हिन्दी साहित्य के इतिहास में आधुनिक काल के प्रथम चरण को ‘भारतेंदु युग’ के नाम से जाना जाता है। भारतेंदु हरिश्चंद्र को हिन्दी साहित्य के आधुनिक युग के प्रतिनिधि कवि/लेखक के रूप में हमारे सामने आते हैं। भारतेंदु का व्यक्तित्व प्रभावशाली था, वे संपादक और संगठनकर्ता थे, वे साहित्यकारों के नेता और समाज को दिशा देने वाले सुधारवादी विचारक थे, उनके आसपास तरुण और उत्साही साहित्यकारों की पूरी जमात तैयार हुई, अतः इस युग को भारतेंदु-युग की संज्ञा देना उचित है। डॉ. लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय के अनुसार ‘प्राचीन से नवीन के संक्रमण काल में भारतेंदु हरिश्चंद्र भारतवासियों की नवोदित आकांक्षाओं और राष्ट्रीयता के प्रतीक थे; वे भारतीय नवोत्थान के अग्रदूत थे। जय भारत जय भारती जिस समय खड़ी बोली गद्य अपने प्रारम्भिक रूप में थी, उस समय हिन्दी के सौभाग्य से भारतेंदु हरिश्चंद्र ने साहित्य के क्षेत्र में प्रवेश किया। उन्होंने राजा शिवप्रसाद तथा राजा लक्ष्मण सिंह की आपस में विरोधी शैलियों में समन्वय स्थापित किया और मध्यम मार्ग अपनाया।’
भारतेंदु युग (सन् 1868 से 1902 ई.) आधुनिकता का प्रवेश द्वार माना जाता है। कहना न होगा कि भारतेंदु को ही हिंदी में आधुनिकता और पुनर्जागरण के प्रवर्तक और पितामह माने जाते हैं। डॉ. नगेन्द्र ने भारतेंदु युग को पुनर्जागरणकाल की संज्ञा दी है। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कविता को रीति कालीन दरबारी तथा श्रृंगार-प्रधान वातावरण से निकाल कर उसका जनता से नाता जोड़ा। भारतेंदु युग की कविता में प्राचीन और आधुनिक काव्य-प्रवृत्तियों का समन्वय दिखाई देता है। इस युग की कविता में देश और जनता की भावनाओं और समस्याओं को पहली बार अभिव्यक्ति मिली। कवियों ने सांस्कृतिक गौरव का चित्र प्रस्तुत कर लोगों में आत्म-सम्मान की भावना भरने का प्रयत्न किया। भारतेंद युगीन राष्ट्रीयता के दो पक्ष थे- देशप्रेम और राजभक्ति। बहुत से संस्कृत महाकाव्यों का अनुवाद हुआ। अंग्रेजी काव्य कृतियों के भाषांतरण का समारंभ भी भारतेंदु युग में हुआ। इस युग में काव्य की भाषा ब्रजभाषा ही रही। यद्यपि खड़ी बोली में भी छुट-पुट प्रयत्न हुए, पर वे नगण्य ही थे।
भारतेंदु युग में अधिकांश लेखक/कवि होने के साथ-साथ पत्रकार भी थे- बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’- आनंद कादम्बिनी (मिर्जापुर), प्रतापनारायण मिश्र- ब्राह्मण (कानपूर), बालकृष्ण भट्ट- हिंदी प्रदीप (प्रयाग), तोता राम- भारत बंधु (अलीगढ) आदि प्रमुख हैं। भारतेंदु ने ‘कवि वचन सुधा’ (1868 ई.), ‘हरिश्चंद्र मैगज़ीन’ (1873 ई.) तथा 1874 ई. में नारी शिक्षा के लिए ‘बाल बोधनी’ जैसे मासिक पत्रिकाओं का संपादन भी किया। उन्होंने ‘हरिश्चंद्र मैगज़ीन’ का नाम 8 अंकों के बाद ‘हरिश्चंद चंद्रिका’ कर दिया।
भारतेंदु मंडल के साहित्यकार:
