संधि की परिभाषा
‘संधि’ संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है- ‘जोड़’ या ‘मेल’। दो निकटवर्ती वर्गों के परस्पर मेल से होने वाले परिवर्तन को ‘संधि’ कहते हैं। “संधि में जब दो अक्षर या वर्ण मिलते है, तब उनकी मिलावट से विकार उत्पन्न होता है। वर्णों की यह विकारजन्य मिलावट ‘संधि’ है।”[1]
भाषा व्यवहार में जब दो पद या शब्द आपस में मिलते हैं तो प्रथम पद की अंतिम ध्वनि और द्वितीय पद की पहली ध्वनि के मेल से जो परिवर्तन होता है उसे संधि कहते हैं। इस प्रक्रिया में कभी पहली, कभी दूसरी या कभी दोनों ध्वनियों में परिवर्तन होता है। यह तीनों स्थितियाँ निम्न प्रकार से होती हैं-
(क) पहली ध्वनि में परिवर्तन, किंतु दूसरी ध्वनि में नहीं, जैसे-
- यथा + अवसर = यथावसर
- मही + इंद्र = महींद्र
(ख) दूसरी ध्वनि में परिवर्तन, किंतु पहली ध्वनि में नहीं, जैसे-
- गिरि + ईश = गिरीश
- सत् + जन = सज्जन
(ग) पहली एवं दूसरी दोनों ध्वनियों में परिवर्तन, जैसे-
- उत् + श्वास = उच्छ्वास
- देव + इंद्र = देवेंद्र
संधि विच्छेद (sandhi viched)
“वर्णों में संधि कभी स्वरों के बीच होती है, तो कभी स्वर और व्यंजन के बीच। इसी तरह कभी विसर्ग और स्वर के साथ होती है और कभी विसर्ग और व्यंजन के साथ।”[2] इन्हीं संधियुक्त पदों को जब अलग-अलग किया जाता है, तब उसे ‘संधि-विच्छेद’ / sandhi viched कहते हैं, जैसे-
- विद्यार्थी = विद्या + अर्थी
- देवालय = देव + आलय
संधि के भेद या प्रकार (types of sandhi)
वर्णों के आधार पर संधि के तीन भेद हैं—
(A) स्वर संधि, (B) व्यंजन संधि और (C) विसर्ग संधि
(A) स्वर संधि (swar sandhi)
दो स्वरों के परस्पर मेल के कारण जब एक या दोनों स्वरों में विकार या रूप-परिवर्तन होता है तो उसे ‘स्वर संधि’ कहते हैं।
स्वर संधि के भेद
स्वर संधि के निम्नलिखित पाँच भेद हैं-
1. दीर्घ स्वर संधि, 2. गुण स्वर संधि, 3. वृद्धि स्वर संधि, 4. यण स्वर संधि, 5. अयादि स्वर संधि
1. दीर्घ स्वर संधि (dirgh sandhi)
(सूत्र- अंक: सवर्णे दीर्घ:)
“एक ही स्वर के दो (सवर्ण) रूप- ह्रस्व या दीर्घ- एक दूसरे के बाद आ जायँ, तो दोनों जुड़कर दीर्घ रूपवाला स्वर हो जाता है।”[3]
अर्थात यदि ‘अ’, ‘आ’, ‘इ’, ‘ई’, ‘उ’, ‘ऊ’, ‘ऋ’ स्वर के बाद समान स्वर ‘अ’, ‘आ’, ‘इ’, ‘ई’, ‘उ’, ‘ऊ’, ‘ऋ’ आये, तो दोनों मिलकर क्रमशः दीर्घ ‘आ’, ‘ई’, ‘ऊ’, ‘ऋ’ स्वर हो जाते हैं। जैसे-
(i) अ + अ = आ
मत + अनुसार = मतानुसार | सूर्य + अस्त = सूर्यास्त |
अन्न + अभाव = अन्नाभाव | देव + अर्चन = देवार्चन |
सत्य + अर्थी = सत्यार्थी | स्वर + अर्थी = स्वार्थी |
धर्म + अर्थ = धर्मार्थ | राम + अवतार = रामावतार |
उत्तम + अंग = उत्तमांग | दैत्य + अरि = दैत्यारि |
अद्य + अवधि = अद्यावधि | वेद + अंत = वेदांत |
देह + अंत = देहांत | परम + अणु = परमाणु |
शरण + अर्थी = शरणार्थी | वीर + अंगना = वीरांगना |
अधिक + अधिक = अधिकाधिक | स्व + अर्थ = स्वार्थ |
अधि + अंश = अधिकांश | शास्त्र + अर्थ = शास्त्रार्थ |
पर + अधीन = पराधीन | अर्ध + अंगिनी = अर्धागिनी |
परम + अर्थ = परमार्थ | कृष्ण + अवतार = कृष्णावतार |
अन्य + अन्य = अन्यान्य | शस्त्र + अस्त्र = शस्त्रास्त्र |
धन + अर्थी = धनार्थी |
(ii) अ + आ = आ
शुभ + आरंभ = शुभारंभ | प्राण + आयाम = प्राणायाम |
हिम + आलय = हिमालय | रत्न + आकर = रत्नाकर |
सत्य + आग्रह = सत्याग्रह | नील + आकाश = नीलाकाश |
आयत + आकार = आयताकार | न्याय + आलय = न्यायालय |
स + आकार = साकार | स + आंनद = सानंद |
मरण + आसन्न = मरणासन्न | विस्मय + आदि = विस्मयादि |
