कैमरा तथा विषय (subject) एवं वस्तु (objects) के बीच की दूरियों के आधार पर शॉट्स के विभिन्न प्रकार हो सकते हैं। कैमरे से सब्जेक्ट तथा वस्तु की दूरी विभिन्न प्रकार के प्रभाव तथा अनुभूतियों की रचना करने के लिए होती हैं। शॉट्स के प्रकार पर चर्चा से पहले कुछ शॉट्स संबंधित कुछ ‘की वर्ड’ को जानना जरूरी है।
शॉट्स संबंधित ‘की वर्ड’
शॉट्स संबंधित प्रमुख ‘की वर्ड’ निम्नलिखित हैं-
1. रोल कैमरा (Roll Camera)
‘रोल कैमरा’ एक फिल्म या वीडियो सेट पर दिया गया एक आदेश है जो इंगित करता है कि कैमरा ऑपरेटर को रिकॉर्डिंग शुरू कर देनी चाहिए। यह आम तौर पर निर्देशक (director) या पहले सहायक निर्देशक (assistant director) द्वारा दिया जाता है। यह सब्जेक्ट मूवमेंट से पहले होता है। Roll Camera का आदेश दरअसल कैमरा ऑपरेटर के लिए कैमरे को सही फ्रेम पर सेट करने का आदेश होता है और इंगित करता है कि कैमरा सही गति से चल रहा है। एक बार ‘रोल कैमरा’ कमांड दिए जाने के बाद, कैमरा ऑपरेटर रिकॉर्डिंग शुरू कर देता है और निर्देशक आमतौर पर दृश्य की शुरुआत का संकेत देने के लिए ‘एक्शन’ को कमांड देता है। दृश्य पूरा होने के बाद, निर्देशक रिकॉर्डिंग के अंत का संकेत देने के लिए ‘कट’ करने का आदेश देगा।
2. फ्रेम (Frame)
फोटोग्राफी और फिल्म में, एक फ्रेम कैमरे द्वारा कैप्चर की गई एकल छवि या ‘स्नैपशॉट’ को संदर्भित करता है। फ्रेम वह दृश्य स्थान है जिसे कैमरे के लेंस द्वारा कैप्चर किया जाता है। इसे ‘खिड़की’ के रूप में माना जा सकता है जिसके माध्यम से दर्शक (audience) फिल्माए जा रहे दृश्य को देखते हैं। दरअसल फ्रेम एक स्थिर और अचल छवि होती है जिसे कैमरे द्वारा रिकॉर्ड किया जाता है।
अलग-अलग मूड (moods), भावनाओं (emotions) या विचारों (ideas) को व्यक्त करने के लिए फ्रेम को विभिन्न तरीकों से बनाया जा सकता है। फ्रेम को जूम इन या आउट करके, कैमरे को विषय के करीब या दूर ले जाकर, या कैमरे के कोण (angle) को बदलकर समायोजित किया जा सकता है।
इसके अलावा, फ्रेम को पक्षानुपात (aspect ratio) द्वारा भी समायोजित किया जा सकता है जो फ्रेम की चौड़ाई से ऊंचाई के अनुपात को दर्शाता है। सिनेमा और टेलीविजन के लिए वर्तमान में सामान्य मानक पक्षानुपात 2.35:1 है। इसके आलावा क्षैतिज (widescreen) में 16:9 (ऑनलाइन वीडियो आदि में); लंबवत (vertical) में 9:16 (मोबाईल) तथा वर्ग (square) में 1:1 (इंस्टाग्राम आदि में) के अनुपात का प्रयोग किया जाता है।
फ्रेम का उपयोग दर्शकों का ध्यानाकर्षण और दृश्य की उनकी व्याख्या को निर्देशित करने के लिए भी किया जाता है। अलग-अलग तकनीकों जैसे रूल ऑफ थर्ड्स, लीडिंग लाइन्स, डेप्थ ऑफ फील्ड, क्लोज-अप और लॉन्ग शॉट्स का इस्तेमाल फ्रेम बनाने और एक विशिष्ट संदेश या भावना व्यक्त करने के लिए किया जा सकता है।
3. शॉट (Shot)
