हिंदी साहित्य

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यह मंदिर का दीप- महादेवी वर्मा

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यह मन्दिर का दीप इसे नीरव जलने दोरजत शंख घड़ियाल स्वर्ण वंशी-वीणा-स्वर,गये आरती वेला को शत-शत लय से भर,जब था कल कंठो का मेला,विहंसे...