धर्म + आत्मा = धर्मात्मा | पुस्तक + आलय = पुस्तकालय |
भोजन + आलय = भोजनालय | कुश + आसन = कुशासन |
शिव + आलय = शिवालय | देव + आलय = देवालय |
(iii) आ + अ = आ
दीक्षा + अंत = दीक्षांत | सीमा + अंकित = सीमांकित |
विद्या + अनुराग = विद्यानुराग | यथा + अर्थ = यथार्थ |
कदा + अपि = कदापि | रेखा + अंकित = रेखांकित |
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी | शिक्षा + अर्थी = शिक्षार्थी |
माया + अधीन = मायाधीन | आज्ञा + अनुपालन = आज्ञानुपालन |
वर्षा + अंत = वर्षांत | सीमा + अंत = सीमांत |
व्यवस्था + अनुसार = व्यवस्थानुसार | परीक्षा + अर्थी = परीक्षार्थी |
(iv)आ + आ = आ
विद्या + आलय = विद्यालय | दया + आनंद = दयानंद |
आत्मा + आनंद = आत्मानंद | श्रद्धा + आनंद = श्रद्धानंद |
वार्ता + आलाप = वार्तालाप | महा + आनंद = महानंद |
महा + आशय = महाशय | गदा + आघात = गदाघात |
महा + आशय = महाशय | महा + आत्मा = महात्मा |
(v) इ + इ = ई
कवि + इंद्र = कवीन्द्र | गिरि + इंद्र = गिरींद्र |
मुनि + इंद्र = मुनींद्र | क्षिति + इंद = क्षितिन्द्र |
अभि + इष्ट = अभीष्ट | हरि + इच्छा = हरीच्छा |
अति + इव = अतीव | कपि + इंद्र = कपीन्द्र |
रवि + इंद्र = रविन्द्र | प्रति + इति = प्रतीति |
रवि + इंद्र = रवींद्र |
(vi) इ + ई = ई
अधि + ईश्वर = अधीश्वर | हरि + ईश = हरीश |
गिरि + ईश = गिरीश | कपि + ईश = कपीश |
कवि + ईश = कवीश | वारि + ईश = वारीश |
कवि + ईश्वर = कविश्वर | मुनि + ईश्वर = मुनीश्वर |
परि + ईक्षा = परीक्षा |
(vii) ई + इ = ई
मही + इंद्र = महींद्र | लक्ष्मी + इच्छा = लक्ष्मीच्छा |
नारी + इंद्र = नारीन्द्र | शती + इंद्र = शचीन्द्र |
पत्नी + इच्छा = पत्नीच्छा | नारी + इच्छा = नारीच्छा |
सती + इच्छा = सतीच्छा | महती + इच्छा = महतीच्छा |
नदी + इद्र = नदीन्द्र | देवी + इच्छा = देवीच्छा |
(viii) ई + ई = ई
रजनी + ईश = रजनीश | श्री + ईश = श्रीश |
जानकी + ईश = जानकीश | गौरी + ईश = गौरीश |
सती + ईश = सतीश | मही + ईश = महीश |
पृथ्वी + ईश्वर = पृथ्वीश्वर | पृथ्वी + ईश = पृथ्वीश |
नारी + ईश्वर = नारीश्वर | लक्ष्मी + ईश = लक्ष्मीश |
नदी + ईश = नदीश (समुद्र) |
(ix) उ + उ = ऊ
- विधु + उदय = विधूदय
- सु + उक्ति = सूक्ति
- भानु + उदय = भानूदय
- गुरु + उपदेश = गुरूपदेश
- लघु + उत्तर = लघूत्तर
(x) उ + ऊ = ऊ
- लघु + ऊर्मि = लघूर्मि
- बहु + ऊर्ध्व = बहूर्ध्व
- धातु + ऊष्मा = धतूष्मा
- अंबु + ऊर्मि = अबूंर्मि
- सिंधु + ऊर्मि = सिंधूर्मि
- भानु + ऊर्ध्व = भानूवर्ध्व
(xi) ऊ + उ = ऊ
स्वयंभू + उदय = स्वयंभूदय | चमू + उत्तम = चमूत्तम |
भू + ऊर्जा = भूर्जा | वधू + उत्सव = वधूत्सव |
भू – उत्सर्ग = भूत्सर्ग | वधू + उपालंभ = वधूपालंभ |
भू + उद्धार = भूद्धार | वधू + ऊर्मि = वधूर्मि |
भू + उद्गार = भूद्गार | वधू + उपकार = वधूपकार |
भू + उर्ध्व = भूर्ध्व | साधु + उत्सव = साधूत्सव |
(xii) ऊ + ऊ = ऊ
- भू + उर्जा = भूर्जा
- वधू + ऊर्मि = वधूर्मि
- भ्रू + ऊर्ध्व = भ्रूर्ध्व
- सरयू + ऊर्मि = सरयूर्मि
- भू + ऊष्मा = भूष्मा
(xiii) ऋ + ऋ = ऋ
- पितृ + ऋण = पितृण
- मातृ + तृण = मातृण
- भ्रात् + रिद्वि = भ्रातृद्वि
2. गुण स्वर संधि (gun sandhi)
(सूत्र- आद्गुण:)
यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘इ’ या ‘ई’, ‘उ’ या ‘ऊ’ और ‘ऋ’ स्वर आए तो दोनों के स्थान पर क्रमश: ‘ए’, ‘ओ’ और ‘अर्’ हो जाता है। जैसे-
(i) अ + इ = ए
देव + इंद्र = देवेंद्र | राज + इंद्र = राजेंद्र |
नर + इंद्र = नरेंद्र | वीर + इंद्र = वीरेंद्र |
सुर + इंद = सुरेंद्र | धर्म + इंद्र = धर्मेंद्र |
