दोस्तों यह हिंदी quiz 24 है। जो 2004 से लेकर 2019 तक के ugc net jrf हिंदी के प्रश्नपत्रों पर आधारित है। कवि और कविता से संबंधित सुमेलन पर आधारित पूछे गए प्रश्नों का दूसरा भाग इस quiz के माध्यम से दिया जा रहा है। ठीक उसी तरह जैसे कवि और कविता से संबंधित सुमेलन आधारित पहला भाग hindi quiz 23 में दिया गया था।
1. निम्नलिखित काव्यपंक्तियों को उनके रचनाकारों के साथ सुमेलित कीजिए।
(a) धूप सा तन दीप सी मै – (i) निराला(b) मधुपगुनगुना कर कह जाता – (ii) पंत
(c) स्नेह निर्झर बह गया है – (iii) प्रसाद
(d) हाय! मृत्यु का ऐसा अमर अपार्थिव पूजन- (iv) महादेवी वर्मा
कोड:(a), (b), (c),(d)
(ii), (i), (iii), (iv)
(iv), (iii), (i), (ii)
सुमेलित-
धूप सा तन दीप सी मै – महादेवी वर्मा
मधुपगुनगुना कर कह जाता – प्रसाद
स्नेह निर्झर बह गया है – निराला
हाय! मृत्यु का ऐसा अमर अपार्थिव पूजन- पंत
धूप सा तन दीप सी मै – महादेवी वर्मा
मधुपगुनगुना कर कह जाता – प्रसाद
स्नेह निर्झर बह गया है – निराला
हाय! मृत्यु का ऐसा अमर अपार्थिव पूजन- पंत
(i), (iii), (iv), (ii)
(iv), (ii), (i), (iii)
2. निम्नलिखित पंक्तियों को उनके कवियों के साथ सुमेलित कीजिए:
(a) शलभ मैं शापमय वर हूँ – (i) सुमित्रानंदन पंत(b) दुःख ही जीवन की कथा रही – (ii) बच्चन
(c) वियोगी होगा पहला कवि – (iii) निराला
(d) जो बीत गयी सो बात गयी – (iv) महादेवी वर्मा
कोड:(a), (b), (c),(d)
(ii), (i), (iv), (iii)
(iii), (iv), (ii), (i)
(iv), (iii), (i), (ii)
सुमेलित-
शलभ मैं शापमय वर हूँ – महादेवी वर्मा
दुःख ही जीवन की कथा रही – निराला
वियोगी होगा पहला कवि – सुमित्रानंदन पंत
जो बीत गयी सो बात गयी – बच्चन
शलभ मैं शापमय वर हूँ – महादेवी वर्मा
दुःख ही जीवन की कथा रही – निराला
वियोगी होगा पहला कवि – सुमित्रानंदन पंत
जो बीत गयी सो बात गयी – बच्चन
(i), (iv), (iii), (ii)
3. निम्नलिखित काव्य पंक्तियों को उनके रचयिता कवियों के साथ सुमेलित कीजिए:
(a) तू है गगन विस्तीर्ण तो मैं एक तारा क्षुद्र हूँ। – (i) मैथिलीशरण गुप्त(b) निकल रही है उर से आह, ताक रहे सब तेरी राह। – (ii) गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही’
(c) जल उठा स्नेह दीपक-सा, नवनीत हृदय था मेरा।
अब शेष धूमरेखा से, चित्रित कर रहा अंधेरा॥ – (iii) जयशंकर प्रसाद
(d) अरुण अधरों की पल्लव प्रात,
मोतियों सा हिलता हिम हास। – (iv) सुमित्रानंदन पंत
कोड:(a), (b), (c),(d)
(ii), (i), (iii), (iv)
सुमेलित-
तू है गगन विस्तीर्ण तो मैं एक तारा क्षुद्र हूँ। – गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही’
निकल रही है उर से आह – मैथिलीशरण गुप्त
जल उठा स्नेह दीपक-सा – जयशंकर प्रसाद
अरुण अधरों की पल्लव प्रात – सुमित्रानंदन पंत
तू है गगन विस्तीर्ण तो मैं एक तारा क्षुद्र हूँ। – गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही’
निकल रही है उर से आह – मैथिलीशरण गुप्त
जल उठा स्नेह दीपक-सा – जयशंकर प्रसाद
अरुण अधरों की पल्लव प्रात – सुमित्रानंदन पंत
(i), (iii), (ii), (iv)
(iii), (iv), (ii), (i)
(iv), (i), (ii), (iii)
4. निम्नलिखित पंक्तियों को उनकी कृतियों के साथ सुमेलित कीजिए:
(a) अब अभिव्यक्ति केसारे खतरे, उठाने ही होंगे। – (i) कामायनी
(b) हँस पड़ा गगन, वह शून्य लोक – (ii) अँधेरे में
(c) स्थिर समर्पण है हमारा – (iii) कुकुरमुत्ता
(d) आप अपने से उगा मैं – (iv) नदी के द्वीप
कोड:(a), (b), (c),(d)
(iv), (ii), (iii), (i)
(iii), (iv), (i), (ii)
(ii), (i), (iv), (iii)
सुमेलित-
अब अभिव्यक्ति के / सारे खतरे – अँधेरे में
हँस पड़ा गगन, वह शून्य लोक – कामायनी
स्थिर समर्पण है हमारा – नदी के द्वीप
आप अपने से उगा मैं – कुकुरमुत्ता
अब अभिव्यक्ति के / सारे खतरे – अँधेरे में
हँस पड़ा गगन, वह शून्य लोक – कामायनी
स्थिर समर्पण है हमारा – नदी के द्वीप
आप अपने से उगा मैं – कुकुरमुत्ता
(iv), (iii), (ii), (i)
5. निम्नलिखित पंक्तियों को उनके कवियों के साथ सुमेलित कीजिए:
(a) वैश्यो! सुनो व्यापार सारा मिट चुका है देश कासब धन विदेशी हर रहे हैं पार है क्या क्लेश का? – (i) जयशंकर प्रसाद
(b) तुम भूल गये पुरुषत्व मोह में, कुछ सत्ता है नारी की।
समरसता है संबंध बनी अधिकार और अधिकारी की॥ – (ii) पंत
(c) प्रथम रश्मि का आना रेगिणि! तू ने कैसे पहचाना?