फोटोग्राफी और फिल्म में एक शॉट कैमरे द्वारा कैप्चर किए गए फ्रेमों के निरंतर अनुक्रम को दर्शाता है। कई फ्रेमों या छवियों को मिलकर एक shot बनता है। एक शॉट एक फ्रेम जितना छोटा या कई मिनट लंबा हो सकता है। यह सिनेमा की सबसे छोटी इकाई है। शॉट एक फिल्म या वीडियो का एक बुनियादी निर्माण खंड है और इसका उपयोग एक विशिष्ट विचार (specific idea), भावना (emotion) या क्रिया (action) को व्यक्त करने के लिए किया जाता है।
शॉट के अलावा, कहानी कहने में शॉट्स का क्रम भी महत्वपूर्ण है। शॉट्स की एक श्रृंखला जिसे सावधानी से चुना जाता है और क्रम में एक साथ रखा जाता है, एक कहानी बता सकता है, एक मूड बना सकता है या एक संदेश दे सकता है। कट, डिसॉल्व या वाइप जैसे शॉट ट्रांज़िशन का उपयोग शॉट्स को कनेक्ट करने और निरंतरता की भावना पैदा करने के लिए भी किया जा सकता है।
उचित और अनुकूल शॉट्स के प्रयोग करके दर्शकों को फिल्म से जोड़े रखा जा सकता है। गलत शॉट का चयन फिल्म या फोटो को सहज और सरल रूप में फिल्माने में गड़बड़ी पैदा कर सकती है और दर्शकों को असहज और विचलित कर सकती है।
विशिष्ट दृश्य शैली बनाने या किसी विशिष्ट संदेश को संप्रेषित करने के लिए विभिन्न प्रकार के शॉट्स का उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, किसी चरित्र की भावनाओं को दिखाने के लिए एक क्लोज-अप शॉट का उपयोग किया जा सकता है, जबकि एक विस्तृत शॉट का उपयोग स्थान या परिवेश को दिखाने के लिए किया जा सकता है।
एक शॉट विभिन्न तत्वों से बना हो सकता है जैसे कि कैमरे की गति, सब्जेक्ट से कैमरे की दूरी, प्रयुक्त लेंस और शॉट की अवधि। एक विशिष्ट दृश्य प्रभाव बनाने या एक विशिष्ट अर्थ व्यक्त करने के लिए प्रत्येक शॉट को सावधानीपूर्वक नियोजित और निष्पादित किया जा सकता है। ध्वनि, संगीत और संपादन के उपयोग के साथ-साथ विभिन्न दृश्यों का संयोजन किसी फिल्म या वीडियो की दृश्य और भावनात्मक भाषा बनाता है।
4. शॉट कटअवे (Shot Cutaway)
एक शॉट के बाद ‘कट’ होता है, जिसके बाद दूसरा शॉट जोड़ा जाता है, इस प्रक्रिया को ‘कटअवे’ कहते हैं। साधारण भाषा कोड में जो जगह अर्ध विराम और पूर्ण विराम की है, सिनेमा की भाषा में वही स्थान ‘पॉज’ की है। शॉट को जोड़ने के लिए ‘पॉज’ शब्द का प्रयोग होता है। बिना शॉट कटअवे के सिनेमा के परदे पर कहानी कहना मुश्किल है। ये कई बार फेड-इन, फेड-आउट और कई अन्य इफेक्ट के साथ अगले शॉट के पहले जोड़ा जाता है। यही वो क्षण हैं, जब दृश्य परिवर्तन के पहले दर्शक को अगले शॉट में ले जाने का संकेत देने का काम भी करता है।
एक सिनेमैटोग्राफर (Cinematographer) के रूप में, कटअवे शॉट्स शूट करना हमेशा महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह संपादक को रचनात्मक होने और निरंतरता की त्रुटियों को ठीक करने का का अवसर देता है।
आइए अब सिनेमा की भाषा की पहली और सबसे छोटी इकाई शॉट के प्रकार को भी समझते हैं।
कैमरा शॉट के प्रकार (Types of Camera Shot)
फोटोग्राफी और सिनेमा में कहानी कहने के लिए पूरी कहानी को जरूरत के हिसाब से शॉट्स में विभाजित करनी पड़ती है। हर एक शॉट का एक अलग अर्थ होता है। फोटोग्राफी और फिल्म में कई प्रकार के कैमरा शॉट होते हैं, जिनमें शामिल हैं:
