दोस्तों यह हिंदी quiz 84 है। यहाँ पर यूजीसी नेट जेआरएफ हिंदी की परीक्षा के प्रश्नों को दिया जा रहा है। यहाँ पर 20011 से लेकर 2013 तक के ugc net हिंदी के प्रश्नपत्रों में अनुच्छेद वाले प्रश्नों का तीसरा भाग दिया जा रहा है। ठीक उसी तरह जैसे अनुच्छेद वाले प्रश्नों का दूसरा भाग nta ugc net hindi quiz 83 में दिया गया था।
निर्देश: निम्नलिखित अवतरण को ध्यानपूर्वक पढ़ें और उससे संबंधित प्रश्नों (प्रश्न संख्या 1 से 5 तक) के उत्तरों के दिये गये बहुविकल्पों में से सही विकल्प का चयन करें। (जून, 2011, II)
कलियुग सब युगों से अच्छा है, क्योंकि इसमें मानस-पाप का कुछ फल नहीं होता, किंतु मानस-पुण्य का पूरा फल मिलता है। राम का नाम राम से भी बड़ा है, भय की कोई ज़रूरत नहीं है। योग ने गृहस्थ को ज़रूरत से ज्यादा संशयालु बना दिया था, भक्ति ने पूरा आशावादी। एक ने मुक्ति को महँगा सौदा बता दिया, दूसरे ने बहुत सस्ता। योग में गलदश्रु भावुकता को कोई स्थान नहीं। जो भक्ति पद-पद पर भक्त को कंप, आवेग, जड़ता और रोमोद्गम की अवस्था ले आ देती है वह इस क्षेत्र में अपरिचित थी और यदि सचमुच ही भाग और विभाग कल्पित हैं, कल्प-विकल्प बेकार हैं, संसार मृग-मरीचिका है, परम तत्त्व विभाग और अविभाग से परे है, सूक्ष्म और स्थूल के अतीत है- यदि वे एक-रस है, समरस है तो फिर रोने से होता क्या है?
1. कलियुग सब युगों से क्यों अच्छा है?
(A) क्योंकि इसमें पाप और पुण्य समान हैं
(B) इसमें मानस पाप का फल मिलता है
(C) इसमें मानस पाप से मनुष्य दंडित नहीं होता है
(D) इसमें मानस पुण्य का फल मिलता है ✅
2. भक्ति ने मुक्ति को क्यों सस्ता बना दिया है?
(A) भक्ति साधना कठिन नहीं है
(B) भक्त की दृष्टि में मुक्ति का कोई महत्त्व नहीं है ✅
(C) भक्ति ईश्वरीय प्रेम के कारण सुलभ है
(D) भक्ति में योग के समान कृच्छ साधना नहीं है
3. योग में गलदश्रु भावुकता को क्यों स्थान नहीं है?
(A) योग साधना कठोर साधना है
(B) योग में भावना को स्थान नहीं है ✅
(C) योग की पद्धति में ज्ञान की शुष्कता है
(D) योग गृहस्थ के लिए दुष्कर है
4. योग और भक्ति ने गृहस्थ को किस रूप में प्रभावित किया है?
(A) गृहस्थ के लिए योग साधना कठिन है
(B) भक्ति में सरसता है, योग में दुष्करता है ✅
(C) भक्ति एक सस्ता सौदा है, योग महंगा
(D) गृहस्थ के लिए भक्ति आकर्षक है, योग में दुष्करता है
5. परम तत्त्व क्या है?
