“मात्रा और वर्ण आदि के विचार से होने वाली वाक्य-रचना को छंद कहते हैं।”[1] छंद में प्रायः 4 चरण होते हैं। “छंद का प्रथम चर्चा ‘ऋगुवेद’ में मिलता है।”[2] छंद-शास्त्र के आदि प्रणेता आचार्य पिंगल ऋषि माने जाते हैं। इसलिए छंद को ‘पिंगल’ भी कहा जाता है। पिंगलाचार्य के ‘छंदसूत्र’ में छंद का सुसम्बद्ध वर्णन होने के कारण इसे छंदशास्त्र का आदि ग्रंथ माना जाता है। ‘छंदशास्त्र’ आठ अध्यायों का एक सूत्र ग्रंथ है।
छंद के अंग
चरण, वर्ण और मात्रा, लघु और गुरु, संख्या एवं क्रम, गण, यति या विराम, गति और लय आदि छंद के प्रमुख अंग या घटक हैं।
(A) पाद या चरण
छ्ंद में 4 भाग होते हैं, प्रत्येक को पाद या चरण कहते हैं। दूसरे शब्दों में छ्ंद के चतुर्थांश भाग को चरण कहते हैं। एक छ्ंद में 4 से अधिक भी चरण हो सकते हैं, पर प्राय: 4 ही होते हैं। कुछ छंदों में 4 चरण होते हैं पर वे लिखे 2 पंक्तियों में ही जाते हैं, जैसे- दोहा, सोरठा। इस प्रकार के छंदों की प्रत्येक पंक्ति को दल कहा जाता है। पाद या चरण 2 प्रकार के होते हैं- सम और विषम
(i) विषम चरण
छ्ंद के पहले और तीसरे चरण को ‘विषम चरण’ कहा जाता है।
(ii) सम चरण
छ्ंद के दूसरे और चौथे चरण को ‘सम चरण’ कहा जाता है।
(B) मात्रा और वर्ण
दो प्रकार के स्वर होते हैं- ह्रस्व और दीर्घ। दीर्घ के उच्चारण में ह्रस्व से दुगुना समय लगता है। ह्रस्व और दीर्घ को छंदशास्त्र में मात्रा कहते हैं। यहाँ स्वर के साथ व्यंजन भी समाहित होते हैं परन्तु गणना केवल मात्राओं की होती है। जैसे- ‘श्थ्य’ में श्-थ्-य् तीन व्यंजन और ‘अ’ स्वर हैं। यहाँ अ स्वर के कारण एक मात्रा ही मानी जाएगी। इसी तरह दीर्घ स्वर वाले वर्णों की दो मात्राएँ मानी जाती हैं; जैसे- ‘मामा’ में दो व्यंजन और चार मात्राएँ हैं।
वर्ण को अक्षर भी कहा जाता है। स्वर की तरह इसके भी दो भेद हैं- ह्रस्व और दीर्घ। परन्तु वर्णों की गणना करते समय दीर्घ वर्ण को एक ही माना जाता है’ जैसे- ‘नाना’ में दो वर्ण और मात्राएँ चार हैं।
(C) लघु और गुरु
ह्रस्व को ‘लघु’ और दीर्घ को ‘गुरु’ कहा जाता है। ह्रस्व मात्रा का चिह्न लघु (।) और दीर्घ मात्रा का चिह्न गुरु (ऽ) होता है।
लघु और गुरु के गणना के नियम
(i) लघु
- अ, इ, उ- ये सभी स्वर लघु हैं; जैसे- कमल (।।।) में तीन लघु वर्ण हैं।
- ह्रस्व मात्राओं से युक्त सभी वर्ण लघु होते हैं; जैसे- कि (।), कु (।), के (।) आदि।
- हलंत व्यंजन लघु माने जाते हैं; जैसे- अहम् में ‘म्’ को लघु (।) माना जायेगा।
- चंद्रबिंदु वाले वर्ण लघु होते हैं; जैसे- हँसना में ‘हँ’ को लघु (।) माना जायेगा।
- यदि किसी शब्द के संयुक्ताक्षर में दो अर्द्ध वर्ण हों, तो दोनों अर्द्ध वर्ण को लघु माना जाता है; जैसे- उज्ज्वल में ‘ज्ज्’ को लघु (।) माना जायेगा।
- यदि किसी शब्द संयुक्ताक्षर आरंभ में आता है तो संयुक्ताक्षर के अर्द्ध वर्ण की मात्रा नहीं गिनी जाती; जैसे- व्यवहार में ‘व्य’ को लघु (।) माना जायेगा।
- यदि दो गुरु वर्णों के बीच में कोई अर्द्ध वर्ण आये, तो उस अर्द्ध वर्ण की मात्रा नहीं गिनी जाती; जैसे- आत्मा (ऽऽ) में ‘त्’ की कोई भी मात्रा नहीं गिनी जाएगी।
(ii) गुरु
- आ, ई, ऊ और ऋ- ये सभी स्वर गुरु हैं; जैसे- दादी (ऽऽ) में ‘दा’ और ‘दी’ को गुरु (ऽ) माना जायेगा।
- दीर्घ मात्राओं से युक्त वर्ण को गुरु माना जाता है; जैसे- कौन में ‘कौ’ को गुरु (ऽ) माना जायेगा।
- ए, ऐ, ओ, औ- ये सभी संयुक्त स्वर गुरु हैं; जैसे- ऐसा में ‘ऐ’ को गुरु (ऽ) माना जायेगा।
- संयुक्त मात्राओं से युक्त वर्ण को गुरु माना जाता है; जैसे- नौका में ‘नौ’ को गुरु (ऽ) माना जायेगा।
- यदि किसी शब्द के बीच या अंत में संयुक्ताक्षर आया है तो संयुक्ताक्षर के पहले वाला वर्ण गुरु माना जाता है; जैसे- भक्त में ‘भ’ को गुरु (ऽ) माना जायेगा।
- अनुस्वार युक्त वर्ण गुरु होते हैं; जैसे- अंत में ‘अं’ को गुरु (ऽ) माना जायेगा।
- विसर्ग चिह्न युक्त वर्ण गुरु होते हैं; जैसे- दुःख में ‘दु:’ को गुरु (ऽ) माना जायेगा।
- रेफ के पहले का वर्ण गुरु होते हैं, किंतु यदि ‘र’ किसी शब्द में नीचे जुड़ा है, तो वह लघु होता है। जैसे- मर्म में ‘र्म’ को गुरु (ऽ) माना जायेगा जबकि नक्षत्र में ‘त्र’ को लघु (।) माना जायेगा।
(D) संख्या, क्रम और गण
