बैंकों में प्रयोग होने वाली हिंदी

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बैंकों में प्रयोग होने वाली हिंदी

भारत जैसे बहुभाषी देश में हिंदी न केवल संवाद की भाषा है, बल्कि आमजन को वित्तीय सेवाओं से जोड़ने का एक महत्त्वपूर्ण साधन भी है। बैंकिंग व्यवस्था का उद्देश्य केवल धन का लेन–देन करना नहीं है, बल्कि समाज के हर वर्ग को आर्थिक गतिविधियों से जोड़ना भी है। चूँकि भारत में बैंकिंग व्यवस्था देश की आर्थिक रीढ़ है इसलिए भाषा की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो जाती है। बैंकिंग क्षेत्र में हिंदी का प्रयोग न केवल ग्राहकों के साथ संवाद को आसान बनाता है, बल्कि यह आम जनता तक वित्तीय सेवाओं की पहुँच को भी बढ़ाता है। यही कारण है कि बैंकों में हिंदी का प्रयोग लगातार बढ़ा है।

आजादी से पहले बैंकों में अंग्रेजी का प्रयोग होता रहा क्योंकि बैंकिंग व्यवस्था कुछ खास वर्गों तक ही सीमित था। आजादी के बाद बैंकों का राष्ट्रीयकरण और ग्रामीण क्षेत्रों में भी विस्तार हुआ। तब यह जरूरी हो गया कि बैंकों की भाषा अंग्रेजी की जगह राजभाषा हिंदी को बनाया जाए। इससे अधिक से अधिक ग्राहकों को बैंकिंग व्यवस्था के दायरे में लाया जा सकता था। चूँकि संविधान के अनुच्छेद 343 से 351 तक राजभाषा हिंदी का प्रावधान भी किया जा चुका था। इसलिए भी यह करना जरूरी हो गया था। यही कारण है कि आज बैंक पासबुक, खाता खोलने के प्रपत्र, एटीएम स्क्रीन, इंटरनेट बैंकिंग पोर्टल और मोबाइल एप्लिकेशन तक में हिंदी को स्थान दिया जा रहा है।

सरकारी क्षेत्र के बैंकों में हिंदी का प्रयोग भारत सरकार की राजभाषा नीति के अनुसार होता है, जिसका उद्देश्य हिंदी को कार्यालयीन कामकाज में बढ़ावा देना है। यह राजभाषा अधिनियम, 1963 (जो 1967 में संशोधित हुआ) और राजभाषा नियम, 1976 द्वारा बैंकों को आधिकारिक कार्य हिंदी में करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। भारतीय रिजर्व बैंक का बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग, केंद्रीय कार्यालय, सरकारी क्षेत्र के बैंकों में हिंदी के प्रयोग में हुई प्रगति की निगरानी करता है। चूँकि सभी राष्ट्रीयकृत बैंक भारत सरकार के स्वामित्व एंव नियंत्रण में हैं, इसलिए सरकारी भाषा नीति का पालन करना इन संस्थाओं का दायित्व है। इन पहलों ने बैंकिंग को ग्रामीण और सामान्य ग्राहकों के लिए अधिक सुलभ बनाया है।

बैंकों में हिंदी के प्रयोग की आवश्यकता

भारत में करोड़ों लोग हिंदी लिखते, बोलते और समझते हैं। बहुत से ग्राहक आज भी ऐसे हैं जो अंग्रेज़ी में संवाद करने में सहज नहीं होते, लिखना और पढ़ना तो उनके लिए दूर की बात है। ऐसे में बैंकों में हिंदी का प्रयोग न केवल बैंकिंग सेवाओं को अधिक सुलभ बनाता है, बल्कि ग्राहकों के एक बड़ी संख्या को बैंकिंग व्यवस्था से जोड़ता भी है। बैंकों को आम जनता तक अपनी पहुँच बनानी है तो उसे हिंदी का प्रयोग करना ही पड़ेगा। क्योंकि भाषा जन-संपर्क का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन होती है। चूंकि हिंदी भारत की संपर्क भाषा है, इसलिए राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिहाज से भी यह महत्त्वपूर्ण और जरूरी हो जाता है। बैंकों में हिंदी के प्रयोग की आवश्यकता और भी बढ़ जाती है।