(A) कैमरा एंगल
(B) सब्जेक्ट का आकार
(C) कैमरा फ्रेमिंग
(D) कैमरा मूवमेंट
(E) अन्य प्रकार के शॉट
(A) कैमरा एंगल (Camera Angle shot)
फोटोग्राफी और फिल्म में कैमरा एंगल सब्जेक्ट या दृश्य के सापेक्ष कैमरे की स्थिति को दर्शाता है। कैमरा एंगल शॉट का उपयोग विभिन्न प्रकार के दृश्य प्रभाव उत्पन्न करने और विभिन्न मनोदशाओं, भावनाओं या विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए किया जाता है। प्रत्येक शॉट का निर्माण एक विशेष एंगल (कोण) से किया जाता है जो शॉट में अंतर्निहित दृष्टिकोण को दर्शाता है। प्रत्येक शॉट का अपना-अपना अर्थ होता है। दर्शकों के लिए अधिक गतिशील दृश्य अनुभव प्रदान करने के लिए शॉट के संयोजन में कई कैमरा एंगल उपयोग किया जाता है। प्रमुख कैमरा एंगल शॉट निम्नलिखित हैं:
1. नेत्र-स्तर शॉट (Eye-level shot)
नेत्र-स्तर शॉट में कैमरा एंगल सब्जेक्ट की आँखों के बराबर ऊँचाई पर स्थित होता है। यह दिखाता है कि वास्तविक जीवन में सब्जेक्ट कैसा दिखता है। Eye-level shot समानता और तात्कालिकता की भावना पैदा करता है।
2. हाई एंगल (High angle shot)
हाई एंगल शॉट में कैमरा एंगल सब्जेक्ट के ऊपर स्थित होता है, सब्जेक्ट को नीचे की ओर देखते हुए। High angle shot अमूमन सब्जेक्ट को छोटा या कमजोर दिखाता है और हीनता की भावना पैदा करता है।
3. लो एंगल शॉट (Low angle shot)
लो एंगल शॉट में कैमरा एंगल सब्जेक्ट के नीचे स्थित होता है, सब्जेक्ट को ऊपर की ओर देखते हुए। Low angle shot अमूमन सब्जेक्ट को शक्तिशाली या प्रभावी दिखाता है।
4. ओवरहेड शॉट (Overhead shot)
इसे बर्ड आई व्यू शॉट (birds-eye view shot) भी कहा जाता है। यह शॉट किसी लोकेशन को स्थापित करने के लिए बहुत ऊपर से लिया जाता है। इसमें कैमरा का एंगल सीधे सब्जेक्ट के ऊपर स्थित होता है, जो एक विहंगम दृश्य प्रदान करता है। इस शॉट से पता चलता है की संबंधित फोटो या फिल्म किस क्षेत्र, शहर या देश की है।
5. हिप लेवल शॉट (Hip Level Shot)
हिप लेवल शॉट में कैमरा सब्जेक्ट के कमर के ऊपर के भाग को कैप्चर करता है।
6. ग्राउंड लेवल शॉट (Ground Level Shot)
ग्राउंड लेवल शॉट में कैमरा सब्जेक्ट जिस आधार पर चल रहा होता है, उसको कैप्चर करता है। इसमें कैमरे की ऊंचाई सब्जेक्ट के साथ ग्राउंड लेवल पर होती है।
7. घुटने के स्तर का शॉट (Knee Level Shot)
Knee Level Shot में कैमरे की ऊंचाई सब्जेक्ट के घुटनों के बराबर होती है। इसमें यदि कैमरा लो एंगल बना रहा होता है तो वह चरित्र की श्रेष्ठता पर जोर दे रहा होता है।
(B) सब्जेक्ट साइज (subject size)
फिल्म और फोटोग्राफी आदि में शॉट को सब्जेक्ट के आकार (साइज) के आधार पर निर्धारित किया जाता है। यह शॉट मुख्यतः 3 प्रकार का होता है- क्लोज, मीडियम और लांग शॉट। इन्हीं बुनियादी आधारों पर इसे कुछ और भागों में विभाजित किया जाता है।
1. एक्सट्रीम क्लोज शॉट (Extreme Close Shot)