“मात्राओं और वर्णों की गणना को संख्या और लघु-गुरु के स्थान निर्धारण को क्रम कहते हैं।”[3] संख्या और लघु-गुरु के नियत क्रम से तीन वर्णों के समूह को ‘गण’ कहा जाता है। इनकी संख्या 8 है। इन गणों की पहचान के लिए निम्नलिखित सूत्र प्रसिद्ध है-
। ऽ ऽ ऽ । ऽ । । । ऽ
‘यमाताराजभानसलगा’
“इसमें प्रथम 8 अक्षर गणों के परिचायक हैं, अंतिम दो लघु गुरु के।”[4] इन्हीं गणों के आधार पर वर्णिक छंदों की पहचान होती है। “इस सूत्र के अंतिम वर्ण ‘ल’ और ‘ग’ छंदशास्त्र में दशाक्षर कहलाते हैं।”[5] सूत्र के आधार पर आठों गण और लघु-गुरु क्रम निम्नलिखित है-
गण | चिह्न | उदाहरण |
---|---|---|
यगण | ।ऽऽ | यशोदा |
मगण | ऽऽऽ | आजादी |
तगण | ऽऽ। | तालाब |
रगण | ऽ।ऽ | नीरजा |
जगण | ।ऽ। | जवान |
भगण | ऽ।। | भारत |
नगण | ।।। | कमल |
सगण | ।।ऽ | वसुधा |
‘यमाताराजभानसलगा’ सूत्र से किसी भी गण की मात्राओं या चिह्न पता चल जाता है। जिस गण के बारे में जानना हो उसके आगे के दो अक्षरों को जोड़ कर जाना जा सकता है। जैसे- ‘भगण’ का स्वरूप जानने के लिए ‘भा’ और उसके आगे के दो अक्षर ‘n स’ = भानस (ऽ।।) लेकर लघु-गुरु जाना जा सकता है।
(E) यति, गति और तुक
(i) यति
यति का अर्थ है रुकना, विराम लेना। छंद के प्रत्येक चरण के अंत में यति होती है। कभी-कभार एक-एक चरण में एक से अधिक यतियाँ होती हैं। जैसे-
‘भए प्रगट कृपाला, दीन दयाला, कौसल्या हितकारी…’
उपर्युक्त पंक्ति में दो जगह ‘ला’आया है जहाँ पर रुकने से छंद में प्रवाह आता है। इसलिए जहाँ रुकना आवश्यक हो वहाँ रुकना ही यति है।
(ii) गति
गति का अर्थ है लय या प्रवाह। यति का उल्टा गति है। छंद में दोनों साथ रहते हैं। जहाँ पर यति न हो वहाँ बिना रुके छंद का पाठ करने से गति निर्मित होती है। छंद में लय के साथ एक प्रवाह होता है, वह प्रवाह ही गति है।
(iii) तुक
तुक का अर्थ है अंत्य वर्णों की आवृति। अर्थात चरण के अंत में जब वर्णों की आवृत्ति होती है तो उसे ‘तुक’ कहते हैं। पांच मात्राओं की तुक अच्छी मानी जाती है। जिस छंद के अंत में तुक हो उसे ‘तुकांत छंद’ और जिसके अंत में तुक न हो ‘अतुकांत छंद’ कहते हैं।
‘तुकांत छंद’ का उदहारण-
‘कंकन किंकिन नुपुर धुनि सुनि।
कहत लखन सन राम हृदय गुनि॥’
इसमें ‘सुनि’ तथा ‘गुनि’ तुकांत हैं।
(F) लय
यति और गति के उचित प्रयोग से छंद में जो गुण उतपन्न होता है, वही लय है। लय की वजह से कोई छंद (कविता) सुनने में अच्छा लगता है।
इसे भी पढ़ें-
छंद के भेद
छंद के कई प्रकार होते हैं परन्तु मात्रा और वर्ण के आधार पर छंद के दो भेद हैं- (A) मात्रिक छंद, (B) वर्णिक छंद
(A) मात्रिक छंद
मात्रा की गणना के आधार पर जो छंद बनते हैं उन्हें मात्रिक छंद कहा जाता है। मात्रिक छंद में वर्णों की संख्या भिन्न हो सकती है परन्तु उनमें निहित मात्राएँ नियमानुसार होनी चाहिए। मात्रिक छंद के तीन भेद होते हैं- (i) सममात्रिक छंद, (ii) अर्द्धसममात्रिक छंद, (iii) विषममात्रिक छंद
(i) सममात्रिक छंद
सममात्रिक छंद उन छंदों को कहते हैं जिनके चारों चरणों की संख्या तथा उनका नियोजन क्रम समान होता है; जैसे- चौपाई, गीतिका, रोला, सरसी, हरिगीतिका, रूपमाला, तोमर, आल्हा आदि।
(ii) अर्द्धसममात्रिक छंद
अर्द्धसममात्रिक छंद उन छंदों को कहते हैं जिनकी सम-सम तथा विषम-विषम चरणों की मात्राएँ समान होती हैं; जैसे- दोहा, बरवै, सोरठा, उल्लाला आदि।
(iii) विषममात्रिक छंद
विषममात्रिक छंद उन छंदों को कहते हैं जिनकी सभी चरणों की मात्राएँ भिन्न-भिन्न होती हैं; जैसे- कुंडलिया, छप्पय आदि।
(B) वर्णिक छंद
वर्णों के आधार पर जो छंद बनते हैं उन्हें वर्णिक छंद कहा जाता है। जहाँ मात्रिक छंद में मात्राओं का निश्चित क्रम होता है वहीं वर्णिक छंद में वर्णों का। वर्णिक छंद के दो भेद होते हैं- (i) साधारण, (ii) दंडक
(i) साधारण
एक से छब्बीस वर्ण तक के चरण रखने वाले को ‘साधारण’ वर्णिक छंद कहते हैं; जैसे-
- 11 वर्णों वाले- इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, शालिनी, भुजंगी आदि।
- 12 वर्णों वाले- द्रुतविलम्बित, तोटक, वंशस्थ आदि।
- 14 वर्ण वाला- वसंततिलका
- 15 वर्ण वाला- मालिनी
- 17 वर्ण वाले- मंद्रक्रांता, शिखरिणी आदि।
- 19 वर्ण वाला- शार्दूलविक्रीडित
- 22 से 26 वर्ण वाला सवैया- मत्तगयंद, मदिरा, सुमुखी, मुक्तहरा, द्रुमिल, गंगोदक, किरीट, सुंदरी, अरविंद आदि।
(ii) दंडक
26 वर्ण से अधिक वर्ण रखने वाले को ‘दंडक’ वर्णिक छंद कहते हैं; जैसे- मनहरण, घनाक्षरी (कवित्त), रूपघनाक्षरी, देवघनाक्षरी आदि।