पुष्प + इंद्र = पुष्पेंद्र | उप + इंद्र = उपेंद्र |
सत्य + इंद्र = सत्येंद्र | स्व + इच्छा = स्वेच्छा |
भारत + इंदु = भारतेंदु | शुभ + इच्छा = शुभेच्छा |
(ii) अ + ई = ए
देव + ईश = देवेश | गण + ईश = गणेश |
परम + ईश्वर = परमेश्वर | दिन + ईश = दिनेश |
नर + ईश = नरेश | कमल + ईश = कमलेश |
सुर + ईश = सुरेश | सर्व + ईश्वर = सर्वेश्वर |
सोम + ईश = सोमेश |
(iii) आ + इ = ए
- महा + इंद्र = महेंद्र
- रमा + इंद्र = रमेन्द्र
- यथा + इष्ट – यथेष्ट
- राजा + इंद्र = राजेन्द्र
(iv) आ + ई = ए
- रमा + ईश = रमेश
- लंका + ईश = लंकेश
- महा + ईश = महेश
- महा + ईश्वर = महेश्वर
- उमा + ईश = उमेश
- राका + ईश = राकेश
- राजा + ईश = राजेश
(v) अ + उ = ओ
चंद्र + उदय = चंद्रोदय | पर + उपकार = परोपकार |
सूर्य + उदय = सूर्योदय | देश + उपकार = देशोपकार |
सर्व + उदय = सर्वोदय | रोग + उपचार = रोगोपचार |
पूर्व + उदय = पूर्वोदय | लोक + उपचार = लोकोपचार |
बंसत + उत्सव = बसंतोत्सव | वीर + उचित = वीरोचित |
विवाह + उत्सव = विवाहोत्सव | हित + उपदेश = हितोपदेश |
वार्षिक + उत्सव = वार्षिकोत्सव | लोक + उक्ति = लोकोक्ति |
महा + उत्सव = महोत्सव | नर + उत्तम = नरोत्तम |
नील + उत्पल = नीलोत्पल |
(vi) अ + ऊ = ओ
- समुद्र + ऊर्मि = समुद्रोर्मि
- उच्च + ऊर्ध्व = उच्चोर्ध्व
- नव + ऊढ़ा = नवोढ़ा
- सूर्य + ऊर्जा = सूर्योर्जा
- जल + ऊर्मि = जलोर्मि
(vii) आ + उ = ओ
महा + उत्सव = महोत्सव | महा + उदय = महोदय |
महा + उष्ण = महोष्ण | महा + उद्यम = महोद्यम |
महा + उपकार = महोपकार | महा + उदधि = महोदधि |
महा + ऊष्ण = महोष्ण | गंगा + उदक = गंगोदक |
विद्या + उन्नति = विद्योन्नति |
(viii) आ + ऊ = ओ
- गंगा + ऊर्मि = गंगोर्मि
- महा + ऊर्जा = महोर्जा
- महा + ऊर्मि = महोर्मि
- महा + ऊष्मा = महोष्मा
- महा + ऊर्ध्व = महोर्ध्व
- दया + ऊर्मि = दयोर्मि
(ix) अ + ऋ = अर्
- देव + ऋषि = देवर्षि
- ब्रह्म + ऋषि = ब्रह्मर्षि
- सप्त + ऋषि = सप्तर्षि
(x) आ + ऋ = अर्
- महा + ऋषि = महर्षि
- राजा + ऋषि = राजर्षि
3. वृद्धि स्वर संधि (vriddhi sandhi)
(सूत्र- वृद्धिरेचि)
यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘ए’ या ‘ऐ’ स्वर आए, तो दोनों के स्थान में ‘ऐ’ हो जाता है तथा ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘ओ’ या ‘औ’ आए, तो दोनों के स्थान में ‘औ’ हो जाता है। जैसे-
(i) अ + ए = ऐ
- एक + एक = एकैक
- वित + एषणा = वितैषणा
- लोक + एषणा = लोकैषणा
(ii) अ + ऐ = ऐ
- नव + ऐश्वर्य = नवैश्वर्य
- भाव + ऐक्य = भवैक्य
- मत + ऐक्य = मतैक्य
(iii) आ + ए = ऐ
- सदा + एव = सदैव
- तथा + एव = तथैव
(iv) आ + ऐ = ऐ
- महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य
(v) अ + ओ = औ
- परम + ओजस्वी = परमौजस्वी
- परम + ओज = परमौज
- जल + ओघ = जलौघ
- दंत + ओष्ठ = दंतौष्ठ
- वन + ओषधि = वनौषधि
(vi) अ + औ = औ
- परम + औषध = परमौषध
- परम + औदार्य = परमौदार्य
- देव + औदार्य = देवौदार्य
(vii) आ + ओ = औ
- महा + ओजस्वी = महौजस्वी
- महा + ओज = महौज
(viii) आ + औ = औ
- महा + औषध = महौषध
- महा + औषधि = महौषधि
- महा + औत्सुक्य = महोत्सुक्य
- महा + औदार्य = महौदार्य
- महा + औघ = महौघ
4. यण् स्वर संधि (yan sandhi)
(सूत्र- एकोयणचि)
यदि ‘इ’, ‘ई’, ‘उ’, ‘ऊ’ और ‘ऋ’ के बाद कोई भिन्न स्वर (असवर्ण) आए, तो ‘इ’ और ‘ई’ का ‘य्’, ‘उ’ और ‘ऊ’ का ‘व्’ तथा ‘ऋ’ का ‘र्’ हो जाता है, और पहले शब्द का अंतिम व्यंजन स्वर रहित हो जाता है। इस प्रकार yan sandhi की तीन स्थितियाँ बनती हैं-