भारतेंदु ने अपने अल्प जीवन काल में एक अच्छा-खासा साहित्यिक मंडल तैयार कर लिया था जिसमें मंडल बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’, प्रतापनारायण मिश्र, ठाकुर जगमोहन सिंह, बालकृष्ण भट्ट आदि थे।
भारतेंदु युग की प्रमुख प्रवृत्तियाँ:
1. राष्ट्रीयता, 2. सामाजिक चेतना, 3. देशानुराग- व्यंजक भक्ति भावना, 4. भक्ति एवं श्रृंगार रस की प्रधानता, 5. प्रकृति-चित्रण, 6. हास्य-व्यंग्य रचनाएँ, 7. रीति निरूपण, 8. समस्यापूर्ति, 9. काव्य भाषा के रूप में ब्रजभाषा, 10. काव्यानुवाद 11. मुक्तक काव्य रूप की प्रधानता
भारतेंदु युग के प्रमुख कवि
भारतेंदु हरिश्चंद्र, बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’, प्रतापनारायण मिश्र, ठाकुर जगमोहन सिंह, अंबिकादत्त व्यास आदि इस युग के प्रमुख कवि थे।
अन्य कवियों में बाबू राधाकृष्ण दास, लाला सीताराम बी.ए., बालमुकुंद गुप्त, मिश्रबंधु, जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’, राय देवीप्रसाद पूर्ण, वियोगी हरि, सत्यनारायण ‘कविरत्न’, श्रीनिवास दास, राधाचरण गोस्वामी, नवनीत लाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण भट्ट आदि।
भारतेंदु युग के प्रमुख साहित्यिक मंच:
साहित्यिक मंच ‘रसिक समाज’ से प्रताप नारायण मिश्र जुड़े हुए थे।
क्रम | सभा/मंच | संस्थापक | शहर |
---|---|---|---|
1. | कवितावर्धिनी (1870) | भारतेंदु | काशी |
2. | तदीय समाज (1873) | भारतेंदु | काशी |
3. | पेनी रीडिंग क्लब (1873) | भारतेंदु | काशी |
4. | रसिक समाज | – | कानपुर |
5. | कवि समाज | बाबा सुमेर सिंह | निजामाबाद (आजमगढ़) |
भारतेंदु युग के प्रमुख सतसईकार
क्रम | सतसईकार | सतसई |
---|---|---|
1. | अंबिकादत्त व्यास | सुकवि सतसई |
2. | हरिऔध | कृष्ण शतक |
3. | वियोगी हरि | वीर सतसई |
4. | गुलाब सिंह | प्रेम सतसई |
भारतेंदु युग में रचित प्रबंध काव्य:
क्रम | कवि | प्रबंध काव्य |
---|---|---|
1. | हरिनाथ पाठक | श्री ललित रामायण |
2. | बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ | जीर्ण जनपद, मयंक महिमा |
3. | अंबिकादत्त व्यास | कंसबध (अपूर्ण) |
4. | गुरुभक्त सिंह | नूरजहाँ |
भारतेंदु युगीन समस्यापूर्ति संग्रह और कवि:
भारतेंदु युग में समस्यापूर्ति बहुत लोकप्रिय हुई। कुछ चर्चित समस्यापूर्ति संग्रह और कवि इस प्रकार हैं-
प्रमुख समस्यापूर्ति संग्रह और कवि:
क्रम | कवि | समस्यापूर्ति संग्रह |
---|---|---|
1. | दुर्गादत्त व्यास | समस्यापूर्ति-प्रकाश |
2. | अंबिकादत्त व्यास | समस्यापूर्ति-सर्वस्व |
3. | गोविंद गिल्लाभाई | समस्यापूर्ति-प्रदीप |
4. | गंगाधर ‘द्विजगंग’ | समस्या-प्रकाश |
5. | नर्मदेश्वरप्रसाद सिंह | पंचरत्न |
कुछ चर्चित समस्यापूर्ति:
कुछ चर्चित समस्यापूर्तियों की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं-
क्रम | कवि | पंक्तियाँ |
---|---|---|