(#) वर्णिक वृत्त
वर्णिक छंद का एक रूप ‘वर्णिक वृत्त’ भी है। वर्णिक वृत्त उस सम छंद को कहते हैं जिसमें चार समान चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में आने वाले वर्णों का लघु-गुरु क्रम सुनिश्चित रहता है। जैसे- इंद्रवज्रा, उपेंद्रवज्रा, मालिनी, मत्तगयंद, द्रुतविलम्बित आदि।
(A) मात्रिक छंद
1. चौपाई छंद
चौपाई एक सम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं। चौपाई के दो चरणों को अर्धली कहते हैं। इसमें तुक का निर्वाह किया जाता है। पहले चरण की तुक दूसरे चरण में तथा तीसरे चरण की तुक चौथे चरण में मिलती है, प्रत्येक चरण के अंत में यति होती है। चौपाई छंद के अंत में जगण (।ऽ।) या तगण (ऽऽ।) नहीं आना चाहिए। अर्थात चरण के अंत में गुरु (ऽऽ) के बाद लघु (।) नहीं आता।
उदाहरण-
।। ।। ।।। ।।। ।। ऽऽ
बिनु पद चलय सुनइ बिनु काना।
।। ।। ।।। ।।। ।। ऽऽ
कर बिनु करम करइ विधि नाना॥
ऽ।। ।।। ।।। ।। ऽऽ
आनन रहित सकल रस भोगी।
।। ऽऽ ।।ऽ ।। ऽऽ
बिनु वानी वकता बड़ जोगी॥
2. रोला छंद
रोला सम मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 24-24 मात्राएँ होती हैं। रोला के प्रत्येक चरण में 11 और 13 मात्राओं पर यति होती है। इसके प्रत्येक चरण के अंत में दो गुरु (ऽऽ) या दो लघु (।।) वर्ण होते हैं। दो-दो चरणों में तुक अनिवार्य है। रोला छंद को ‘काव्य छंद’ भी कहा जाता है। प्रबंध काव्य के लिए यह छंद अधिक उपयुक्त होता है।
उदाहरण-
ऽ ।।।। ।। ऽ। ।ऽ।। ऽ ।। ऽऽ
जो जगहित पर प्राण, निछावर है कर पाता।
।।ऽ ।। ऽ ।ऽ ऽ।।। ऽ ।। ऽऽ
जिसका तन है किसी, लोकहित में लग जाता॥
3. गीतिका छंद
यह सम मात्रिक छंद है। गीतिका छंद के प्रत्येक चरण में 26 मात्राएँ होती हैं। 14वें और 15वें मात्रा पर यति होती है। चरणों के अंत में लघु-गुरु (।ऽ) होता है।
उदाहरण-
ऽ ।ऽ ऽऽ।ऽऽ ऽ। ।।ऽ ऽ।ऽ
हे प्रभु! आनंददाता, ज्ञान हमको दीजिए।
ऽ। ऽऽ ।।ऽ ऽ ऽ। ।।ऽ ऽ।ऽ
शीघ्र सारे दुर्गुणों को, दूर हमसे कीजिए॥
4. सरसी छंद
सरसी एक सम मात्रिक छंद है। इसे कबीर या सुमंदर भी कहा जाता है। सरसी छंद के प्रत्येक चरण में 27 मात्राएँ होती हैं। इसके प्रत्येक चरण में 16 और 11 पर यति होती है और छंद के अंत में गुरु-लघु (।ऽ) होता है। पहली 16 मात्राओं की लय चौपाई की तरह तथा शेष 11 मात्राओं की लय दोहे के दूसरे चरण की तरह होती है।
उदाहरण-
ऽ।ऽ। ऽ ।ऽ।।। ऽ ऽऽ ।।। ।ऽ।
अंशुमालि के शुभागमन की, बेला समझ समीप
।। ऽ ।ऽ ।ऽ ऽ ।। ऽ ।।ऽ ।। ऽ ऽ।
नभ में बुझा चुके थे सुर भी अपने घर के दीप।
5. हरिगीतिका छंद
हरिगीतिका एक सम मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती हैं। हरिगीतिका छंद में 16वीं और 12वीं मात्रा पर यति होती है। प्रत्येक चरण के अंत में लघु-गुरु (।ऽ) होता है।
उदाहरण-
।।ऽ ।ऽ ऽ ऽ।ऽ ऽ ऽ। ।। ऽ ।। ।ऽ
कहते हुए यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए।
।। ऽ ।ऽ ऽ ऽ। ऽऽ ऽ ।ऽ ऽ।। ।ऽ
हिम के कणों से पूर्ण मानों हो गए पंकज नए॥
6. रूपमाला छंद
रूपमाला एक सम मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। 14वीं और 10वीं मात्रा पर यति होती है। रूपमाला छंद के प्रारंभ में रगण (ऽ।ऽ) और अंतिम वर्ण गुरु-लघु (ऽ।) होता है।
उदाहरण-
ऽ।ऽ ।।।। ऽ ।ऽ ।। ऽ ।ऽ ।। ऽ।
नित्य परिचित हो रहे तब भी रहा कुछ शेष।
ऽ। ऽ।। ऽ ।ऽ ।।ऽ ।ऽ। ।ऽ।
गूढ़ अंतर का छिपा रहता रहस्य विशेष।
7. तोमर छंद
तोमर एक सम मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 12 मात्राएँ होती हैं। चारों चरणों के अंत में तुक होता है। तोमर छंद के चरणांत में गुरु-लघु (ऽ।) होता है।
उदाहरण-
।। ऽ। ऽऽ ऽ। ऽ।। ।।। ऽऽ।
जय राम शोभा धाम। दायक प्रनत बिश्राम॥
।। ऽ। ।। ।। ऽ। ।।ऽ। ।।। ।ऽ।
धृत तूण बर शर चाप। भुजदंड प्रबल प्रताप॥
8. आल्हा छंद
आल्हा एक सम मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 31 मात्राएँ होती हैं। 16वीं और 15वीं मात्रा पर यति होती है। इसमें अंतिम वर्ण लघु होता है। आल्हा छंद को ‘वीर छंद’ भी कहते हैं। वीर रस की रचनाओं के लिए यह छंद अधिक उपयुक्त होता है। जगनिक ने ‘आल्हा खंड’ को इसी छंद में लिखा है।
उदाहरण-
।।।। ऽ ऽऽ। ।।। ।। ऽ। ।ऽ ऽ ऽ।। ऽ।
हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर, बैठ शिला की शीतल छाँह
ऽ। ।।। ऽऽ ।।ऽ ऽ ऽ। ।ऽ ऽ ।।। ।ऽ।
एक पुरुष भीगे नयनों से, देख रहा था प्रलय प्रवाह।
9. बरवै छंद