(A) वह अखण्ड चैतन्य स्वरूप है
(B) वह विभाग-अविभाग से परे है ✅
(C) वह गुणहीन-आकारहीन है
(D) वह मायातीत है
निर्देश: निम्नलिखित अवतरण को ध्यानपूर्वक पढ़ें और उससे संबंधित प्रश्नों (प्रश्न संख्या 6 से 10) के उत्तरों के दिए गये बहु विकल्पों में से सही विकल्प का चयन करें: (दिसम्बर, 2011, II)
सच्चे वीर पुरुष धीर, गम्भीर और आज़ाद होते हैं। उनके मन की गंभीरता और शांति समुद्र को तरह विशाल और गहरी या आकाश की तरह स्थिर और अचल होती है। वे कभी चंचल नहीं होते। रामायण में वाल्मीकि जी ने कुंभकर्ण को गाढ़ी नींद में वीरता का एक चिह्न दिखलाया है। सच है, सच्चे वीरों को नींद आसानी से नहीं खुलती। ये सत्वगुण के क्षीर समुद्र में ऐसे डूबे रहते हैं कि इनको दुनिया को खबर ही नहीं होती। वे संसार के सच्चे परोपकारी होते हैं। ऐसे लोग दुनिया के तख्ते को अपनी आँख को पलकों से हलचल में डाल देते हैं। जब ये शेर जागकर गर्जते हैं, तब सदियों तक इनकी आवाज की गूँज सुनाई देती रहती है और सब आवाजें बन्द हो जाती हैं।
6. सच्चे वीर पुरुष कैसे होते हैं?
(A) सुंदर, शांत और चंचल
(B) बुद्धिमान और कायर
(C) तमो और रजोगुण से परिपूर्ण
(D) धीर, गम्भीर और आज़ाद ✅
7. कुंभकर्ण का उल्लेख किस संदर्भ में किया गया है?
(A) वीरता के संदर्भ में
(B) आलस के संदर्भ में
(C) गाढ़ी नींद के संदर्भ में ✅
(D) कायरता के संदर्भ में
8. जब सच्चे वीर जागकर शेर की तरह गर्जते हैं तो क्या होता है?
(A) लोग डरकर भाग जाते हैं
(B) अपनी वीरता खो देते हैं
(C) सदियों तक उनकी आवाज़ की गज सुनाई देती है ✅
(D) युद्ध के मैदान में डट जाते हैं
9. सच्चे वीर के मन की गंभीरता कैसी होती है?
(A) पहाड़ की तरह ऊँची और पानी की तरह तरल
(B) समुद्र की तरह विशाल और आकाश की तरह स्थिर ✅
(C) हवा की तरह अमूर्त और आग की तरह ज्वलनशील
(D) बर्फ की तरह शीतल और चीनी की तरह मीठी
10. इस अवतरण का उपयुक्त शीर्षक क्या हो सकता है?
(A) सच्ची मानवता
(B) सच्ची दयालुता
(C) सच्ची धीरता
(D) सच्ची वीरता ✅
निर्देश: निम्नलिखित अवतरण को ध्यानपूर्वक पढ़ें और उससे संबंधित प्रश्नों (प्रश्न संख्या 11 से 15 तक) के उत्तरों के दिये गये बहु-विकल्पों में से सही विकल्प का चयन करें: (जून, 2012, II)
प्राचीन और मध्यकालीन आर्य भाषाओं- संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश- का क्षेत्र सार्वदेशिक था। जिस रूप में वे उपलब्ध हैं उस रूप में उनका व्याकरणिक ढाँचा भी अलग था। इन भाषाओं में प्रादेशिक निष्ठा नहीं थी, किन्तु जातीय भाषाओं में यह निष्ठा बढ़ी। संस्कृत से प्राकृत, प्राकृत से अपभ्रंश और अपभ्रंश से उत्तर भारत की आधुनिक आर्य भाषाओं का विकास हुआ। ऐसा विश्वास किया जाता रहा है और इसके लिये सिद्धान्त भी गढ़े गये थे। किन्तु अब यह धारणा कि हिंदी या बंगला आदि अपभ्रंश से निकली, खंडित हो चुकी हैं। किन्तु, जातीय भाषाओं ने संस्कृत और अपभ्रंश से बहुत कुछ लिया है। हिंदी ने उनकी विरासत को सबसे अधिक ग्रहण किया- विशेष रूप से अपभ्रंश की विरासत को। शब्द-समूह, उच्चारण तथा व्याकरणिक ढाँचे के अलग होने से अपभ्रंश साहित्य को हिंदी साहित्य का अंग नहीं माना जा सकता। किंतु सांस्कृतिक नैरन्तर्य के लिये उसका अध्ययन आवश्यक है।
11. संस्कृत का क्षेत्र किस सीमा तक विस्तृत था?