एक्सट्रीम क्लोज शॉट को ‘एक्सट्रीम क्लोज-अप शॉट’ भी कहते हैं। दूसरे क्लोज शॉट के अपेक्षा इसे काफी पास से लिया जाता है और चेहरे के किसी एक भाग को कैप्चर किया जाता है। इस शॉट का प्रयोग चरित्र के चेहरे पर बने महत्वपूर्ण निशान, आँखों, होठों आदि की महत्वपूर्ण और सार्थक गतिविधियों को स्पष्ट रूप में दिखाने के लिए किया जाता है। Extreme Close Shot सब्जेक्ट के चेहरे की विस्तृत भाव-भंगिमा और भावनाओं को व्यक्त करने के लिए किया जाता है। सस्पेंस या ड्रामा की भावना पैदा करने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है, जैसे- किसी पात्र की आँखों के अत्यधिक क्लोज़-अप का उपयोग उनके डर या संदेह को दिखाने के लिए किया जा सकता है।
2. क्लोज शॉट (Close Shot)
क्लोज़ शॉट को ‘क्लोज-अप शॉट’ भी कहा जाता है क्योंकि इस शॉट को पास से लिया जाता है। इसमें मुख्यतः सब्जेक्ट के चेहरे को कवर किया जाता है इसीलिए पृष्ठभूमि बहुत कम दिखाई देती है। इसका उपयोग सब्जेक्ट के चेहरे के भाव और भावनाओं को दिखाने के लिए किया जाता है। कैमरे को सब्जेक्ट के पास ले जाकर या छोटे लेंस का उपयोग करके एक क्लोज-अप शॉट प्राप्त किया जाता है। क्लोज-अप का उपयोग विषय को उनके परिवेश के संदर्भ में दिखाने के लिए भी किया जा सकता है, जैसे- कोई पात्र हथियार पकड़े हुए हो। इसके अतिरिक्त इसका उपयोग पात्रों को अधिक व्यक्तिगत तरीके से दिखाने के लिए भी किया जाता है, जिससे दर्शकों को चरित्र की भावनाओं और विचारों का बोध हो सके।
3. मिड क्लोज शॉट (Mid Close Shot)
मिड क्लोज शॉट को ‘मीडियम क्लोज-अप शॉट’ कहते हैं। इसमें बगल या सीने के निचले हिस्से को फ्रेम किया जाता है। इसे हेड एंड शोल्डर शॉट भी कहा जाता है क्योंकि यह सिर और कंधे दोनों को कैप्चर करता है। इसमें पृष्ठभूमि का कुछ हिस्सा आ जाता है। Mid Close Shot में किसी स्थिति या घटना के परिणाम स्वरूप चरित्र की क्रिया-प्रतिक्रिया या भावनाओं को दिखाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
4. मिड शॉट (Mid Shot)
मिड शॉट को ‘मीडियम शॉट’ भी कहा जाता है। इसे मध्यम दूरी से लिया जाता है, जिसमें विषय को कमर से ऊपर दिखाया जाता है। इसका उपयोग विषय के ऊपरी शरीर के साथ-साथ उनके आसपास के कुछ हिस्सों को दिखाने के लिए किया जाता है। मिड-शॉट एक बहुमुखी शॉट है जिसका उपयोग विभिन्न प्रकार की भावनाओं और विचारों को व्यक्त करने के लिए किया जाता है। कैमरे को सब्जेक्ट के करीब ले जाकर या मध्यम लंबाई के लेंस का उपयोग करके मध्य-शॉट प्राप्त किया जाता है। Mid Shot को अक्सर विषय के चेहरे के भाव और शरीर की भाषा दिखाने के लिए प्रयोग किया जाता है। मध्य-शॉट संवाद दृश्यों के लिए विशेष रूप से उपयोगी होते है।
5. मिड लांग शॉट (mid long Shot)
मिड लांग शॉट को ‘मीडियम लांग शॉट’ कहा जाता है। यह मिड शॉट और लांग शॉट के बीच का शॉट है। इसमें चरित्र को घुटनों के ऊपर से फ्रेम किया जाता है। इसे थ्री-क्वार्टर शॉट भी कहते हैं क्योंकि यह सब्जेक्ट के तीन चौथाई भाग को कवर करता है। Mid Long Shot के माध्यम से पृष्ठभूमि के बारे में पर्याप्त जानकारी मिलती है। इसके माध्यम से चरित्रों की गतिविधियों को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