नियम 1. इ / ई + असमान स्वर = य
(i) इ + अ = य
- यदि + अपि = यद्यपि
- अति + अधिक = अत्यधिक
- अति + अन्त = अत्यन्त
- अति + अल्प = अत्यल्प
(ii) ई + अ = य
- नदी + अम्बु = नद्यम्बु
(iii) इ + आ = या
अति + आवश्यक = अत्यावश्यक | वि + आप्त = व्याप्त |
इति + आदि = इत्यादि | परि + आवरण = पर्यावरण |
अति + आनंद = अत्यानंद | अभि + आगत = अभ्यागत |
अति + आचार = अत्याचार |
(iv) ई + आ = या
- सखी + आगमन = सख्यागमन
- देवी + आगम = देव्यागम
- नदी + आगम = नद्यागम
- नदी + आमुख = नद्यामुख
(v) इ + उ = यु
- अति + उत्तम = अत्युत्तम
- उपरि + युक्त = उपर्युक्त
- प्रति + उपकार = प्रत्युपकार
(vi) इ + ऊ = यू
- अति + ऊष्ण = अत्यूष्म
- अति + ऊर्ध्व = अत्यूर्ध्व
- नि + ऊन = न्यून
- वि + ऊह = व्यूह
(vii) ई + उ = यु
- स्त्री + उपयोगी = स्त्रीयुपयोगी
(viii) ई + ऊ = यू
- नदी + ऊर्मि = नद्यूर्मि
(ix) इ + ए = ये
- प्रति + एक = प्रत्येक
- अधि + एषणा = अध्येषणा
(x) इ + ऐ = यै
- अति + एश्वर्य = अत्यैश्वर्य
(xi) ई + ऐ = यै
- सखी + ऐक्य = सख्यैक्य
- देवी + ऐश्वर्य = देव्यैश्वर्य
- नदी + ऐश्वर्य = नद्यैश्वर्य
(xii) इ + ओ = यो
- अति + ओज = अत्योज
- दधि + ओदन = दध्योदन
(xiii) इ + औ = यौ
- अति + औदार्य = अत्यौदार्य
- अति + औचित्य = अत्यौचित्य
(xiv) ई + औ = यौ
- वाणी + औचित्य = वाण्यौचित्य
नियम 2. उ / ऊ + असमान स्वर = व
(i) उ + अ = व
- अनु + अय = अन्वय
- मनु + अंतर = मवंतर
- सु + अच्छ = स्वच्छ
- मधु + अरि = मध्वरि
- सु + अल्प = स्वल्प
(ii) उ + आ = वा
- मधु + आलय = मध्वालय
- लघु + आदि = लघ्वादि
- सु + आगत = स्वागत
(iii) उ + इ = वि
- अनु + इति = अन्विति
- अनु + इत = अन्वित
उ + ई = वी
- अनु + ईषण = अन्वीक्षण
(iv) उ + ए = वे
- प्रभु + एषणा = प्रभ्वेषणा
- अनु + एषण = अन्वेषण
(v) उ + ऐ = वै
- अल्प + ऐश्वर्य = अल्पेश्वर्य
(vi) उ + ओ = वो
- गुरु + ओदन = गुरूदन
- लघु + ओष्ठ = लघ्वोष्ठ
(vii) उ + औ = वौ
- गुरु + औदार्य = गुर्वोदार्य
(viii) ऊ + आ = वा
- वधू + आगम = वध्यागम
(ix) ऊ + ऐ = एै
- वधू + ऐश्वर्य = वध्वैश्वर्य
(c) ऋ + असमान स्वर = र
(i) ऋ + अ = र
- पितृ + अनुमति = पित्रनुमति
- धातृ + अंश = धात्रांश
(ii) ऋ + आ = रा
- पितृ + आदेश = पित्रादेश
- पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
- मातृ + आज्ञा = मात्राज्ञा
- मातृ + आनंद = मात्रानंद
(iii) ऋ + इ = रि
- पितृ + इच्छा = पित्रिच्छा
- मातृ + इच्छा = मात्रिच्छा
(vi) ऋ + उ = रु
- मातृ + उपदेश = मात्रुपदेश
5. अयादि स्वर संधि (ayadi sandhi)
(सूत्र- एचोऽयवायाव:)
यदि ‘ए’, ‘ऐ’ अथवा ‘ओ’, ‘औ’ के बाद कोई भिन्न स्वर आए, तो ‘ए’ का ‘अय्’, ‘ऐ’ का ‘आय्’, ‘ओ’ का ‘अव्’ और ‘औ’ का ‘आव’ हो जाता है। जैसे-
(i) ए + अ = अय
- ने + अन = नयन
- शे + अन = शयन
- चे + अन = चयन
(ii) ऐ + अ = आय
- नै + अक = नायक
- गै + अक = गायक
(iii) ओ + अ = अव्
- पो + अन = पवन
- भो + अन = भवन
- श्रो + अन = श्रवण
(iv) औ + अ = आव्
- पौ + अन = पावन
- पौ + अक = पावक
- श्रौ + अन = श्रावण
(v) औ + इ = आवि
- नौ + इक = नाविक
- पौ + इत्र = पवित्र
(vi) औ + उ = आवु
- भौ + उक = भावुक
(B) व्यंजन संधि (vyanjan sandhi)
किसी व्यंजन के बाद किसी स्वर या व्यंजन के आने से उस व्यंजन में जो परिवर्तन होता है, वह ‘व्यंजन संधि’ कहलाता है। “व्यंजन से स्वर या व्यंजन के मेल से उत्पन्न विकार को ‘व्यंजन संधि’ कहते हैं।”[4] जैसे-
वाक् + हरि = वाग्घरि
व्यंजन संधि (vyanjan sandhi) के निम्नलिखित नियम हैं-