कहाँ-कहाँ हे बाल विहंगिनि? पाया तू ने यह गाना? – (iii) महादेवी वर्मा
(d) क्या अमरों का लोक मिलेगा तेरी करुणा का उपहार?
रहने दो हे देव! अरे यह मेरा मिटने का अधिकार! – (iv) मैथिलीशरण गुप्त
कोड:(a), (b), (c),(d)
(iii), (iv), (i), (ii)
(i), (ii), (iii), (iv)
(iii), (iv), (i), (ii)
(iv), (i), (ii), (iii)
सुमेलित-
वैश्यो! सुनो व्यापार सारा मिट चुका है देश का – मैथिलीशरण गुप्त
तुम भूल गये पुरुषत्व मोह में, कुछ सत्ता है नारी की। – जयशंकर प्रसाद
प्रथम रश्मि का आना रेगिणि! तू ने कैसे पहचाना? – पंत
क्या अमरों का लोक मिलेगा तेरी करुणा का उपहार? – महादेवी वर्मा
वैश्यो! सुनो व्यापार सारा मिट चुका है देश का – मैथिलीशरण गुप्त
तुम भूल गये पुरुषत्व मोह में, कुछ सत्ता है नारी की। – जयशंकर प्रसाद
प्रथम रश्मि का आना रेगिणि! तू ने कैसे पहचाना? – पंत
क्या अमरों का लोक मिलेगा तेरी करुणा का उपहार? – महादेवी वर्मा
6. निम्नलिखित काव्यपंक्तियों को उनके कवियों के साथ सुमेलित कीजिए:
(a) जीवन तेरा क्षुद्र अंश है व्यक्त नील घन माला मेंसौदामिनी संधि-सा सुंदर क्षणभर रहा उजाला में। – (i) सुमित्रानंदन पंत
(b) जो सोए स्वप्नों के तम में वे जागेंगे यह सत्य बात
जो देख चुके जीवन निशीथ वे देखेंगे जीवन प्रभात। – (ii) निराला
(c) बाँधो न नाव इस ठाँव बंधु
पूछेगा सारा गाँव बंधु। – (iii) मह़ादेवी वर्मा
(d) पंथ होने दो अपरिचित
प्राण रहने दो अकेला। – (iv) जयशंकर प्रसाद
कोड:(a), (b), (c),(d)
(iv), (i), (ii), (iii)
सुमेलित-
जीवन तेरा क्षुद्र अंश है व्यक्त नील घन माला में – जयशंकर प्रसाद
जो सोए स्वप्नों के तम में वे जागेंगे यह सत्य बात – सुमित्रानंदन पंत
बाँधो न नाव इस ठाँव बंधु – निराला
पंथ होने दो अपरिचित – मह़ादेवी वर्मा
जीवन तेरा क्षुद्र अंश है व्यक्त नील घन माला में – जयशंकर प्रसाद
जो सोए स्वप्नों के तम में वे जागेंगे यह सत्य बात – सुमित्रानंदन पंत
बाँधो न नाव इस ठाँव बंधु – निराला
पंथ होने दो अपरिचित – मह़ादेवी वर्मा
(iii), (iv), (i), (ii)
(i), (ii), (iv), (iii)
(iv), (iii), (ii), (i)
7. निम्नलिखित काव्य पंक्तियों को उनके रचनाकारों के साथ सुमेलित कीजिए:
(a) प्रिय स्वतंत्र रव / अमृत मंत्र नवभारत में भर दे। – (i) जयशंकर प्रसाद
(b) इस पार प्रिये मधु है तुम हो
उस पार न जाने क्या होगा। – (ii) सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
(c) अरे कहीं देखा है तुमने
मुझे प्यार करने वाले को – (iii) हरिवंशराय बच्चन
(d) यह मंदिर का दीप
इसे नीरव जलने दो। – (iv) महादेवी वर्मा
कोड:(a), (b), (c),(d)
(i), (ii), (iii), (iv)
(iii), (iv), (ii), (i)
(ii), (iii), (i), (iv)
सुमेलित-
प्रिय स्वतंत्र रव – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
इस पार प्रिये मधु है तुम हो – हरिवंशराय बच्चन
अरे कहीं देखा है तुमने – जयशंकर प्रसाद