बैंकों में हिंदी का प्रयोग

बैंकों में हिंदी का प्रयोग व्यावहारिक रूप में अधिकांश क्षेत्रों में होने लगा है। “बैंकों में प्रयुक्त की जाने वाली इस भाषा की अपनी विशिष्ठ शब्दावली है जिसका मानक रूप निर्धारित किया गया है।”[1] आइए, देखें कि बैंकों में हिंदी का उपयोग कैसे और कहाँ होता है।

1. ग्राहक सेवा में हिंदी

बैंकों में ग्राहकों से बातचीत के लिए हेल्पलाइन और ग्राहक सेवा केंद्रों पर हिंदी का व्यापक उपयोग होता है। खाता खोलने, लोन लेने या किसी समस्या के समाधान के लिए कर्मचारी अक्सर हिंदी में ग्राहकों को समझाते हैं। इससे उन लोगों को सुविधा होती है जो अंग्रेजी में सहज नहीं हैं। इसीलिए बैंकों में हिंदी का प्रयोग सामान्य ग्राहक की सुविधा के लिए आवश्यक है। उदाहरण के लिए, ‘आपका खाता संख्या क्या है?’, ‘आपकी पासबुक यहाँ अपडेट हो गई है’। या ‘कृपया अपने दस्तावेज यहाँ जमा करें’ जैसे वाक्य आम हैं।

2. फॉर्म और दस्तावेज

भारत के अधिकांश सरकारी बैंक अपने फॉर्म, नियमावली और ब्रोशर आदि हिंदी में भी उपलब्ध कराते हैं। ग्राहकों के लिए सभी फॉर्म, पासबुक, चेकबुक, खाता खोलने के दस्तावेज, और अन्य बैंकिंग सेवाओं से जुड़े दस्तावेज हिंदी में भी उपलब्ध होते हैं। नाम, पता, जमा राशि, ब्याज दर जैसे शब्द हिंदी में लिखे जाते हैं ताकि ग्राहक आसानी से समझ सकें। सभी फार्म हिंदी भाषी क्षेत्रों में हिंदी और अंग्रेजी (द्विभाषी) में, और अहिंदी भाषी क्षेत्रों में हिंदी, अंग्रेजी और संबंधित क्षेत्रीय भाषा में मुद्रित होते हैं। हिंदी में लिखे गए और हिंदी में हस्ताक्षरित चेक स्वीकार किये जाते हैं। सरकारी दस्तावेजों में भी हिंदी हस्ताक्षर किये जा सकते हैं।

3. हिंदी में पत्राचार

केंद्र सरकार के कार्यालयों, राज्य सरकारों और आम जनता से प्राप्त हिंदी पत्रों को सभी बैंक स्वीकार करते हैं। हिंदी में प्राप्त पत्रों का उत्तर अनिवार्य रूप से हिंदी में दिया जाता है, चाहे बैंक या उसकी शाखा किसी भी क्षेत्र में स्थित क्यों न हो। तकनीकी या कानूनी प्रकृति के न होने पर हिंदी पत्रों के अंग्रेजी अनुवाद की मांग को बैंकों द्वारा हतोत्साहित किया जाता है। हिंदी भाषी क्षेत्रों में भेजे जाने वाले पत्रों के लिफाफों पर पते हिंदी में लिखे जाते हैं।

3. डिजिटल बैंकिंग और हिंदी

आजकल नेट बैंकिंग और मोबाइल ऐप्स में भी हिंदी का विकल्प उपलब्ध है। ‘शेष राशि देखें’, ‘पैसे ट्रांसफर करें’, ‘ओटीपी दर्ज करें’ या ‘पासवर्ड बदलें’ जैसे विकल्प हिंदी में देखे जा सकते हैं। इससे तकनीक का उपयोग ग्रामीण क्षेत्रों में भी आसान हो गया है।