बरवै एक अर्द्धसम मात्रिक छंद है। इस छंद के पहले और तीसरे चरण (विषम चरणों) में 12-12 तथा दूसरे और चौथे चरण (सम चरणों) में 7-7 मात्राएँ होती हैं। इन दोनों पंक्तियों में से प्रत्येक में 19 मात्राएँ होती हैं। इसके प्रत्येक चरण के अंत में यति होती है। बरवै छंद के सम चरणों के अंत में जगण (।ऽ।) या तगण (ऽऽ।) आने से छंद की मिठास बढ़ती है।
उदाहरण-
।।। ।ऽ ऽ ।। ।। ऽ ।। ऽ।
अवधि शिला का उर पर, था गुरु भार।
।। ।। ऽ। ।ऽ ऽ ।। ।। ऽ।
तिल-तिल काट रही थी, दृग जल धार॥
बरवै अवधी भाषा का निजी छंद है, जो श्रृंगार रस की रचनाओं में प्रयुक्त होता है। बरवै छंद के प्रणेता अकबर के नवरत्नों में शामिल रहीम (अब्दुर्रहीम खानखाना) माने जाते हैं। उन्होंने बरवै छंद में ‘बरवै नायिका भेद’ नामक ग्रंथ लिखा है। रहीम के समकालीन तुलसीदास ने भी बरवै छंद में ‘बरवै रामायण’ ग्रंथ की रचना की।
10. दोहा छंद
दोहा एक अर्धसम मात्रिक छंद है। इसके पहले और तीसरे चरण (विषम चरणों) में 13-13 तथा दूसरे और चौथे चरण (सम चरणों) में 11-11 मात्राएँ होती हैं। इन दोनों पंक्तियों में से प्रत्येक में 24 मात्राएँ होती हैं। चरण के अंत में यति होती है। दोहा छंद के विषम चरणों के प्रारंभ में जगण (।ऽ।) नहीं होना चाहिए। वहीं सम चरणों के अंत में गुरु-लघु (ऽ।) होता है। दोहे के सम चरणों में तुक रहता है, विषम चरणों में नहीं रहता।
उदाहरण-
।।।। ।। ऽ ऽ।ऽ ऽ। ।।। ऽ ऽ।
रहिमन चुप ह्वै बैठिए, देखि दिनन को फेर।
।। ऽऽ ।। ऽ।ऽ ।।। । ।।ऽ ऽ।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लागिहैं बेर॥
11. सोरठा छंद
मात्रा की दृष्टि से दोहे के ठीक उल्टा / विपरीत / विलोम सोरठा छंद होता है। यह अर्द्धसम मात्रिक छंद है। इसके पहले और तीसरे चरण (विषम चरणों) में 11-11 तथा दूसरे और चौथे चरण (सम चरणों) में 13-13 मात्राएँ होती हैं। तुक पहले और तीसरे चरण में होती है। दोहे के समान इसमें भी दोनों पंक्तियों में से प्रत्येक में 24 मात्राएँ होती हैं।
उदाहरण-
।।।। ऽ। ।ऽ। ।।।। ।।। ।ऽ। ।।
रघुपति बान कृसानु, निसिचर निकर पतंग सम।
।ऽ ।ऽ।। ऽ। ।।ऽ ऽ।। ऽ। ।।
जरे निसाचर जानु, जननी हृदय धीर धरु॥
12. उल्लाला छंद
उल्लाला एक अर्द्धसम मात्रिक छंद है। उल्लाला छंद के पहले और तीसरे चरण (विषम चरणों) में 15-15 तथा दूसरे और चौथे चरण (सम चरणों) में 13-13 मात्राएँ होती हैं। इन दोनों पंक्तियों में से प्रत्येक में 28 मात्राएँ होती हैं।
उदाहरण-
।।ऽ ।।ऽ। ।ऽ। ऽ ।।ऽऽ ।। ऽ। ऽ
करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस देश की।
ऽ ऽ।ऽ। ऽ ऽ। ऽ ।।। ऽऽ ।ऽ। ऽ
हे मातृभूमि! तू सत्य ही, सगुण मूर्ति सर्वेश की॥
13. छप्पय छंद
छप्पय एक विषम मात्रिक एवं संयुक्त छंद है। इस छंद में 6 चरण होते हैं। रोला और उल्लाला के योग से छप्पय छंद बनता है। प्रथम चार चरण रोला के और शेष दो चरण उल्लाला के होते हैं। प्रथम चार चरणों में 24-24 मात्राएँ और अंतिम दो चरणों में 28-28 मात्राएँ होती हैं। उल्लाला कहीं 26 मात्राओं का होता है, कहीं 28 का। दोनों में कोई भी छप्पय में हो सकता है।
उदाहरण-
।।ऽ ।। ऽ ऽ। ऽ। ।। ।ऽ ।ऽ ऽ
जिसके रज में लोट-लोट कर बड़े हुए हैं।
।।ऽ ऽ ।। ।।। ।।। ।। ।ऽ ।ऽ ऽ
घुटनों के बल सरक-सरक कर खड़े हुए हैं।
।।।ऽ। ।। ऽ। ऽ। ऽ ।। ।। ऽऽ
परमहंस सम बाल्य काल से सब सुख पाए।
।।ऽ ऽ।। ऽ। ।ऽ ऽऽ ।।ऽऽ
जिसके कारण धूल-भरे हीरे कहलाए।
।। ऽऽ ऽऽ ऽ। ।। ।।ऽ ऽऽ ऽ। ऽ
हम खेले कूदे हर्ष युत, जिसकी प्यारी गोद में।
ऽ ऽ।ऽ। ।।ऽ ।।। ऽ। ऽ । ऽ ऽ। ऽ
हे मातृभूमि! तुझको निरख, मग्न क्यों न हों मोद में?
14. कुंडलिया छंद
कुंडलियाँ एक विषम मात्रिक एवं संयुक्त छंद है। इसमें 6 चरण होते हैं तथा प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। दोहा और रोला छंदों के योग से कुंडलियाँ छंद बनता है। इसमें दो पंक्तियाँ दोहा की और चार रोला की होती हैं। दोहे का चौथा चरण ‘रोला’ के प्रथम चरण का भाग होकर आता है। जिस शब्द से यह छंद प्रारम्भ होता है, उसी शब्द से अंत भी होता है। अर्थात कुंडलियाँ का प्रथम और अंतिम पद समान होता है। हिंदी में गिरिधर दास और दीन दयालु गिरि प्रमुख कुंडलिकार हैं।
उदाहरण-
ऽऽ।। ।। ।।। ऽ ।।।। ।। ।।ऽ।
कोलाहल सुनि खगन के सरवर जानि अनुरागि।
ऽ ।। ऽ।। ऽ ।ऽ ।।।। ऽऽ ऽ।
ये सब स्वारथ के सखा, दुरदिन दैहैं त्यागि॥
।।।। ऽऽ ऽ। ऽ। ऽऽ ।। ऽऽ
दुरदिन दैहैं त्यागि, तोय तेरो जब जैहैं।
ऽ।। ऽ ।। ऽ। ऽ। ऽऽ ।। ऽऽ