1. | प्रतापनारायण मिश्र | ‘पपीहा जब पूछिहै पीव कहाँ’ |
2. | बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ | ‘चरचा चलिबे की चलाइए ना’ |
3. | भारतेंदु हरिश्चंद्र | ‘पिय प्यारे तिहारे निहारे बिना अंखियाँ दुखियाँ नहिं मानती है’ |
4. | अंबिकादत्त व्यास | ‘पूरी अमी की कटोरिया सी, चिरंजीवी रहौ विक्टोरिया रानी’ |
भारतेंदु युग में रीतिनिरूपक ग्रंथ
भारतेंदयुग में प्रमुख रीतिनिरूपक कवि- लछिराम (ब्रह्म भट्ट), कवि राजा, मुरारिदान, बालगोविंद मिश्र, अयोध्या नरेश प्रतापनारायण सिंह, कन्हैयालाल पोद्दार आदि हैं।
कवि | ग्रंथ | रीतिनिरूपन |
---|---|---|
लछिराम (ब्रम्हभट्ट) | महेश्वर विलास | नायिका भेद एवं नवरस |
लछिराम (ब्रम्हभट्ट) | रामचंद्र भूषण | अलंकार निरूपण |
लछिराम (ब्रम्हभट्ट) | रावणेश्वर कल्पतर | सर्व-काव्यांग निरूपण |
मुरारिदान | जसवंत जसोभूषण (1893) | अलंकार ग्रंथ |
बालगोविंद मिश्र | भाषाछंद प्रकाश (1999) | छंद निरूपण |
अयोध्या नरेश प्रतापनारायण सिंह | रस कुसुमाकर (1894) | गद्य में |
कन्हैयालाल पोद्दार | अलंकार प्रकाश (1896) | गद्य में |
भारतेंदु युग में रामभक्ति काव्य और कवि
‘कृष्ण रामायण’ (प्रकाशन- 1894 ई.) के रचनाकार घनारंग दूबे हैं।गुणमंजरीदास ने ‘श्रीयुगलछद्म’ और ‘रहस्यपद’ नामक भक्तिपरक रचनाएँ लिखा है। गुणमंजरीदास जी ‘राधाचरण गोस्वामी’ के पिता थे।
क्रम | कवि | रामभक्ति काव्य |
---|---|---|
1. | हरिनाथ पाठक | श्री ललित रामायण |
2. | अक्षय कुमार रसिक | विलास रामायण |
3. | बाबू तोताराम | राम रामायण |
भारतेंदु युग के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ
1. भारतेंदु हरिश्चंद्र:
भारतेंदु के काव्य ग्रंथों की संख्या 70 है। काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने इनका संकलन भारतेंदु ग्रंथावली (दो खंड) में किया है। ये रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
A | B | c |
---|---|---|
1. भक्ति सर्वस्व (1870), | 25. श्री जीवनजी महाराज, | 49. प्रातः स्मरण स्तोत्र, |
2. प्रेम–मालिका (1871), | 26. चतुरंग, | 50. हिन्दी की उन्नति पर व्याख्यान, |
3. कार्तिक स्नान, | 27. देवी छद्म लीला, | 51. अपवर्गदाष्टक, |
4. वैशाख माहात्म्य, | 28. प्रातःस्मरण मंगलपाठ, | 52. मनोमुकुल माला, |
5. प्रेम सरोवर, | 29. दैन्य प्रलाप, | 53. वेणु-गीति, |
6. प्रेमाश्रुवर्षण, | 30. उरेहना, | 54. श्रीनाथ स्तुति, |
7. जैन कुतूहल, | 31. तन्मय लीला, | 55. मूक प्रश्न, |
8. प्रेम-माधुरी (1875), | 32. दान-लीला, | 56. अपवर्ग पंचक, |
9. प्रेमतरंग (1877), | 33. रानी छद्म लीला, | 57. पुरुषोत्तम पंचक, |
10. उत्तरार्द्ध भक्तमाल (1876-77), | 34. संस्कृत लावनी, | 58. भारत वीरत्व, |
11. प्रेम प्रलाप (1877), | 35. वसन्त होली, | 59. श्री सीतावल्लभ स्तोत्र, |