यह मंदिर का दीप – महादेवी वर्मा
प्रिय स्वतंत्र रव – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
इस पार प्रिये मधु है तुम हो – हरिवंशराय बच्चन
अरे कहीं देखा है तुमने – जयशंकर प्रसाद
यह मंदिर का दीप – महादेवी वर्मा
(iv), (i), (ii), (iii)
8. निम्नलिखित काव्य पंक्तियों को उनके रचनाकारों के साथ सुमेलित कीजिए:
(a) दुःख ही जीवन की कथा रही,क्या कहूँ आज, जो नहीं कहीं। – (i) अज्ञेय
(b) मैं दिन को ढूँढ रही हूँ/जुगुनू की उजियाली में;
मन माँग रहा है मेरा/सिकता हीरक-प्याली में! – (ii) प्रसाद
(c) रोज-सबेरे मैं थोड़ा-सा अतीत में जी लेता हूँ-
क्योंकि रोज शाम को मैं थोड़ा-सा भविष्य में मर जाता हूँ। – (iii) महादेवी
(d) बिखरी अलकें ज्यों तर्क-जाल
वह विश्व मुकुट-सा उज्ज्वलतम शशिखंड-
सदृश्य था स्पष्ट भाल। – (iv) निराला
कोड:(a), (b), (c),(d)
(iv), (iii), (i), (ii)
सुमेलित-
दुःख ही जीवन की कथा रही – निराला
मैं दिन को ढूँढ रही हूँ – महादेवी
रोज-सबेरे मैं थोड़ा-सा अतीत में जी लेता हूँ – अज्ञेय
बिखरी अलकें ज्यों तर्क-जाल – प्रसाद
दुःख ही जीवन की कथा रही – निराला
मैं दिन को ढूँढ रही हूँ – महादेवी
रोज-सबेरे मैं थोड़ा-सा अतीत में जी लेता हूँ – अज्ञेय
बिखरी अलकें ज्यों तर्क-जाल – प्रसाद
(iv), (i), (ii), (iii)
(i), (ii), (iii), (iv)
(ii), (iv), (iii), (i)
9. निम्नलिखित पंक्तियों को उनके कवियों के साथ सुमेलित कीजिए:
(a) कितना अकेला हूँ मैं, इस समाज में – (i) मुक्तिबोध(b) पिस गया वह भीतरी औ
बाहरी दो कठिन पाटों बीच – (ii) निराला
(c) वे पत्तर जोड़ रहे हैं,
तुम सपने जोड़ रहे हो। – (iii) नागार्जुन
(d) मैं ही बसंत का अग्रदूत – (iv) रघुवीर सहाय
कोड:(a), (b), (c),(d)
(iv), (i), (iii), (ii)
सुमेलित-
कितना अकेला हूँ मैं – रघुवीर सहाय
पिस गया वह भीतरी औ – मुक्तिबोध
वे पत्तर जोड़ रहे हैं – नागार्जुन
मैं ही बसंत का अग्रदूत – निराला
कितना अकेला हूँ मैं – रघुवीर सहाय
पिस गया वह भीतरी औ – मुक्तिबोध
वे पत्तर जोड़ रहे हैं – नागार्जुन
मैं ही बसंत का अग्रदूत – निराला
(i), (ii), (iii), (iv)
(ii), (iii), (iv), (i)
(i), (iv), (iii), (ii)
10. निम्नलिखित पंक्तियों को उनके कवियों के साथ सुमेलित कीजिए:
(a) जो बीत गयी सो बात गयी – (i) मुक्तिबोध(b) मैं तो डूब गया था स्वयं शून्य में – (ii) दिनकर
(c) दो पाटों के बीच पिस गया – (iii) बच्चन
(d) रूप की आराधना का मार्ग
आलिंगन नहीं तो और क्या है? – (iv) अज्ञेय
कोड:(a), (b), (c),(d)
(iii), (i), (ii), (iv)
(iv), (ii), (iii), (i)
(iii), (i), (iv), (ii)
(iii), (iv), (i), (ii)
सुमेलित-
जो बीत गयी सो बात गयी – बच्चन
मैं तो डूब गया था स्वयं शून्य में – अज्ञेय
दो पाटों के बीच पिस गया – मुक्तिबोध
रूप की आराधना का मार्ग – दिनकर
जो बीत गयी सो बात गयी – बच्चन
मैं तो डूब गया था स्वयं शून्य में – अज्ञेय
