संप्रेषण मॉडल
संप्रेषण पर अधिकतर पश्चिमी विचारकों ने ही अपना मत रखा है, भारतीय चिंतन परम्परा में इसका अभाव दिखाई देता है। पश्चिमी विद्वानों के प्रमुख संप्रेषण मॉडल निम्नलिखित है-
1. अरस्तू का संप्रेषण मॉडल, 2. मर्फी का संप्रेषण मॉडल, 3. लॉसवेल का संप्रेषण मॉडल, 4. शैनन और वीवर का संप्रेषण मॉडल, 5. शैरम का संप्रेषण मॉडल, 6. बर्लो का संप्रेषण मॉडल, 7. हेलिकल का संप्रेषण मॉडल, 8. थिल एवं बोवी का संप्रेषण मॉडल, 9. लेसिकर, पेटाइट एवं फ्लैटले मॉडल
संप्रेषण के प्रमुख मॉडल
1. अरस्तू का संप्रेषण मॉडल (Aristotle Model of Communication)
अरस्तू संप्रेषण मॉडल पर विचार करने वाले पहले व्यक्ति थे। अरस्तू संप्रेषण के लिए 3 तत्वों को महत्वपूर्ण मानते हैं- प्रेषक, संदेश और प्राप्तकर्ता (प्रापक)। लेकिन अरस्तू अपने मॉडल में प्रेषक को ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं।
अरस्तू के मॉडल के अनुसार, प्रेषक (स्पीकर) संप्रेषण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह संप्रेषण का पूरा प्रभार अपने कंधों पर लेता है। प्रेषक पहले एक ऐसी सामग्री तैयार करता है, जिससे वह अपने विचारों से श्रोताओं या प्राप्तकर्ताओं को प्रभावित करने में सफल हो। इसलिए वह अपने भाषण में हर उन मुद्दों को उठाता है जो जनता को प्रभावित कर सकें, या जो वे सुनना चाहते हैं।अरस्तू का कहना है कि प्रेषक इस तरह से संवाद करता है कि सुनने वाले (प्रापक) प्रभावित होते हैं और उसी के अनुसार प्रतिक्रिया देते हैं। इस मॉडल के अनुसार वक्ता को संप्रेषण में अपने शब्दों और सामग्री के चयन के बारे में बहुत सावधान रहना चाहिए। उसे अपने लक्षित दर्शकों को समझना चाहिए और फिर अपना भाषण तैयार करना चाहिए।
संप्रेषण का अरस्तू मॉडल व्यापक रूप से स्वीकृत और संप्रेषण का सबसे सामान्य मॉडल है जहाँ प्रेषक उन्हें प्रभावित करने और उन्हें जवाब देने और उनके अनुसार कार्य करने के लिए रिसीवर को सूचना या संदेश भेजता है। संप्रेषण का अरस्तू मॉडल सार्वजनिक स्थलों, सेमिनार तथा व्याख्यान आदि में उत्कृष्टता प्राप्त करने का उपयुक्त मॉडल है, जहाँ प्रेषक एक प्रभावशाली सामग्री को डिजाइन करके अपनी बात स्पष्ट करता है, संदेश को सामने वालों को संप्रेषित करता है और वे उसी के अनुसार प्रतिक्रिया देते हैं। महत्वपूर्ण बात यह है की यहाँ प्रेषक सक्रिय सदस्य है और रिसीवर निष्क्रिय है।
2. मर्फी का संप्रेषण मॉडल (Murphy Model of Communication)
इस मॉडल के प्रतिपादक एच. ए. मर्फी, एच. डब्ल्यू. हिल्डब्रेन्ड तथा जे. पी. थॉमस हैं, जिसे इन्होंने संयुक्त रूप से 1947 ई. में प्रतिपादित किया। इस मॉडल के अनुसार संप्रेषण प्रक्रिया के छः मुख्य तत्त्व होते हैं-
- संदर्भ
- संदेशवाहक
- संदेश
- माध्यम
- प्राप्तकर्त्ता
- प्रतिक्रिया या प्रतिपुष्टि
इस मॉडल में प्रेषक एक संदेश चुनता है तथा उसे संप्रेषित करता है। प्रेषक संदेश को भेजने के लिए किसी उचित माध्यम का चुनाव करता है, जिसके द्वारा प्राप्त होने वाले संदेश पर प्राप्तकर्ता अपनी प्रतिपुष्टि (फीडबैक) देकर संप्रेषण को पूरा करता है।
3. लॉसवेल का संप्रेषण मॉडल (Lasswell’s model of Communication)
लॉसवेल ने सन् 1948 ई. में संप्रेषण का मॉडल प्रस्तुत किया, जिसे दुनिया का पहला व्यवस्थित मॉडल कहा जाता है। इस मॉडल के अनुसार प्रेषक उचित माध्यम का प्रयोग करके प्राप्तकर्ता को अपने विचारों से प्रभावित कर सकता है। अरस्तू ने जहाँ प्रेषक को महत्वपर्ण माना था वहीं लॉसवेल ने माध्यम को ज्यादा महत्व दिया। इनका मॉडल प्रश्न के रूप में था। लॉसवेल के अनुसार- संप्रेषण की किसी प्रक्रिया को समझने के लिए सबसे बेहतर तरीका निम्न पांच प्रश्नों के उत्तर का तलाश करना है-