(A) प्रादेशिक
(B) सार्वदेशिक ✅
(C) मध्यदेशीय
(D) क्षेत्रीय
12. सांस्कृतिक नैरन्तर्य के लिए किसका अध्ययन आवश्यक नहीं है?
(A) संस्कृत
(B) प्राकृत
(C) ब्रजभाषा ✅
(D) हिंदी
13. जातीय भाषा के रूप में आज किस भाषा को मान्यता प्राप्त है?
(A) प्राकृत
(B) बंगला ✅
(C) अपभ्रंश
(D) संस्कृत
14. अपभ्रंश को हिंदी साहित्य के इतिहास का अंग मानने के लिये क्या आधार होना चाहिए?
(A) शब्द-समूह में भिन्नता होनी चाहिए
(B) व्याकरणिक ढाँचे में भिन्नता होनी चाहिए
(C) उच्चारण में भिन्नता होनी चाहिए
(D) जातीयता में भिन्नता होनी चाहिए ✅
15. संस्कृत से सीधा संबंध किस भाषा का है?
(A) प्राकृत ✅
(B) अपभ्रंश
(C) आधुनिक भारतीय भाषाएँ
(D) हिंदी
निर्देश: निम्नलिखित अवतरण को ध्यानपूर्वक पढ़ें और उससे संबंधित प्रश्नों (प्रश्न संख्या 16 से 20 तक) के उत्तरों के दिये गये बहु-विकल्पों में से सही विकल्प का चयन करें: (दिसम्बर, 2012, II)
यूरोपीय उपन्यास के विकास में पूँजीवादी अर्थतंत्र और मध्य वर्ग का योगदान बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है और अक्सर इस अवधारणा को हिंदी उपन्यास के इतिहास पर भी चस्पाँ कर दिया जाता है। पर हिंदी क्षेत्र की परिस्थितियों को देखते हुए हिंदी उपन्यास के संबंध में इस सामान्यीकरण को संगत नहीं माना जा सकता। 1870-90 की अवधि में हिंदी क्षेत्र में न तो पूँजीवादी अर्थतंत्र का कोई वर्चस्व था, न ही कोई मजबूत मध्य वर्ग पैदा हुआ था। इस समय भारत ब्रिटिश उपनिवेशवाद के चंगुल में तड़फड़ा रहा था और एक विदेशी पूँजीवादी उसका चौतरफा शोषण कर रहा था। इस विदेशी पूँजीवाद की भाषा अंगरेजी थी। इस व्यवस्था के पोषक और सहायक के रूप में अंगरेजी पढ़ा-लिखा मध्य वर्ग वजूद में आ रहा था, पर वह अधिकतर अहिंदी भाषी, विशेष रूप से बंगला भाषी था। दरअसल हिंदी उपन्यास हिंदी भाषी जनता की राष्ट्रीय आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति था।
16. पूँजीवादी अर्थतंत्र और मध्य वर्ग ने साहित्य की किस विधा के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया?
(A) यूरोपीय उपन्यास ✅
(B) भारतीय उपन्यास
(C) हिंदी उपन्यास
(D) बंगला उपन्यास
17. हिंदी उपन्यास के संबंध में किस सामान्यीकरण को संगत नहीं माना जा सकता?
(A) हिंदी उपन्यास के विकास पर पश्चिमी उपन्यासों का भी प्रभाव है
(B) हिंदी उपन्यास पूँजीवाद की देन है ✅
(C) हिंदी उपन्यास में परम्परा से चली आती कथा का भी योगदान है
(D) हिंदी उपन्यास भारतीय जनता की राष्ट्रीय आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति है
18. 1870-90 की अवधि में हिंदी क्षेत्र में किस अर्थतंत्र का वजूद नहीं था?
(A) सामंतवादी अर्थतंत्र
(B) जमींदारी अर्थतंत्र
(C) पुँजीवादी अर्थतंत्र ✅
(D) वाणिज्यिक अर्थतंत्र
19. 1870-90 की अवधि में भारत किसके चंगुल में तड़फड़ा रहा था?