12. गीत-गोविंदानंद (1877-78), | 36. स्फुट समस्याएँ, | 60. श्री रामलीला, |
13. सतसई श्रृंगार, | 37. मुँह-दिखावनी, | 61. भीष्म स्तवराज, |
14. होली (1879), | 38. उर्दू का स्यापा, | 62. मान लीला फूल-बुझौअल, |
15. मधु-मुकुल (1881), | 39. प्रबोधिनी, | 63. बंदर सभा, |
16. राग-संग्रह (1880), | 40. प्रात: समीरन, | 64. विजय वल्लरी, |
17. वर्षा-विनोद (1880), | 41. बकरी-विलाप, | 65. विजयिनी-विजय-वैजयन्ती, |
18. विनय प्रेम पचासा (1881), | 42. स्वरूप चिन्तन, | 66. नये जमाने की मुकरी, |
19. फूलों का गुच्छा (1882), | 43. श्री राजकुमार शुभागमन वर्णन, | 67. जातीय संगीत, |
20. प्रेम फुलवारी (1883), | 44. भारत भिक्षा, | 68. रिपुनाष्टक, |
21. कृष्णचरित (1883), | 45. श्री पंचमी, | 69. स्फुट कविताएँ, |
22. श्री अलवरत-वर्णन, | 46. निवेदन पंचक, | 70. प्रिंस ऑफ वेल्स के पीड़ित होने पर कविता |
23. श्री राजकुमार सुस्वागत-पत्र, | 47. मान सोपायन, | – |
24. सुमनोऽञ्जलिः, | 48. श्री सर्वोत्तम स्रोत, | – |
भारतेंदु की प्रसिद्ध कविताओं की शैलियाँ:
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने ‘पैरोडी’, ‘स्यापा’, ‘गाली’, ‘लावनी’ आदि शैलीगत रूपों में कविताएँ लिखी हैं, जो निम्नांकित हैं-
क्रम | कविताएँ | शैली/छंद |
---|---|---|
1. | विजयिनी विजय वैजयंती | निबंध काव्य |
2. | हिन्दी भाषा | निबंध काव्य |
3. | प्रात: समीरन | पयार |
4. | बंदरसभा | पैरोडी |
5. | उर्दू का स्यापा | स्यापा |
6. | समधिन मधुमास | गाली |
7. | नये जमाने की मुकरी | मुकरी |
8. | रानी छद्मलीला | प्रबंध गीति |
9. | देवी छद्मलीला | प्रबंध गीति |
10 | तन्मय लीला | प्रबंध गीति |
11 | वर्षा-विनोद | लावनी |
भारतेंदु की अन्य प्रसिद्ध कविताएं:
1. दशरथ विलाप, 2. फूलों का गुच्छा, 3. भारत भिक्षा, 4. विजयवल्लरी, 5. रिपनाष्टक, 6. प्रबोधिनी, 7. उत्तरार्द्ध भक्तमाल, 8. कार्तिक स्नान, 9. जैन कुतूहल, 10. बसंत होली, 11. यमुना छवि
अनुवाद:1. नारद भक्ति सूत्र- तदीय सर्वस्व (1874 ई.)2. शाण्डिल्य भक्ति सूत्र- भक्ति सूत्र वैजयन्ती
2. बद्री नारायण चौधरी ‘प्रेमघन’: (1855–1923 ई.)
1. जीर्ण-जनपद (दुर्दशा-दत्तापुर), 2. आनन्द अरुणोदय, 3. हार्दिक हर्षोदर्श, 4. मयंक महिमा, 5. अलौकिक लीला (आख्यानक कविता), 6. वर्षा बिन्दु, 7. लालित्य लहरी, 8. बृजचंद पंचक, 9. सूर्य: स्तोत्र (भक्तिपरक), 10. दुर्दशा दात्तापुर
कविताएँ:1. आर्याभिनंदन, 2. स्वागत
3. प्रताप नारायण मिश्र: (1856–1894 ई.)
1. प्रेम पुष्पावली, 2. मन की लहर, 3. लोकोक्ति शतक, 4. तृप्यन्ताम्, 5. श्रृंगार विलास, 6. हर गंगा, 7. रसखान सतक, 8. प्रताप लहरी (प्रतिनिधि कविताओं का संकलन), 9. दीवाने बरहम (उर्दू कविताओं का संग्रह)
कविताएँ:1. नवरात्र के पद, 2. होली है, 3. महापर्व, 4. नया संवत, 5. हिंदी की हिमायत
अनुवाद:संगीत शकुंतला
4. ठाकुर जगमोहन सिंह: (1857-1899 ई.)