6. लांग शॉट (Long Shot)
लांग शॉट को ‘वाइड शॉट’ या ‘फुल शॉट’ भी कहा जाता है। यह एक बड़े क्षेत्र या सब्जेक्ट को सिर से पैर तक एक फ्रेम में दिखाता है। यह आमतौर पर एक लोकेशन को दिखाने या दृश्य के लिए संदर्भ प्रदान करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसका उपयोग दर्शकों को सब्जेक्ट के परिवेश, पर्यावरण, या दृश्य के मानकों का बोध कराने के लिए भी किया जाता है। Long Shot लंबे लेंस के साथ या कैमरे को विषय से दूर ले जाकर प्राप्त किया जा सकता है। इस शॉट के माध्यम से चरित्रों और पात्रों की गतिविधियों को पृष्ठभूमि सहित स्पष्ट और व्यापक रूप से दिखाया जाता है। अमूमन इस शॉट का प्रयोग दृश्य की शुरुआत में दृश्य के अंत में किया जाता है।
7. एक्सट्रीम लांग शॉट (Extreme Long Shot)
एक्सट्रीम लांग शॉट को ‘एक्सट्रीम वाइड शॉट’ भी कहा जाता है। इसमें सब्जेक्ट की अपेक्षा पृष्ठभूमि को अधिक प्रमुखता और प्रभावशाली रूप में दिखाया जाता है। अमूमन इस शॉट का प्रयोग शुरुआत में लोकेशन की पृष्ठभूमि को दिखाने के लिए किया जाता है। Extreme Long Shot का प्रयोग सब्जेक्ट को दूर या अपरिचित महसूस कराने के लिए किया जाता है।
(C) कैमरा फ्रेमिंग के आधार पर
सिनेमा और फोटोग्राफी आदि में कैमरा फ्रेमिंग के आधार पर भी शॉट का निर्धारण होता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि शॉट् में सब्जेक्ट की संख्या कितनी है और उनका एक दूसरे तथा कैमरे से कैसा संबंध है। इसके निम्नलिखित प्रकार हैं-
1. सिंगल शॉट (Single Shot)
सिंगल शॉट के फ्रेम में सिंगल सब्जेक्ट को दर्शाया जाता है। अर्थात जब कैमरा एक विषय को कैप्चर करता है तो इसे सिंगल शॉट कहते हैं। Single Shot को किसी भी शॉट आकार में सेट और फ्रेम किया जा सकता है, परंतु फ्रेम के भीतर केवल एक ही चरित्र चित्रित किया जा सकता है।
2. टू शॉट (Two Shot)
टू शॉट के फ्रेम में दो विषयों को दिखाता है। इसका उपयोग दो पात्रों के बीच बातचीत को दर्शाने के लिए किया जाता है। अमूमन संवाद, बैठक या साक्षात्कार जैसे दृश्यों के लिए यह शॉट प्रभावी होता है। Two Shot दो पात्रों और उनके सापेक्ष स्थिति के बीच संबंध स्थापित करने में मदद करते हैं। इसके द्वारा दर्शकों को चरित्र की भावनाओं और विचारों का बोध कराया जाता है। कैमरे को विषयों से मध्यम दूरी पर रखकर और दोनों को शॉट में फ्रेम करके यह शॉट प्राप्त किया जाता है।
3. थ्री शॉट (Three Shot)
थ्री शॉट के फ्रेम में तीन विषयों को दिखाया जाता है। फिल्मों में तीन शॉट काफी महत्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि प्रत्येक चरित्र को दिखाने के लिए 3 सिंगल शूट करने में काफी अधिक समय लगता है। Three Shot के माध्यम से काफी फुटेज को बचाया जा सकता है और चरित्रों के मनोभावों को एक साथ देखा जा सकता है।