दूरहिं ते तजि आस, पास कोऊ नहिं ऐहिं॥
।।ऽ ऽ।।ऽ। ऽ। ।। ।। ऽ ऽ।।
बरनैं ‘दीनदयाल’, तोहि मथि करि हैं काहल।
ऽ ।। ।। ऽ ऽ। ऽ। ।। ।। ऽऽ।।
ये चल-छल के मूल, भूल मत सुनि कोलाहल॥
(B) वर्णिक छंद
वर्णिक छंद में अर्द्ध वर्णों की गणना नहीं होती, वह अपने पूर्ववर्ती वर्ण के साथ जुड़कर दीर्घ हो जाता है।
1. इंद्रवज्रा छंद
इंद्रवज्रा एक सम वर्ण वृत छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं। इंद्रवज्रा छंद के प्रत्येक चरण में 2 तगण (ऽऽ।), 1 जगण (।ऽ।) और 2 गुरु (ऽऽ) वर्ण होता है।
उदाहरण-
ऽ ऽ। ऽ ऽ। ।ऽ ।ऽऽ
मैं राज्य की चाह नहीं करूंगा।
ऽ ऽ ।ऽ ऽ। ।ऽ ।ऽऽ
है जो तुम्हें इष्ट वही करूँगा।
ऽऽ। ऽ ऽ।।ऽ ।ऽऽ
संतान जो सत्यवती जनेगी।
ऽऽ।ऽऽ ।। ऽ ।ऽऽ
राज्याधिकारी वह ही बनेगा।
2. उपेंद्रवज्रा छंद
उपेंद्रवज्रा एक सम वर्ण वृत छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं। उपेंद्रवज्रा छंद के प्रत्येक चरण में 1 जगण (।ऽ।), 1 तगण (ऽऽ।), 1 जगण (।ऽ।) और 2 गुरु (ऽऽ) वर्ण होता है।
उदाहरण-
।ऽ । ऽऽ ।। ऽ। ऽऽ
बड़ा कि छोटा कुछ काम कीजै।
।ऽ। ऽऽ।। ऽ। ऽऽ
परन्तु पूर्वापर सोच लीजै।
।ऽ ।ऽऽ ।। ऽ। ऽऽ
बिना विचारे यदि काम होगा।
।ऽ । ऽऽ ।।ऽ। ऽऽ
कभी न अच्छा परिणाम होगा।
3. वंशस्थ छंद
वंशस्थ एक वर्णिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते हैं। वंशस्थ छंद में 1 जगण (।ऽ।), 1 तगण (ऽऽ।), 1 जगण (।ऽ।) और 1 रगण (ऽ।ऽ) होता है।
उदाहरण-
।ऽ। ऽ ऽ।। ऽ ।ऽ। ऽ
निसर्ग ने सौरभ ने पराग ने।
।ऽ। ऽ ऽ ।। ऽ। ऽ। ऽ
प्रदान की थी अति कांत भाव से।
।ऽ।ऽ ऽ ।। ऽ ।ऽ। ऽ
वसुंधरा को पिक को मिलिंद को।
।ऽ।ऽ ऽ।।ऽ ।ऽ।ऽ
मनोज्ञता मादकता मदांधता॥
4. द्रुतविलंबित छंद
द्रुतविलंबित एक वर्णिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते हैं। द्रुतविलंबित छंद में 1 नगण (।।।), 2 भगण (ऽ।।), 1 रगण (ऽ।ऽ) होता है।
उदाहरण-
।।। ऽ ।।ऽ। ।ऽ। ऽ
दिवस का अवसान समीप था।
।।। ऽ ।। ऽ।। ऽ ।ऽ
गगन था कुछ लोहित हो चला।
।। ।ऽ ।। ऽ ।। ऽ।ऽ
तरु शिखा पर थी अब राजती।
।।।ऽ ।। ऽ।। ऽ ।ऽ
कमलिनी कुल वल्लभ की प्रभा।
5. तोटक छंद
तोटक एक वर्णिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते हैं। तोटक छंद में 4 सगण (।।ऽ) होते हैं।
उदाहरण-
।। ऽ।। ऽ ।। ऽ। ।ऽ
निज गौरव का नित ज्ञान रहे।
।। ऽ ।। ऽ ।। ऽ। ।ऽ
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे।
।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ। ।ऽ
सब जाय अभी पर मान रहे।
।।ऽ।। ऽ।। ऽ। ।ऽ
मरणोत्तर गुंजित गान रहे।
6. वसंततिलका छंद
वसंततिलका एक वर्णिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 14 वर्ण होते हैं। 14वें वर्ण पर यति होती है। वसंततिलका छंद में 1 तगण (ऽऽ।), 1 भगण (ऽ।।), 2 जगण (।ऽ।) और 2 गुरु (ऽऽ) होता है।
उदाहरण-
ऽ ऽ ।ऽ ।।। ऽ ।।ऽ।ऽ ऽ
भू में रमी शरद की कमनीयता थी।
ऽऽ ।ऽ। ।। ऽ।। ऽ ।ऽ ऽ
नीला अनंत नभ निर्मल हो गया था।
ऽ ऽ ।ऽ ।।। ऽ ।।ऽ ।ऽऽ
थी छा गई कुकुभ में अमिता सिताभा।
ऽऽ। ऽ ।।। ऽ ।।ऽ। ऽऽ
उत्फुल्ल सी प्रकृति थी प्रतिभास होती।
7. मालिनी छंद
मालिनी एक वर्णिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 15 वर्ण होते हैं। 8वें और 7वें वर्णों पर यति होती है। मालिनी छंद में 2 नगण (।।।), 1 मगण (ऽऽऽ), 2 यगण (।ऽऽ) होते हैं।
उदाहरण-
।। ।। ।। ऽऽ ऽ। ऽऽ ।ऽ ऽ
प्रिय-पति वह मेरा प्राण प्यारा कहाँ है।
।। ।।। ।ऽऽ ऽ ।ऽऽ ।ऽ ऽ
दुख-जलधि निमग्ना का सहारा कहाँ है।
।। ।। ।।ऽ ऽ ऽ। ऽ ऽ ।ऽ ऽ
अब तक जिसको मैं देख के जी सकी हूँ।
।। ।।। ।ऽऽ ऽ। ऽऽ ।ऽ ऽ
वह हृदय हमारा नेत्र-तारा कहाँ है॥
8. शिखरिणी छंद
शिखरिणी एक वर्णिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 17 वर्ण होते हैं। 6वें वर्ण पर यति होती है। शिखरिणी छंद में 1 यगण (।ऽऽ), 1 मगण (ऽऽऽ), 1 नगण (।।।), 1 सगण (।।ऽ), 1 भगण (ऽ।।), लघु-गुरु (।ऽ) होता है।
उदाहरण-
।ऽऽ ऽऽ ऽ ।।। ।।ऽ ऽ ।।। ऽ
अनूठी आभा से सरस सुषमा से सुरस से।
।ऽ ऽ ऽऽ ऽ ।। ।।।ऽ ऽ ।।। ऽ
बना जो देती थी बहु गुणमयी भू-विपिन को॥
।ऽऽ ऽऽ ऽ ।।। ।। ऽऽ ।।।ऽ
निराले फूलों की विविध दल वाली अनुपमा।
।ऽ ऽऽ ऽऽ ।। ।।।ऽ ऽ ।।।ऽ
जड़ी-बूटी नाना बहु फलवती थी विलसती॥
9. मंदाक्रांता छंद
मंदाक्रांता एक वर्णिक सवृत्त छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 17 वर्ण होते हैं। 10वें और 7वें वर्ण पर यति होती है। मंदाक्रांता छंद में 1 मगण (ऽऽऽ), 1 भगण (ऽ।।),1 नगण (।।।), 2 तगण (ऽऽ।) और दो गुरु (ऽऽ) होते हैं।
