अभाषिक संप्रेषण (Nonverbal Communication)
भाषा रहित संदेशों को संप्रेषित करने और उसे प्राप्त करने की प्रक्रिया को अभाषिक संप्रेषण कहते हैं। अंग्रेजी में यह Nonverbal Communication के नाम से जाना जाता है। अभाषिक संप्रेषण के लिए अवाचिक और अशाब्दिक संप्रेषण आदि शब्दों का भी प्रयोग किया जाता है। इन तीनों शब्दों का आशय एक ही निकलता है- बिना बोले या बिना भाषा के प्रयोग किए अपनी अभिव्यक्ति को प्रकट करना।
अभाषिक संप्रेषण-प्रक्रिया प्राचीन काल से ही मानव समाज में विद्यमान है और आज भी किसी न किसी रूप में प्रयुक्त हो रही है। मनुष्य के अलावा जितने भी प्राणी हैं वे दूसरे तक अपनी भावनाएं और संदेश संप्रेषित करने के लिए केवल अभाषिक संप्रेषण का प्रयोग करते हैं। वहीं मनुष्य ही एकमात्र प्राणी है जो भाषिक संप्रेषण के साथ-साथ अभाषिक संप्रेषण भी करता है।
इस प्रकार संप्रेषण-प्रक्रिया के मुख्य रूप से दो रूप दिखाई देते हैं- (क) अभाषिक और (ख) भाषिक। अभाषिक संप्रेषण-प्रक्रिया में बिना बोले यानी शारीरिक भंगिमाओं, हाव-भाव, स्पर्श, आँखों एवं चेष्टाओं के माध्यम से संदेश का संप्रेषण किया जाता है। मौखिक ध्वनियाँ जिन्हें शब्द नहीं माना जाता, जैसे- घुरघुराना या गुनगुनाना आदि अभाषिक संप्रेषण का उदाहरण हैं। हमारी वाणी में भी अशाब्दिक तत्व सम्मिलित होते हैं, जैसे- आवाज की गुणवत्ता, भावना, बोलने के तरीके के साथ-साथ ताल, लय, आलाप एवं तनाव आदि। इसके विपरीत भाषिक संप्रेषण में वाणी के द्वारा संदेश का संप्रेषण होता है।
जब शब्दों के द्वारा भावाभिव्यक्ति होती है तो उसे मौखिक संप्रेषण कहते हैं। परंतु कई बार हम शब्दों द्वारा अपनी भावाभिव्यक्ति पूर्णत: नहीं कर पाते। ऐसे में हम सूक्ष्म संकेतों, प्रतीकों, अपने हाव-भाव आदि से अपनी भावाभिव्यक्ति करते हैं। अर्थात केवल भाषा ही संप्रेषण का माध्यम नहीं है, इसके अलावा भी कई अन्य माध्यम हैं जिनके माध्यम से संप्रेषण होता है।
अभाषिक संप्रेषण का ऐतिहासिक साक्ष्य और विकासक्रम हमें आदिमानव की गुफाओं में प्रस्तर वस्तुओं और भित्ति चित्रों से लेकर नृत्य, नृत्य नाटिका, मूक प्रदर्शन जैसे अभिव्यंजनात्मक और अमूर्त कला के रूप में दिखाई देता है। आधुनिकतम कला रूपों में अभाषिक संप्रेषण की महत्वपूर्ण भूमिका है। भारतीय नृत्य की कई शैलियाँ प्रचलित हैं जिसमें अभाषिक संप्रेषण द्वारा संदेशों को संप्रेषित किया जाता है। कथक, भरत नाट्यम, कथकली, नौटंकी, ओडिसी, मणिपुरी, कुचिपुड़ि आदि नृत्य शैलियाँ में बिना शब्दों के प्रयोग के भी सशक्त रूप से भावाभिव्यक्ति करते हैं।
इन नृत्य या नृत्य नाटिकाओं के द्वारा शृंगार, वीर, रौद्र, हास्य, करुण आदि रसों की अभिव्यक्ति भी अभाषिक संप्रेषण द्वारा होता है। मुखौटे, यातायात संकेत, ध्वज, वर्दियाँ (फौज, पुलिस, स्कूली बच्चों आदि की), राष्ट्रों के ध्वज एवं उन पर बने चित्र आदि भी अभाषिक संप्रेषण के रूप हैं।