4. ओवर द शोल्डर शॉट (Over the Shoulder Shot)
ओवर द शोल्डर शॉट में एक विषय को दूसरे विषय के कंधे के पीछे से दिखाया जाता है। इसका उपयोग दो पात्रों के बीच बातचीत को दर्शाने के लिए किया जाता है। संवाद, बैठक या साक्षात्कार जैसे दृश्यों में भी Over the Shoulder Shot का प्रयोग किया जाता है। यह दो पात्रों और उनके सापेक्ष पदों के बीच संबंध स्थापित करने में मदद करता है।
5. प्वाइंट ऑफ व्यू शॉट (Point of View Shot)
प्वाइंट ऑफ व्यू कैमरा शॉट दर्शकों को वही दिखाता है जो चरित्र देख रहा होता है। इसे किसी व्यक्ति या वस्तु के नजरिए से लिया जाता है ताकि दर्शकों को उस चरित्र में स्थानांतरित किया जा सके। दर्शकों को ऐसा महसूस होता है कि वे कार्रवाई का हिस्सा हैं। इस प्रकार के शॉट का उपयोग अक्सर एक्शन, एडवेंचर और थ्रिलर फिल्मों और वीडियो गेम में किया जाता है।
इसका प्रयोग किसी व्यक्ति को कार चलाने, हवाई जहाज उड़ाने या किसी अन्य प्रकार के उपकरण को चलाने के दृश्य को दिखाने के लिए भी किया जा सकता है। जैसे Point of View Firing Shotमें हथियार रखने वाले और अपने लक्ष्य पर निशाना लगाने वाले व्यक्ति के दृश्य को दिखाने के लिए किया जाता है। POV शॉट के द्वारा Feeling of Motion, Movement और Sense of Speed को व्यक्त किया जाता है।
(D) मूविंग शॉट (moving Shot)
मूविंग शॉट को Dynamic shot (गतिशील शॉट) भी कहा जाता है। इसकी रिकार्डिंग गतिशील कैमरे द्वारा किया जाता है, जहां कैमरा विषय या दृश्य के माध्यम से चलता है। इस प्रकार के शॉट मूवमेंट और गतिशीलता की भावना पैदा करते हैं। moving Shot का उपयोग समय बीतने की भावना व्यक्त करने या किसी दृश्य के माध्यम से किसी सब्जेक्ट का अनुसरण करने के लिए किया जाता है। मूविंग शॉट के कई प्रकार हैं, जिनमें शामिल हैं:
1. Static Shot / Fixed Shot
स्टैटिक शॉट को Fixed Shot भी कहा जाता है। इस शॉट की स्थिति में कैमरा बिलकुल भी नहीं हिलता केवल पात्र, चरित्र और सब्जेक्ट आदि ही हिल-डुल सकते हैं। यदि शॉट की रिकार्डिंग के दौरान कैमरे में कोई गति होती है तो उसे Static Shot नहीं कहा जायेगा। यह शॉट सब्जेक्ट को उसके वातारण में मूव करने पर जोर देता है। इसमें कैमरा तिपाई या डोली पर रखा जाता है जो शॉट के दौरान स्थिर रहता है।
2. जूम शॉट (Zoom Shot)
जूम शॉट को जूम-इन या जूम-आउट शॉट के रूप में भी जाना जाता है। यह एक कैमरा तकनीक है जहाँ लेंस की फोकल लंबाई को बदल कर सब्जेक्ट को पास या दूर करके रिकार्ड किया जाता है। जूम-इन शॉट, जिसे टेलीफोटो शॉट के रूप में भी जाना जाता है, विषय को बड़ा और नजदीकी दिखाता है। वहीं जूम-आउट शॉट, जिसे वाइड शॉट के रूप में भी जाना जाता है, विषय को छोटा और आगे तथा दूर दिखाता है। महत्वपूर्ण बात यह है की इसमें कैमरा जूम नहीं करता, बल्कि लेंस करता है।