4. विज्ञापन और जागरूकता

पूरे भारतवर्ष और हिंदी भाषी क्षेत्रों के लिए विज्ञापन, प्रेस विज्ञप्तियां/प्रेस प्रकाशन आदि हिंदी और अंग्रेजी में साथ-साथ जारी किए जाते हैं। केंद्र सरकार द्वारा जारी नोटिस हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में (द्विभाषी) होती है। जनसाधारण के उपयोग के लिए प्रकाशन/बुकलेट/पत्र-पत्रिकाएं हिंदी और अंग्रेजी दोनों में जारी की जाती है। बैंक अपने विज्ञापनों में हिंदी नारों का प्रयोग करते हैं, जैसे- ‘सपनों को सच करें’ या ‘आपकी बचत, हमारी जिम्मेदारी’। यह आम लोगों के साथ भावनात्मक जुड़ाव बनाता है और उनके भरोसा को जीतता है।

5. नाम, पदनाम, काउंटर और साइन बोर्ड आदि में

हिंदी भाषी क्षेत्रों में सभी साइन बोर्ड, काउंटर बोर्ड, नाम बोर्ड और प्लेकार्ड आदि अंग्रेजी के अलावा हिंदी में भी प्रदर्शित किए जाते हैं। बैंकों के कार्यालयों / अधिकारियों / कर्मचारियों के नाम / पदनाम के बोर्ड तथा विभागों / प्रभागों के नाम बोर्ड आदि ‘क’ और ‘ख’ क्षेत्रों में द्विभाषी रूप में लगे होते हैं। जैसे- ‘ग्राहक सेवा डेस्क’, ‘शाखा प्रबंधक’ तथा ‘चेक ड्रॉप बॉक्स’ आदि।

बैंकों में प्रयुक्त होने वाली हिंदी की विशेषताएं

प्रत्येक अनुशासन की अपनी विशिष्ट पारिभाषिक शब्दावली होती है, उसकी अपनी अभिव्यक्तियाँ तथा वाक्य संरचना होती है। इसीलिए बैंक की हिंदी साहित्यिक हिंदी से नितांत भिन्न होती है। बैंकों में प्रयुक्त हिंदी में प्रशासनिक / कार्यालयीन हिंदी तथा व्यावसायिक हिंदी का मिला-जुला प्रयोग होता है। बैंकों के ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़े होने के कारण इसकी शब्दावली और अभिव्यक्ति में हमें कृषि, पशुपालन, कृषि उपकरणों आदि से संबंधित भाषा प्रयोग भी दिखाई देने लगे हैं। इन्हीं वजहों से बैंकों में हिंदी ने अपना एक नया स्वरूप निर्मित किया है।

भारत जैसे बहुभाषी देश में बैंकिंग सेवाओं का हिंदी में उपलब्ध होना न केवल राजभाषा नीति का पालन है, बल्कि ग्राहकों के साथ विश्वास और पारदर्शिता का सेतु भी है। बैंकों में प्रयोग होने वाली हिंदी की अधिकांश वही विशेषताएं हैं जो प्रयोजनमूलक हिंदी की होती हैं। आइए जानें कि बैंकों में प्रयुक्त हिंदी की क्या विशेषताएं हैं और यह कैसे वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देती है।

1. औपचारिक भाषा

सामान्य हिंदी का स्वरूप जहां अनौपचारिक होता है, वहीं बैंकों में लिखी और बोली जाने वाली हिंदी काफी औपचारिक होती है। इसमें बोलचाल के शब्दों के बजाय मानक और व्याकरणिक रूप से सही शब्दों का प्रयोग किया जाता है। अर्थात राजभाषा का प्रयोग होता है। बैंकों में हिंदी का प्रयोग करते समय देवनागरी लिपि और अंकों के अंतर्राष्ट्रीय रूपों का प्रयोग किया जाता है।