नियम 1. यदि ‘क्’, ‘च्’, ‘ट्’, ‘त्’, ‘प्’ व्यंजन के बाद किसी वर्ग का तृतीय या चतुर्थ वर्ण आए, ‘य’, ‘र’, ‘ल’, ‘व’ आए या कोई स्वर आए, तो ‘क्’, ‘च्’, ‘ट्’, ‘त्’, ‘प्’ के स्थान पर अपने ही वर्ग का तीसरा वर्ण (क्रमशः ‘ग्’, ‘ज्’, ‘ड्’, ‘द्’, ‘ब्’) हो जाता है। जैसे-
दिक + गज = दिग्गज | सत् + धर्म = सद्धर्म |
दिक् + अंत = दिगंत | सत् + वाणी = सद्वाणी |
दिक् + दर्शन = दिग्दर्शन | सत् + गति = सद्गति |
दिक + भ्रम = दिग्भ्रम | सत् + उपयोग = सदुपयोग |
दिक् + अंबर = दिगंबर | सत् + भावना = सद्भावना |
दिक् + विजय = दिग्विजय | जगत् + अम्बा = जगदम्वा |
वाक् + जाल = वाग्जाल | जगत् + गुरू = जगद्गुरू |
वाक् + ईश = वागीश | जगत् + आधार = जगदाधार |
वाक् + दत्ता = वाग्दत्ता | जगत् + आनंद = जगदानंद |
तत् + अनुसार = तद्नुसार | अच + अंत = अजंत |
तत् + भव = तद्भव | षट् + दर्शन = षड्दर्शन |
तत् + रूप = तद्रूप | भगवत् + भजन = भगवद्भजन |
उत् + धार = उद्धार | भगवत + गीता = भगवद्गीता |
अप् + ज = अब्ज (कमल) | ऋक् + वेद = ऋग्वेद |
नियम 2. यदि वर्णों के प्रथम वर्ण (‘क्’, ‘च्’, ‘ट्’, ‘त्’, ‘प्’) के बाद ‘न्’ या ‘म्’ वर्ण / व्यंजन आए, तो उनके (‘क्’, ‘च्’, ‘ट्’, ‘त्’, ‘प्’) स्थान पर क्रमश: उसी वर्ग का पाँचवाँ वर्ण हो जाता है। जैसे-
उत् + नयन = उन्नयन | षट् + मार्ग = षणमार्ग |
उत् + नायक = उन्नायक | षट् + मास = षण्मास |
उत् + नति – उन्नति | षट् + मुख = षण्मुख |
उत् + मत्त = उन्मत्त | सत् + मार्ग = सन्मार्ग |
उत् + मेष = उन्मेष | सत् + नारी = सन्नारी |
तत् + नाम = तन्नाम | सत् + मित्र = सन्मित्र |
तत् + मय = तन्मय | सत् + मति = सन्मति |
वाक् + मय = वाङ्मय | जगत् + नाथ = जगन्नाथ |
चित् + मय = चिन्मय | दिक् + नाग = दिङ्नाग |
अप् + मय = अम्मय |
नियम 3. यदि ‘म्’ व्यंजन के बाद कोई स्पर्श व्यंजन वर्ण आए, तो ‘म्’ का अनुस्वार या बाद वाले वर्ण के वर्ग का पाँचवाँ वर्ण (ङ्, ञ्, ण्, न्, म्) हो जाता है। जैसे-
अहम् + कार = अहंकार | पम् + चम = पंचम |
किम् + चित = किंचित | सम् + गम = संगम |
सम् + कल्प = संकल्प | सम् + पूर्ण = सम्पूर्ण |
सम् + गत = संगत | सम् + बंध = संबंध |
सम् + जय = संजय | सम् + ध्या = संध्या |
सम् + कीर्ण = संकीर्ण | सम् + तोष = संतोष |
सम् + चित = संचित | सम् + घर्ष = संघर्ष |
सम् + जीवनी = संजीवनी | परम + तु = परंतु |
सम् + चय = संचय |
नियम 4. यदि ‘म्’ व्यंजन के बाद ‘य्’, ‘र्’, ‘ल्’, ‘व्’, ‘स्’, ‘श्’, ‘ह्’ आए, तो ‘म्’ का अनुस्वार हो जाता है। जैसे-
सम् + रक्षक = संरक्षक | सम् + हार = संहार |
सम् + रक्षा = संरक्षा | सम् + शय = संशय |
सम् + रक्षण = संरक्षण | सम् + लग्न = संलग्न |
सम् + वत = संवत | सम् + योग = संयोग |
सम् + यम = संयम | सम् + वर्धन = संवर्धन |
सम् + विधान = संविधान | सम् + वहन = संवहन |
सम् + स्मरण = संस्मरण | सम् + युक्त = संयुक्त |
नियम 5. यदि ‘म्’ व्यंजन के बाद ‘म्’ आए तो ‘म्’ का द्वित्व हो जाता है। जैसे-
म् + म = म्म
- सम् + मान = सम्मान
- सम् + मानित = सम्मानित
- सम् + मोहन = सम्मोहन
- सम् + मिलित = सम्मिलित
- सम् + मिश्रण = सम्मिश्रण
- सम् + मति = सम्मति
नियम 6. यदि ‘त्’ व्यंजन के बाद ‘च’ या ‘छ’ आए तो ‘त्’; ‘च्’ में बदल जाता है। जैसे-
त् + च / छ = च्च / च्छ
- उत् + चारण = उच्चारण
- सत् + चरित्र = सच्चरित्र
- सत् + चित् = सच्चित्
- उत् + छिन्न = उच्छिन्न
- जगत + छाया = जगच्छाय
नियम 7. यदि व्यंजन ‘त्’ के बाद ‘ज्’ आए तो ‘त्’; ‘ज्’ में बदल जाता है। जैसे-
त् + ज् = ज्ज
- सत् + जन = सज्जन
- उत् + ज्वल = उज्ज्वल