Zoom Shot का उपयोग दर्शकों के ध्यान के फोकस को बदलने और कैमरे को भौतिक रूप से हिलाए बिना गति की भावना पैदा करने के लिए किया जाता है। यह फिल्म निर्माताओं और वीडियो निर्माताओं के लिए नाटक और तनाव की भावना पैदा करने का एक शक्तिशाली उपकरण है।
3. डॉली शॉट (Dolly shot)
यह एक ऐसा शॉट है जहाँ कैमरा डॉली पर चढ़ा होता है और सब्जेक्ट या दृश्य के साथ-साथ चलता है। इसे भारी सिनेमा कैमरों को संभालने के लिए बनाया गया। डॉली में कैमरा ऑपरेटर और सहायक ऑपरेटर के लिए विडिओग्राफी करने और कैमरे को नियंत्रित करने के लिए सीटें संलग्न होती हैं। Dolly को पहियों, पटरियों या दोनों के संयोजन पर ले जाया जाता है।
4. डॉली जूम शॉट (Dolly Zoom Shot)
डॉली जूम शॉट में कैमरा की स्थिति और लेंस की फोकल लंबाई को एक साथ बदला जाता है ताकि एक वार्पिंग प्रभाव (warping effect) पैदा किया जा सके। संक्षेप में Dolly Zoom Shot में जूम शॉट और डॉली शॉट दोनों का गुण होता है।
5. ट्रैकिंग शॉट (Tracking Shot)
ट्रैकिंग शॉट को डॉली शॉट के रूप में भी जाना जाता है। इस शॉट में कैमरा सब्जेक्ट के साथ-साथ, पीछे या बगल में डोली, स्टीडिकैम या जिम्बल के माध्यम से चलता है। कैमरे को डोली की पहियों, पटरियों या दोनों के संयोजन पर ले जाया जाता है। इसके द्वारा कैमरा ऑपरेटर शॉट की गति और दिशा को नियंत्रित कर सकता है। ट्रैकिंग शॉट्स का प्रयोग अक्सर फिल्मों में गतिशीलता, मूवमेंट और समय बीतने की भावना व्यक्त करने के लिए किया है। यह फिल्म-निर्माण में सबसे गतिशील दृश्यों में से एक है।
6. पैन शॉट (Pan Shot)
पैन शॉट को पैनिंग शॉट के रूप में भी जाना जाता है। यह एक कैमरा तकनीक है जहाँ कैमरे को एक तिपाई (tripod) या अन्य किसी समर्थन पर रखा जाता है और कैमरा क्षैतिज (horizontal) मूव करता है। Pan Shot में कैमरा या तो दाएं या बाएं तरफ मूव करता है अर्थात कैमरा क्षैतिज अक्ष पर एक तरफ से दूसरी तरफ घुमाता है। इस शॉट का प्रयोग सब्जेक्ट का अनुसरण करने, अधिक दृश्य दिखाने, गतिशीलता और दृश्य के विभिन्न तत्वों के बीच संबंध दिखाने के लिए किया जाता है।
7. टिल्ट शॉट (Tilt shot)
टिल्ट शॉट को टिल्टिंग शॉट के रूप में भी जाना जाता है। यह एक कैमरा तकनीक है जहाँ कैमरा को एक तिपाई (tripod) या अन्य किसी समर्थन पर लगाया जाता है और कैमरा ऊर्ध्वाधर (vertical) मूव करता है। Tilt Shot में कैमरा या तो ऊपर की तरफ या नीचे की तरफ मूव करता है अर्थात कैमरा उर्ध्वाधर अक्ष पर ऊपर-नीचे घूमता है। इस शॉट का प्रयोग किसी गतिमान सब्जेक्ट का अनुसरण करने, अधिक दृश्य दिखाने, गतिशीलता और दृश्य के विभिन्न तत्वों के बीच संबंध दिखाने के लिए किया जाता है। यह दृश्य के किसी विशेष पहलू जैसे- ऊंची इमारत या ऊंचे पेड़ को हाइलाइट करने में भी उपयोगी है।
8. टिल्ट और पैन शॉट (Tilt and Pan Shot)
