संप्रेषण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से हम अपने विचारों, भावनाओं और जानकारी को दूसरों तक पहुंचाते हैं। यह हमारे दैनिक जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, चाहे वह व्यक्तिगत संबंधों में हो या सार्वजानिक जीवन में। संप्रेषण के विभिन्न प्रकार होते हैं, जो हमारे संवाद के तरीकों और उद्देश्यों पर निर्भर करते हैं। संप्रेषण के मुख्य रूप से दो प्रकार होते हैं:
1. शाब्दिक संप्रेषण और 2. अशाब्दिक संप्रेषण
1. शाब्दिक संप्रेषण:
शाब्दिक संप्रेषण में शब्दों के माध्यम से संप्रेषण की प्रक्रिया पूरी की जाती है। अर्थात शाब्दिक संप्रेषण भाषा की सहायता से संप्रेषण की प्रक्रिया है। इसके भी दो प्रकार होतें हैं- मौखिक और लिखित संप्रेषण।
(a) मौखिक संप्रेषण:
मौखिक संप्रेषण को अंग्रेजी में Verbal Communication कहा जाता है। शब्दों को मुख से बोलकर किया जाने वाला संप्रेषण मौखिक संप्रेषण है; जैसे बातचीत, चर्चा और व्याख्यान आदि। यह एक ऐसा संप्रेषण है, जिसमें स्वरतंत्री का उपयोग किया जाता है। इसमें वक्ता और श्रोता दोनो आमने-सामने होकर मौखिक वार्तालाप करते हैं। परंतु आधुनिक संचार साधनों के विकास से वक्ता और श्रोता को आमने सामने रहना अनिवार्य नहीं रह गया है।
सभ्यता के प्रारम्भिक अवस्था में यह सर्वाधिक प्रचलित था। अभी भी हमारा 75% मौखिक संप्रेषण में समय व्यतीत होता है। इसमें पर्श्वभाषा (Para language) का विशेष महत्त्व होता है। कोई व्यक्ति किस प्रकार (स्वर, ध्वनि, लहजा, सुर हाव-भाव आदि) कोई बात कहता है।
मोबाइल, टेलीफोन, रेडियो, दूरदर्शन, वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग, प्रत्यक्ष संपर्क द्वारा- आमने-सामने, सामूहिक वार्तालाप, सभा गोष्ठी आदि मौखिक संप्रेषण के साधन हैं।
मौखिक संप्रेषण के गुण:
मौखिक संप्रेषण में निम्नलिखित गुण और विशेषताएँ होती हैं-
- मौखिक संप्रेषण का श्रोता पर तुरंत प्रभाव पड़ता है।
- चेहरे का हाव-भाव अधिक प्रभावी होता है।
- यह अधिक स्पष्ट होता है, भ्रम या संदेह नहीं रहता, तुरंत समाधान हो जाता है।
- इसमें फीडबैक तुरंत मिल जाता है।
- इससे समय और धन दोनों की बचत होती है।
- कई बार लिखित में सूचनाओं को भेजना संभव नहीं होता है।
- चूँकि यह तुरंत श्रोता तक पहुँच जाता है इसलिए शीघ्र निर्णय लेकर कार्यवाही किया जा सकता है।
- यदि श्रोता अशिक्षित है तो मौखिक संप्रेषण अधिक कारगर होता है।
- जनसमूह को सूचनाएँ देने के लिए मौखिक संप्रेषण का ही सहारा होता है।
- कई बार संदेश इतनी गोपनीय होती है कि लिखित संप्रेषण संभव नहीं होता है।
मौखिक संप्रेषण के दोष:
मौखिक संप्रेषण में निम्नलिखित दोष या सीमाएँ होती हैं-
- बड़ा संदेश समझने में समय लगता है, इसलिए बार-बार स्पष्टीकरण देना पड़ता है।
- लंबे संदेश याद रखना असंभव होता है।
- वक्ता और श्रोता के ज्ञान स्तर पर भिन्नता होने पर समस्या उत्पन्न होता है।
- लिखित प्रमाण के आभाव में किसी प्रकार की वैधानिक कार्यवाही नहीं हो सकती।
- कभी-कभार ध्यान से नहीं सुनने पर अर्थ का अनर्थ हो जाता है।
- भिन्न संस्कृति के लोगों को समझाने में समस्या आती है।
(b) लिखित संप्रेषण:
लिखित संप्रेषण को अंग्रेजी में Written Communication कहते हैं। अर्थात यह वह संप्रेषण है जो लिखित शब्दों के माध्यम से होता है, जैसे- पत्र, पत्रिका, समाचार पत्र, ईमेल और रिपोर्ट आदि। जब संप्रेषक और प्रापक दूर हों तो लिखित संप्रेषण का महत्त्व बढ़ जाता है। इसे लिपि चिह्नों द्वारा व्यक्त किया जाता है और आँखों द्वारा ग्रहण किया जाता है।