नियम 8. यदि व्यंजन ‘त्’ के बाद ‘ड’ आए तो ‘त्’; ‘ड्’ में बदल जाता है। जैसे-
त् + ड = ड्ड
उत् + डयन = उड्डयन
नियम 9. यदि ‘त्’ व्यंजन के बाद ‘ल’ आए तो ‘त्’; ‘ल’ में बदल जाता है। जैसे-
त् + ल = ल्ल
- उत् + लेख = उल्लेख
- उत् + लास = उल्लास
- तत् + लीन = तल्लीन
नियम 10. यदि ‘त्’ व्यंजन के बाद ‘श्’ आए तो ‘त्’; ‘च्’ में और ‘श्’, ‘छ्’ में बदल जाता है। जैसे-
त् + श् = च्छ्
- उत् + श्वास = उच्छ्वास
- उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट
- तत् + शिव = तच्छिव
- सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र
- तत् + शंकर = तच्छंकर
नियम 11. यदि ‘त्’ व्यंजन के बाद ‘ह्’ आए तो ‘त्’; ‘द्’ में और ‘ह्’; ‘ध’ में बदल जाता है। जैसे-
त् + ह् = द्ध
- उत + हार = उद्धार
- उत् + हत = उद्धत
- उत् + हरण = उद्धरण
- पद् + हति = पद्धति
नियम 12. यदि ‘न्’ के बाद ‘ल’ आए तो ‘न’ का अनुनासिक के साथ ‘ल’ हो जाता है। जैसे-
न् + ल = ल
महान् + लाभ = महाँल्लाभ
नियम 13. यदि ‘ऋ’, ‘र’, ‘ष’ व्यंजन के बाद ‘न’ व्यंजन आए तो उसका ‘ण’ हो जाता है। भले ही दोनों व्यंजनों के बीच ‘क’ वर्ग, ‘प’ वर्ग, अनुस्वार, ‘य’, ‘व’, ‘ह’ आदि में कोई भी एक वर्ण क्यों न आए। जैसे-
ऋ + न = ऋण | परि + मान = परिमाण |
प्र + मान = प्रमाण | परि + नाम = परिणाम |
शोष् + अन = शोषण | तृष् + ना = तृष्णा |
भर + न = भरण | कृष् + न = कृष्ण |
विष् + नु = विष्णु | भूष + अन = भूषण |
किम् + तु = किंतु | हर + न = हरण |
पूर् + न = पूर्ण |
नियम 14. यदि ‘स्’ व्यंजन से पहले (अ/आ से भिन्न) कोई भी स्वर आए तो ‘स्’; ‘ष्’ में बदल जाता है। जैसे-
अभि + सेक = अभिषेक | नि + सेध = निषेध |
अभि + सिक्त = अभिषिक्त | नि + सिद्ध = निषिद्ध |
सु + समा = सुषमा | अनु + संगी = अनुषंगी |
सु + सुप्ति = सुषुप्ति |
अपवाद:
- अनु + सरण = अनुसरण
- वि + स्मरण = विस्मरण
- अनु + स्वार = अनुस्वार
नियम 11. यदि किसी स्वर के बाद ‘छ’ आए, तो ‘छ’ के पहले ‘च्’ जुड़ जाता है। जैसे-
अनु + छेद = अनुच्छेद | स्व + छंद = स्वच्छंद |
परि + छेद = परिच्छेद | वृक्ष + छाया = वृक्षच्छाया |
संधि + छेद = संधिच्छेद | छत्र + छाया = छत्रच्छाया |
वि + छेद = विच्छेद | शाला + छादन = शालाच्छादन |
आ + छादन = आच्छादन | लक्ष्मी + छाया = लक्ष्मीच्छाया |
(C) विसर्ग संधि (visarga sandhi)
विसर्ग के बाद किसी स्वर या व्यंजन के आने से विसर्ग में जो परिवर्तन या विकार होता है, वह ‘विसर्ग संधि’ कहलाता है।
विशेष- विसर्ग हमेशा किसी न किसी स्वर के बाद ही आता है, व्यंजन के बाद कभी नहीं आता।
विसर्ग संधि (visarga sandhi) के निम्नलिखित नियम हैं-
नियम– 1. यदि विसर्ग के बाद ‘च’ या ‘छ’ व्यंजन आए तो विसर्ग का ‘श्’; यदि ‘ट’ या ‘ठ’ व्यंजन आए तो विसर्ग का ‘ष्’ और ‘त’ या ‘थ’ व्यंजन आए तो विसर्ग का ‘स्’ हो जाता है। जैसे-
नि: + चय = निश्चय | नि: + ठुर = निष्ठुर |
नि: + चल = निश्चल | तत: + ठकार = ततष्ठकार |
नि: + चिंत = निश्चिंत | नि: + तार = निस्तार |
दु: + चरित्र = दुश्चरित्र | दु: + तर = दुस्तर |
दु: + चक्र = दुश्चक्र | नि: + तेज = निस्तेज |
हरि: + चंद्र = हरिश्चंद्र | नम: + ते = नमस्ते |
निः + छल = निश्छल | मन: + ताप = मनस्ताप |
धनु: + टंकार = धनुष्टंकार | दु: + थकार = दुस्थकार |
नियम– 2. यदि विसर्ग के बाद ‘श’, ‘ष’, ‘स’ में से कोई व्यंजन आए तो विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता है। जैसे-
नि: + संदेह = नि:संदेह, निस्संदेह | दु: + शासन = दु:शासन, दुश्शासन |
नि: + संकोच = निस्संकोच | दु: + सह = दुस्सह |