किसी भी भाषा के लिखित पाठ में भी अभाषिक तत्व मौजूद होते हैं। जैसे हस्तलेखन का तरीका; जिसमें कौमा, पूर्ण विराम, दो शब्दों के बीच की खाली जगह आदि। शब्दों के स्थान संबंधी व्यवस्था और वाक्यों में इमोटिकोन या इमोजी (emoticons) का प्रयोग करके भी संदेश संप्रेषित किए जाते हैं। वर्तमान समय में व्हाट्सअप्प, फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया की भाषा में इमोजी जैसे अभाषिक तत्वों का अधिक किया जा रहा है।
अभाषिक संप्रेषण प्रक्रिया में मुख मंडल की अलग-अलग स्थितियाँ, आँखों के संकेत, शारीरिक भाव भंगिमाएं आदि सम्मिलित रहती हैं। कई बार आपसी बातचीत के दौरान हमलोग जब कुछ नहीं भी कहते हैं तो हमारे चेहरे के हावभाव से लोग समझ जाते हैं कि हम क्या व्यक्त करना चाह रहे हैं? हिंदी के मशहूर कवि बिहारी ने लिखा भी है-
‘कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरे भौन मैं करत हैं, नैननु ही सब बात॥’
उपर्युक्त उदाहरण में अभाषिक संप्रेषण की दृष्टि से शारीरिक भाव भांगिमाएँ, मुखमंडल की विभिन्न अभिव्यक्तियों सहित नेत्रों का संदेश प्रेषण आदि मानव संप्रेषण के पराभाषायी रूप सम्मिलित हैं। एक अनुमान के अनुसार संप्रेषण में 50% संप्रेष्य संदेश केवल चेहरे के हावभाव और शरीर के विविध् अंगों के संचालन द्वारा किया जाता है। ऐसे ही मौखिक शब्दों में से भी 40% शब्दों के संबंध् में भी प्रतिक्रिया अंग संचालन के माध्यम से व्यक्त होती है।
अभाषिक संप्रेषण में समय का बहुत महत्व होता है। समय पर संप्रेषण प्रक्रिया की शुरुआत, प्रेषक का इंतजार हेतु प्रापक में इच्छा, वाणी की गति एवं कब तक प्रापक सुनना चाहते हैं, सम्मिलित होता है। यदि प्रेषक समय के इन सभी पहलुओं का ध्यान रखता है तो वह प्रापक को अधिक प्रभावित करता है।
अभाषिक संप्रेषण-प्रक्रिया में संदेश को मोटे रूप में तीन तरह से अभिव्यक्त किया जाता है- 1. संकेत द्वारा; 2. क्रिया द्वारा और 3. वस्तु के द्वारा। अभाषिक या अशाब्दिक संप्रेषण का आधार जैविक अथवा सामाजिक या दोनो ही हो सकता है।
अभाषिक संप्रेषण का प्रथम वैज्ञानिक अध्ययन 1872 ई. में चार्ल्स डार्विन ने किया था। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘द एक्सप्रेसन ऑफ द इमोशन इन मैन एंड एनिमल’ में तर्क दिया है कि सभी स्तनपायी अपने चेहरे पर भावों को दर्शाते हैं। उन्होंने शेरों, बाघों, कुत्तों आदि जैसे जानवरों के बीच बातचीत को देखा और महसूस किया कि वे भी इशारों और भावों से संवाद करते हैं। और स्पष्ट किया की यह स्तनधारी जानवरों द्वारा किए जाने वाला अभाषिक संप्रेषण है। बाद में कई अन्य विद्वानों ने डार्विन के इस अध्ययन को आगे बढ़ाया। वर्तमान में भाषा विज्ञान, संकेत विज्ञान एवं सामाजिक मनोविज्ञान सहित कई क्षेत्रों में अभाषिक संप्रेषण से संबंधित अध्ययन हो रहे हैं।
अभाषिक संप्रेषण की सीमाएं
कई बार केवल संकेतों के माध्यम से, चेहरे के हाव-भाव या आँखों की पुतलियों आदि द्वारा प्रेषक अपने संदेश को पूरी तरह प्रापक तक नहीं पहुंचा पाता है। अधिकतर अभाषिक संप्रेषण अनियंत्रित संकेतों पर आधारित होते हैं अर्थात उनका एक ही अर्थ निकालना मुश्किल होता है। अलग-अलग समाजों एवं संस्कृतियों में कुछ संकेत भिन्न-भिन्न अर्थ रखते हैं। इसके विपरीत अभाषिक संप्रेषण के तत्वों का बड़ा हिस्सा कुछ हद तक मूर्ति सदृश (आइकॉनिक) भी हो गया है। अर्थात कुछ संकेत या शारीरिक हाव-भाव ऐसे होते हैं जिनका अर्थ पूरी दुनिया में एक ही होता है। पॉल एकमैन के अनुसार गुस्सा, घृणा, भय, प्रसन्नता, उदासी एवं आश्चर्य की अभिव्यक्ति सार्वभौमिक होती है अर्थात पूरी दुनिया के लोग इन भावनाओं की अभाषिक अभिव्यक्ति एक ही तरह से करते हैं।