1. कौन? (प्रेषक)
2. क्या कहा? (संदेश)
3. किस माध्यम से? (संप्रेषण माध्यम)
4. किसके लिए? (श्रोता)
5. किस प्रभाव के साथ? (प्रभाव)
लॉसवेल का मॉडल एक रेखीय संचार प्रक्रिया पर आधारित है, जिसके कारण सीधी रेखा में कार्य करता है। इसमें फीडबैक को स्पष्ट रूप से नहीं दर्शाया गया है, दरअसल लॉसवेल ने प्रभाव के अंतर्गत ही फीडबैक को सम्मलित कर लिया है। संप्रेषण की परिस्थिति का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया है। संचार को जिन पांच भागों में विभाजित किया गया है, वे सभी आपस में अंत:संबंधित हैं। संचार के दौरान उत्पन्न होने वाले व्यवधान को नजर अंदाज किया गया है।
4. शैनन और वीवर का संप्रेषण मॉडल (Shannon and Weaver Model of Communication)
शैनन और वीवर मॉडल, संप्रेषण का सबसे लोकप्रिय मॉडल है और दुनिया भर में व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है। इस मॉडल को सी. ई. शैनन एवं डब्ल्यू. वीवर ने 1949 ई. में प्रस्तुत किया था। शैनन और वीवर मॉडल के अनुसार संदेश वास्तव में उस व्यक्ति से उत्पन्न होता है जिसके पास विचार होता है या जिसके पास जानकारी होती है। यह मॉडल मुख्यतः रेडियो और टेलीफ़ोन के तकनीकी संप्रेषण से संबंधित है। इनके अनुसार संप्रेषण प्रक्रिया में पाँच तत्त्व निहित हैं जो सूचना स्रोत से प्रारम्भ होकर प्रेषक द्वारा कोलाहल स्रोत को पार करते हुए संदेश के रूप में उनके लक्ष्य तक प्राप्तकर्त्ता के पास संप्रेषित होते हैं।
सूचना स्रोत (विचार / संदेश)
↓
ट्रांसमीटर (मुंह से मस्तिष्क / शोर और ध्यान भंग-बाहरी बाधाओं के साथ)
↓
संकेत
↓
प्राप्तकर्ता (संकेतों की प्राप्ति)
↓
लक्ष्य (अंत में संदेश मिलता है)
शैमन तथा वीवर मॉडल के अनुसार संप्रेषण में प्रेषक की अहम भूमिका होती है जो सूचना स्रोत से विचारों को एकत्रित करके संप्रेषण के माध्यम से संदेश को उनके प्राप्तकर्त्ता तक पहुँचाता है। यह प्रेषक संदेश को संदेश बद्ध करके भेजता है।इस मॉडल में कोलाहल या वाह्य शोर को भी महत्व दिया गया है। इनका मत था कि संप्रेषण प्रक्रिया में जिस माध्यम से संदेश प्रेषित होते हैं उसमें शोरगुल का पाया जाना स्वाभाविक है जिसकी वजह से संदेश में अशुद्धि भी मिली होती है। इसीलिए यह मॉडल संदेश को सांकेतिक भाषा में परिवर्तन पर जोर देता है ताकि इन अशुद्धियों को निकाल कर शुद्ध संदेश को संप्रेषित किया जा सके।
5. शैरम का संप्रेषण मॉडल (Schramm’s Model of Communication)
शैनन और वीवर मॉडल को जानने के बाद अब हम शैरम के संप्रेषण के मॉडल पर आते हैं, क्योंकि इसकी जड़ें शैनन और वीवर मॉडल से ही जुडी हैं, उसी को आधार बनाकर शैरम ने नया मॉडल प्रस्तुत किया। दरअसल इन्होंने संप्रेषण के तीन मॉडल पेश किया जिनमें पहला प्रारूप शैनन और वीवर मॉडल का अनुकरण मात्र था। विल्बर शैरम ने संप्रेषण के इस मॉडल को 1954 में प्रस्तुत किया। अंतर यह था की इन्होंने शैनन और वीवर मॉडल के शोर संबंधी अवधारणा को नकार दिया, इनके अनुसार शोर जैसे अशुद्धियाँ संप्रेषण में होती ही नहीं, न ही संदेश कभी अशुद्ध होता है।