नि: + संतान = निस्संतान | दु: + साहस = दुस्साहस |
नि: + संग = निसंग | दु: + शासन = दु:शासन, दुश्शासन |
नियम– 3. यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ स्वर आए और विसर्ग के बाद ‘क’, ‘ख’, ‘प’, ‘फ’ में से कोई व्यंजन आए, तो विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता है। जैसे-
मन: + कल्पित = मन: कल्पित | पय: + पान = पय:पान |
रज: + कण = रज:कण | प्रात: + काल = प्रात:काल |
अन्त: + करण = अन्तःकरण | अध: + पतन = अध:पतन |
पुन: + फलित = पुन:फलित |
अपवाद- यदि विसर्ग के पहले ‘इ’ या ‘उ’ स्वर आए और विसर्ग के बाद में ‘क’, ‘प’, ‘फ’ आए, तो विसर्ग का ‘ष्’ हो जाता है। जैसे-
दु: + कर्म = दुष्कर्म | दु: + कर = दुष्कर |
चतु: + पाद = चतुष्पाद | नि: + पक्ष = निष्पक्ष |
नि: + कपट = निष्कपट | नि: + पाप = निष्पाप |
नि: + कलंक = निष्कलंक | नि: + फल = निष्फल |
नि: + कारण = निष्कारण |
नियम– 4. यदि विसर्ग के पहले ‘इ’ या ‘उ’ स्वर आए और विसर्ग के बाद में ‘र’ आए, तो ‘इ’ का ‘ई’ और ‘उ’ का ‘ऊ’ हो जाता है तथा विसर्ग का लोप हो जाता है। जैसे-
- नि: + रव = नीरव
- नि: + रस = नीरस
- नि: + रोग = नीरोग
- दु: + राज = दूराज
नियम– 5. यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ और ‘आ’ को छोड़कर कोई दूसरा स्वर आए और विसर्ग के बाद कोई स्वर हो या किसी वर्ग का तीसरा, चौथा या पाँचवाँ वर्ण हो या ‘य’, ‘र’, ‘ल’, ‘व’, ‘ह’ में से कोई वर्ण हो, तो विसर्ग के स्थान में ‘र्’ हो जाता है। जैसे-
दु: + आत्मा = दुरात्मा | नि: + उपाय = निरुपाय |
दु: + गंध = दुर्गंध | नि: + झर = निर्झर |
दु: + नीति = दुर्नीति | नि: + गुण = निर्गुण |
दु: + गुण = दुर्गुण | नि: + जल = निर्जल |
दु: + लभ = दुर्लभ | नि: + मल = निर्मल |
दु: + बल = दुर्बल | नि: + धन = निर्धन |
दु: + आशा = दुराशा | नि: + आहार = निराहार |
दु: + वासना = दुर्वासना | नि: + उत्साह = निरुत्साह |
दु: + जन = दुर्जन | निः + भय = निर्भय |
दु: + आचार = दुराचार | नि: + यात = निर्यात |
वहि: + मुख = बहिर्मुख | नि: + उपमा = निरुपमा |
पुन: + जन्म = पुनर्जन्म | नि: + विघ्न = निर्विघ्न |
नियम 6. यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ आए और विसर्ग के बाद किसी वर्ग का तीसरा, चौथा या पाँचवाँ वर्ण आए या ‘अ’, ‘य’, ‘र’, ‘ल’, ‘व’, ‘ह’ आए, तो विसर्ग का ‘उ’ हो जाता है और यह ‘उ’ विसर्ग के पहले वाले ‘अ’ से जुड़कर गुण संधि द्वारा ‘ओ’ हो जाता है। जैसे-
मन: + रथ = मनोरथ | अध: + गति = अधोगति |
मन: + भाव = मनोभाव | अध: + पतन = अधोपतन |
मन: + कामना : मनोकामना | अध: + भाग = अधोभाग |
मन: + योग = मनोयोग | यश: + धरा = यशोधरा |
मन: + अनुकूल = मनोनुकूल | यश: + दा = यशोदा |
मन: + बल = मनोबल | पय: + धर = पयोधर |
मन: + हर = मनोहर | पय: + द = पयोद |
मन: + विकार = मनोविकार | सर: + ज = सरोज |
मन: + विज्ञान = मनोविज्ञान | सर: + वर = सरोवर |
मन: + विनोद = मनोविनोद | वय: + वृद्ध = वयोवृद्ध |
मन: + रंजन = मनोरंजन | तप: + वन = तपोवन |
तम: + गुण = तमोगुण | तेज: + मय = तेजोमय |
पुर: + हित = पुरोहित | तेज: + राशि = तेजोराशि |
तप: + बल = तपोबल | रज: + गुण = रजोगुण |
अपवाद:
- पुन: + मिलन = पुनर्मिलन
- अन्त: + गत = अन्तर्गत
नियम 7. यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ या ‘आ’ स्वर हो और बाद में कोई भिन्न स्वर आए तो विसर्ग का लोप हो जाता है। जैसे-
- अत: + एव = अतएव
नियम 8. कुछ शब्दों में विसर्ग का ‘स’ हो जाता है। जैसे-
- नम: + कार = नमस्कार
- पुर: + कार = पुरस्कार
- भा: + कर = भास्कर