दो पाटों के बीच पिस गया – मुक्तिबोध
रूप की आराधना का मार्ग – दिनकर
11. निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों को उनके रचनाकारों के साथ सुमेलित कीजिए:
(a) ये उपमान मैले हो गये हैं – (i) अज्ञेय(b) हम राज्य लिये मरते हैं – (ii) बिहारी
(c) वतरस लालच लाल की – (iii) मैथिलीशरण गुप्त
(d) भक्तिहिं ज्ञानहिं नहिं कछु भेदा – (iv) तुलसीदास
कोड:(a), (b), (c),(d)
(iv), (i), (ii), (iii)
(i), (iii), (ii), (iv)
सुमेलित-
ये उपमान मैले हो गये हैं – अज्ञेय
हम राज्य लिये मरते हैं – मैथिलीशरण गुप्त
वतरस लालच लाल की – बिहारी
भक्तिहिं ज्ञानहिं नहिं कछु भेदा – तुलसीदास
ये उपमान मैले हो गये हैं – अज्ञेय
हम राज्य लिये मरते हैं – मैथिलीशरण गुप्त
वतरस लालच लाल की – बिहारी
भक्तिहिं ज्ञानहिं नहिं कछु भेदा – तुलसीदास
(i), (ii), (iii), (iv)
(iv), (iii), (i), (ii)
12. इन काव्य पंक्तियों को उनके कवियों के साथ सुमेलित कीजिए:
(a) पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक – (i) दिनकर(b) सांप तुम सभ्य हुए नहीं – (ii) धूमिल
(c) एक आदमी रोटी बेलता है – (iii) निराला
(d) श्वानों को मिलता दूध भात/भूखे बालक अकुलाते हैं – (iv) अज्ञेय
कोड:(a), (b), (c),(d)
(iv), (iii), (i), (ii)
(ii), (i), (iv), (iii)
(iii), (iv), (ii), (i)
सुमेलित-
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक – निराला
सांप तुम सभ्य हुए नहीं – अज्ञेय
एक आदमी रोटी बेलता है – धूमिल
श्वानों को मिलता दूध भात – दिनकर
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक – निराला
सांप तुम सभ्य हुए नहीं – अज्ञेय
एक आदमी रोटी बेलता है – धूमिल
श्वानों को मिलता दूध भात – दिनकर
(i), (ii), (iv), (iii)
13. निम्नलिखित पंक्तियों को उनके लेखकों के साथ सुमेलित कीजिए:
(a) अब अभिव्यक्ति के सारे खतरे उठाने ही होंगे – (i) अज्ञेय(b) सब ने भी अलग अलग संगीत सुना – (ii) महादेवी
(c) नयन में जिसके जलद वह तृषित चातक हूं – (iii) निराला
(d) अशनि-पात से शायित उन्नत शत-शत वीर – (iv) मुक्तिबोध
कोड:(a), (b), (c),(d)
(i), (iii), (ii), (iv)
(iv), (i), (iii), (ii)
(iv), (i), (ii), (iii)
सुमेलित-
(a) अब अभिव्यक्ति के सारे खतरे उठाने ही होंगे – मुक्तिबोध
(b) सब ने भी अलग अलग संगीत सुना – अज्ञेय
(c) नयन में जिसके जलद वह तृषित चातक हूं – महादेवी
(d) अशनि-पात से शायित उन्नत शत-शत वीर – निराला
(a) अब अभिव्यक्ति के सारे खतरे उठाने ही होंगे – मुक्तिबोध
(b) सब ने भी अलग अलग संगीत सुना – अज्ञेय
(c) नयन में जिसके जलद वह तृषित चातक हूं – महादेवी
(d) अशनि-पात से शायित उन्नत शत-शत वीर – निराला
(iii), (ii), (iv), (i)
14. निम्नलिखित पंक्तियों को उनके सही कवियों के साथ सुमेलित कीजिए:
(a) द्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्र – (i) धूमिल(b) यह तीसरा आदमी कौन है?