(A) ब्रिटिश उपनिवेशवाद ✅
(B) फ्रॉसीसी उपनिवेशवाद
(C) जर्मन उपनिवेशवाद
(D) ब्रिटिश राष्ट्रवाद
20. हिंदी उपन्यास किसकी राष्ट्रीय आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति था?
(A) हिंदी भाषी जनता ✅
(B) अहिंदी भाषी
(C) अंगरेजी पढ़ा-लिखा वर्ग
(D) मध्य वर्ग
निर्देश: निम्नलिखित अवतरण को ध्यानपूर्वक पढ़ें और उससे संबंधित प्रश्नों (प्रश्न संख्या 21 से 25 तक) के दिए गए बहु-विकल्पों में से सही विकल्प का चयन करें: (जून, 2013, II)
व्यक्ति-संबंध-हीन सिद्धान्त-मार्ग निश्चयात्मिका बुद्धि को चाहे व्यक्त हो, पर प्रवर्तक मन को अव्यक्त रहते हैं। वे मनोरंजनकारी तभी लगते हैं, जब किसी व्यक्ति के जीवन-क्रम के रूप में देखे जाते हैं। शील को विभूतियाँ अनन्त रूपों में दिखाई पड़ती हैं। मनुष्य जाति ने जब से होश संभाला, तब से वह इन अनन्त रूपों को महात्माओं के आचरणों तथा आख्यानों और चरित्र- सम्बन्धी पुस्तकों में देखती चली आ रही है। जब इन रूपों पर मनुष्य मोहित होता है, तब सात्विक शील की ओर आप से आप आकर्षित होता है। शून्य सिद्धान्त वाक्यों में कोई आकर्षण-शक्ति या प्रवृत्तिकारिणी क्षमता नहीं होती। ‘सदा सत्य बोलो’, ‘दूसरों की भलाई करो’, ‘क्षमा करना सीखो’- ऐसे-ऐसे सिद्धान्त वाक्य किसी को बार-बार बकते सुन वैसा ही क्रोध आता है जैसे किसी बेहूदे की बात सुनकर। जो इस प्रकार की बातें करता चला जाय उससे चट कहना चाहिए- ‘बस चुप रहो, तुम्हें बोलने की तमीज नहीं, तुम बच्चों या कोल-भीलों के पास जाओ। ये बातें हम पहले से जानते हैं। मानव-जीवन के बीच हम इसके सौन्दर्य का विकास देखना चाहते हैं। यदि तुम्हें दिखाने की प्रतिभा या शक्ति हो तो दिखाओ, नहीं तो चुपचाप अपना रास्ता लो।’ गुण प्रत्यक्ष नहीं होता, उसके आश्रय और परिणाम प्रत्यक्ष होते हैं। अनुभावात्मक मन को आकर्षित करनेवाले आश्रय और परिणाम हैं, गुण नहीं। ये ही अनुभूति के विषय हैं। अनुभूति पर प्रवृत्ति और निवृत्ति निर्भर हैं। अनुभूति मन की पहली क्रिया है, संकल्प-विकल्प दूसरी। अत: सिद्धान्त-पथों के संबंध में जो आनंदानुभव करने की बातें हैं, जो अच्छी लगने की बातें हैं, वे पथिकों में तथा उनके चारों ओर पाई जाएँगी। सत्पथ के दीपक उन्हीं के हाथ में हैं- या वे ही सत्पथ के दीपक हैं। सत्वोन्मुख प्राणियों के लिए ऐसे पथिकों के सामीप्य-लाभ की कामना करना स्वाभाविक ही है।
21. मनुष्य सात्विक शील की ओर आप ही आप आकर्षित कब होता है?
(A) जब शील की विभूतियों के अनन्त रूपों पर मोहित होता है ✅
(B) शून्य सिद्धान्त वाक्यों को सुनकर
(C) जब वह काव्य गुणों को पढ़ता है
(D) निश्चयात्मक बुद्धि का जब उदय होता
22. प्रवृत्ति और निवृत्ति किस पर निर्भर हैं?
(A) कविता के आस्वादन पर
(B) कविता के गुणों पर
(C) अनुभूति पर ✅
(D) महात्माओं के आचरण पर
23. मन की दूसरी क्रिया क्या है?