अभाषिक संप्रेषण की विशेषताएँ
अभाषिक संप्रेषण की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- अभाषिक संप्रेषण में संप्रेषक/प्रापक की कोई मुद्रा या फिर कोई क्रिया हो सकती है। साथ ही ये मुद्रा या क्रिया शारीरिक भंगिमाओं की भाँति अत्यधिक जटिल या नेत्र के इशारे/कटाक्ष जैसी हो सकती है।
- अभाषिक संप्रेषण में व्यक्त संदेश मौखिक संदेश से भिन्न हो सकता है।
- इस संप्रेषण की व्याख्या किसी व्यति की मानसिक स्थिति या सामाजिक अनुभव के रूप में की जा सकती है।
- अभाषिक संप्रेषण का प्रभावी प्रयोग सभी लोग आसानी से नहीं कर सकते।
- अभाषिक संप्रेषण का अधिकांशतः उपयोग उस समय किया जाता है जब प्रेषक और प्रापक आमने-सामने होते हैं।
अभाषिक संप्रेषण का महत्व (Importance of Nonverbal Communication)
अभाषिक संप्रेषण की उपयोगिता और महत्व निम्नलिखित है-
- यह मौखिक संचार में मूल्य जोड़ता है।
- शब्दों में कही गई बातों को सुदृढ़ या संशोधित करता है।
- सांस्कृतिक बाधाओं को दूर करने में मदद करता है।
- गैर-साक्षर या सुनने की अक्षमता वाले लोगों के साथ संवाद करने में सहायता करता है।
- अलग-अलग भाषा के व्यक्ति संप्रेषण की प्रक्रिया की शुरुआत इसी से करते हैं।
- कार्यस्थल की दक्षता को बढ़ाता है।
- विश्वसनीयता को मजबूत करता है।
- भाषिक संप्रेषण को और अधिक आकर्षित और प्रभावशाली बनाता है।
अंत: हमारे दैनिक जीवन में होने वाले संप्रेषण में अभाषिक संप्रेषण का बड़ा महत्त्व है।
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अभाषिक संप्रेषण के प्रकार (Types of Nonverbal Communication)
हमारे संप्रेषण का एक बड़ा हिस्सा अभाषिक होता है। विभिन्न विद्वानों का मत है कि हम प्रत्येक दिन हजारों अभाषिक संकेतों का प्रयोग करते हैं, जिनमें चेहरे के भाव, हावभाव, स्वर की आवाज़, शरीर की भाषा, प्रॉक्सीमिक्स या व्यक्तिगत स्थान, आंखों की टकटकी, हैप्टिक्स (स्पर्श), उपस्थिति, और कलाकृतियां जैसे पैरालिंग्विस्टिक्स शामिल हैं। अभाषिक संप्रेषण मुख्यत: 10 प्रकार के होते हैं-
1. चेहरे के भाव (Facial Expressions)
चेहरे के भाव अभाषिक संप्रेषण का एक प्रभावी साधन है। जिसमें भय, क्रोध, ख़ुशी, उदासी आदि शामिल है। चेहरे के ये भाव मजबूत भावनाओं को दर्शाते हैं और पूरे विश्व में समान हैं। उदाहरण के लिए, एक मुस्कान किसी भी स्थिति को संभालना आसान बना देती है।
2. इशारे (Gestures)
अभाषिक संप्रेषण का यह सबसे आसान तत्व है। शब्दों के बिना अर्थ को संप्रेषित करने का यह महत्वपूर्ण तरीका हैं। नियमित बातचीत के दौरान हममें से अधिकांश जाने-अनजाने कुछ इशारों का उपयोग करते हैं; जैसे- हाथ या सिर को हिलाना, उंगलियाँ आदि द्वारा हम इशारे करना। एक इशारे का भिन्न स्थितियों में अलग-अलग मतलब हो सकता है। कई इशारों का विभिन्न संस्कृतियों में अलग-अलग अर्थ होता है।