उदाहरण-
ऽऽ ऽऽ ।।। ।।ऽ ऽ। ऽ ऽ। ऽ ऽ
मेरे प्यारे, पुरुष, पृथिवी-रत्न औ शान्त धी हैं।
ऽऽऽ ऽ ।।। ।।ऽ ऽ।ऽ ऽ।ऽ ऽ
सन्देशों में तदपि उनकी, वेदना, व्यंजिता है।
ऽ ऽऽ ऽ ।।। ।। ऽ ऽ। ऽ ऽ।ऽ ऽ
मैं नारी हूँ, तरल-उर हूँ, प्यार से वंचिता हूँ।
ऽ ऽऽ ऽ ।।। ।।ऽ ऽ। ऽऽ। ऽ ऽ
जो होती हूँ विकल, विमना, व्यस्त, वैचित्रय क्या है॥
10. शार्दुलविक्रीड़ित छंद
शार्दुलविक्रीड़ित एक वर्णिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 19 वर्ण होते हैं। 12वें और 7वें वर्ण पर यति होती है। शार्दुलविक्रीड़ित छंद में 1 मगण (ऽऽऽ), 1 सगण (।।ऽ), 1 जगण (।ऽ।), 1 सगण (।।ऽ), 2 तगण (ऽऽ।) और एक गुरु (ऽ) होता है।
उदाहरण-
ऽऽ ऽ।। ऽ। ऽ ।।। ऽ ऽऽ ।ऽ ऽ। ऽ
काले कुत्सित कीट का कुसुम में कोई नहीं काम था।
ऽऽ ऽ ।।ऽ। ऽ। ।। ऽ ऽ ऽ । ऽऽ ।ऽ
काँटे से कमनीय कंज कृति में क्या है न कोई कमी।
ऽऽ ऽ ।। ऽ। ऽ ।।।ऽ ऽ ऽ।ऽ ऽ ।ऽ
पोरों में कब ईख की विपुलता है ग्रंथियों की भली।
ऽ ऽऽ। ।ऽ।ऽ ।।।ऽ ऽऽ ।ऽ ऽ ।ऽ
हा! दुर्दैव प्रगल्भते! अपटुता तूने कहाँ की नहीं॥
11. सवैया
सवैया एक वर्णिक संवृत्त छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 22 से लेकर 26 वर्ण (अक्षर) होते हैं। यह लयमूलक छंद है। सवैया छंद में आरंभ से लेकर अंत तक कोई एक गण दुहराया जाता है। चरणों में अंत के दो वर्णों में पहला लघु (।) और दूसरा गुरु (ऽ) होता है।
उदाहरण-
अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं।
तहाँ साँचे चलैं तजि आपनपौ झिझकैं कपटी जे निसाँक नहीं॥
घनआनंद प्यारे सुजान सुनौ यहाँ एक ते दूसरो आँक नहीं।
तुम कौन धौं पाटी पढ़े हौ लला, मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं॥
सवैया छंद के भेद-
सवैया के कई भेद हैं; जिसमें मदिरा, मत्तगयंद (मालती), सुमुखी, मोतियदाम (मुक्तहरा), दुर्मिल तथा सुंदरी आदि प्रमुख हैं।
(a) मदिरा सवैया छंद
मदिरा सवैया छंद के प्रत्येक चरण में 22 वर्ण होते हैं। इसमें 7 भगण (ऽ।।) और अंत में गुरु (ऽ) होता है।
उदाहरण-
ऽ।। ऽ। ।ऽ।। ऽ ।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ। ।ऽ
भासत गौरि गुसांइन को वर राम दुह धनु खंड कियो।
ऽ।। ऽ ।।ऽ। ।ऽ ।। ऽ ।। ऽ।। ऽ। ।ऽ
मालिन को जयमाल गुहौ हरि के हिय जानकि मेल दियो।
ऽ।। ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ। ।ऽ। । ऽ। ।ऽ
रावण की उतरी मदिरा चुपचाप पयान जु लंक कियो।
ऽ। ।ऽ ।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ ।। ऽ ।।ऽ। ।ऽ
राम वरी सिय मोद-भरी नभ में सुर जै जयकार कियो॥
(b) मत्तगयंद सवैया छंद
मत्तगयंद सवैया छंद का दूसरा नाम ‘मालती’ या ‘इन्दव’ है। इसके प्रत्येक चरण में 23 वर्ण होते हैं। मत्तगयंद छंद में 7 भगण (ऽ।।) और अंत में 2 गुरु (ऽऽ) होता है। चारों चरणों में तुकांत होता है।
उदाहरण-
ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ।। ऽ। ।ऽ।। ऽऽ
सेस महेस गणेस सुरेस दिनेसहु जाहि निरंतर गावैं।
ऽ।। ऽ ।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ। । ऽऽ
नारद से सुक व्यास रटै, पचि हारे तऊ पुनि पार न पावैं।
ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽऽ
जाहि अनादि, अनंत, अखंड, अछेद अभेद, सुवेद बतावैं।
ऽ। ।ऽ। । ऽ।।ऽ ।।ऽ ।। ऽ। । ऽ। ।ऽऽ
ताहि अहीर कि छोहरियाँ छछिया भरि छाछ प नाच नचावैं।
(c) सुमुखी सवैया छंद
मदिरा के आदि में एक लघु (।) वर्ण जोड़ने से सुमुखी सवैया छंद बनता है। इसके प्रत्येक चरण में 23 वर्ण होते हैं। 11वें और 12वें वर्ण पर यति होती है। इसमें 7 जगण (।ऽ।) और चरणों के अंत के वर्णों में लघु-गुरु (।ऽ) होता है।
उदाहरण-
।ऽ ।।ऽ। ।ऽ। ।ऽ ।। ऽ। ।ऽ। ।ऽ ।।ऽ
हिये बनमाल रसाल धरे, सिर मोर-किरीट महा लसिबो।
।ऽ ।। ऽ। ।ऽ ।।ऽ ।। ऽ।। ऽ ।।ऽ ।।ऽ
कसे कटि पीत-पटी, लकुटी कर आनन पै मुरली रसिबो।
।ऽ। । ऽ। ।ऽ ।। ऽ। ।ऽ।। ऽ। ।ऽ ।।ऽ
कलिंदि के तीर खड़े बल-वीर अहीरन बाँह गये हँसिबो।
।ऽ ।।ऽ ।। ऽ।। ऽ ।। ऽ।। ऽ ।।ऽ ।।ऽ
सदा हमारे हिय-मंदिर में यह बानक सों करिये बसिबो॥
(d) मुक्तहरा सवैया छंद
मुक्तहरा सवैया छंद का दूसरा नाम ‘मोतियदाम’ है। मत्तगयंद छंद के आदि-अंत में एक-एक लघु (।) वर्ण जोड़ देने से मुक्तहरा छंद बनता है। इसके प्रत्येक चरण में 24 वर्ण होते हैं। मुक्तहरा में 8 जगण (।ऽ।) होते हैं। 11वें और 13वें वर्ण पर यति होती है।