(A) अनुभूति
(B) सौन्दर्य
(C) प्रत्यक्षानुभूति
(D) संकल्प-विकल्प ✅
24. व्यक्ति-संबंधहीन सिद्धांत मार्ग मनोरंजनकारी कब लगते हैं?
(A) निश्चयात्मक बुद्धि के अभाव में
(B) सिद्धांतकारी वाक्यों को सुनकर
(C) जब वे किसी व्यक्ति के जीवनक्रम के रूप में देखे जाते हैं ✅
(D) सत्वोन्मुख प्राणियों के वचन सुनकर
25. मानव-जीवन के बीच हम किस सौन्दर्य का विकास देखना चाहते हैं?
(A) संकल्प-विकल्प का
(B) सिद्धांत-वाक्यों में निहित बातों का ✅
(C) बच्चों को अच्छे-अच्छे सिद्धांत वाक्य सुनाने का
(D) गुण-कथन का
निर्देश: निम्नलिखित अवतरण को ध्यानपूर्वक पढ़ें और उससे संबंधित प्रश्नों (प्रश्न संख्या 26 से 30 तक) के उत्तरों के दिए गये बहु-विकल्पों में से सही विकल्प का चयन करें: (दिसम्बर, 2013, III)
‘कल्पना’ और ‘व्यक्तित्व’ की, पाश्चात्य समीक्षा-क्षेत्र में, इतनी अधिक मुनादी हुई कि काव्य के और सब पक्षों से दृष्टि हटकर इन्हीं दो पर जा जमी। ‘कल्पना’ काव्य का बोधपक्ष है। कल्पना में आई रूप-व्यापार-योजना का कवि या श्रोता को अंत:साक्षात्कार का बोध होता है। पर इस बोधपक्ष के अतिरिक्त काव्य का भावपक्ष भी है। कल्पना को रूप योजना के लिए प्रेरित करने वाले और कल्पना में आई हुई वस्तुओं में श्रोता या पाठक को रमानेवाले रति, करुणा, क्रोध, उत्साह, आश्चर्य इत्यादि भाव या मनोविकार होते हैं। इसी से भारतीय दृष्टि ने भावपक्ष को प्रधानता दी और रस के सिद्धान्त को प्रतिष्ठा की। पर पश्चिम में ‘कल्पना’- ‘कल्पना’ की पुकार के सामने धीरे-धीरे समीक्षकों का ध्यान भावपक्ष से हट गया और बोधपक्ष ही पर भिड़ गया। काव्य की रमणीयता उस हल्के आनन्द के रूप में ही मानी जाने लगी जिस आनन्द के लिए हम नई-नई सुंदर भड़कीली और विलक्षण वस्तुओं को देखने जाते हैं। इस प्रकार कवि तमाशा दिखाने वाले के रूप में और श्रोता या पाठक तटस्थ तमाशबीन के रूप में समझे जाने लगे। केवल देखने का आनन्द कुछ विलक्षण को देखने का कुतूहल मात्र होता है।
26. कवि या श्रोता को अंतःसाक्षात्कार बोध किस का होता है?
(A) व्यक्तित्व का
(B) विलक्षणता का
(C) कल्पना में आई रूप-व्यापार-योजना का ✅
(D) मनोविकारों का
27. भारतीय दृष्टि ने काव्य में किस सिद्धांत की प्रतिष्ठा की?
(A) रस सिद्धांत की ✅
(B) कुतूहल सिद्धांत की
(C) कल्पना सिद्धांत की
(D) श्रोता या पाठक की तटस्थता की
28. केवल देखने का आनन्द क्या है?
(A) रसानुभूति
(B) श्रोता या पाठक को काव्य का मर्म समझाना
(C) भावपक्ष को प्रबल बनाना
(D) कुछ विलक्षण को दिखाने का कुतृहल मात्र ✅
29. ‘कल्पना’ काव्य का कौन-सा पक्ष है?
(A) भावपक्ष
(B) बोधपक्ष ✅
(C) रमणीय पक्ष
(D) अलंकार पक्ष
30. काव्य में पाश्चात्य समीक्षा क्षेत्र में सर्वाधिक चर्चा किस तत्त्व को लेकर हुई है?