3. पैरा-भाषा विज्ञान (Paralinguistics)
पैरा-भाषा विज्ञान में भाषण के अलावा आवाज के जो पहलू हैं, वे आते हैं; जैसे- पिच, स्वर, मात्रा और गति आदि। अर्थात Paralinguistics मुखर संप्रेषण को संदर्भित करता है जो वास्तविक भाषा से अलग है।
उदाहरण- क्या आपको सप्ताहांत पर आयोजित होने वाले सामुदायिक क्रिकेट मैच याद है? जिस तरह से तुम्हारा भाई चिल्लाते हुए आया, तुम्हें पता चल गया कि वह मैच जीत लिया है।
4. शारीरिक भाव और मुद्रा (Body Language and Posture)
शारीरिक हाव-भाव और मुद्रा भी अभाषिक संप्रेषण का एक प्रभावी साधन है। आप किसी व्यक्ति के Body Language, Posture, हावभाव, खड़े होने और बैठने आदि से उसके बारे में बहुत कुछ बता सकते हैं। प्रेषक संप्रेषण की प्रक्रिया के द्वारा शारीरिक मुद्राओं के उपयोग से प्रापक को प्रभावित करता है। उदाहरण के रूप में अभिनेता अमिताभ बच्चन को लिया जा सकता है, जिन्होंने अपनी शुरुआती फिल्मों में प्रभावशाली बॉडी लैंग्वेज से एंग्री यंग मैन का व्यक्तित्व उभर कर सामने आया।
5. निकटता या व्यक्तिगत स्थान (Proxemics)
निकटता या व्यक्तिगत स्थानअंतरंगता के स्तर को निर्धारित करता है। किसी के साथ कितने नजदीक या दूरी से बातचीत करते हैं, को यह दर्शाता है। यह सामाजिक सहित कई कारकों से प्रभावित होता है। मानदंड, सांस्कृतिक अपेक्षाएँ, स्थितिजन्य कारक, व्यक्तित्व और परिचित का स्तर से प्रभावित होता है। यह भी दर्शाता है की प्रेषक अपने आसपास मौजूद वातावरण का किस तरह से संप्रेषण की प्रक्रिया में प्रयोग करता है।
6. आँख से संपर्क: (Eye Contact)
आंखें अभाषिक संप्रेषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। देखना, घूरना और झपकना महत्वपूर्ण अभाषिक संप्रेषण हैं। यह भरोसे और विश्वसनीयता के स्तर को निर्धारित करती है। अभिनेता इरफान खान अपनी आंखों से ही बहुत कुछ संप्रेषित कर देते थे। हॉलीवुड स्टार टॉम हैंक्स ने भी कहा है, ‘मैं इरफ़ान की जादुई आँखों से मोहित हो गया हूँ।’
जो लोग आंखों के संपर्क से बचते हैं, उन्हें अक्सर शर्मीला या कम आत्मविश्वास वाला माना जाता है। यदि कोई व्यक्ति आंख मिलकर बात करता है तो उससे एक संकेत मिल जाता है कि वह ईमानदार है। स्थिर आंखों के संपर्क करने वाले अक्सर सच बोलते हैं और भरोसेमंद होते हैं। वहीं झुकी हुई आँखें या आँख से संपर्क बनाए रखने में असमर्थता यह दिखाता है कि व्यक्ति झूठ बोल रहा है या धोखा दे रहा है।
7. शारीरिक परिवर्तन (Physical Changes)
हमारा शारीरिक परिवर्तन भी अभाषिक संप्रेषण के दायरे में आता है।, उदाहरण के लिए, जब हम नर्वस होते हैं तो हमें पसीना या झपकी आ जाती है और कभी-कभी हृदय गति भी बढ़ जाती है। स्वयं को नियंत्रित करना लगभग असंभव हो जाता है। इसलिए Physical Changes मानसिक स्थिति का एक बहुत ही महत्वपूर्ण संकेतक है।
8. हैप्टिक्स (Haptics)