इसे भी देखें-
हिंदी की संधियाँ (hindi sandhi)
संस्कृत परम्परा से प्राप्त संधि नियमों के अलावा हिंदी ने अपने शब्दों के मेल के लिए कुछ संधि नियम विकसित कर लिए हैं। जो निम्नलिखित हैं-
नियम 1. महाप्राणीकरण
यदि किसी शब्द के अंत में अल्पप्राण ध्वनि हो और उसके आगे ‘ह’ ध्वनि जुड़ रही हो तो अल्पप्राण ध्वनि महाप्राण हो जाती है। जैसे-
- सब + ही = सभी
- अब + ही = अभी
- तब + ही = तभी
- इन + ही = इन्हीं
- जब + ही = जभी
- कब + ही = कभी
नियम 2. अल्प्राणीकरण
कभी-कभी शब्द के अंत में आने वाली महाप्राण ध्वनि का अल्पप्राणीकरण हो जाता है। जैसे-
- ताख = ताक
- छठा = छटा
- पढ़ = पड़
- कभी = कवी
- दूध = दूद
नियम 3. लोप
कभी-कभी कुछ शब्दों में संधि होने पर किसी एक ध्वनि का लोप हो जाता है। जैसे-
यह + ही = यही | जिस + ही = जिसी |
किस + ही = किसी | वहाँ + ही = वहीं |
वह + ही = वही | उस + ही = उसी |
नक + कटा = नकटा |
नोट- कभी-कभी यह लोप दोनों शब्दों की ध्वनियों में भी हो सकता है। जैसे-
- कहाँ + ही = कहीं
- यहाँ + ही = यहीं
नियम 4. ह्रस्वीकरण
सामासिक पदों में पहले पद का दीर्घ स्वर अधिकतर शब्दों में ह्रस्व हो जाता है। जैसे-
हाथ + कड़ी = हथकड़ी | हिंदू + ओं = हिंदुओं |
हाथ + कंडा = हथकंडा | लड़का + पन = लड़कपन |
आधा + खिला = अधखिला | बहू + एँ = बहुएँ |
लकड़ी + आँ = लकड़ियाँ | दवाई + याँ = दवाइयाँ |
आम + चूर = अमचूर | डाकू + ओं = डाकुओं |
मीठा + बोला = मिठबोला | काठ + पुतली = कठपुतली |
बच्चा + पन = बचपन | कान + कटा = कनकटा |
नियम 5. स्वर परिवर्तन
समस्त पदों में भी प्रायः स्वरों में परिवर्तन हो जाता है। जैसे-
- घोड़ा + सवार = घुड़सवार
- लकड़ी + हारा = लकड़हारा
- छोटा + भैया = छुटभैया
- पानी + घाट = पनघट
- मोटा + पा = मुटापा
- लोटा + इया = लुटिया
नियम 6. आगम
हिंदी में प्राय: एक साथ दो स्वर उच्चारित नहीं होते। यदि किसी शब्द में दो स्वर एक साथ आ जाते हैं तो दोनों के बीच व्यंजन ‘य’ का आगम हो जाता है। जैसे-
- कवि + ओं = कवियों
- लड़की + ओं = लड़कियों
- पी + आ = पिया
- ला + आ = लाया
संधि पर आधारित प्रश्न
1. ‘इत्यादि’ का सही संधि विच्छेद है-
(a) इत् + यादि (b) इति + यादि
(c) इत् + आदि (d) इति + आदि✅
2. निम्नलिखित में से किस शब्द में स्वर संधि है?
(a) नमस्कार (b) जगदीश
(c) भानूदय✅ (d) दुर्लभ
3. ‘व्याप्त’ में संधि है-
(a) गुण संधि (b) दीर्घ संधि
(c) यण संधि✅ (d) अयादि संधि
4. प्रति + आरोप = ?
(a) प्रतिआरोपण (b) प्रतिरोपण
(c) प्रत्यारोपण✅ (d) प्रत्आरोपण
5. ‘यण संधि’ का संबंध किस संधि विशेष से है?
(a) व्यंजन संधि (b) विसर्ग संधि
(c) स्वर संधि✅ (d) दीर्घ संधि
6. ‘तल्लीन’ शब्द में सही संधि-विच्छेद है-
(a) तल् + लीन (b) तद् + लीन
(c) तत + लीन (d) तत् + लीन✅
7. ‘उज्ज्वल’ शब्द में सही संधि-विच्छेद है-
(a) उज् + ज्वल (b) उज्ज + वल
(c) उत् + ज्वल✅ (d) उज + ज्वल
8. ‘दुर्जन’ शब्द का संधि-विच्छेद होगा-
(a) दुर् + जन (b) दु: + जन✅
(c) दूर + जन (d) दुर् + अरजन
9. ‘नवोढ़ा’ का सही संधि विच्छेद है-
(a) नव + उढ़ा (b) नव + ऊढ़ा✅
(c) नवो + ढ़ा (d) नव + ओढ़ा
10. ‘दिक् + गज’ की संधि है-
(a) दिकगज (b) दिग्गज✅
(c) दिगज (d) दोखज
[1] आधुनिक हिंदी व्याकरण और रचना- वासुदेवनंदन प्रसाद, पृष्ठ- 28
[2] शिक्षार्थी व्याकरण और व्यावहारिक हिंदी- स्नेह लता प्रसाद, पृष्ट 29
[3] व्यवहारिक हिंदी व्याकरण तथा रचना- हरदेव बाहरी, पृष्ठ- 42
[4] आधुनिक हिंदी व्याकरण और रचना- वासुदेवनंदन प्रसाद, पृष्ठ- 30
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