उदाहरण-
। ऽ। ।ऽ। । ऽ। ।ऽ।
न भूमि महान, न व्योम महान,
। ऽ। ।ऽ। । ऽ। । ऽ।
न तीर्थ महान, न पुण्य, न दान।
। ऽ। ।ऽ। । ऽ। ।ऽ।
न शैल महान, न सिंधु महान,
।ऽ। । ऽ। । ऽ।। ऽ।
महान न गंग, न संगम स्नान।
। ऽ। ।ऽ। । ऽ। ।ऽ।
न ग्रंथ महान, न पंथ महान,
।ऽ। । ऽ। । ऽ।। ऽ।
महान न काव्य, न दर्शन ज्ञान।
।ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ।
महान सुकर्म, महान सुभाव,
।ऽ। ।ऽ। ।ऽ। ।ऽ।
सुदृष्टि महान, चरित्र महान।
(e) दुर्मिल सवैया छंद
दुर्मिल सवैया छंद का दूसरा नाम ‘चंद्रकला’ है। इसके भी प्रत्येक चरण में 24 वर्ण होते हैं। दुर्मिल छंद में 12-12 वर्ण पर यति होती है। इसमें 8 सगण (।।ऽ) होता है।
उदाहरण-
।। ऽ। ।ऽ।। ऽ ।।ऽ
सखि नील-नभस्सर में उतरा,
।। ऽ। ।ऽ ।।ऽ ।।ऽ
यह हंस अहा तरता तरता।
।। ऽ।। ऽ।। ऽ। ।ऽ
अब तारक-मौक्तिक शेष नहीं,
।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ
निकला जिनको चरता चरता।
।।ऽ ।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ
अपने हिम-बिन्दु बचे तब भी,
।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ
चलता उनको धरता धरता,
।। ऽ। । ऽ।। ऽ।। ऽ
गड़ जायँ न कंटक भूतल के,
।। ऽ। ।ऽ ।।ऽ ।।ऽ
कर डाल रहा डरता डरता।
(f) गंगोदक सवैया छंद
गंगोदक सवैया छंद को ‘लक्ष्मी’ छंद भी कहते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 24 वर्ण होते हैं। गंगोदक छंद में 8 रगण (ऽ।ऽ) होता है।
उदाहरण-
ऽ। ऽऽ। ऽ ऽ। ऽऽ ।ऽ
राम राजान के राज आये इहाँ,
ऽ। ऽऽ ।ऽऽ। ऽऽ ।ऽ
धाम तेरे महाभाग जागे अबै।
ऽ। ऽऽ।ऽ ऽ।ऽऽ। ऽ
देवि मंदोदरी कुम्भकर्णादि दै,
ऽ। ऽऽ ।ऽ ऽ। ऽऽ ।ऽ
मित्र मंत्री जिते पूछि देखो सबै।
ऽ।ऽ ऽ। ऽ ऽ। ऽ ऽ। ऽ
राखिये जाति को, पाँति को वंश को,
ऽ।ऽ ऽ। ऽ ऽ। ऽऽ। ऽ
साधिये लोक मैं लोक पर्लोक को।
ऽ। ऽ ऽ ।ऽ ऽ। ऽ ऽ। ऽ
आनि कै पाँ परौ देस लै, कोस लै,
ऽ।ऽ ऽ। ऽऽ। ऽ ऽ। ऽ
आसुहीं ईश सीताहि लै ओक को।
(g) किरीट सवैया छंद
मदिरा के अंत में दो लघु (।) वर्ण जोड़ने से किरीट सवैया छंद बनता है। इसके प्रत्येक चरण में 24 वर्ण होते हैं। 12-12 वर्णों पर यति होती है। इसमें 8 भगण (ऽ।।) होता है।
उदाहरण-
ऽ।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ।।
चूनर छीन गयो कित मोहन,
ऽ।। ऽ ।।ऽ ।।ऽ।।
ढूंढत हूँ तुझको मुरलीधर
ऽ। ।ऽ।। ऽ।। ऽ।।
बांह मरोरत गागर फोड़त,
ऽ। ।ऽ।। ऽ ।।ऽ ।।
आज उलाहन दूँ जसुदा घर
ऽ।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ।।
बोलत बाल सखा घर भीतर,
ऽ। ।ऽ ।। ऽ ।। ऽ।।
श्याम रहो इत ही नट नागर
ऽ।। ऽ।। ऽ। ।ऽ ।।
दर्शन पाकर धन्य भई अब,
ऽ। ।ऽ ।। ऽ ।।ऽ।।
रीझ गई प्रभु हे करुणाकर।
(h) सुंदरी सवैया छंद
सुंदरी सवैया छंद के प्रत्येक चरण में 25 वर्ण होते हैं। 12 और 13 वर्णों पर यति होती है। इसमें 8 सगण (।।ऽ) और अंत में 1 गुरु (।) होता है।
उदाहरण-
।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ। ।ऽ
सुख शान्ति रहे सब ओर सदा,
।।ऽ। ।ऽ ।। ऽ। । ऽऽ
अविवेक तथा अघ पास न आवैं।
।। ऽ। ।ऽ ।। ऽ। ।ऽ
गुण शील तथा बल बुद्धि बढ़ें,
।। ऽ। ।ऽ। ।ऽ ।। ऽऽ
हठ बैर विरोध घटै मिटि जावैं।
।। ऽ।। ऽ ।। ऽ ।।ऽ
सब उन्नति के पथ पे विचरे,
।। ऽ। ।ऽ।। ऽ। ।ऽऽ
रति पूर्ण परस्पर पुण्य कमावैं।
।। ऽ।। ऽ। ।ऽ।।
दृढ़ निश्चय और निरापद,
ऽ।। ऽ।। ऽ।। ऽ ।। ऽऽ
होकर निर्भय जीवन में जय पावैं।
(i) अरविंद सवैया छंद
अरविंद सवैया छंद के प्रत्येक चरण में 25 वर्ण होते हैं। 12 और 13 वर्णों पर यति होती है। इसमें 8 सगण (।।ऽ) और अंत में 1 लघु (।) होता है।
उदाहरण-
।।ऽ ।। ऽ।। ऽ।। ऽ
सबसों लघु आपुहिं जानिय जू,
।। ऽ। ।ऽ।। ऽ। ।ऽ।
यह धर्म सनातन जान सुजान।
।।ऽ ।।ऽ ।। ऽ। ।ऽ
जबहीं सुमती अस आनि वसै,
।। ऽ।। ऽ। ।ऽ।। ऽ।
उर संपत्ति सर्व विराजत आन।
।। ऽ। ।ऽ ।।ऽ।। ऽ
प्रभु व्याप करौं सचराचर में,
।। ऽ। ।ऽ। ।ऽ ।।ऽ।
तजि-बैर सुभक्ति सजौ मतिमान।
।। ऽ। ।ऽ ।।ऽ।। ऽ
नित राम पदै अरविंदन को,
।।ऽ। ।ऽ ।।ऽ। ।ऽ।
मकरंद पियो सुमिलिंद समान॥
12. मनहरण छंद
मनहरण दंडक वर्णिक छंद है। इसे ‘कवित्त छंद’ भी कहते हैं। मनहरण छंद के प्रत्येक चरण में 31 वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण का अंतिम वर्ण गुरु (ऽ) होता है। सामान्य रूप से 16 और 15 पर प्रधान यति तथा समस्त चरण में 8, 8, 8, 7 पर साधारण यति होता है। तुक चारों चरणों में होता है।
उदाहरण-
मैं निज अलिंद में खड़ी थी सखि एक रात,