इनका दूसरा मॉडल संप्रेषण के माध्यम और प्रेषित करने के तरीके से संबंधित है। दरअसल सूचना का तब तक कोई फायदा नहीं है जब तक कि उसे सावधानीपूर्वक शब्दों में न लिखा जाए और दूसरों तक उचित माध्यम से न पहुँचाया जाए। इस प्रक्रिया में एन्कोडिंग एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि यह विचार को सामग्री में परिवर्तित करके संप्रेषण की प्रक्रिया शुरू करता है। जब सूचना प्राप्तकर्ता तक पहुँच जाती है तो उसकी प्रमुख जिम्मेदारी यह समझने की होती है कि स्पीकर क्या संदेश देना चाहता है। जब तक प्राप्तकर्ता जानकारी को समझने या डिकोड करने में सक्षम नहीं होगा, तब तक प्रेषक क्या संप्रेषित करना चाहता है, संदेश वास्तव में किसी काम का नहीं है। इस प्रकार एन्कोडिंग और डिकोडिंग एक प्रभावी संप्रेषण के दो सबसे महत्वपूर्ण कारक हैं जिनके बिना कोई जानकारी कभी भी दो व्यक्तियों के बीच प्रवाहित नहीं हो सकती है। शैरम के मॉडल के अनुसार, कोडिंग और डिकोडिंग एक प्रभावी संप्रेषण की दो आवश्यक प्रक्रियाएं हैं जिसे उचित मध्यम द्वारा संप्रेषित किया जाना चाहिए।
तीसरे मॉडल में वह जोर देता है कि संप्रेषण तब तक अधूरा है जब तक कि प्रेषक प्राप्तकर्ता से प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं करता है। कोई भी संप्रेषण जहाँ प्रेषक को प्रतिक्रिया नहीं मिलती है, वह संप्रेषण पूर्ण नहीं है और इस प्रकार वह अप्रभावी है। इन्होंने प्राप्तकर्ता और उसके द्वारा दिया गया फीडबैक दोनों को महत्व दिया है।
शैरम का मत था कि किसी व्यक्ति का ज्ञान, अनुभव और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि भी संप्रेषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। विभिन्न संस्कृतियों, धर्म या पृष्ठभूमि के व्यक्ति अलग-अलग तरीकों से संदेश की व्याख्या करते हैं, जिसे संप्रेषण में इग्नोर नहीं किया जा सकता। गलत बॉडी मूवमेंट, हावभाव, चेहरे के भाव और कई अन्य कारकों के कारण कोई भी संदेश विकृत हो सकता है।
6. बर्लो का संप्रेषण मॉडल (Berlo’s Model of Communication)
संप्रेषण का अरस्तू मॉडल स्पीकर को केंद्रीय स्थिति में रखता है और सुझाव देता है कि स्पीकर वह है जो संपूर्ण संप्रेषण को चलाता है, वहीं संप्रेषण का बेर्लो मॉडल बोध क्षमता को महत्व देता है। यहाँ बोधक्षमता का तात्पर्य आँख, नाक, कान, आदि इंद्रियों से प्राप्त ज्ञान से है। इस मॉडल के अनुसार प्रेषक संदेश को अपने ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर सांकेतिक भाषा में परिवर्तित करता है उसके बाद किसी भी माध्यम से उसे श्रोता को भेज देता है। उसके बाद प्राप्तकर्ता अपने ज्ञान, विवेक और संस्कृति के अनुसार संदेश को ग्रहण करता है।
बर्लो का संप्रेषण मॉडल, SMCR मॉडल पर काम करता है। SMCR मॉडल में-
1. S– स्रोत (S– Source)
- संप्रेषण कौशल (Communication Skills)
- मनोवृत्ति (Attitude)
- ज्ञान (Knowledge)
- सामाजिक व्यवस्था (Social System)
- संस्कृति (Culture)
2. M- संदेश (M– Message)
- सामग्री (Content)
- तत्त्व (Element)
- इलाज (Treatment)
- संरचना (Structure)
- कोड (Code)
3. C- चैनल (C – Channel)
4. R- रिसीवर (R – Receiver)
बेरलो के संप्रेषण के मॉडल में कई खामियाँ हैं। संप्रेषण के बर्लो मॉडल के अनुसार, संप्रेषण के लिए स्पीकर और श्रोता को एक सामान्य स्तर (धरातल) पर होना चाहिए जो कभी-कभी वास्तविक परिदृश्य में व्यावहारिक नहीं होता है। इसके अलावा माध्यम, साधन, फीडबैक आदि को भी इस मॉडल में महत्व नहीं दिया गया है।
7. हेलिकल का संप्रेषण मॉडल (Helical Model of Communication)