2. तकनीकी और पारिभाषिक शब्दावली

प्रत्येक प्रयुक्ति क्षेत्र की अपनी विशिष्ट शब्दावली होती है, बैंकिंग क्षेत्र भी इसका अपवाद नहीं है। उसमें प्रयोग की जाने वाली शब्दावली विशिष्ट मानकीकृत होती है जो बैंक के क्षेत्र विशेष से संबद्ध होती है। उपयुक्त हिंदी शब्द न मिलने पर अंग्रेजी शब्द को यथारूप प्रयुक्त कर दिया जाता है। आनवश्यक रूप से हिंदी शब्द बनाने के दुराग्रह से बचा जाता है। प्रचलित उर्दू शब्दों को भी अपना लिया जाता है। कुछ शब्दों को हटाकर  प्रचलित शब्दों को रखा जाता है, जैसे- revenue- मालगुजारी की जगह राजस्व। बैंकिंग क्षेत्र से जुड़े खास शब्दों का उपयोग होता है, जैसे: खाता (Account), जमा (Deposit), निकासी (Withdrawal), ऋण (Loan), ब्याज (Interest), बचत खाता (Savings Account), चालू खाता (Current Account), आदि। ये शब्द हिंदी में ही होते हैं ताकि सही अर्थ स्पष्ट हो सके।

3. स्पष्टता और सटीकता

बैंकिंग में किसी भी तरह की ग़लतफ़हमी की गुंजाइश नहीं होती। इसलिए भाषा बहुत ही सीधी, स्पष्ट और सटीक होती है। इसमें घुमा-फिराकर बात करने से बचा जाता है ताकि ग्राहक को हर जानकारी सही और साफ मिले। इसीलिए इसमें पारिभाषिक शब्दावली का प्रयोग किया जाता है। यथासंभव एक अंग्रेजी शब्द का एक ही पर्याय का प्रयोग होता है। मिलते-जुलते अंग्रेजी शब्दों के लिए सटीक हिंदी शब्द रखे जाते हैं, ताकि उनके बीच के सूक्ष्म अंतर को बरकरार रखा जा सके, जैसे- farming (खेती), agriculture (कृषि) । कई शब्द ऐसे होते प्रयुक्त होते हैं जिनके अनेक अर्थ होते हैं, उनका संदर्भानुसार प्रयोग किया जाता है।

4. सरलता

हालाँकि बैंक की भाषा औपचारिक होती है, लेकिन इसे समझने में आसान रखा जाता है, ताकि कम पढ़े-लिखे लोग भी बैंकिंग फॉर्म या नोटिस को समझ सकें। जटिल वाक्यों के बजाय छोटे और सरल वाक्यों और सरल शब्दों का प्रयोग किया जाता है। जैसे- ऋण (Loan), ब्याज दर (Interest Rate), ग्रामीण और अर्धशहरी क्षेत्रों में योजनाएं समझाने में सहायक हैं। बैंकों की शब्दावली जटिल या कठिन नहीं है। अंग्रेजी के प्रचलित शब्दों को यथावत स्वीकार कर लिया गया है, जैसे- बैंक, बाउचर, ड्राफ्ट, बिल आदि। “इसी प्रकार भारत में प्रचलित परंपरागत देशी बैंकिंग व्यवस्था की शब्दावली को भी बैंकों ने अंग्रेजी शब्दों के स्थान पर पारिभाषिक बनाकर स्वीकार कर लिया है”[2], जैसे- गिरवी, कर्ज, लेनदेन, खाता, व्याज, घाटा आदि।

