अमीर खुसरो
अमीर खुसरो का वास्तविक नाम अबुल हसन था। अमीर खुसरो हज़रत निज़ाम-उद्-दीन औलिया के शिष्य थे। इनका कर्म-क्षेत्र दिल्ली था तथा कवि, संगीतज्ञ, इतिहासकार के रूप में प्रसिद्ध हुए। इनके पिता तुर्क सैफ़ुद्दीन और माता दौलत नाज़ हिन्दू (राजपूत) थीं। इनका जन्म 1253 ई. में एटा, उत्तर प्रदेश में हुआ था और मृत्यु 1325 ई. में।
भोलेनाथ तिवारी ने अपनी पुस्तक ‘अमीर खुसरो और उनका हिंदी साहित्य’ में लिखा है की “ख़ुसरो के जो हिंदी छन्द आज मिलते हैं, उनकी भाषा या तो दिल्ली की खड़ी बोली है या अवधी। दिल्ली में वे पैदा हुए, बड़े हुए, पढ़े-लिखे तथा रहे भी। इस तरह यहाँ कि भाषा उनकी मातृभाषा है, अतः काफ़ी कुछ इसीमें से लिखा है। इसके अतिरिक्त अवध में भी। अयोध्या तथा लखतौनी में वे रहते रहे अतः अवधी में भी लिखा है। मगर पटियाली वे जाते तो रहे, किन्तु वह जगह उन्हें न रुची, न वहाँ की बोली ही वे अपना सके। कहना न होगा कि पटियाली में ब्रज बोली जाती है। इसीलिए उनकी रचनाओं में से कोई भी ब्रज भाषा नहीं है।”
अमीर खुसरो (Amir Khusrow) ने ग़ुलाम, ख़िलजी और तुग़लक़- तीन अफ़ग़ान राज-वंशों तथा 11 सुल्तानों का उत्थान-पतन अपनी आँखों से देखा। ईश्वरी प्रसाद ने अमीर खुसरो को महाकवि या कवियों में राजकुमार को संज्ञा दी। अमीर खुसरो प्रथम मुस्लिम कवि थे जिन्होंने हिंदी शब्दों का खुलकर प्रयोग किया, हिंदी, हिन्दवी और फारसी में एक साथ लिखा। उन्होंने ही सबसे पहले अपनी भाषा के लिए हिन्दवी शब्द का उल्लेख किया था। उन्होंने खड़ी बोली का प्रयोग काव्य भाषा के रूप में किया इसलिए खुसरो को खड़ी बोली हिन्दी का प्रथम कवि / आदि कवि (13वीं शताब्दी)माना जाता है।
खुसरो द्वारा रचित ग्रन्थों की संख्या 100 माना जाता है जिसमें से अब बीस-इक्कीस ही उपलब्ध हैं।अरबी, फ़ारसी के साथ-साथ अमीर ख़ुसरो को अपने हिन्दवी ज्ञान पर भी गर्व था। उन्होंने स्वयं कहा है- “च मन तूतिए-हिन्दुम, अर रास्त पुर्सी। जे मन हिंदुई पुर्स, ता नाज गोयम।” (मैं हिंदुस्तान की तूती हूँ, अगर तुम वास्तव में मुझसे कुछ पूछना चाहते हो तो हिंदवी में पूछो जिसमें कि में कुछ अद्भुत बातें बता सकें।)
अमीर खुसरो की रचनाएँ
अमीर खुसरो ने कई रचना की है जिनमें से निम्नलिखित प्रमुख हैं, जो प्रतीयोगीता परीक्षाओं में अक्सर पुछे जाते हैं-खालिकबारी, खुसरो की पहेलियाँ, मुकरिया, श्रृंगारी, दो सुखने, गज़ल, ख़याल, कव्वाली, रुबाई आदि।
अमीर खुसरो के अन्य ग्रंथ
अमीर खसरो ने उपर्युक्त ग्रंथों के अलावा कई और ग्रंथों की भी रचना की है जो इस प्रकार हैं-
किरान-उल-सदामन, मिफताह-उल-फुतुल, खजाइन-उल-फुतुह (तारीख-ए-इलाही), देवल-रानी-खिज्रखाँ (आशिका), नुह–सिपहर, तुगलकनामा, आईने-ए-सिकन्दरी, एजाज-ए-खुसरबी, मजनू-लैला, शीरीन-खुसरो, हश्न-बिहश्त, तारीख-ए-दिल्ली, मतला-उल-अनवर, अफजल-वा-कवायद
अमीर खुसरो से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार खुसरो ने संवत 1340 के आस-पास (1283 ई.) रचना करना आरंभ किया।
अमीर खुसरो की पहेलियों और मुकरियों में ‘उक्तिवैचित्र्य’ की प्रधानता है।
खालिकबारी तुर्की, अरबी-फारसी तथा हिन्दी भाषाओं का पर्यायवाची शब्दकोश है।
खुसरो प्रसिद्ध संगीतज्ञ भी थे उन्होंने ही मृदंग को काट कर तबला बनाया, सितार में सुधार किया। कहीं-कहीं मिलता है की पखावज के दो टुकड़े करके तबले का आविष्कार किया।
अमीर ख़ुसरो की प्रसिद्ध पंक्तियाँ
ऐ री सखी मोरे पिया घर आए | बहुत कठिन है डगर पनघट की |
मेरे महबूब के घर रंग है री | आ घिर आई दई मारी घटा कारी |
छाप तिलक सब छीन्हीं रे | ज़िहाल-ए मिस्कीं मकुन तगाफ़ुल |
जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्या | सकल बन फूल रही सरसों |
तोरी सूरत के बलिहारी, निजाम | अम्मा मेरे बाबा को भेजो री |
जब यार देखा नैन भर | बहोत रही बाबुल घर दुल्हन |
हजरत ख्वाजा संग खेलिए धमाल | बहुत दिन बीते पिया को देखे |
मोरा जोबना नवेलरा भयो है गुलाल | काहे को ब्याहे बिदेस |
दैया री मोहे भिजोया री शाह निजम के रंग में | जो पिया आवन कह गए अजहुँ न आए |