आधुनिक हिंदी काव्य के आलोचक |
प्रभाकर माचवे | खरगोश के सींग, संतुलन, वेरंग |
रघुवंश | साहित्य का नया परिपेक्ष्य, समसामयिकता और आधुनिक हिंदी कविता, आधुनिकता एवं सर्जनशीलता |
अमृतराय | बतरस, रम्या, बाइस्कोप, विजिट इंडिया, आनंदकम् |
केशवचन्द्र वर्मा | अफलातूनों का शहर, मुर्गाछाप हीरो |
बरसाने लाल चतुर्वेदी | बुरे फंसे, मिस्टर चोखेलाल, कुल्हर में हुल्लड़, अफवाह, नेताओं की नुमाइश मुसीबत है, नेता और अभिनेता |
बनारसी दास चतुर्वेदी | हमारे आराध्य, साहित्य और जीवन |
उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ | मंटो : मेरा दुश्मन |
गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ | नई कविता का आत्मसंघर्ष तथा अन्य निबंध, नये साहित्य का सौंदर्यशास्त्र, समीक्षा की समस्याएँ, एक साहित्यिक की डायरी, कला का तीसरा क्षण, शमशेर : मेरी दृष्टि में,कलाकार की व्यक्तिगत ईमानदारी, सौंदर्य प्रतीति की प्रक्रिया, कलात्मक अनुभव, मध्ययुगीन भक्ति आंदोलन का एक पहलू, उर्वशी : मनोविज्ञान, उर्वशी: दशर्न और काव्य |
समकालीन निबंधकार एवं निबंध-
निबंधकार | निबंध/निबंध-संग्रह |
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विद्यानिवास मिश्र | छितवन की छाँह, तुम चंदन हम पानी, मैंने सिल पहुँचाई,कदम की फूली डाल, मेरे राम का मुकुट भीग रहा है, हल्दी-दूध, कौन तू फुलवा बीनन हारी, कंटीले तारों के आर-पार, परंपरा बंधन नहीं, बसंत आ गया पर कोई उत्कंठा नहीं, आँगन का पंछी और बंजारा मन, भ्रमरानंद के पत्र, शिरीष की याद आई, तमाल के झरोखे से, गाँव का मन, अस्मिता के लिए, अंगद की नियति, आम्र मंजरी, हिन्दू धर्म और संस्कृति, हिंदी का विभाजन, प्रलय की छाया, कितने मोर्चे |
विष्णुप्रभाकर | हम जिनके ऋणी हैं |
रघुवीर सहाय | लिखने का कारण, दिल्ली मेरा प्रदेश, ऊबे हुए सुखी, वे और होंगे जो मारे जायेंगे |
धर्मवीर भारती | ठेले पर हिमालय, पश्यंती, कहनी-अनकहनी, कुछ चेहरे कुछ चिंतन, शब्दिता, रामजी की चींटी : रामजी का शेर |
शिवप्रसाद सिंह | शिखरों के सेतु, कस्तूरी मृग, मानसी गंगा, किस-किस को नमन करूं, खालिस मौज में, चतुर्दिक |
हरिशंकर परसाई | पगडंडियों का जमाना, निठल्ले की डायरी, शिकायत मुझे भी है, सदाचार का तावीज, तब की बात और थी, भूत के पाँव के पीछे, ठिठुरता हुआ गणतंत्र, जैसे उनके दिन फिरे, सुनो भाई साधो, विकलांग श्रद्धा का दौर, कहत कबीर, अपनी-अपनी बीमारी,वैष्णव की फिसलन, अपनी-अपनी बीमारी, बेईमानी की परत, तुलसीदास चंदन घिसे, हँसते हैं रोते हैं, आवारा भीड़ के खतरे, पाखंड का अध्यात्म, ऐसी भी सोचा जाता है |
कुबेरनाथ राय | प्रिया नीलकंठी, रस आखेटक, गंधमादन, विषादयोग, महाकवि की तर्जनी, कामधेनु, पर्ण मुकुट, लौह मृदंग, क्षीरसागर, आगम की नाव, निषादबांसुरी |
नामवर सिंह | इतिहास और आलोचना, बकलम खुद, वाद-विवाद संवाद |
निर्मल वर्मा | शब्द और स्मृति, कला का जोखिम, ढलान से उतरते हुए, दुसरे शब्दों में, आदि अंत और आरंभ |
लक्ष्मीकांत वर्मा | नए प्रतिमान : पुराने निकष |
विजयदेव नारायण साही | लघुमानव के बहाने हिंदी कविता पर बहस, शमशेर की काव्यानुभूति की बनावट, साहित्य और राजनीती, साहित्य में गतिरोध,साहित्यकार और उसका परिवेश, साहित्यिक अश्लीलता का प्रश्न, राजनीति में साहित्यकार, भाषा का अवमूल्यन, अपना-अपना ढपली अपना अपना राग, हस्ताक्षर, ठलुआ वुद्विजीवी, हँसना मना है, आखिरी आदालत का फैसला |
रामदरश मिश्र | कितने बजे हैं, घर परिवेश, बबूल और कैक्टस, छोटे-छोटे सुख |
श्रीलाल शुक्ल | अंगद के पाँव, यहाँ से वहाँ, कुछ जमीन पर कुछ हवा में, आओं बैठलें कुछ देर, अगली शताब्दी का शहर, खबरों की जुगाली |
शरद जोशी | जीप पर सवार इलियाँ, हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे, यत्र तत्र सवर्त्र, तिलस्म, किसी बहाने |
मनोहर श्याम जोशी | नेताजी कहिन |
हरिमोहन झा | खट्टर काका |
विवेकी राय | वन तुलसी की गंध, किसानों का देश, गांवों की दुनियाँ, त्रिधारा, फिर बैतलवा डाल पर, जुलूस रुका है, आस्था और चिंतन, आम रास्ता नहीं है, नया गाँव नया नाम, गंवईं गाँव की गंध, जगत तपोवन सो कियो |
रमेश कुंतक मेघ | क्योंकि समय एक शब्द है, अथातो सौन्दर्य जिज्ञासा, साक्षी है सौन्दर्य प्राश्निक |
अशोक वाजपेयी | पाव भर जीरे में ब्रम्हभोज, फ़िलहाल, कुछ पूर्वग्रह, कविता का गल्प, कविता का जनपद |
मलयज | संवाद और एकालाप, हंसते हुए मेरा अकेलापन |
कुंवर नारायण | आज और आज से पहले |
पुरुषोत्तम अग्रवाल | विचार का अनंत |
विश्वनाथ त्रिपाठी | देश के इस दौर में |
रमेशचन्द्र शाह | भूलने के विरुद्ध |