(A) भावपक्ष की
(B) रस सिद्धांत की प्रतिष्ठा की
(C) काव्य में गम्भीर रमणीयता की
(D) कल्पना और व्यक्तित्व की ✅
निर्देश: निम्नलिखित अवतरण को ध्यानपूर्वक पढ़ें और उससे संबंधित प्रश्नों (प्रश्न संख्या 31 से 35 तक) के दिये गये बहुविकल्पों में से सही विकल्प का चयन कीजिए। (सितंबर, 2013, II)
भूमंडलीकरण के नाम पर अब साम्राज्यवादी व्यवस्था और इसकी उपभोक्तावादी संस्कृति को संसार के उन हिस्सों पर लादने का प्रयास कर रहा है जहाँ अभी तक पारंपरिक या गैर-पूँजीवादी व्यवस्थाएँ थीं। अपने हित की रक्षा में अपने चरित्र के कारण, पूँजीवाद कहीं भी अनियोजित विकास ही करता है। इससे क्षेत्रीय विषमताएँ उभरती हैं और जहाँ भी इसका पैर पड़ता है वहाँ सम्पन्नता और विपन्नता के समूहों का विभाजन होता है। इससे हर जगह आंचलिक या समूहों के बीच संघर्ष उभरते हैं। छोटी खेती और किसानों का अस्तित्व समाप्त होने लगता है और विशाल पैमाने पर बेरोजगारी फैलने लगती है। विशाल पूँजीवादी फार्मों का विकास होता है जिसमें नयी जैविक तकनीकों का बड़े पैमाने पर प्रयोग होता है और इससे संबद्ध बीज और रसायन उत्पादन करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों का विस्तार होता है। व्यापार के अन्तर्राष्ट्रीय पैमाने के साथ-साथ विनिमय की गति को तेज करना जरूरी होता है। इससे नये संचार माध्यमों का बड़े पैमाने पर विकास होता है। तत्काल इंटरनेट से ई-कामर्स की ओर संक्रमण इसी प्रक्रिया का परिणाम है। हालांकि, इससे यह भ्रम पैदा होता है कि संसार के लोग जुड़ रहे हैं और संसार एक “वैश्विक गाँव” बन गया है, परंतु, वास्तव में इससे सिर्फ संसार का एक सम्पन्नवर्ग ही अपनी व्यापारिक या व्यावसायिक हितों के लिए एक-दूसरे से जुड़ता है। प्रत्येक क्षेत्र और देश में नये संचार माध्यमों से संसार से जुड़े समूह अपने ही आस-पास के बहुसंख्यक वंचित समूहों से पूरी तरह कट जाते हैं। संसार का एक नया विभाजन सूचना समृद्ध और सूचना से वंचितों के बीच होता है।
31. भूमंडलीकरण किस प्रकार की संस्कृति को लादने का प्रयास करता है?
(A) नस्लवादी संस्कृति
(B) कर्मवादी संस्कृति
(C) मानवतावादी संस्कृति
(D) उपभोकतावादी संस्कृति ✅
32. पूँजीवाद से किस प्रकार का विकास होता है?
(A) सुनियोजित
(B) अनियोजित ✅
(C) स्थानीय
(D) राष्ट्रीय
33. ‘ई-कॉमर्स’ के विकास की सुविधा सबसे ज्यादा होती है
(A) बहुराष्ट्रीय कम्पनी व्यवस्था में ✅
(B) सामंतवादी व्यवस्था में
(C) समाजवादी व्यवस्था में
(D) लोकतंत्रात्मक व्यवस्था में
34. बहुराष्ट्रीय कंपनियों के विस्तार का संबंध है
(A) यथार्थवाद से
(B) साम्राज्यवाद से ✅
(C) मार्क्सवाद से
(D) सामंतवाद से
35. सूचना-समृद्ध और सूचना-सेवा से वंचितों के बीच भेद किस कारण से खड़ा होता है?
(A) स्थानीयकरण से
(B) राष्ट्रीयकरण से
(C) लोकतंत्रीकरण से
(D) भूमंडलीकरण से ✅