मेरे देश की संसद मौन है। – (ii) मुक्तिबोध
(c) तोड़ने ही होंगे मठ और गढ़ सब – (iii) पंत
(d) आ गये प्रियवंद! केशकम्बली! गुफा गेह – (iv) अज्ञेय
कोड:(a), (b), (c),(d)
(ii), (iii), (i), (iv)
(iii), (i), (iv), (ii)
(iv), (ii), (iii), (i)
(iii), (i), (ii), (iv)
सुमेलित-
द्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्र – पंत
यह तीसरा आदमी कौन है? – धूमिल
तोड़ने ही होंगे मठ और गढ़ सब – मुक्तिबोध
आ गये प्रियवंद! केशकम्बली! – अज्ञेय
द्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्र – पंत
यह तीसरा आदमी कौन है? – धूमिल
तोड़ने ही होंगे मठ और गढ़ सब – मुक्तिबोध
आ गये प्रियवंद! केशकम्बली! – अज्ञेय
15. निम्नलिखित पंक्तियों को उनके लेखकों के साथ सुमेलित कीजिए:
(a) अरूण यह मधुमय देश हमारा – (i) अज्ञेय(b) हम नदी के द्वीप हैं – (ii) धूमिल
(c) दुखों के दागों को तमगों सा पहना – (iii) जयशंकर प्रसाद
(d) मेरे लिए हर आदमी एक जोड़ी जूता है – (iv) मुक्तिबोध
कोड:(a), (b), (c),(d)
(iv), (iii), (i), (ii)
(i), (iv), (ii), (iii)
(iii), (i), (iv), (ii)
सुमेलित-
अरूण यह मधुमय देश हमारा – जयशंकर प्रसाद
हम नदी के द्वीप हैं – अज्ञेय
दुखों के दागों को तमगों सा पहना – मुक्तिबोध
मेरे लिए हर आदमी एक जोड़ी जूता है – धूमिल
अरूण यह मधुमय देश हमारा – जयशंकर प्रसाद
हम नदी के द्वीप हैं – अज्ञेय
दुखों के दागों को तमगों सा पहना – मुक्तिबोध
मेरे लिए हर आदमी एक जोड़ी जूता है – धूमिल
(i), (ii), (iii), (iv)
16. निम्नलिखित काव्य पंक्तियों को उनके कवियों के साथ सुमेलित कीजिए:
(a) राष्ट्रगीत में भला कौन यह भारत भाग्य विधाता है – (i) गिरिजा कुमार माथुर(b) कया करूं जो शंभुधनु टूटा तुम्हारा – (ii) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
(c) अब मैं कवि नहीं रहा, काला झंडा हूँ – (iii) रघुवीर सहाय
(d) साधो आज मेरे सत की परीक्षा है – (iv) विजयदेव नारायण साही
कोड:(a), (b), (c),(d)
(ii), (i), (iv), (iii)
(iii), (i), (ii), (iv)
सुमेलित-
राष्ट्रगीत में भला कौन यह भारत भाग्य विधाता है – रघुवीर सहाय
क्या करूं जो शंभुधनु टूटा तुम्हारा – गिरिजा कुमार माथुर
अब मैं कवि नहीं रहा, काला झंडा हूँ – सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
साधो आज मेरे सत की परीक्षा है – विजयदेव नारायण साही
राष्ट्रगीत में भला कौन यह भारत भाग्य विधाता है – रघुवीर सहाय
क्या करूं जो शंभुधनु टूटा तुम्हारा – गिरिजा कुमार माथुर
अब मैं कवि नहीं रहा, काला झंडा हूँ – सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
साधो आज मेरे सत की परीक्षा है – विजयदेव नारायण साही
(iv), (iii), (i), (ii)
(iv), (i), (ii), (iii)
17. निम्नलिखित काव्यपंक्तियों और उनके कवियों को सुमेलित कीजिए:
(a) रवि हुआ अस्त, ज्योति के पत्र पर लिखा अमर – (i) सुमित्रानंदन पंत(b) शैया सैकत पर दुग्धधवल तन्वंगी गंगा ग्रीष्म विकल – (ii) मैथिलीशरण गुप्त
(c) सखि, वे मुझसे कहकर जाते – (iii) निराला
(d) शशि मुख पर घूंघट डाले – (iv) जयशंकर प्रसाद
कोड:(a), (b), (c),(d)
(i), (ii), (iv), (iii)
(ii), (i), (iii), (iv)
(iv), (iii), (ii), (i)
(iii), (i), (ii), (iv)
सुमेलित-
रवि हुआ अस्त, ज्योति के पत्र पर लिखा अमर – निराला
शैया सैकत पर दुग्धधवल तन्वंगी गंगा ग्रीष्म विकल – सुमित्रानंदन पंत
सखि, वे मुझसे कहकर जाते – मैथिलीशरण गुप्त
शशि मुख पर घूंघट डाले – जयशंकर प्रसाद
रवि हुआ अस्त, ज्योति के पत्र पर लिखा अमर – निराला
शैया सैकत पर दुग्धधवल तन्वंगी गंगा ग्रीष्म विकल – सुमित्रानंदन पंत
सखि, वे मुझसे कहकर जाते – मैथिलीशरण गुप्त
शशि मुख पर घूंघट डाले – जयशंकर प्रसाद
18. निम्नलिखित अंशों को उनके कवियों के साथ सुमेलित कीजिए:
(a) जो घनीभूत पीड़ा थी – (i) अज्ञेय(b) हेर प्यारे को सेज पास,/नम्रमुख हँसी-खिली – (ii) प्रसाद
(c) हम नहीं कहते कि हम को छोड़कर स्रोतस्विनी बह जाय – (iii) निराला
(d) जी हाँ हजूर, / मैं गीत बेचता हूँ – (iv) भवानीप्रसाद मिश्र