रिमझिम बूँदें पड़ती थीं घटा छाई थी। (31 वर्ण)
गमक रहा था केतकी का गंध चारों ओर,
झिल्ली-झनकार यही मेरे मन भाई थी। (31 वर्ण)
करने लगी मैं अनुकरण स्व नूपुरों से,
चंचला थी चमकी घनाली घहराई थी। (31 वर्ण)
चौंक देखा मैंने, चुप कोने में खड़े थे प्रिय,
माई! मुख-लज्जा उसी छाती में छिपाई थी! (31 वर्ण)
केशवदास का सबसे प्रिय छंद मनहरण कवित्त छंद है। निराला कवित्त छंद को हिंदी का जातीय छंद मानते हैं। उनके अनुसार ‘हिंदी में मुक्त काव्य कवित्त छंद की बुनियाद पर सफल हो सकता है।’
13. घनाक्षरी छंद
घनाक्षरी मुक्तक वर्णिक दंडक छंद है। यह अक्षरों की निश्चित संख्या से बनती है। इसके प्रत्येक चरण में 31 से 33 वर्ण होते हैं। घनाक्षरी छंद के प्रत्येक चरण का अंतिम वर्ण गुरु (ऽ) होता है और चारों चरणों में समान तुक आवश्यक है। सामान्य रूप से 16 और 15 पर प्रधान यति तथा समस्त चरण में 8, 8, 8, 7 पर साधारण यति होता है।
उदाहरण-
बहुत दिनान को अवधि आसपास परे,
खरे अरबरनि भरे हैं उठी जान को। (31 वर्ण)
कहि कहि आवन छबीले मनभावन को,
गहि गहि राखति ही दै दै सनमान को। (31 वर्ण)
झूटी बतियानि की पतियानि तें उदास हैव कै,
अब न घिरत घन आनंद निदान को। (31 वर्ण)
अधर लगे हैं आनि करि कै पयान प्रान,
चाहत चलन ये संदेसों लै सुजान को॥ (31 वर्ण)
14. रूप घनाक्षरी छंद
रूप घनाक्षरी छंद के चारों चरणों में 32-32 अक्षर होते हैं। सामान्य रूप से 16-16 पर प्रधान यति तथा समस्त चरण में 8, 8, 8, 7 पर साधारण यति होता है। अंत में गुरु (ऽ) और लघु (।) होता है।
उदाहरण-
नगर से दूर कुछ गाँव की सी बस्ती एक,
हरे भरे खेतों के समीप अति अभिराम। (32 वर्ण)
जहाँ पत्रजाल अंतराल से झलकते हैं,
लाल खपरैल, श्वेत छज्जों के सँवारे धाम। (32 वर्ण)
बीचो-बीच वट वृक्ष खड़ा हैं विशाल एक,
झूलते हैं बाल कभी जिसकी जटाएँ थाम। (32 वर्ण)
चढ़ी मंजु मालती लता है जहाँ छाई हुई,
पत्थर की पट्टियों का चौकियाँ पड़ी हैं श्याम। (32 वर्ण)
15. देव घनाक्षरी छंद
देव घनाक्षरी छंद के प्रत्येक चरण में 33 वर्ण होते हैं। सामान्य रूप से 16-17 पर प्रधान यति तथा समस्त चरण में 8, 8, 8, 9 पर साधारण यति होता है।
उदाहरण-
तपन के तेज से लो, सिसक किसान उठे,
वसुधा बेहाल हिय, जाता है दरक दरक। (33 वर्ण)
बादल आषाढ़ नहीं, आये गगन के बीच,
आये उमगाये पर, छिटके फरक फरक। (33 वर्ण)
दादुर उदास मौन, साधे सरोवर मध्य,
झींगुर झनकार न, सुनाते झनक झनक। (33 वर्ण)
घन के झकोर रोर, देखे बिन मोर मौन,
कृषक उदास जाता, हिय रे कसक कसक॥ (33 वर्ण)
(C) मुक्त छंद
जब किसी एक छंद के अनुशासन का पालन न किया जाए परन्तु कविता के लय को बनाए रखते हुए रचना की जाए तो ऐसी रचना मुक्त छंद होती है। इस तरह की रचनाओं को मुक्त छंद की कविता कहा जाता है न कि छंद मुक्त कविता। इनका कोई नियम नहीं है। निराला की जूही की कली मुक्त छंद का सुंदर उदाहरण है।
उदाहरण-
निर्दय उस नायक ने
निपट निठुराई की
कि झोंकों की झड़ियों से
सुन्दर सुकुमार देह सारी झकझोर डाली,
मसल दिये गोरे कपोल गोल;
चौंक पड़ी युवती–
चकित चितवन निज चारों ओर फेर,
हेर प्यारे को सेज-पास,
नम्र मुख हँसी-खिली,
खेल रंग, प्यारे संग
छंद पर आधारित प्रश्न
मात्रा और वर्ण के विचार से छंद के दो भेद होते हैं-
1. मात्रिक और 2. वर्णिक
मात्रिक छंद के तीन भेद हैं-
1. सममात्रिक छंद, 2. अर्द्धसममात्रिक छंद और 3. विषममात्रिक छंद
वर्णिक छंद के दो भेद हैं-
1. साधारण और 2. दंडक
दोहा छंद के विषम चरणों में 13-13 तथा सम चरणों में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
चौपाई छंद के प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं।
सोरठा छंद के विषम चरणों में 11-11 तथा सम चरणों में 13-13 मात्राएँ होती हैं।
उल्लाला छंद के विषम चरणों में 15-15 तथा सम चरणों में 13-13 मात्राएँ होती हैं।
छप्पय छंद के प्रथम चार चरणों में 24-24 मात्राएँ और अंतिम दो चरणों में 28-28 मात्राएँ होती हैं।
सवैया छंद के प्रत्येक चरण में 22 से लेकर 26 वर्ण / अक्षर होते हैं।
कवित्त के प्रत्येक चरण में 31 वर्ण होते हैं।
[1] रस-छंद-अलंकार- विश्वम्भर ‘मानव’, पृष्ठ- 27
[2] आधुनिक हिंदी व्याकरण और रचना- वासुदेवनंदन प्रसाद, पृष्ठ- 348
[3] आधुनिक व्याकरण और रचना- वासुदेवनंदन प्रसाद, पृष्ठ- 350
[4] रस, छंद, अलंकार- विश्वम्भर ‘मानव’, पृष्ठ- 33
[5] सूचनापरक हिंदी साहित्य- उमेश तिवारी, पृष्ठ- 285