यह व्याकरण के नियमों के अनुसार उचित, तर्कसंगत, अभिप्रायपूर्ण, सार्थक और औपचारिक होता है। मौखिक संप्रेषण की अपेक्षा यह व्यापक एवं चिरस्थाई होता है। इसे प्रमाण के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है।
सार्वजनिक सूचना, पत्र, पत्रिका, रिपोर्ट, परिपत्र आदि लिखित संप्रेषण के साधन हैं। जैसे- कर्मचारियों के मध्य हुए औपचारिक या अनौपचारिक पत्र व्यवहार, कर्मचारियों के लिए प्रकाशित सूचनाएँ। वरिष्ठ अधिकारी द्वारा अधीनस्थ कर्मचारियों को दिए गए निर्देश, बड़े संस्थानों के समाचार बुलेटिन, शैक्षणिक संस्थाओं के नोटिस बोर्ड की सूचनाएँ आदि।
लिखित संप्रेषण के गुण:
लिखित संप्रेषण में निम्नलिखित गुण और विशेषताएँ होती हैं-
- इसमें दोनों पक्षों की एक साथ उपस्थिति अनिवार्य नहीं होती है।
- संदेश को संक्षिप्त और क्रमबद्ध तरीके से लिखा जाता है।
- इसे बार-बार पढ़ा जा सकता है इसलिए गलतफहमी नहीं होती।
- इसे संपादित और संशोधित किया जा सकता है।
- यह एक स्थाई दस्तावेज होता है जिसे सुरक्षित रखा जा सकता है।
- यह एक कानूनी पपत्र होता है जिसे विवाद के समय साक्ष्य रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।
- लिखित संप्रेषण में स्पष्ट भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिए।
- भाषा शिष्ट और नम्र होनी चाहिए, कटु नहीं।
- सुंदर और आकर्षक लिखा जाना चाहिए।
- क्लिष्ट और द्विअर्थक शब्दों से बचना चाहिए।
लिखित संप्रेषण के दोष:
लिखित संप्रेषण में निम्नलिखित दोष या सीमाएँ होती हैं-
- अधिक खर्च, रखरखाव की व्यवस्था करना पड़ता है, जैसे- आलमारी आदि
- इसमें समय अधिक लगता है, आपातकाल में अनुपयोगी होता है।
- इसमें गोपनीयता का आभाव होता है।
- किसी प्रकार की गलतफहमी होने पर तुरंत स्पष्टीकरण में देरी लगती है।
- अशिक्षित लोगों के लिए यह अनुपयोगी है।
- प्रापक के भावनाओं का पता नहीं चलता।
2. अशाब्दिक संप्रेषण:
अशब्दिक या अभासिक संप्रेषण को अंग्रेजी में Non-Verbal Communication कहते हैं। यह संप्रेषण शब्दों के बिना होता है, जैसे- शारीरिक मुद्रा, शारीरिक हाव-भाव (झपकी या उबकाई लेना), भाव भंगिमा (लहजा, हास्य, आँसू), स्पर्श, चक्षु संपर्क, वस्त्र, बालों की स्टाइल, चिह्न, प्रतीक, संकेत, गुनगुनाना, नृत्य, स्थापत्य और चित्र आदि।
अर्थात जिन्हें शब्दों में व्यक्त करना संभव नहीं होता उन्हें व्यक्त करने के लिए अशब्दिक संप्रेषण का प्रयोग करते हैं। महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा अभाषिक संप्रेषण का प्रयोग करती हैं। अशाब्दिक संप्रेषण अनियंत्रित संकेतों पर आधारित होता है।
अशब्दिक संप्रेषण किसी भी माध्यम द्वारा हो सकता है। सर्वप्रथम 1872 ई. में चार्ल्स डार्विन ने इस पर अपनी पुस्तक ‘द एक्सप्रेशन ऑफ द इमोशन्स इन मैन एंड एनिमल’ में विचार किया था।
अशब्दिक संप्रेषण के कार्य:
अशब्दिक संप्रेषण के निम्नलिखित कार्य हैं-
- भावनाओं को व्यक्त करना
- पारस्परिक रुख को व्यक्त करना
- वक्ता और श्रोता के बीच अंतःक्रिया करना
- अभिवादन
प्रमुख प्रश्न:
Ans. संप्रेषण के तीन प्रकार हैं: मौखिक संप्रेषण, लिखित संप्रेषण और अशाब्दिक संप्रेषण।
Ans. शाब्दिक संप्रेषण के तीन प्रकार हैं: मौखिक संप्रेषण और लिखित संप्रेषण।
Ans. मौखिक संप्रेषण कई प्रकार के होते हैं; जैसे- पारस्परिक संप्रेषण, अंतरवैयक्तिक संप्रेषण, छोटे समूह संप्रेषण, सार्वजनिक संप्रेषण, सूचनात्मक संप्रेषण, प्रेरक संप्रेषण, अभिव्यंजक संप्रेषण, औपचारिक तथा अनौपचारिक संप्रेषण आदि।
Ans. लिखित संप्रेषण के कई प्रकार हैं- औपचारिक लिखित संप्रेषण, अनौपचारिक लिखित संप्रेषण,
शैक्षणिक लिखित संप्रेषण, रचनात्मक लिखित संप्रेषण, सूचनात्मक लिखित संप्रेषण, निर्देशात्मक लिखित संप्रेषण, लेन-देन संबंधी लिखित संप्रेषण आदि।