5. प्रशासनिक और कानूनी शब्दावली का प्रयोग

बैंकों में प्रयोग होने वाली हिंदी में प्रशासनिक और कार्यालयी हिंदी का मिला-जुला रूप प्रयुक्त होता है। बैंकिंग के कई दस्तावेज कानूनी प्रकृति के होते हैं, इसलिए उनमें प्रशासनिक और कानूनी हिंदी का पुट होता है। जैसे: शर्तें और नियम (Terms and Conditions), हलफनामा (Affidavit), अधिकारपत्र (Authorization Letter) आदि। अर्थात बैंकिंग से जुड़े अन्य क्षेत्रों के शब्दों का भी प्रयोग होता है, जो बैंकिंग काम-काज से संबंधित होते हैं।

6. द्विभाषी प्रकृति

द्विभाषी प्रकृति (Bilingual Nature) बैंकों की एक खास विशेषता है। “द्विभाषिकता की स्थित में हिंदी का प्रयोग पहले स्थान पर होता है।”[3] फॉर्म्स और दूसरे दस्तावेजों पर हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी में भी जानकारी दी जाती है ताकि भाषाई अवरोध कम हो। संकल्प, सामान्य आदेश, नियम, अधिसूचना, प्रशासनिक या अन्य प्रतिवेदन और प्रेस विज्ञप्तियाँ अनिवार्य रूप से हिंदी और अंग्रेजी में साथ-साथ जारी की जाती हैं। बैंकों द्वारा निष्पादित सभी प्रकार की संविदाएँ और करार, अनुज्ञप्तियां, अनुज्ञापत्र, सूचना और निविदा प्रारूप भी द्विभाषी होते हैं। बैंक की वार्षिक रिपोर्टें हिंदी और अंग्रेजी में साथ-साथ प्रकाशित की जाती हैं। जिन अधिकारियों और कर्मचारियों को हिंदी भाषा का ज्ञान नहीं है उन्हें सेवाकाल के दौरान बैंक द्वारा प्रशिक्षण दिया जाता है।

7. वाक्य संरचना

बैंकिंग व्यवस्था में रूपए का लेन-देन होता है, इसलिए बैंकिंग व्यवस्था में लेना, देना, जमा करना, निकालना, भेजना, मांगना आदि क्रियाओं का अधिक प्रयोग होता है। चूँकि “बैंकिंग व्यवस्था व्यक्तिपरक न होकर संस्थापरक है, इसलिए अमूर्तता और संस्थापरकता के भाव की अभिव्यक्ति होती है। इस कारण वाक्यों में ‘कर्ता’ का लोप हो जाता है।”[4] अर्थात वाक्य कर्ता प्रधान न होकर कर्म प्रधान होता है। बैंक की व्यक्ति निरपेक्ष वाक्य संरचना होती है इसलिए अभिव्यक्ति सामूहिक संबोधन से होती है। उदाहरण-

  • यहाँ हस्ताक्षर कीजिए।
  • बैंक में हिंदी में चेक स्वीकार किए जाते हैं।
  • चेक की मियाद निकल चुकी है।
  • बैंक में कोई भी व्यक्ति खाता खोल सकता है।
  • खाते में पर्याप्त रकम नहीं थी।

निष्कर्ष

बैंकों में प्रयोग होने वाली हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि एक दृष्टिकोण है— जो संवाद को सरल बनाता है, सेवा को सुलभ करता है, एक बड़े जनसमुदाय को बैंकिंग व्यवस्था से जोड़ता है और समावेशी वित्तीय प्रणाली की नींव रखता है। जब आम नागरिक अपनी भाषा में बैंकिंग को समझता है, तो उससे सहभागिता और विश्वास दोनों बढ़ते हैं।


  • [1] व्यावसायिक हिंदी- डॉ. प्रेमचंद पतंजलि, पृष्ठ- 67
  • [2] हिंदी भाषा: विविध प्रयोग- रोहित मांगलिक, पृष्ठ- 93
  • [3] आधुनिक भारतीय भाषा: हिंदी- कुमारी उर्वशी, पृष्ठ- 153
  • [4] प्रयोजनमूलक हिंदी- रोहित मांगलिक, पृष्ठ- 56
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