संप्रेषण का एक और बहुत महत्वपूर्ण मॉडल संप्रेषण का हेलिकल मॉडल है। 1967 में फ्रैंक डांस द्वारा संप्रेषण प्रक्रिया पर कुछ और प्रकाश डालने के लिए हेलिकल मॉडल ऑफ़ कम्युनिकेशन प्रस्तावित किया गया था। फ्रैंक डांस ने हेलिक्स (helix) के समान संप्रेषण प्रक्रिया के बारे में विचार किया।
संप्रेषण के हेलिकल मॉडल के अनुसार, संप्रेषण की प्रक्रिया किसी व्यक्ति के जन्म से ही विकसित होती है और अंतिम समय तक जारी रहती है। सभी जीवित जीव-जंतु अपने जन्म के पहले दिन से संप्रेषण करना शुरू कर देते हैं। जब बीज बोये जाते हैं, तो वे किसान को संदेश देते हैं कि उन्हें पानी, उर्वरकों और खाद की जरूरत है। जब एक पौधा बीज से निकलता है तो वह पानी, सूर्य के प्रकाश, खाद और उर्वरकों की आवश्यकता का संप्रेषण करना शुरू कर देता है, इस प्रकार संप्रेषण के हेलिकल मॉडल का समर्थन करता है। जानवरों, पक्षियों, मछलियों और सभी जीवित प्राणियों पर यही लागू होता है।
8. संप्रेषण का थिल एवं बोवी मॉडल (Thill and Bowie models of communication)
जॉन तिल एवं कोर्टलैंड एल. बोवी के अनुसार व्यावसायिक संप्रेषण घटनाओं की एक कड़ी है जिसकी पाँच अवस्थाएं हैं जो प्रेषक तथा प्राप्तकर्ता को जोड़ती हैं। इस मॉडल के अनुसार संप्रेषक के पास एक विचार होता है, प्रेषक इस विचार को संदेश के रूप में परिवर्तित करके उचित माध्यम से प्रेषित करके संदेश को प्राप्तकर्त्ता तक पहुँचा कर उसकी (अर्थात् प्राप्तकर्त्ता की) प्रतिक्रिया लेता है। संप्रेषण की प्रक्रिया इसी रूप में घटित होती है।
थिल एवं बोवी मॉडल में समाहित घटक निम्न हैं:
विचार, विचार का संदेश के रूप में परिवर्तन, संदेश का संप्रेषण, प्राप्तकर्त्ता द्वारा संदेश प्राप्ति एवं प्राप्तकर्त्ता द्वारा प्रतिपुष्टि।
9. लेसिकर, पेटाइट एवं फ्लैटले मॉडल (Lesikar, Pettit and Flatley model)
इस मॉडल को संवेदनशीलता मॉडल के रूप में प्रतिपादित किया गया। इसमें संप्रेषण प्रक्रिया संदेश प्रेषण से प्रारम्भ होकर क्रम की पुनःआवत्ति (The Cycle Repeated) पर समाप्त होता है। इन विद्वानों ने स्पष्ट किया कि संप्रेषण प्रक्रिया में संवेदन तंत्र का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है क्योंकि संदेश प्राप्तकर्त्ता द्वारा संदेश संवेदन तंत्र द्वारा प्राप्त किया जाता है। संवेदन तंत्र संवाद को खोजकर संवाद के साथ-साथ पहले से उपलब्ध कुछ अन्य सूचनाएँ भी एकत्रित करता है। इसमें संवाद को संदेश माध्यम में उपलब्ध शोर से अलग रखा जाता है ताकि संदेश में अशुद्धता न हो। यहाँ संवाद को दिया गया अर्थ संवेदन तंत्र से कुछ प्रतिक्रिया भी प्राप्त कर सकता है जो संदेश प्रेषक को मौखिक अथवा अमौखिक रूप में भेजी जा सकती है।
इस प्रक्रिया में निम्न संघटक शामिल रहते हैं:
- संदेश प्रेषण
- संवेदन तंत्र द्वारा संवाद की खोज
- निस्पंदन प्रक्रिया
- प्रतिक्रिया की रचना एवं प्रेषण
- क्रम की पुनः आवत्ति
इस मॉडल के अनुसार संप्रेषण एक गतिशील प्रक्रिया है जिसमें किसी विशेष उद्देश्य या लक्ष्य प्राप्ति से सम्बन्धित क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं की एक श्रृंखला समाहित होती है। अतः संप्रेषण एक द्विमार्गी प्रक्रिया है जहाँ संप्रेषक की संप्रेषण क्षमता व प्राप्तकर्त्ता की ग्राह्य क्षमता दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं। सफल संप्रेषण प्रक्रिया के लिये प्रतिपुष्टि (फीडबैक) की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि इसके बिना संप्रेषण प्रक्रिया अधूरी रहती है।