1. प्रेम सम्पत्ति लता (1885), 2. श्यामा लता (1885), 3. श्यामा सरोजिनी (1886), 4. देवयानी (1886)
अनुवाद:इन्होंने कालिदास कृत ‘ऋतु संहार’ और ‘मेघदूत’ का ब्रज भाषा में अनुवाद किया है।
5. अम्बिका दत्त व्यास: (1858-1900 ई.)
1. पावस पचासा (1880), 2. सुकवि सतसई (1887), 3. हो हो होरी (1891), 4. बिहारी बिहार (बिहारी के दोहों को कुंडलियाँ छंद में भाव विस्तार), 5. कंसवध
कविताएँ:1. भारत धर्म, 2. जटिल वणिक
6. राधाकृष्णदास: (1865–1907 ई.)
1. भारत बारहमासा, 2. देश दशा, 3. रहीम के दोहों पर कुंडलियों की रचना
कविताएँ:1. विनय, 2. मेक्डानल्ड पुष्पांजलि, 3. जुबली, 4. विजयिनी विलाप
भारतेंदु युग के अन्य कवि और उनकी रचनाएँ
क्रम | कवि | रचनाएँ |
---|---|---|
1. | नवनीत चतुर्वेदी | कुब्जा पच्चीसी |
2. | गोविन्द गिल्लाभाई | श्रृंगार सरोजिनी, पावस पयोनिधि, राधामुख षोडसी, षड्ऋतु, नीति विनोद |
3. | दिवाकर भट्ट | नख शिख (1884), नवोढ़ा रत्न (1888) |
4. | रामकृष्ण वर्मा ‘बलवीर’ | बलवीर पचासा |
5. | राजेश्वरीप्रसाद सिंह ‘प्यारे’ | प्यारे प्रमोद |
6. | रावकृष्णदेव शरण सिंह ‘गोप’ | प्रेम संदेसा |
7. | दुर्गादत्त व्यास | अधमोद्धार शतक (1872) |
8. | राधाचरण गोस्वामी | नवभक्तमाल |
9 | गुलाब सिंह | प्रेम सतसई |
10 | लछिराम (ब्रम्हभट्ट) | मानसिंहाष्टक, प्रतापरत्नाकर, प्रेमरत्नाकर, लक्ष्मीश्वर रत्नाकर, रावणेश्वर कल्पतरु, कमलानंद कल्पतरु |
भारतेंदु युग के प्रमुख कवि और उनकी रचनाओं के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य:
1. भारतेंदु हरिश्चंद्र:
भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म 1850 ई. (काशी) में और मृत्यु 1885 ई. में हुआ था इनके पिता का नाम गोपालचन्द था। इनके गुरु शिव प्रसाद सिंह ‘सितारे हिन्द’ थे। साहित्यकारों ने हरिश्चंद्र को ‘भारतेंदु’ उपाधि 1880 ई. में प्रदान किया था। भारतेंदु ‘बल्लभ सम्प्रदाय’ में दीक्षित थे और ‘रसा’ उपनाम से उर्दू में कविताएँ लिखते थे। भारतेंदु हरिश्चंद्र की समस्त रचनाओं की संख्या 175 और काव्य-ग्रन्थों की संख्या 70 है।
भारतेंदु हरिश्चंद्र मूलतः ब्रजभाषा के कवि हैं। इनकी कविताओं में भक्ति एवं श्रृंगार रस की प्रधानता, नवीन विषयों का समावेश, प्रकृति चित्रण और राजभक्ति के साथ-साथ देशभक्ति एवं राष्ट्रीयता का स्वर प्रमुख रूप से मिलता है। भारतेंदु जी ने ‘प्रबोधनी’ कविता में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की प्रेरणा दी है। भारतेंदु ने ‘फूलों का गुच्छा’ और ‘दशरथ विलाप’ कविता खड़ी बोली में लिखी है। भारतेंदु की ‘बंदर-सभा’ और ‘बकरी का विलाप’ हास्य-प्रधान काव्य कृतियाँ हैं, वहीं ‘दान-लीला’ भक्ति-प्रधान और ‘सतसई श्रृंगार’ श्रृंगार-प्रधान काव्य कृति है। भारतेंदु ने ‘विजयिनी विजय वैजयंती’ शीर्षक कविता मिस्र में भारतीय सेना की विजय प्राप्ति के अवसर पर लिखी थी और ‘नये जमाने की मुकरी’ के माध्यम से समकालीन राजनितिक-सामाजिक विसंगतियों पर व्यंग किया है। ‘प्रात समीरन’ प्रकृति चित्रण की दृष्टि से उत्कृष्ट कविता है जिसमें बंगला के ‘पयार’ छंद का प्रयोग हुआ है। भारतेंदु ने खुसरों जैसी पहेलियाँ और मुकरियाँ भी लिखा है।
2. बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’:
बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ का जन्म मिर्जापुर (1855 ई.) में और मृत्यु 1923 ई. में हुआ था। प्रेमघन जी उर्दू में ‘अब्र’ नाम से कविताएँ लिखते थे। इनकी समस्त काव्य कृतियों का संकलन ‘प्रेमघन-सर्वस्व’ है। ‘प्रेमघन’ ने विलायत में ‘दादा भाई नौरोजी’ को ‘काला’ कहे जाने पर क्षोभपूर्ण कविताएँ लिखा था।
प्रेमघन की कविताओं में प्रायः यति भंग मिलता है। इन्होंने ‘मयंक महिमा’ की रचना खड़ी बोली में की। प्रेमघन जी ने ‘आनन्द कादम्बिनी’ (मासिक) एवं ‘नागरी नीरद’ (साप्ताहिक) पत्रिका का संपादन भी किया। इनकी कविताओं में राजभक्ति एवं राष्ट्रीयता का समन्वय और देश की दुरवस्था का चित्रण हुआ है। बदरीनारायण चौधरी ने भी ब्रजभाषा में काव्य सृजन किया।
3. प्रतापनारायण मिश्र:
मिश्र जी का जन्म बेलगाँव, जिला उन्नाव (1856 ई.) में और मृत्यु 1894 ई. में हुआ था। प्रतापनारायण मिश्र ने ‘हिंदी हिंदू हिंदुस्तान’ का नारा दिया था। इनकी प्रतिनिधि कविताओं का संकलन ‘प्रताप-लहरी’ है। मिश्र जी ने ‘हरगंगा’, ‘तृप्यंताम्’, ‘बुढ़ापा’, ‘हिन्दी की हिमायत’ शीर्षक से महत्वपूर्ण कविताएँ लिखीं हैं। मिश्र जी ने उर्दू में कसीदा, शेर, मरसिया आदि की भी रचना की।
मिश्र जी कानपुर की साहित्यिक संस्था ‘रसिक समाज’ से जुड़े हुए थे। इन्होंने ‘ब्राह्मण’ पत्र के संपादन भी किया। इनकी रचनाओं में समसामयिक देश-दशा तथा राजनीतिक चेतना का वर्णन मिलता है। प्रतापनारायण मिश्र जी ने ब्रजभाषा को काव्य रचना का माध्यम बनाया।
4. ठाकुर जगमोहन सिंह:
जगमोहन सिंह का जन्म विजय राघवगढ़ रियासत, मध्य प्रदेश (1857 ई.) में और मृत्यु 1899 ई. में हुआ था। ठाकुर जगमोहन सिंह की प्रमुख काव्य प्रवृत्ति श्रृंगार और प्रकृति चित्रण की है। इन्होंने अपनी कविताओं में विंध्य प्रदेश की प्रकृति का वैविध्यपूर्ण चित्रण किया है। स्वतंत्र रूप से प्रकृति चित्रण की दृष्टि से ठाकुर जगन्मोहन सिंह भारतेंदु युग के प्रमुख कवि हैं। इनके यहाँ श्रृंगार वर्णन एवं प्रकृति प्रेम की कविताएं अधिक मिलती हैं। जगमोहन सिंह ने अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया है। इन्होंने ब्रजभाषा में काव्य रचना की। जगमोहन जी भावुक मनोवृत्ति के कवि थे।
5. अंबिकादत्त व्यास:
अंबिकादत्त व्यास का जन्म काशी (1858 ई.) में और मृत्यु 1900 ई. में हुआ था। इन्होंने अपने कवि जीवन की शुरुआत ‘कवितावर्धिनी सभा’ में ‘पूरी अमी की कटोरिया सी, चिरंजीवी रहौ विक्टोरिया रानी’ समस्या की पूर्ति करके किया था। इस समस्यापूर्ति पर उन्हें ‘कवितावद्धिनी’ सभा द्वारा ‘सुकवि’ की उपाधि प्राप्त हुई थी। इन्होंने भारतेंदु युग में ‘अतुकांत काव्य रचना पद्धति’ अपना कर नवीन प्रयोग किया था। अंबिकादत्त जी ने अपनी कविताओं में बंगला के ‘दीर्घललित’ छंद का प्रयोग किया है। इन्होंने ‘पीयूष प्रवाह’ पत्रिका का संपादन भी किया था।
अंबिकादत्त व्यास ने खड़ी बोली में ‘कंस-वध’ (अपूर्ण) शीर्षक प्रबंध-काव्य की रचना किया। साथ ही फारसी छंद में ‘दशरथ विलाप’ नामक कविता खड़ी बोली में लिखी। ‘सुकवि सतसई’ संग्रह में श्री कृष्ण की बाल लीला से संबंधित 700 दोहे संग्रहीत हैं।
6. राधाकृष्ण दास
राधाकृष्ण दास का जन्म काशी (1865 ई.) में और मृत्यु 1907 ई. में हुआ था। भारतेंदु हरिश्चंद्र के फुफेरे भाई थे। इन्होंने रहीम के दोहों को कुण्डलिया छंद में भाव विस्तार किया। ये काशी नागरी प्रचारिणी सभा के अध्यक्ष भी रहे। भक्ति एवं श्रृंगार के साथ-साथ समकालीन राजनीतिक चेतना भी इनके कविताओं में देखा जा सकता है। राधाकृष्ण दास ब्रजभाषा एवं खड़ी बोली के कवि हैं।
7. नवनीत चतुर्वेदी
नवनीत चतुर्वेदी का जन्म 1868 ई. में और मृत्यु 1919 ई. में हुआ था। नवनीत जी जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’ के गुरु थे।
भारतेंदु युग से अन्य उल्लेखनीय तथ्य:
- भारतेंदु युग में भारतेंदु हरिश्चंद्र और बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमधन’ ने बंगला, गुजराती, मराठी में स्फुट कविताएँ लिखी हैं।
- भारतेंदु और अंबिकादत्त व्यास ने बिहारी के दोहों को कुंडलियाँ छंद में भाव विस्तार दिया है।
- प्रेमधन और प्रतापनारायण मिश्र ने कजलियाँ लिखीं भी लिखी हैं।
- भारतेंदु, ठाकुर जगमोहन सिंह, राधाचरण गोस्वामी, प्रतापनारायण मिश्र ने ‘लावनियां’ लिखी हैं, लावनी एक प्रकार की शैली या छंद है।
- भारतेंदु और प्रतापनारायण मिश्र द्वारा होली वर्णन में प्रतीक शैली का प्रयोग किया है।
- भारतेंदु युगीन कवियों में- अंबिकादत्त व्यास, श्रीधर पाठक, बालमुकुन्द गुप्त तथा राधाकृष्णदास में व्याकरणिक भूलों के निराकरण की प्रवृत्ति थी।
- भारतेंदु युग में काव्य क्षेत्र में ब्रजभाषा और खड़ी बोली के प्रयोग को लेकर प्रकार के आंदोलन का सूत्रपात हो गया था, जिसका मूल कारण- अयोध्या प्रसाद खत्री कृत ‘खड़ी बोली का आंदोलन’ (1888 ई.) में ब्रजभाषा और अवधी की रचनाओं को हिंदी साहित्य के अंतर्गत स्थान देने से इनकार कर देना था।
- बाबू तोता राम ने बाल्मीकि रामायण का ‘राम रामायण’ शीर्षक से अनुवाद किया।
- लाला सीताराम ‘भूप’ ने मेघदूत, कुमारसंभव, रघुवंश और ऋतुसंहार का अनुवाद किया।
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Nice👏👏👏 but not that I want type of it like class 10 th or 12th
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