हैपटिक संप्रेषण वह माध्यम है जिसके द्वारा मनुष्य एवं अन्य जीव स्पर्श के द्वारा संप्रेषण करते हैं। मनुष्यों के लिये स्पर्श एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण इंद्रिय ज्ञान है। यह एक मनुष्य का दूसरे मनुष्य के साथ के संबंध को भी निर्धारित करता है और शारीरिक नजदीकी को भी सूचित करता है। चुम्बन, गले लगाना, हाथ मिलाना आदि स्पर्श के उदाहरण हैं।
स्पर्श का उपयोग स्नेह, परिचित, सहानुभूति और अन्य भावनाओं को संप्रेषित करने के लिए किया जाता है। शैशवावस्था या बचपन में स्पर्श का व्यापक प्रभाव बच्चों पर पड़ता है। नवजात शिशु स्पर्श समझ लेते हैं, भले ही वे देख व सुन न पायें।
‘इंटरपर्सनल कम्युनिकेशन: एवरीडे एनकाउंटर्स’ की लेखक जूलिया वुड के अनुसार, ‘स्पर्श का उपयोग अक्सर स्थिति और शक्ति दोनों को संप्रेषित करने के तरीके के रूप में भी किया जाता है।’ महिलाएं देखभाल, चिंता और पोषण को व्यक्त करने के लिए स्पर्श का उपयोग करती हैं। वहीं दूसरी ओर, पुरुष अधिकतर शक्ति या दूसरों पर नियंत्रण करने के लिए स्पर्श का उपयोग करता है।
स्पर्श को भिन्न-भिन्न देशों में अलग-अलग नजरिये से देखा जाता है। हर संस्कृति में सामाजिक रूप से स्वीकृत स्पर्श की अलग सीमा है। थाई संस्कृति में, किसी का सिर स्पर्श करना अभद्र माना जा सकता है। शारीरिक रूप से कष्ट पहुँचाने के संदर्भ में धक्का देना, ठोकर मारना, पैर से मारना, खींचना, चुभाना, गला दबाना आदि स्पर्श के ही रूप हैं।
9. दिखावट (Appearance)
रंग, कपड़े, केशविन्यास आदि को भी अभाषिक संप्रेषण का एक साधन माना जाता है। Appearance की उपस्थिति हमारी शारीरिक प्रतिक्रियाओं, निर्णयों और व्याख्याओं को बदल देती है। विभिन्न रंग, पहनावा और केशविन्यास अलग-अलग मूड़ पैदा करते हैं। उदाहरण के रूप में जब हम किसी साक्षात्कार में शामिल होते हैं तो उचित रूप से तैयार होकर जाते हैं, ड्रेस सेंस और उसके रंग का विशेष ध्यान देते हैं। क्योंकि यह दिखावट भी हमारे बारे में बहुत कुछ संप्रेषित करता है। इसे सिपाही की वर्दी और डॉक्टर की सफेद लैब कोट से भी समझा जा सकता है।
10. कलाकृतियों (Artifacts)
वस्तुएं और छवियाँ ऐसे उपकरण हैं जिनका उपयोग अभाषिक संप्रेषण के रूप में किया जाता है। उदाहरण के लिए, किसी ऑनलाइन माध्यम पर हम अपनी पहचान का प्रतिनिधित्व करने के लिए किसी छवि का चयन कर सकते हैं। इससे हमारी पहचान और पसंद की जानकारी सभी दर्शकों को बिना बोले ही हो जाएगा। यदि किसी वक्ता की मेज पर गाँधी की तस्वीर है तो उससे एक संदेश संप्रेषित होता है की यह वक्ता गांधीवादी है, उनको पसंद करता है। इसकी दृष्टि जरूर गांधीजी से प्रभावित होगी।
फर्नीचर, स्थापत्य कला, आंतरिक साज-सज्जा, प्रकाश की व्यवस्था, रंग, तापमान, शोरगुल एवं संगीत जैसे वातावरणीय कारक अभाषिक संप्रेषण को प्रभावित करते हैं।
उपर्युक्त कोडों के अतिरिक्त कुछ अन्य अमौखिक उद्दीपक हैं- पहनावा (Dress), शरीर का रंग (Skin colour), चेहरा (Face), होंठ (Lips), उंगलियाँ (Fingers), चालगति (Gait), शारीरिक काया (Body figure), भौंह (Eye brows), सुगंध् (Perfume), आँखों का रंग (Eye colour), बालों की संरचना (Hair style), आवाज, बोलना (Tone, pitch, voice)।