कोड:(a), (b), (c),(d)
(i), (ii), (iii), (iv)
(iv), (iii), (ii), (i)
(iv), (ii), (i), (iii)
(ii), (iii), (i), (iv)
सुमेलित-
जो घनीभूत पीड़ा थी – प्रसाद
हेर प्यारे को सेज पास, – निराला
हम नहीं कहते कि हम – अज्ञेय
जी हाँ हजूर – भवानीप्रसाद मिश्र
जो घनीभूत पीड़ा थी – प्रसाद
हेर प्यारे को सेज पास, – निराला
हम नहीं कहते कि हम – अज्ञेय
जी हाँ हजूर – भवानीप्रसाद मिश्र
19. पंक्तियों के साथ कवियों का सुमेलन कीजिए:
(a) जिधर अन्याय, है उधर शक्ति – (i) नागार्जुन(b) नारी तुम केवल श्रद्धा हो – (ii) दिनकर
(c) बहुत दिनों तक चक्की रोई, चूल्हा रहा उदास – (iii) निराला
(d) सिंहासन खाली करो कि जनता आती है – (iv) प्रसाद
कोड:(a), (b), (c),(d)
(ii), (iv), (iii), (i)
(i), (ii), (iii), (iv)
(iii), (iv), (i), (ii)
सुमेलित-
जिधर अन्याय, है उधर शक्ति – निराला
नारी तुम केवल श्रद्धा हो – प्रसाद
बहुत दिनों तक चक्की रोई – नागार्जुन
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है – दिनकर
जिधर अन्याय, है उधर शक्ति – निराला
नारी तुम केवल श्रद्धा हो – प्रसाद
बहुत दिनों तक चक्की रोई – नागार्जुन
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है – दिनकर
(iv), (i), (ii), (iii)
20. निम्नलिखित पंक्तियों के साथ कवियों का सुमेलन कीजिए:
(a) घुन खाये शहतीरों पर – (i) केदारनाथ अग्रवाल(b) एक बीते के बराबर – (ii) नागार्जुन
(c) किंतु हम हैं द्वीप – (iii) धूमिल
(d) भूख से रिरियाती हुई – (iv) अज्ञेय
कोड:(a), (b), (c),(d)
(ii), (iii), (iv), (i)
(ii), (iv), (iii), (i)
(i), (ii), (iii), (iv)
(ii), (i), (iv), (iii)
सुमेलित-
घुन खाये शहतीरों पर – नागार्जुन
एक बीते के बराबर – केदारनाथ अग्रवाल
किंतु हम हैं द्वीप – अज्ञेय
भूख से रिरियाती हुई – धूमिल
घुन खाये शहतीरों पर – नागार्जुन
एक बीते के बराबर – केदारनाथ अग्रवाल
किंतु हम हैं द्वीप – अज्ञेय
भूख से रिरियाती हुई – धूमिल
21. निम्नलिखित कवियों को उनकी पंक्तियों के साथ सुमेलित कीजिए:
(a) अज्ञेय – (i) बात हम नहीं, भेद खोलेगी बात ही(b) निराला – (ii) मुक्त करो नारी को मानव
(c) पंत – (iii) रूपों में एक अरूप सदा खिलता है।
(d) शमशेर बहादुर सिंह – (iv) बाँधो न नाव इस ठाँव बंधु
कोड:(a), (b), (c),(d)
(iii), (iv), (ii), (i)
सुमेलित-
अज्ञेय – रूपों में एक अरूप सदा खिलता है।
निराला – बाँधो न नाव इस ठाँव बंधु
पंत – मुक्त करो नारी को मानव
शमशेर बहादुर सिंह – बात हम नहीं, भेद खोलेगी बात ही
अज्ञेय – रूपों में एक अरूप सदा खिलता है।
निराला – बाँधो न नाव इस ठाँव बंधु
पंत – मुक्त करो नारी को मानव
शमशेर बहादुर सिंह – बात हम नहीं, भेद खोलेगी बात ही
(i), (ii), (iii), (iv)
(ii), (iii), (i), (iv)
(i), (iv), (iii), (ii)
22. निम्नलिखित काव्य पंक्तियों को उनके कवियों के साथ सुमेलित कीजिए:
(a) विषम शिला संकुला पर्वतोभूता गंगाशशितारकहारा अभिद्रुता अतिशय पूता – (i) त्रिलोचन
(b) अर्ध विवृत जघनों पर/तरुण सत्य के सिर धर
लेटी थी वह दामिनी-सी/रुचि गौर कलेवर – (ii) सुमित्रानंदन पंत
(c) तुम मुझे प्रेम करो, जैसे
मछलियाँ लहरों से करती हैं – (iii) कुँवर नारायण
(d) अनंत विस्तार का अटूट
मौन मुझे भयभीत करता है – (iv) शमशेर बहादुर सिंह
कोड:(a), (b), (c),(d)
(ii), (iii), (i), (iv)
(i), (ii), (iv), (iii)
सुमेलित-
विषम शिला संकुला पर्वतोभूता गंगा – त्रिलोचन
अर्ध विवृत जघनों पर – सुमित्रानंदन पंत
तुम मुझे प्रेम करो, जैसे – शमशेर बहादुर सिंह
अनंत विस्तार का अटूट – कुँवर नारायण
विषम शिला संकुला पर्वतोभूता गंगा – त्रिलोचन
अर्ध विवृत जघनों पर – सुमित्रानंदन पंत
तुम मुझे प्रेम करो, जैसे – शमशेर बहादुर सिंह
अनंत विस्तार का अटूट – कुँवर नारायण
(iii), (i), (ii), (iv)
(iv), (ii), (iii), (i)
23. निम्नलिखित पंक्तियों को उनके कवियों के साथ सुमेलित कीजिए:
(a) कर्म का भोग भोग का कर्मयही जड़ का चेतन आनंद – (i) निराला
(b) होगी जय, होगी जय, हे पुरुषोत्तम नवीन!