टिल्ट और पैन शॉट को संयोजन शॉट के रूप में भी जाना जाता है। यह एक कैमरा तकनीक है जहाँ कैमरे को एक तिपाई (tripod) या दूसरे सपोर्ट पर लगाया जाता है और कैमरे का एंगल एक ही समय में क्षैतिज और लंबवत (horizontal & vertical) दोनों में बदल जाता है। Tilt and Pan Shot को किसी भी दिशा और संयोजन में किया जा सकता है। गतिशील विषय का अनुसरण करते हुए यह कई दिशाओं में चलता है। यह एक बहुमुखी कैमरा तकनीक है जिसका उपयोग विभिन्न प्रकार एक्शन दृश्यों से लेकर परिदृश्य तक, मूड और भावनाओं को व्यक्त करने में किया जाता है।
9. क्रेन शॉट (Crane shot)
यह एक ऐसा शॉट है जिसमें कैमरा एक क्रेन पर लगाया जाता है जो विषय का अनुसरण करने या दृश्य का विहंगम दृश्य प्रदान करने के लिए ऊपर और नीचे, या अंदर और बाहर जा सकता है। किसी फिल्म का पहला या अंतिम शॉट बनाने के लिए यह एक शानदार तरीका है।
10. ड्रोन शॉट (Drone shot)
यह एक ऐसा शॉट है जहां कैमरा एक ड्रोन पर लगाया जाता है, जो सब्जेक्ट के ऊपर या साथ स्वतंत्र रूप से उड़ सकता है। इसका प्रयोग हवाई शॉट्स के लिए या सब्जेक्ट का पीछा करने के लिए किया जाता है। Drone shot हेलीकॉप्टरों की तुलना में सस्ते होते हैं और उन जगहों पर भी काम कर सकते हैं जहाँ हेलीकॉप्टर नहीं कर सकते।
11. वायर शॉट्स (Wire Shot)
वायर शॉट में कैमरा स्मूथ और सहज चाल से सब्जेक्ट के ऊपर एक केबल या तार पर चलता है। हेलीकॉप्टर की तुलना में Wire Shot ड्रोन की तरह सब्जेक्ट के बहुत करीब पहुँच जाते हैं। इनका उपयोग अक्सर लाइव संगीत कार्यक्रमों और खेल आयोजनों में किया जाता है।
(E) अन्य प्रकार के शॉट
1. रिवर्स शॉट (Reverse Shot)
रिवर्स शॉट को कटअवे शॉट के रूप में भी जाना जाता है। यह फिल्म, टेलीविजन और वीडियो निर्माण में उपयोग की जाने वाली एक तकनीक है जहाँ कैमरा एक अलग विषय या स्थान के शॉट को पिछले शॉट के जवाब में काटता है। Reverse Shot का उपयोग दो शॉट्स को एक साथ जोड़ने के लिए किया जाता है, जैसे- बात करने वाले व्यक्ति का शॉट, उसके बाद जिस व्यक्ति से वह बात कर रहा है उसका रिवर्स शॉट। रिवर्स शॉट का उपयोग कई तरीकों से किया जा सकता है, जैसे- चरित्र की प्रतिक्रिया और अलग दृष्टिकोण दिखाने के लिए, निरंतरता की भावना और तनाव या ड्रामा पैदा करने के लिए।
2. स्टॉक शॉट (Stock Shot)
स्टॉक शॉट फुटेज का एक पूर्व-रिकॉर्डेड टुकड़ा है जो अन्य प्रस्तुतियों, जैसे फिल्मों, टेलीविजन शो, विज्ञापनों और अन्य दृश्य माध्यमों में उपयोग के लिए उपलब्ध होता है। स्टॉक शॉट्स कुछ भी हो सकते हैं और इन्हें कई तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है, जैसे कि शॉट, बैकग्राउंड फुटेज या बी-रोल स्थापित करने में। स्टॉक शॉट्स का उपयोग अक्सर समय और पैसा बचाने के लिए किया जाता है, क्योंकि इसमें बाहर जाने और नए फुटेज शूट करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। Stock Shot में शहरों, ऐतिहासिक स्थलों, जानवरों, मौसम, यातायात आदि के फुटेज शामिल होते हैं। कुछ स्टॉक फुटेज मुफ्त में उपलब्ध होते हैं, जबकि अन्य खरीदने या लाइसेंसिंग के लिए उपलब्ध होते हैं। इसे फिल्म और टेलीविजन उद्योग के साथ-साथ विज्ञापनों, संगीत वीडियो और ऑनलाइन माध्यमों में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।