कह महाशक्ति राम के बदन में हुई लीन। – (ii) मुक्तिबोध
(c) मौन भी अभिव्यंजना है:
जितना तुम्हारा सच है उतना ही कहो। – (iii) जयशंकर प्रसाद
(d) परम अभिव्यक्ति / लगातार घूमती है जग में
पता नहीं जाने कहाँ, जाने कहाँ वह है। – (iv) अज्ञेय
कोड:(a), (b), (c),(d)
(ii), (iii), (iv), (i)
(iii), (i), (iv), (ii)
सुमेलित-
कर्म का भोग भोग का कर्म – जयशंकर प्रसाद
होगी जय, होगी जय – निराला
मौन भी अभिव्यंजना है: – अज्ञेय
परम अभिव्यक्ति – मुक्तिबोध
कर्म का भोग भोग का कर्म – जयशंकर प्रसाद
होगी जय, होगी जय – निराला
मौन भी अभिव्यंजना है: – अज्ञेय
परम अभिव्यक्ति – मुक्तिबोध
(i), (iv), (ii), (iii)
(iv), (iii), (ii), (i)
24. निम्नलिखित काव्यपंक्तियों को उनके कवियों के साथ सुमेलित कीजिए:
(a) हे मेरी तुम! आओ बैठें पास-पासहम हास और परिहास करें – (i) धूमिल
(b) और बह सुरक्षित नहीं है
जिसका नाम हत्यारों को सूची में नहीं है – (ii) नागार्जुन
(c) साम्यवाद के पथ में लीद किया करते हैं
मानवता का पोस्टर देखा लगे रेंकने – (iii) केदारनाथ अग्रवाल
(d) कर गई चाक / तिमिर का सीना
जोत की फाँक / यह तुम थीं – (iv) त्रिलोचन शास्त्री
कोड:(a), (b), (c),(d)
(i), (iii), (ii), (iv)
(iii), (i), (iv), (ii)
सुमेलित-
हे मेरी तुम! आओ बैठें पास-पास – केदारनाथ अग्रवाल
और बह सुरक्षित नहीं है – धूमिल
साम्यवाद के पथ में लीद किया करते हैं – त्रिलोचन शास्त्री
कर गई चाक / तिमिर का सीना – नागार्जुन
हे मेरी तुम! आओ बैठें पास-पास – केदारनाथ अग्रवाल
और बह सुरक्षित नहीं है – धूमिल
साम्यवाद के पथ में लीद किया करते हैं – त्रिलोचन शास्त्री
कर गई चाक / तिमिर का सीना – नागार्जुन
(i), (ii), (iii), (iv)
(iv), (iii), (ii), (i)
25. निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों को उनके कवियों के साथ सुमेलित कीजिए:
(a) श्रेय नही कुछ मेरा, मैं तो डूब गया था स्वयं शून्य मेंवीणा के माध्यम से अपने को मैंने, सब कुछ सौंप दिया था। – (i) मुक्तिबोध
(b) परम अभिव्यक्ति, लगातार घूमती है जग में,
पता नहीं जाने कहाँ, जाने कहाँ, वह है – (ii) दिनकर
(c) पर एक तत्व है बीज, स्थित मन में साहस में,
स्वतंत्रता में, नूतन सृजन में – (iii) अज्ञेय
(d) मैं उनका आदर्श जो व्यथा न खोल सकेंगे
पूछेगा जग किन्तु पिता का नाम न बोल सकेंगे। – (iv) धर्मवीर भारती
कोड:(a), (b), (c),(d)
(iii), (i), (iv), (ii)
सुमेलित-
श्रेय नही कुछ मेरा, मैं तो डूब गया था स्वयं शून्य में – अज्ञेय
परम अभिव्यक्ति, लगातार घूमती है जग में – मुक्तिबोध
पर एक तत्व है बीज, स्थित मन में साहस में – धर्मवीर भारती
मैं उनका आदर्श जो व्यथा न खोल सकेंगे – दिनकर
श्रेय नही कुछ मेरा, मैं तो डूब गया था स्वयं शून्य में – अज्ञेय
परम अभिव्यक्ति, लगातार घूमती है जग में – मुक्तिबोध
पर एक तत्व है बीज, स्थित मन में साहस में – धर्मवीर भारती
मैं उनका आदर्श जो व्यथा न खोल सकेंगे – दिनकर
(ii), (iv), (iii), (i)
(i), (ii), (iii), (iv)
(iv), (iii), (ii), (i)
26. निम्नलिखित काव्य पंक्तियों को उनके रचनाकारों से सुमेलित कीजिए:
(a) मैं बकता नहीं हूँ कविताएँईजाद करता हूँ गाली – (i) धूमिल
(b) इस वक्त जबकि कान नहीं सुनते हैं कविताएँ
कविता पेट से सुनी जाती है – (ii) श्रीकांत वर्मा
(c) आज फिर शुरु हुआ जीवन आज मैंने
एक छोटी-सी सरल सी कविता पढ़ी – (iii) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
(d) मैं नया कवि हूँ
इसी से जानता हूँ सत्य की चोट बहुत गहरी होती है – (iv) रघुवीर सहाय
कोड:(a), (b), (c),(d)
(i), (ii), (iii), (iv)
(iv), (iii), (ii), (i)
(ii), (i), (iv), (iii)
सुमेलित-
मैं बकता नहीं हूँ कविताएँ – श्रीकांत वर्मा
इस वक्त जबकि कान नहीं सुनते हैं कविताएँ – धूमिल
आज फिर शुरु हुआ जीवन आज मैंने एक – रघुवीर सहाय
मैं नया कवि हूँ / इसी से जानता हूँ – सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
मैं बकता नहीं हूँ कविताएँ – श्रीकांत वर्मा
इस वक्त जबकि कान नहीं सुनते हैं कविताएँ – धूमिल
आज फिर शुरु हुआ जीवन आज मैंने एक – रघुवीर सहाय
मैं नया कवि हूँ / इसी से जानता हूँ – सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
(iii), (ii), (iv), (i)
27. निम्नलिखित काव्यपंक्तियों को उनकी भाषा के साथ सुमेलित कीजिए;
(a) का पूछहु तुम धातु, निछोहीजो गुरु कीन्ह अंतरपट ओही। – (i) अपभ्रंश
(b) ढोला मारिय ढिल्लि महँ
मुच्छिउ मेच्छ सरीर। – (ii) ब्रज
(c) जो माँगहु सो देहुँ मनोहर
यहै बात तेरी खोटी – (iii) खड़ी बोली
(d) उसकी चोटी सटकाई लख नागिन
अपनी केंचली छोंड सटक गई। – (iv) अवधी
कोड:(a), (b), (c),(d)
(iii), (iv), (i), (ii)
(iv), (i), (ii), (iii)
सुमेलित-
(a) का पूछहु तुम धातु, निछोही – अवधी
(b) ढोला मारिय ढिल्लि महँ – अपभ्रंश
(c) जो माँगहु सो देहुँ मनोहर – ब्रज
(d) उसकी चोटी सटकाई लख नागिन – खड़ी बोली
(a) का पूछहु तुम धातु, निछोही – अवधी
(b) ढोला मारिय ढिल्लि महँ – अपभ्रंश
(c) जो माँगहु सो देहुँ मनोहर – ब्रज
(d) उसकी चोटी सटकाई लख नागिन – खड़ी बोली
(i), (iv), (iii), (ii)
(ii), (iii), (i), (iv)
28. निम्नलिखित काव्य पंक्तियों को उनकी भाषा के साथ सुमेलित कीजिए:
(a) जसुमति हरि पालने झुलावै – (i) डिंगल(b) तेहि अवसर एक तापस आवा।
तेजपुंज लघु बयस सुहावा॥ – (ii) दखनी
(c) अतिरंग स्वामी सूँ मिलि राति।
बेटी राजा भोज की। – (iii) ब्रज
(d) दखन है नगीना अँगूठी है जग
अँगूठी-कूँ हरकत नगीना है लग। – (iv) अवधी
कोड:(a), (b), (c),(d)
(iii), (iv), (i), (ii)
सुमेलित-
जसुमति हरि पालने झुलावै – ब्रज
तेहि अवसर एक तापस आवा। – अवधी
अतिरंग स्वामी सूँ मिलि राति। – डिंगल
दखन है नगीना अँगूठी है जग – दखनी
जसुमति हरि पालने झुलावै – ब्रज
तेहि अवसर एक तापस आवा। – अवधी
अतिरंग स्वामी सूँ मिलि राति। – डिंगल
दखन है नगीना अँगूठी है जग – दखनी
(iv), (iii), (ii), (i)
(iii), (iv), (i), (ii)
(ii), (iii), (iv), (i)







